हिंदू धर्म में एकादशी को व्रतों का राजा माना जाता है. यह भगवान विष्णु को समर्पित एक पवित्र तिथि है. एकादशी के दिन व्रत रखने से शारीरिक और मानसिक परेशानियां दूर होती हैं तथा प्रभु श्रीहरि की कृपा से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
हिंदू पञ्चाङ्ग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। एक पूर्णिमा होने पर और दूसरी अमावस्या होने पर। पूर्णिमा से आगे आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के उपरान्त आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। इन दोनों प्रकार की एकादशियोँ का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है।एकादशी प्रभु श्रीहरि को समर्पित व्रत है
मास के अनुसार एकादशी के नाम
वर्ष के प्रत्येक मास के शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष मे आनेवाली एकादशी तिथियों के नाम सहित विवरण,
इस प्रकार वर्ष मे कम से कम 24 एकादशी होती हैं, परन्तु हर 3 बर्ष में अधिक मास की स्थति मे यह संख्या 26 हो जाती है।
एकादशी के प्रकार
एकादशी दो प्रकार की होती है। जिसमें एक सम्पूर्णा एकादशी और दूसरी विद्धा एकादशी
- सम्पूर्णा एकादशी: सम्पूर्णा एकादशी तिथि में केवल एकादशी तिथि होती है अन्य किसी तिथि का उसमे मिश्रण नहीं होता है।
- विद्धा एकादशी: विद्धा एकादशी भी दो प्रकार की होती है, जिसमें एक पूर्वविद्धा एकादशी और दूसरी परविद्धा एकादशी।
पूर्वविद्धा एकादशी:
जिस एकादशी में दशमी मिश्रित हो उसे पूर्वविद्धा एकादशी कहते हैं। यदि एकादशी के दिन अरुणोदय काल (सूरज निकलने से 1घंटा 36 मिनट का समय) में यदि दशमी का नाम मात्र अंश भी रह गया तो ऐसी एकादशी पूर्वविद्धा दोष से दोषयुक्त होने के कारण वर्जनीय है यह एकादशी दैत्यों का बल बढ़ाने वाली और पुण्यों का नाश करने वाली होती है।
इसका पुराणों में एक कारण बताया गया है कि, जब भगवन वाराह और हिरणयाकश्यपु के मध्य युद्ध बहुत समय तक चलता रहा किन्तु उसकी मृत्यु नहीं हो रही थी तो देवताओं ने विष्णुजी से इसका कारण पूछा, तो भगवान श्रीहरी ने कहा दशमी युक्त एकादशी दैत्यों का बल बढ़ाने वाली होती है और इसके व्रत करने से दैत्यों (असुर, राक्षस) का बल बढ़ जाता है, अतः ऐसी एकादशी पूर्वविद्धा दोष से दोषयुक्त होने के कारण व्रत के लिए वर्जनीय है।
वासरं दशमीविधं दैत्यानां पुष्टिवर्धनम ।
मदीयं नास्ति सन्देह: सत्यं सत्यं पितामहः ॥ [पद्मपुराण]
पद्मपुराण के अनुसार दशमी मिश्रित एकादशी दैत्यों के बल बढ़ाने वाली है इसमें कोई भी संदेह नहीं है।
परविद्धा एकादशी
द्वादशी मिश्रित एकादशी को परविद्धा एकादशी कहते हैं और द्वादशी मिश्रित एकादशी सर्वदा ही ग्रहण करने, पूजा, जप, तप और व्रत के योग्य है।
द्वादशी मिश्रिता ग्राह्य सर्वत्र एकादशी तिथि।
इसलिए भक्तों को परविद्धा एकादशी ही रखनी चाहिए। ऐसी एकादशी का पालन करने से भक्ति में वृद्धि होती है। लेकिन दशमी मिश्रित (पूर्वविद्धा एकादशी) एकादशी से पुण्य क्षीण होते हैं और दैत्यों (असुर, राक्षस) का बल बढ़ जाता है।
साल 2025 एकादशी तिथि
जनवरी में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (पौष पुत्रदा एकादशी) 09 जनवरी, दोपहर 12:23 बजे – 10 जनवरी, सुबह 10:20 बजे,
- कृष्ण पक्ष एकादशी (शत तिला एकादशी) 24 जनवरी, शाम 7:25 बजे – 25 जनवरी, रात 8:32 बजे,
फरवरी में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (जया एकादशी) 07 फरवरी, रात 9:26 बजे – 08 फरवरी, 8:16 अपराह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी 23 फरवरी, 1:56 अपराह्न – 24 फरवरी, 1:45 अपराह्न
मार्च में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (अमलकी एकादशी) मार्च 09, सुबह 7:45 – मार्च 10, 7:45 पूर्वाह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी (पापमोचनी एकादशी, वैष्णव पापमोचनी एकादशी) मार्च 25, प्रातः 5:05 – मार्च 26, प्रातः 3:45 पूर्वाह्न
अप्रैल में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (कामदा एकादशी) अप्रैल 07, रात्रि 8:00 बजे – अप्रैल 08, रात्रि 9:13 अपराह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी (वरुथिनी एकादशी) अप्रैल 23, 4:43 अपराह्न – 24 अप्रैल, 2:32 अपराह्न
मई में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (मोहिनी एकादशी) 07 मई, 10:20 पूर्वाह्न – 08 मई, 12:29 अपराह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी (अपरा एकादशी)23 मई, 1:12 पूर्वाह्न – 23 मई, 10:30 अपराह्न
जून में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (निर्जला एकादशी) 06 जून, 2:16 पूर्वाह्न – 07 जून, 4:48 पूर्वाह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी (योगिनी एकादशी, वैष्णव योगिनी एकादशी) 21 जून, 7:19 पूर्वाह्न – 22 जून, 4:28 पूर्वाह्न
जुलाई में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (शयनी एकादशी) जुलाई 05, 6:59 अपराह्न – 06 जुलाई, 9:15 अपराह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी (कामिका एकादशी) जुलाई 20, 12:13 अपराह्न – 21 जुलाई, 9:39 पूर्वाह्न
अगस्त में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (श्रावण पुत्रदा एकादशी) अगस्त 04, 11:42 पूर्वाह्न – 05 अगस्त, 1:12 अपराह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी (अजा एकादशी) 18 अगस्त, 5:23 अपराह्न – 19 अगस्त, 3:33 अपराह्न
सितंबर में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (पार्श्व एकादशी) सितंबर 03, 3:53 पूर्वाह्न – 04 सितंबर, 4:22 पूर्वाह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी (इंदिरा एकादशी) सितंबर 17, 12:22 पूर्वाह्न – 17 सितंबर, 11:40 अपराह्न
अक्टूबर में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष एकादशी (पापांकुशा एकादशी) 02 अक्टूबर, 7:11 अपराह्न – 03 अक्टूबर, 6:33 अपराह्न
- कृष्ण पक्ष एकादशी (रमा एकादशी) 16 अक्टूबर, 10:36 पूर्वाह्न – 17 अक्टूबर, 11:12 पूर्वाह्न
नवंबर में एकादशी तिथि:
- शुक्ल पक्ष में एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) 01 नवंबर, सुबह 9:12 बजे – 02 नवंबर, सुबह 7:32 बजे
- कृष्ण पक्ष एकादशी (उत्पन्न एकादशी) 15 नवंबर, 12:50 बजे सुबह – 16 नवंबर, 2:37 बजे
- शुक्ल पक्ष एकादशी (मोक्षदा एकादशी) 30 नवंबर, 9:29 बजे – 01 दिसंबर, 7:01 बजे
दिसंबर में एकादशी तिथि:
- कृष्ण पक्ष एकादशी (सफला एकादशी) 14 दिसंबर, शाम 6:50 बजे – 15 दिसंबर, रात 9:20 बजे,
- शुक्ल पक्ष एकादशी (पौस पुत्रदा एकादशी) 30 दिसंबर, सुबह 7:51 बजे – 31 दिसंबर, सुबह 5:01 बजे
एकादशी व्रत कैसे करें?
एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी तिथि के दिन से कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना पड़ेगा। इस दिन से मांस, कांदा (प्याज), मसूर की दाल चावल आदि का निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन व आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ सुथरा कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। यदि यह भी सम्भव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर सही विष्णुजी की पूजा करें। संभव है तब मंदिर में जाकर या तो स्वयं गीता पाठ करें अथवा पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें। व्रत के दिन प्रभु श्रीहरि के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि में सदैव मानव कल्याण के मार्ग पर चलूँगा और कभी भी किसी का मन नहीं दुखाऊँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करें।
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश मन्त्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाएँ, अर्थात उनके नामों का जाप करते रहें। भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें कि- हे त्रिलोकीनाथ! मुझे इस व्रत को को पूरी श्रद्धा, भक्ति और नियम से पूरा करने की शक्ति प्रदान करें। इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए। किन्तु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है। वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।
एकादशी के व्रत के दिन अपना काम करते हुए नियम और भक्ति-भाव से रहकर मन ही मन में प्रभु श्रहरि के नाम का जाप करते रहें।
एकादशी के व्रत में फलाहारी को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। सर्वाधिक माननीय फल, ऋतु फल को माना गया है जिसमें, केला, आम, किशमिश (अंगूर), अमरूद, पपीता, या अन्य स्थान के अनुसार अमृत फलों का सेवन कर सकते हैं। एकादशी की पूजा में प्रत्येक भोज्य पदार्थ या वस्तु का प्रभु श्रीहरि को तुलसीदल के साथ भोग लगाकर ही ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान और दक्षिणा देना चाहिए। किसी भी व्रत में जातक को क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलने चाहिए।
हर एकादशी को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है l
“राम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे ।। सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने ।।”
एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से विष्णु सहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l
एकादशी व्रत का महत्व
सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी व्रत करने वाला व्यक्ति इस लोक में समस्त सुख भोगकर मृत्य के बाद स्वर्ग लोक में स्थान पाता है। जनवरी के महीने में दो खास एकादशी का व्रत रखा जाता है, जिनमें एक पुत्रदा एकादशी और दूसरी षटतिला एकादशी होती है।
एकादशी व्रत के विषय में विस्तारपूर्वक वर्णन पद्म पुराण में किया गया है। इसमें बताया गया है कि पांडु पुत्र भीम ने जीवन में कोई भी व्रत नहीं किया था। लेकिन अपनी मुक्ति की चिंता होने पर उन्होंने महर्षि वेद व्यासजी से पूछा था कि वह कौन सा व्रत करें कि उन्हें भी मुक्ति मिल पाए क्योंकि वह अति-भूख के कारण कोई भी व्रत रख पाने में असमर्थ हैं। ऐसे में महर्षि वेद व्यासजी ने उनको एकादशी व्रत की महिमा बताई थी और ज्येष्ठ मास की ‘निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए कहा था। वैसे तो साल में 24 एकादशी का व्रत रखने का विधान है लेकिन जो लोग 24 एकादशी का व्रत नहीं रख पाते हैं वह कुछ महत्वपूर्ण एकादशी का व्रत रखते हैं जैसे देवशयनी एकादशी, देव प्रबोधिनी एकादशी, निर्जला एकादशी, मोक्षदा एकादशी, पापमोचनी एकादशी। साथ ही कुछ लोग एकादशी का व्रत नहीं रख पाने पर इस दिन चावल नहीं खाते हैं क्योंकि एकादशी व्रत में चावल और चावल से बनी चीजों को खाने की मनाही मानी गई है।
श्री विष्णु स्तुति
एकादशी के दिन भगवान की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठ कर पूजा शुरू करने से पहले आचमन करें और आचमन करते समय निम्न लिखित मंत्र बोलें।
‘ॐ केशवाय नमः’,
‘ॐ नाराणाय नमः’,
‘ॐ माधवाय नमः’,
‘ॐ हृषीकेशाय नमः’
उसके बाद समर्पण भाव से हाँथ जोड़कर भगवान विष्णुजी की स्तुति करें।
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्,
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्.
एकादशी व्रत कथा (Ekadashi Vrat Katha)
एकादशी व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह व्रत भगवान विष्णु की आराधना और उपासना के लिए रखा जाता है। एकादशी व्रत हर माह में दो बार आता है, एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। इस व्रत की महिमा और फल के बारे में कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख पांडवों की कथा इस प्रकार है,
पांडवों की एकादशी व्रत कथा
महाभारत के समय की बात है, जब पांडव वनवास में थे। एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे माधव! कृपया हमें ऐसा व्रत बताइये जिससे हम अपने सभी पापों से मुक्ति पा सकें और मोक्ष प्राप्त कर सकें।”
तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का महत्त्व बताते हुए एक कथा सुनाई। उन्होंने कहा, “हे युधिष्ठिर! सतयुग में महिध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसके छोटे भाई वज्रध्वज ने ईर्ष्या के कारण उसे मार डाला और उसके शरीर को पीपल के पेड़ के नीचे दफना दिया। राजा महिध्वज की आत्मा उस पीपल के पेड़ में वास करने लगी और बहुत कष्ट सहने लगी।
भगवान श्रीकृष्ण ने आगे बताया, “एक दिन उस वन में वल्मीकि ऋषि आए। उन्होंने उस आत्मा की व्यथा को समझा और राजा महिध्वज की आत्मा को शांति दिलाने का संकल्प लिया। वल्मीकि ऋषि ने माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया और उसकी पुण्य फल से उस आत्मा को मुक्ति दिलाई। तब से यह माना जाता है कि एकादशी व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “जो व्यक्ति एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करता है, उसे धन, धान्य, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है।”
इस प्रकार, एकादशी व्रत का महत्व जानकर युधिष्ठिर और उनके सभी भाईयों ने श्रद्धा पूर्वक एकादशी का व्रत किया और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से उनके सभी कष्ट दूर हो गए।
एकादशी व्रत आरती ( विष्णुजी की आरती)
!! ॐ जय जगदीश हरे आरती!!
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥ ॐ जय…॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥ ॐ जय…॥
एकादशी में श्रीहरि की पूजा के उपरांत आरती प्रज्वलित करें और उसके बाद आरती की शुरुआत में
“ॐ ज्योतिर्ज्योतिः स्वयंज्योतिरात्मज्योतिः शिवोऽस्म्यहम्”
मंत्र का उच्चारण करें, जिसका अर्थ है कि जो दिव्य प्रकाश मेरे अंदर है, जो दिव्य प्रकाश मेरे बाहर है और दुनिया में जो प्रकाश फैला है उसका मालिक एक है।
आरती करते समय एक ही जगह खड़े रहें और थोड़ा झुककर आरती करें.
आरती की थाली में गंगाजल, चावल, कुमकुम, चंदन, फूल, और प्रसाद के लिए ऋतु फल रखें.
आरती की शुरुआत भगवान के चरणों से करें और चार बार भगवान के चरणों में घुमाएं.
इसके बाद, आरती को दो बार भगवान की नाभि तक घुमाएं. फिर, एक बार भगवान के मुख की तरफ़ घुमाएं.
इसके बाद, सात बार भगवान के शरीर के सभी अंगों पर घुमाएं।
आरती के बाद जल से आचमन करें (आरती के चारों तरफ जल घुमाएं)
आरती के बाद बोले जाने वाला मंत्र:
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्,
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि.
और सबसे अंत में, पूजा करते समय जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए प्रभु से क्षमा याचना करते हुए यह मंत्र बोलना चाहिए,
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
इसका अर्थ है कि, हे परमेश्वर, मैं आवाहन और विसर्जन की विधि को नहीं जानता, पूजा करने की विधि को भी नहीं जानता, कृपया मुझे क्षमा करें। यदि मेरी पूजा में कोई मंत्र, क्रिया, या भक्ति की कमी रही हो, तो कृपया उसे पूर्ण करें।
इस प्रकार आप भक्ति-भाव से एकादशी का व्रत और पोज कर सकते हैं।
अस्वीकरण (Disclaimer): यहाँ दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों पर आधारित है,जिनका हमारे द्वारा सत्यापन नहीं किया जाता है। किसी भी भ्रम की समस्या की स्थिति में योग्य विशेषज्ञ से परामर्श करें, और मार्ग-दर्शन प्राप्त करें। चिकित्सा संबंधी समाचार, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, व्रत-त्योहार, ज्योतिष, इतिहास, पुराण शास्त्र आदि विषयों पर मोंकटाइम्स.कॉम में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न स्रोतों से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि मोंकटाइम्स.कॉम नहीं करता है। किसी भी जानकारी को प्रयोग में लाने से पहले उस विषय से संबंधित विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।