MonkTimes – हिन्दी समाचार सेवा: आंध्र प्रदेश का ओंगोल गांव उस वक्त सुर्ख़ियों में आ गया जब इस गांव की एक गाय (ओंगोल गाय) को ब्राज़ील के एक बाज़ार में 41 करोड़ रुपए में बेचा गया.
ओंगोल नस्ल की यह ओंगोल गाय ब्राज़ील में वियातिना-19 के नाम से जानी जाती है. फ़रवरी 2025 में ब्राज़ील की एक नीलामी में इसे दुनिया की सबसे महंगी गाय के तौर पर बेचा गया.
आंध्र प्रदेश के ज़िला प्रकासम के रहने वालों, विशेष तौर पर कारावाड़ के लोगों ने गाय की इतनी क़ीमत मिलने पर ख़ुशी ज़ाहिर की है.
उनका कहना है कि गाय की इस भारतीय नस्ल ओंगोल गाय पर उन्हें गर्व है.
ओंगोल गाय ने गर्व से ऊंचा किया देश का मान
कारावाड़ गांव प्रकासम ज़िला के मुख्यालय ओंगोल से लगभग 12 किलोमीटर दूर है.
इसी गांव के पोलावरापू चेंचूरामैया ने 1960 में इस ओंगोल नस्ल की गाय और एक सांड ब्राज़ील के एक आदमी को बेचा था.
चेंचूरामैया इस बात से ख़ुश हैं कि उनकी ओंगोल गाय अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इतनी अधिक क़ीमत पर बिकी है.
पोलावरापू वेंकटरामैया गांव के पूर्व सरपंच हैं. उनका कहना है कि एक गाय की बदौलत हमारे राज्य और देश का नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो रहा है.
ओंगोलू गिट्टा
ओंगोल गाय या ओंगोल मवेशी जिन्हें ओंगोलू गिट्टा (Ongole cattle as called as Ongolu Gitta) के नाम से भी जाना जाता है, एक देशी मवेशी नस्ल है जो भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के प्रकाशम जिले से उत्पन्न होती है । इस नस्ल का नाम ‘ओंगोल’ स्थान से लिया गया है जहां से यह नस्ल उत्पन्न हुई है,
मवेशियों की ओंगोल नस्ल (ओंगोल गाय), बोस इंडिकस, काफी मांग में है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इसमें खुरपका और मुंहपका रोग और पागल गाय रोग दोनों के लिए प्रतिरोध क्षमता है।
इन मवेशियों का इस्तेमाल आमतौर पर मैक्सिको और पूर्वी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में उनकी ताकत और आक्रामकता के कारण बैल की लड़ाई में किया जाता है। साथ ही यह नस्ल आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में पारंपरिक बैल लड़ाई में भी भाग लेते हैं ।
मवेशी प्रजनक शुद्धता और ताकत के मामले में प्रजनन के लिए सही स्टॉक चुनने के लिए बैल की लड़ने की क्षमता का उपयोग करते हैं।
आंध्र प्रदेश में चार लाख ओंगोल मवेशी
ओंगोल नस्ल पर शोध करने वाले डॉक्टर चुंचू चेलामैया ने बीबीसी से कहा, “पोलावरापू हनुमैया से टीको नाम के एक आदमी ने साठ हज़ार रुपये में गाय और एक सांड ख़रीदा और वह उसे ब्राज़ील ले गया. उसने उसके सीमेन को सुरक्षित कर लिया. यह अब भी ब्राज़ील के लोगों के पास है.”
88 वर्षीय चेलामैया ने बताया, “मैंने वह सांड भी देखा है. दिल्ली में आयोजित मवेशी मेले में उसने पहली पोज़ीशन पाई थी. तब प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी बधाई दी थी. इसी वजह से ब्राज़ीलियों ने उसे ख़रीदा था.”
अनुमान है कि, आंध्र प्रदेश में ओंगोल नस्ल (ओंगोल गाय) के करीब चार लाख जानवर हैं. जबकि ब्राज़ील में कुल 22 करोड़ जानवरों में 80 फ़ीसद ओंगोल मवेशी नस्ल के हैं.
ओंगोल प्रजाति की ख़ास बात क्या है?
ओंगोल गाय हो या फिर बैल इनके सफ़ेद रंग, सुडौल शरीर, लाली लिए हुए चेहरा और ऊंची पीठ से कोई भी आदमी हैरत में पड़ जाता है. गाय की बहुत सी दूसरी नस्लें हैं, लेकिन उनमें ओंगोल सबसे अलग हैं.
- एक ओंगोल गाय का वज़न करीब 1100 किलोग्राम होता है
- ओंगोल गाय और बैल बहुत ही मज़बूत माने जाते हैं.
- यह बेहद गर्मी वाले इलाक़े में भी आराम से रह सकती हैं.
- यह जल्दी बीमार नहीं पड़तीं और बहुत फुर्तीली होती हैं.
- ओंगोल बैल एक बार में पांच से छह एकड़ ज़मीन जोत सकता है.
- आंध्र प्रदेश का प्रकासम ज़िला इस नस्ल का जन्मस्थल है.
- ओंगोल में किसान संघ के नेता डुग्गीनेनी गोपीनाथ कहते हैं कि ओंगोल नस्ल की शुरुआत दो नदियों गंडालखलकमा और पालीरो के बीच के क्षेत्र में हुई है.
ओंगोल नस्ल को इलाक़े की मिट्टी, मिट्टी में नमक की मात्रा और उसपर उगने वाली यह जो घास खाती है, उससे ताक़त मिलती है.
भारत में ओंगोल बैलों की संख्या कम क्यों?
कुछ दशकों पहले तक, आंध्र प्रदेश के इलाक़े में ओंगोल बैलों की एक जोड़ी आसानी से कहीं भी देखी जा सकती थी. लेकिन खेती में मशीनीकरण ने इनका इस्तेमाल कम कर दिया है.
मंडावा श्रीनिवास राव नाम के एक किसान0 कहते हैं, “मैं पिछले 40 सालों से खेती-बाड़ी कर रहा हूं. बचपन में हम बैलों से खेतों में हल चलाते थे. अब ट्रैक्टरों के आने से बैल खेती से ग़ायब हो गए हैं.”
गांव के किसान नागिनी सुरेश कहते हैं कि पहले बैल अक्सर कारावाड़ से ब्राज़ील को निर्यात किए जाते थे, लेकिन अब हालात बदल गए हैं.
चेलामैया कहते हैं, “साल 1990 के बाद खेत जोतने के लिए बैलों का इस्तेमाल करीब-करीब बंद हो गया है और ट्रैक्टर से बढ़ गया है. अब आर्थिक तौर पर मज़बूत लोग बैलों की दौड़ के लिए इन्हें संभाल कर रखते हैं.”
लेकिन बैलों का कई जगहों पर इस्तेमाल अब भी हो रहा है. तंबाकू के खेतों में इनका ख़ास तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. देश में आंध्र प्रदेश में ही तंबाकू का सर्वाधिक उत्पादन होता है.
सिंगमसेटी अनकम्मा राव एक किसान हैं. वह कहते हैं, “मैं अब भी चार बैलों के साथ खेती-बाड़ी करता हूं. हम एक दिन में चार से पांच एकड़ ज़मीन पर हल चला लेते हैं.”
ओंगोल गाय से नई प्रजातियां विकसित कर रहा ब्राज़ील
ब्राज़ील जैसे देश जो मवेशियों पर काफी निर्भर करते हैं, वहां ओंगोल की नई प्रजाति विकसित की जा रही है.
डॉ. चेलामैया कहते हैं, ब्राज़ील में 80 फ़ीसद से अधिक मवेशियों को ओंगोल गाय के साथ क्रॉस ब्रीड किया जाता है.
आमतौर पर एक गाय छह बार बच्चे देती है, लेकिन चेलामैया का कहना है कि ब्राज़ील में एक नया प्रयोग शुरू हुआ है.
उन्होंने बताया, ओंगोल सांडों के वीर्य सुरक्षित कर स्थानीय गायों का गर्भाधान कराया जाता है. इस तरह ओंगोल प्रजाति के मवेशियों का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है.
हालांकि लाम फ़ॉर्म एनिमल रिसर्च सेंटर के चीफ़ साइंटिस्ट डॉक्टर मुत्थाराव के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारें ओंगोल प्रजाति के संरक्षण के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं.
उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने ओंगोल गायों और बैलों के संरक्षण के लिए कई केंद्र बनाए हैं
श्री पोलावरापु हनुमैय्या (दाएं से तीसरे) ने इस ओंगोल बॉल से 1961-62 में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। भारत के स्टालिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, सीरिया से दूसरे स्थान पर हैं।ओंगोल मवेशी अपने बैलों के लिए भी प्रसिद्ध हैं। परंपरागत रूप से, ओंगोल नस्ल को स्थानीय किसानों द्वारा पाला जाता है, जिन्हें नल्लामाला पहाड़ियों से निकलने वाली नदियों में से एक गुंडलकम्मा और मैदानी इलाकों में कृष्णा नदी की सहायक नदी पालेरू नदी दोनों से पोषण मिलता है।
ओंगोल मवेशी अपनी मजबूती, तेजी से विकास दर, उष्णकटिबंधीय गर्मी के प्रति प्राकृतिक सहनशीलता और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जाने जाते हैं। यह दुनिया भर में पहचान पाने वाली मवेशियों की पहली भारतीय नस्ल थी।
ओंगोल बैल
ओंगोल सबसे भारी नस्लों में से एक है। इनका वजन लगभग आधा टन होता है, इनकी ऊंचाई 1.7 मीटर होती है और शरीर की लंबाई 1.6 मीटर और परिधि 2 मीटर होती है।
ओंगोल गाय
ओंगोल गाय का वजन लगभग 432 से 455 किलोग्राम होता है। जिनसे दूध की उपज 600 किलोग्राम से 2518 किलोग्राम होती है। और इनकी स्तनपान अवधि 279 दिन होती है जो की सबसे अधिक मानी जाती है। ओंगोल गाय के दूध में पाँच प्रतिशत से अधिक बटरफैट की मात्रा होती है। इसके परिणामस्वरूप बड़े, सुपोषित बछड़े पैदा होते हैं, जो दूध छुड़ाने के समय तक काफी बढ़ जाते हैं।
ओंगोल गायें अपने बछड़ों को शिकारी जानवरों से बचाने के लिए उनके करीब रहती हैं।