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Friday, July 4, 2025

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औघड़ संत दादा धनीराम मानव कल्याण में समर्पित

औघड़ संत दादा धनीराम मध्य भारत में मंडला जिले के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध मानव कल्याण में समर्पित संत थे, जिन्होंने अपना जीवन गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में समर्पित किया। वे अपनी सरलता, प्रेम और करुणा के लिए जाने जाते थे।

दादा धनीराम औघड़ संत थे और उन्होंने महाराजपुर में रहकर समाज सेवा और मानव कल्याण के लिए कार्य किया,  मध्यप्रदेश के मंडला जिले के उपनगरीय क्षेत्र महाराजपुर में नर्मदा किनारे दादा धनीराम की समाधी है जो सभी की आस्था का केन्द्र भी है।

दादा धनीराम द्वारा मानव सेवा

औघड़ संत दादा धनीराम एक मध्य भारत में मंडला जिले के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध औघड़ संत थे, जिन्होंने अपना जीवन गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में समर्पित किया। वे अपनी सरलता, प्रेम और करुणा के लिए जाने जाते थे।

दादा धनीराम जी के भक्त देश विदेश तक में फैले हैं। हजारों भक्त आज भी उनके सामधी स्थल पर पहुंचकर माथा टेकते हैं। दादा धनीराम के बारे में कहा जाता था कि उनकी गालियां भक्तों के लिए वरदान साबित होती थी। गालियां खाने के बाद भक्त खुशकिस्मत समझते थे। संत धनीराम दादा ने अपना जीवन मानव कल्याण के लिए समार्पित कर दिया था। वह  शिव जी और मां नर्मदा के परम भक्त थे। उनके चमत्कार और हठी तपस्या के कारण लोग उनसे जुड़ते गए। उनके निधन के 53 साल बाद भी हजारों भक्त उनसे जुड़े हुए हैं।

दादा धनीराम आश्रम

औघड़ संत की समाधी दादा धनीराम आश्रम के नाम से भी पहचानी जाती है। आश्रम का संचालन ट्रस्ट के द्वारा किया जा रहा है। ट्रस्ट के अध्यक्ष शिवहोहन दुबे ने बताया कि दादाजी के भक्त जिले के साथ ही रायपुर, मुम्बई, नागपुर, बालाघाट, सिवनी सहित कुछ विदेशों में भी है। जो समय समय पर आश्रम पहुंचते हैं।

दादा धनीराम औघड़ संत थे। उन्होंने महाराजपुर में रहकर मानव कल्याण के लिए कार्य किया। उनकी गालियां लोगों के लिए आशीर्वाद होती थी। दादा ने अनेक चमत्कार किए, जिनके अनुयायी आज भी उन्हें पूरी श्रद्धा और विश्वास से मानते हैं। शिवहोहन दुबे बचपन से ही दादा जी से जुड़ गए थे। बाद में ट्रस्ट के अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं। समय पर विभिन्न धार्मिक आयोजन आश्रम में किए जा रहे हैं।

दादा धनीराम की पुण्यतिथि

जनवरी के माह में आश्रम में औघड़ संत दादा धनीराम जी की पुण्यतिथि भी मनाई जाती है , जहाँ  सुबह औघड़ संत दादा धनीराम जी के अभिषेक के साथ कार्यक्रम की शुरुआत होती है, उनका पूजन किया जाता है और शिवजी, माता नर्मदाजी, गणेश राम दादा जी को अन्न का भोग लगाया गया। भोग लगाने के बाद भंडारा प्रारंभ किया जाता है, जो सुबह से शाम तक चलता रहता है।

भक्तगण दादा धनीराम जी के दर्शन के बाद दादा गणेशराम जी के दर्शन करते हैं। जिन भक्तों ने दादाजी की कृपा के चमत्कारी अनुभव प्राप्त किये है, वे यहां सेवा कार्यों में संलग्न भी रहते है। दादा के आश्रम में कई भक्त सेवा कार्य करते है। भक्तों का मानना है कि दादा धनीराम आश्रम में हर मनोकामना पूर्ण होती है।

दादा धनीराम का जीवन

औघड़ संत परमपूज्य श्री दादा धनीराम जी का जन्म मंडला जिले के घुघरी ग्राम में एक मछुआरा परिवार में हुआ था। इनके पिता जी का नाम दशरथ था, वह दो भाई थे जिसमें। बड़े भाई का नाम मनीराम था तथा दादा धनीराम जी दूसरी संतान थे। दादा धनीराम जी अधिक पढ़े लिखे नहीं थे।, पिता के अनेकों प्रयास करने पर भी वे चौथी कक्षा तक ही पढ़ सके, उनका ऐसा स्वभाव बन गया था कि जहां कहीं धार्मिक समारोह या कीर्तन, रामायण का कार्यक्रम होता वे वहां पाये जाते।
जब घर से कई घंटे अनुपस्थित रहते तो खोजने पर ऐसे स्थानों में ही मिलते जहां धार्मिक अनुष्ठान हो रहे होता।

दादा धनीराम बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के रहे, जब उनका मन पढ़ने में नहीं लगा तो पिताजी ने जातीय धंधा (मछली पकड़ना, कछार में सब्जी लगाना) में लगाने का प्रयत्न किया किन्तु वहां भी उनका मन नहीं लगा। उनका मन न पढ़ने में लगा न जातीय धंधे में और न घर गृहस्थी के कामों में लग सका।

दादा धनीराम औघड़ संत

युवा होने पर भी उनके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया तो पास पड़ोस के, गांव के और रिश्तेदारों ने उनके पिता को सलाह दिया कि उनका विवाह कर दिया जाए तो वह अपने आप ठीक हो जाएगा। उनके पिता को लोगों की यह सलाह पसंद आई, उनके विवाह की चर्चा होने लगी, लेकिन पिता जी के बहुत चाहने पर भी वे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुए, और रोज-रोज के दबाव से परेशान होकर एक दिन वे बिना बताए ही घर से चले गए। दादा धनीराम कहाँ गए इसका कुछ पता ही नहीं चला। लेकिन जब कई वर्षों बाद वापस आये तो औघड़ संत के रूप में।

हठी तपस्‍वी दादा धनीराम

मानने वालों के अनुसार, औघड़ संत दादा धनीराम बहुत ही तपस्वी और हठी थे. यही वजह है कि उनके एक हाथ में हमेशा हंसिया बंधा रहता था. दादा धनीराम का यह तप था,  उनका मानना था कि वे जीवनपर्यंत जो भी काम करेंगे, एक हाथ से ही करेंगे और इसलिए उन्होंने अपने एक हाथ में हंसिया बांध रखा था.

औघड़दानी भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद

नर्मदा के किनारे बना दादा धनीराम महाराज का आश्रम कभी एक छोटी सी कुटिया हुआ करता था जिसमें इमली का पेड़ और पेड़ के नीचे कुत्तों के साथ खाते – खेलते दादा धनीराम कभी नही लगते थे कि वे एक महान संत हैं।  दादा औघड़ थे इसल‍िए उन्हें औघड़दानी भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त था. दादा मां नर्मदा के परम भक्त थे. लोगों के रोग, दुख तकलीफ हरना औघड़ संत दादा धनीराम का काम था. कई बार दादा की गालियां भक्तों के लिए आशीर्वाद होती थी. बताते हैं कि दादा जिसे डांट दे, समझो वह धन्य हो गया.

 

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