अटल बिहारी वाजपेयी 100वां जन्मदिवस: (Centenary Birthday Celebrations Atal Bihari Vajpayee) पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज 100वां जन्मदिवस पूरा देश और भारतीय जनता पार्टी धूमधाम से मना रही है.
राष्ट्रवादी, जन-नायक, कवि, पत्रकार, साहित्यकार जनमानस के ह्रदय में बसने वाले, भारत रत्न से सम्मानित अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था.
तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त 2018 में निधन हो गया था.
अटल बिहारी वाजपेयी 100वां जन्मदिवस
अटल बिहारी वाजपेयी की आज सौंवी जयंती (Atal Bihari Vajpayee 100th Birth Anniversary) है. अटल बिहारी वाजपेयी न सिर्फ भारतीय जनता पार्टी बल्कि भारतीय राजनीति की वो दैदीप्यमान हस्ती थे. जिनकी प्रतिभा और हाजिरजवाबी के कायल विपक्षी दलों के नेता भी थे.
उनकी दोस्ती हर दल के नेताओं से थी. वो किसी को पराया नहीं मानते थे. ओजस्वी वाणी से लाखों की जनसभा में भी समां बांध लेने वाले वाजपेयी सीमाओं से परे थे. सादगी की प्रतिमूर्ति और विनम्र स्वभाव से लोगों के दिलों में राज करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी की नेतृत्व क्षमता अद्भुत थी.
अटल जी से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें.
एक राष्ट्रवादी के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी जी पूरे देश के थे. उनका व्यक्तित्व बहुत विराट था. वो जहां पर भी जाते, मानो वहीं के हो जाते. अटल बिहारी वाजपेयी अपने चुटीले अंदाज के लिए भी जाने जाते थे. वो एक महान कवि और ‘युगद्रष्टा’ भी थे.
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर उन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया था. उनके जीवन से जुड़ी कई यादें आज भी लोगों के दिलोदिमाग में बसी हुई हैं. संघ के स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने कई राज्यों में काम किया. यूपी, एमपी, बिहार, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल तक सब लोग उन्हें याद कर रहे हैं.
अनसुना किस्सा
उत्तरप्रदेश की बात करें तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कानपुर और गोरखपुर से गहरा और पारिवारिक नाता रहा है. कानपुर और गोरखपुर के आत्मीयता से भरे किस्से वो लोगों को बड़े प्रेम और चाव से सुनाते थे.
कानपुर में पढ़ाई लिखाई हुई तो कम लोगों को ही ये मालूम होगा कि वो गोरखपुर में पहली बार 1940 में एक बारात में सहबाला बनकर आए थे. वो बारात किसी और की नहीं बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी के भाई की थी. इस किस्से का जिक्र वो पूर्वांचल खासकर गोरखपुर आने पर हमेशा किया करते थे.
ससुराल मेरी है और मजे तुम उड़ाते हो
भाई के विवाह से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने तक उनका गोरखपुर प्रवास कई बार हुआ. वो व्यस्तता के बीच भी समय निकालकर भाई की ससुराल जाना नहीं भूलते थे. गोरखपुर में पंडित मथुरा प्रसाद दीक्षित का आवास है. उनके दो बेटे और पांच बेटियां थीं. उनकी एक पुत्री रामेश्वरी का विवाह अटल बिहारी वाजपेयी जी के बड़े भाई प्रेम बाजपेयी से हुआ था.
बड़े भाई की बारात में अटल बिहारी वाजपेयी का गोरखपुर में पहली एंट्री सहबाला के रूप में हुई तो उनका विशेष स्वागत सत्कार हुआ. तब किसी ने सोचा भी न होगा कि ये होनहार लड़का एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा.
उनके करीबी लोगों का मानना है कि गोरखपुर आने पर बड़े भाई की ससुराल जरूर जाते थे. यहां तक कि उनके बड़े भाई प्रेम बाजपेयी ने एक बार मजाकिया अंदाज में चुटकी लेते हुए अटल बिहारी वाजपेयी जी से कहा था, ‘ससुराल मेरी है और मजे तुम उड़ाते हो, दामाद मैं, खातिरदारी और मौज तुम्हारी, ये खूब रही’. इसका जिक्र खुद अटल बिहारी वाजपेयी जी ने एक बार अपने संबोधन में किया था.
प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 1998 में दिग्विजय नाथ डिग्री कॉलेज के प्रांगण की चुनावी जनसभा में कहा था कि गोरखपुर के लोगों से मेरा विशेष लगाव और नाता है. यहां मेरी ससुराल है और यहां के लोगों से मेरा खास रिश्ता है.
भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था. तीन बार प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी का 16 अगस्त 2018 में निधन हो गया था.
महान राष्ट्रवादी और भारत के जनमानस के ह्रदय में बसने वाले, भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को शत् शत् नमन.
अटल बिहारी वाजपेयी तीन अविस्मरणीय कवितायं:
गीत नया गाता हूं… दो अनुभूतियां
पहली अनुभूति
गीत नहीं गाता हूं
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
दूसरी अनुभूति
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
मौत से ठन गई
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा।
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा
क़दम मिलाकर चलना होगा