ईरान: ईरान ने इस्राइल (Israel) से युद्ध के दौरान लागू संघर्षविराम के बाद भारत का विशेष रूप से धन्यवाद किया है। युद्ध की समाप्ति से राहत की सांस ले रहे ईरान का भारत को इस तरह विशेष रूप से धन्यवाद देना न केवल एक आपस में कूटनीतिक सौहार्द का संकेत है बल्कि यह भारत के साथ दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व के बदलते रणनीतिक समीकरणों की ओर भी इशारा करता है।
ईरान ने भारत के लिए क्या कहा?
भारत में स्थित ईरानी दूतावास के बयान में कहा गया है कि ‘इस भीषण आक्रमण के सामने ईरान के लोगों का मजबूती से खड़ा रहना उनमें अपनी मातृभूमि तथा देश की गरिमा की रक्षा करने का भाव ही नहीं दिखाता, अपितु संयुक्त राष्ट्र चार्टर, मानवीय मूल्यों तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के मौलिक मानदंडों के गंभीर उल्लंघन के विरुद्ध प्रतिरोध को भी दर्शाता है।’ इसी बयान में भारत को धन्यवाद देते हुए लिखा है कि ‘हम महान भारत देश के लोगों तथा संस्थानों द्वारा जो वास्तविक एवं अमूल्य समर्थन दिखाया गया है उसकी पूरी ईमानदारी से तारीफ करते हैं। बेशक, यह एकजुटता दोनों देशों के बीच एक लंबे वक्त से रहे सांस्कृतिक, सभ्यतागत तथा मानवीय रिश्तों में बसी हुई है, जो शांति, स्थिरता तथा वैश्विक न्याय को और दृढ़ करेगी।’ इस बयान के अंत में दूतावास ने लिखा है-‘जय ईरान-जय हिन्द’।
इस बयान से दो बातों की ओर संकेत होता है। एक, भारत जिस शांति और वार्ता का पक्षधर रहा है उसी राह पर चलते हुए यह संघर्षविराम संभव हो पाया है। दूसरे, संघर्षविराम कराने में अमेरिका के बड़बोले राष्ट्रपति ट्रंप चाहे जितना श्रेय लेते रहें, इसमें भारत की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
Statement of the Embassy of the Islamic Republic of Iran in New Delhi
On the occasion of the Iranian nation’s victory in the face of military aggression by the Zionist regime and the United States, the Embassy of the Islamic Republic of Iran in New Delhi extends its heartfelt…
— Iran in India (@Iran_in_India) June 25, 2025
ईरान और भारत के सबंध कैसे रहे?
भारत और ईरान के संबंध सदियों पुराने हैं, पारसी संस्कृति, फारसी भाषा और साहित्य से लेकर व्यापारिक आदान-प्रदान तक दोनों देशों के जन मानस के बीच घनिष्ट संबंध रहे हैं। फारसी भाषा एक समय भारत की सबसे प्रचलित भाषा हुआ करती थी। ईरानी दूतावास के बयान में इस सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करना यही दर्शाता है कि यह बयान केवल औपचारिकता नहीं बल्कि एक गहरी ऐतिहासिक समझ से उपजा है।
ईरान का यह बयान भारत को एक संतुलित और विश्वसनीय मध्यस्थ या सहानुभूतिपूर्ण पक्ष के रूप में प्रस्तुत करता है। भारत ने हमेशा ही इस्राएल और ईरान, दोनों से रिश्ते साधे रखने की कोशिश की है। तेल व उर्जा के क्षेत्र में ईरान, तो तकनीक और रक्षा के क्षेत्र में इस्राएल भारत के साझीदार रहे हैं।
भारत की विदेश नीति
भारत की निष्पक्ष नीति, जिसमें वह किसी भी भू-राजनीतिक ध्रुव, चाहे वह अमेरिका हो या रूस, से दूरी बनाए रखता है, इस स्थिति में यह अत्यंत उपयोगी रही है। ईरान ने बयान जारी करके जो कृतज्ञता प्रकट की है, उससे संकेत मिलता है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की तटस्थता का सम्मान कर रहा है। ईरानी दूतावास का बयान केवल सरकार के लिए नहीं, बल्कि ‘भारत के लोगों’ के प्रति सम्मान का भाव दर्शाता है। यानी ईरान सिर्फ सरकारों के स्तर पर नहीं, बल्कि ‘लोगों के बीच पारस्परिक संबंधों’ को बहुत अधिक महत्व देता है। यह नजरिया भारतीय समाज में ईरान के प्रति सकारात्मक भावना को और पुष्ट ही करेगा।
प्रत्यक्ष रूप से देखें तो ईरान और इस्राएल के बीच संघर्ष का भारत पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है, परोक्ष रूप से देखें तो तेल आपूर्ति, समुद्री व्यापार, क्षेत्रीय स्थिरता और प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा पर इसका असर पड़ता स्वाभाविक है। भारत एक ऊर्जा-निर्भर देश है और मध्य पूर्व में शांति उसकी आर्थिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है। ऐसे में भारत को धन्यवाद देना, भारत की मध्यस्थता या शांतिप्रिय भूमिका के प्रति स्वीकृति के नाते भी देखा जा सकता है।
ईरान के इस सौहार्दपूर्ण व्यवहार से आने वाले वक्त में भारत को कुछ रणनीतिक फायदा भी पहुंच सकता है। ईरान के साथ ऊर्जा और व्यापारिक सहयोग को नया बल मिल सकता है। भारत के चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट को नई गति मिल सकती है, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के मुकाबले एक मजबूत वैकल्पिक मार्ग हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों, विशेषकर मुस्लिम जगत में भारत की एक संतुलित और शांतिप्रिय देश के नाते छवि और मजबूत हो सकती है।