ईरान: इसराइल हमेशा से ईरान की परमाणु क्षमता विकसित करने के खिलाफ रहा है क्योंकि मध्य पूर्व में यहूदी देश इसराइल के अलावा मुस्लिम देश ईरान का और कोई इतना बड़ा दुश्मन देश नही है। इससें पहले भी कई बार ईरान इसराइल और यहूदियों के अस्तित्व को खत्म करने की धमकी दे चुका है। और यही इस संघर्ष का मूल है।
ईरान के साथ संघर्ष और इसराइल के हमले का प्राथमिक उदेश्य ईरान की आणविक शक्ति और इसके सहायक अन्य संसाधनों को नष्ट करना था. इस जंग में इजरायल ने ईरान की परमाणु बम बनाने की शक्ति को लगभग खत्म कर दिया है. 13 जून से शुरू हुए हमलों में इजरायल ने ईरान के फोर्डो, नतांज, और इस्फहान जैसे प्रमुख परमाणु स्थलों को निशाना बनाया है।
विशेषज्ञों द्वारा इस संघर्ष में इसराइल की खुफ़िया एजेंसी मोसाद का बहुत महत्वपूर्ण योगदान माना जा रहा है और इसका खमियाज़ा अब ईरान में इसराइल के लिए जासूसी करने वालों और उन आम नागरिकों को भी उठाना पड़ रहा है जो सामान्य तौर पर ईरानी सरकार की इस्लामिक कट्टरपंथी नीतियों से असहमत हैं। इसके चलते अब इसराइल के साथ हाल के संघर्ष विराम के बाद ईरान में गिरफ़्तारियों और मौत की सज़ा देने का सिलसिला शुरू हो गया है.
ईरान में गिरफ्तारियाँ और मौत की सज़ा
बीबीसी की एक न्यूज के नुसार ईरानी अधिकारियों ने इसराइली खुफ़िया एजेंसियों से जुड़े होने के शक के आधार पर कई ईरान के लोगों को गिरफ़्तारी कर लिया है और उनमें से कइयों को फांसी पर भी चढ़ा दिया है. इस संबंध में ईरानी अधिकारियों का कहना है कि इसराइल के मोसाद के एजेंटों ने ईरानी खुफ़िया सेवाओं में अभूतपूर्व ढंग से घुसपैठ कर ली है. साथ ही इन अधिकारियों को इस बात का भी शक है कि ईरान के हाईप्रोफ़ाइल नेताओं की जिस तरह से हत्या हुई है, उसमें इसराइली सेना को, ख़ुफिया एजेंटों से मिली जानकारियों का हाथ रहा होगा.
इसराइल ने हाल के संघर्ष में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के कई सीनियर कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी. ईरान इन हत्याओं के लिए देश के भीतर काम कर रहे इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के एजेंटों को जिम्मेदार मानता है. इसराइल ने जिस सटीकता से और बड़े पैमाने पर ईरानी नेताओं और परमाणु वैज्ञानिकों को मारा है उसने ईरानी अधिकारियों को हिला दिया है.
ईरान में जासूसी के आरोप में फांसी
इसराइल के साथ संघर्ष के बाद ईरान के सुरक्षा अधिकारी देश की सुरक्षा को ख़तरे का हवाला देकर हर उस शख़्स को निशाना बना रहे हैं जिस पर विदेशी खु़फ़िया एजेंसियों के साथ काम करने का संदेह है. लेकिन कई लोगों को डर है कि ये सब असहमति की आवाज़ों को दबाने और लोगों को काबू में रखने के लिए किया जा रहा है.
12 दिनों तक चले संघर्ष के दौरान ईरानी अधिकारियों ने इसराइल के लिए जासूसी करने के आरोप में तीन लोगों को फांसी दी है. युद्धविराम होने के ठीक एक दिन बाद बुधवार को तीन और लोगों को इसी तरह के आरोपों में फांसी दे दी गई. ईरान के अधिकारियों ने तब से देश भर में सैकड़ों संदिग्धों को जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार करने की घोषणा की और सरकारी टेलीविज़न ने हिरासत में लिए गए लोगों का कथित कबूलनामा भी प्रसारित किया है.
मानवाधिकार समूहों की चिंता
ईरान के मानवाधिकार समूहों और कार्यकर्ताओं ने इन घटनाक्रमों पर चिंता जताई है. क्योंकि ईरान में जबरन कबूलनामा लेने और गलत ढंग से मुक़दमा चलाने की परंपरा रही है. आशंका है कि आगे और भी फांसियां दी जा सकती हैं.
ईरान के ख़ुफ़िया मंत्रालय ने कहा है कि वो सीआईए, मोसाद और एमआई6 जैसे “पश्चिमी और इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी’ कहे जाने वाले नेटवर्क के ख़िलाफ़ लगातार लड़ाई लड़ रहा है.
आईआरजीसी से जुड़ी फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी ने कहा है कि 13 जून को इसराइल की ओर से हमला शुरू करने के बाद से “इसराइली जासूसी नेटवर्क देश के भीतर बेहद सक्रिय हो गया है”. फ़ार्स ने बताया कि 12 दिनों के भीतर ईरानी ख़ुफ़िया और सुरक्षा बलों ने “इस नेटवर्क से जुड़े 700 से ज्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया है.
ईरानी लोगों ने बीबीसी फ़ारसी को बताया कि उन्हें ईरान के ख़ुफ़िया मंत्रालय के चेतावनी वाले टेक्स्ट मैसेज मिले हैं. इनमें कहा गया कि उनके फ़ोन नंबर इसराइल से जुड़े सोशल मीडिया पेजों पर देखे गए हैं. उन्हें इन पेजों से हटने के लिए कहा गया है. ऐसा न करने पर उन पर मुक़दमा चलाने की चेतावनी दी गई है.
ईरान में सरकारी दमन का इतिहास
ईरान के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा है कि हालिया घटनाएं 1980 के दशक की घटनाओं की तरह थीं, जब ईरानी अधिकारियों ने ईरान-इराक युद्ध के दौरान राजनीतिक विपक्ष को बेरहमी से कुचल दिया था.
कई लोगों को डर है कि इसराइल के साथ हुए संघर्ष के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईरान की स्थिति कमजोर हो जाने की वजह से ईरानी अधिकारी एक बार फिर दमन की नीतियां अपना सकते हैं. इनमें सामूहिक गिरफ़्तारियां, फांसियां और कठोर दमन जैसी कार्रवाइयां की जा सकती हैं.
आलोचक 1988 की ईरान की घटनाओं की ओर इशारा करते हैं, जब मानवाधिकार समूहों के मुताबिक, हज़ारों राजनीतिक कैदियों (जिनमें से कई पहले से ही अपनी सजा काट रहे थे) को कथित ” डेथ कमीशन” की ओर से संक्षिप्त और गुप्त सुनवाई के बाद फांसी की सजा दी गई थी. ज़्यादातर पीड़ितों को बगैर नाम-निशान वाले सामूहिक कब्रों में दफ़नाया गया था.
पत्रकारों पर शिकंजा
ईरान सरकार ने विदेशों में फ़ारसी भाषा के मीडिया संस्थानों के लिए काम करने वाले पत्रकारों पर भी दबाव बढ़ा दिया है. इनमें बीबीसी फ़ारसी, लंदन स्थित ईरान इंटरनेशनल और मनोटो टीवी शामिल हैं.
ईरान इंटरनेशनल के मुताबिक़ आईआरजीसी ने उसके एक टीवी प्रजेंटर की मां, पिता और भाई को गिरफ़्तार कर लिया है. ताकि ये प्रजेंटर ईरान-इसराइल संघर्ष की रिपोर्टिंग छोड़ दे. प्रजेंटर को उसके पिता का एक फ़ोन कॉल आया (जो सुरक्षा एजेंटों के कहने पर किया गया था), जिसमें उसे इस्तीफ़ा देने के लिए कहा गया था. इसमें कहा गया था कि ऐसा न करने पर बुरे नतीजे हो सकते हैं.
ईरान- इसराइल संघर्ष शुरू होने के बाद बीबीसी फ़ारसी के पत्रकारों और उनके परिवारों को मिल रही धमकियां और गंभीर हो गई थीं. इन धमकियों से प्रभावित पत्रकारों ने कहा है कि ईरानी सुरक्षा अधिकारियों ने उनके परिवारों से संपर्क कर कहा है कि युद्ध की स्थिति में वे परिवार के सदस्यों को बंधक बनाए जाने को सही ठहरा सकते हैं. उन्होंने पत्रकारों को मोहर्रिब कहा. मोहर्रिब अल्लाह के ख़िलाफ युद्ध करने वालों को कहा जाता है. ईरानी क़ानून के मुताबिक़ ये आरोप साबित हो गया तो मौत की सज़ा मिल सकती है.
मनोटो टीवी ने भी ऐसे ही मामलों की जानकारी दी है, जिनमें कर्मचारियों के परिवारों को धमकी दी गई है और चैनलों से संबंध तोड़ लेने का कहा गया है. कुछ के रिश्तेदारों को कहा गया है कि उन पर ”जासूसी के आरोप” लगाए जा सकते हैं. ये दोनों आरोप ईरानी कानून के तहत मौत की सज़ा दिला सकते हैं.
ईरानी सुरक्षा बलों द्वारा असहमति दबाने की कोशिश
विश्लेषकों का मानना है कि ये तरीके असहमति की आवाज़ों को दबाने और निर्वासित मीडियाकर्मियों को डराने की एक बड़ी योजना का हिस्सा हैं. सुरक्षा बलों ने दर्जनों कार्यकर्ताओं, लेखकों और कलाकारों को भी गिरफ़्तार किया है. कइयों को बगैर आरोप के गिरफ़्तार किया गया है.
ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि 2022 के “महिला, ज़िंदगी और आज़ादी” नाम के विरोध प्रदर्शनों के दौरान मारे गए लोगों के परिजनों को भी निशाना बनाया जा रहा है.
युद्ध के दौरान ईरान सरकार ने इंटरनेट की पहुंच पर काफी कड़ा प्रतिबंध लगा दिया था. युद्धविराम के बाद भी इसे पूरी तरह से बहाल नहीं किया गया है. सरकार की ओर संकट के समय ख़ासकर सरकार विरोधी राष्ट्रव्यापी प्रदर्शनों के दौरान इंटरनेट को सीमित कर देना ईरान में सामान्य पैटर्न बन गया है. इसके अलावा ज़्यादातर सोशल मीडिया नेटवर्क जैसे इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, एक्स और यूट्यूब के साथ-साथ ही बीबीसी फ़ारसी जैसी न्यूज वेबसाइट्स ईरान में पहले ही ब्लॉक हैं और सिर्फ़ वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क यानी वीपीएन प्रॉक्सी सर्विस के ज़रिये ही उन्हें देखा जा सकता है.
(इनपुट इंटरनेट मीडिया)