विश्व की राजनीति से लेकर पर्यावरण और ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा के लिए दिल्ली में 17 मार्च से रायसीना डायलॉग शुरू होने जा रहा है और यह 19 मार्च तक चलेगा. भारत का विदेश मंत्रालय साल 2016 इस इवेंट का आयोजन करता आ रहा है. इस बार रायसीना डायलॉग की थीम है “कालचक्र” (Kaalachakr) या समय का पहिया.
यूक्रेन युद्ध, अमेरिका की बदलती विदेश नीति और मध्यपूर्व में जारी संकट के बीच दिल्ली में होने वाले रायसीना डायलॉग के मुख्य वक्ता न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन होंगे। इस कार्यक्रम में दुनिया भर के करीब 125 से भी अधिक देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेगें।
रायसीना डायलॉग में विश्व के तकरीबन सभी लोकतांत्रिक देशों के बुद्धीजीवी और राजनेताओं को आमंत्रित किया जाता है। जहाँ वह राजनीति से परे होकर विश्व कल्याण के लिए अपने कूटनीति और विदेश नीति के विचार रख सकें।
कूटनीति और विदेश नीति की चर्चा के लिए बेहद अहम माने जाने वाले इस डायलॉग के 10वें संस्करण का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन मुख्य भाषण देंगे.
इस बार रायसीना डायलॉग का विषय “कालचक्र” (समय का पहिया) रखा गया है. इसमें भाग लेने के लिए दुनिया भर के देशों से विदेश मंत्री, राजनयिक और प्रतिनिधि पहुंचे हैं.
रायसीना डायलॉग ऐसे “कालचक्र” में हो रहा है जब दुनिया उथल-पुथल के दौर से गुज़र रही है. भूराजैनतिक से लेकर आर्थिक समीकरण तक तेजी से बदल रहे हैं.
यूक्रेन और रूस में तनाव, इसरायल और मध्यपूर्व में तनाव और यूरोप भी तनाव की स्थिति से गुजर रहा है. रूस और यूक्रेन में चली रही जंग में युद्धविराम पर बात नहीं बन रही है.
वहीं आर्थिक मोर्चे पर बात करें तो अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद दुनिया में ट्रेड वार का नया रूख देखने को मिल रहा है.
वहीं दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते वर्चस्व से कई मुल्क परेशान हैं. वहीं ताइवान और चीन पर बदले अमेरिका के रूख भी हैरान करने वाला है.
यूएस एड को लेकर इस डायलॉग में पहले ही दिन चर्चा देखने को मिलेगी. अमेरिका के बदले रुख़ ने यूरोप की चिंता बढ़ा दी है.
डायलॉग से होती है भारत के रिश्तों की पहचान
भारत के विदेशी रिश्तों की नब्ज अगर आपको समझना हो तो यह रायसीना डायलॉग एक अच्छा माध्यम है.
इसमें कौन सा देश भाग ले रहा है और कौन नहीं ले रहा है. इससे अंदाजा हो जाता है कि भारत के कौन करीब आया है और कौन दूर?
पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते तनावपूर्ण हैं. ऐसे में कोई भी पाकिस्तानी प्रतिनिधि इसमें आमंत्रित नहीं किया गया है. इसके साथ ही इस बार बांग्लादेश से भी किसी को नहीं बुलाया गया है.
चीन से फुदान विश्वविद्यालय से सिर्फ एक वक्ता को बुलाया गया है. इससे साफ पता चलता है कि अक्टूबर 2024 में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैठक के बाद रिश्तों में नरमी आई है.
इसके अलावा ग्लोबल साउथ से भाग लेने वाले अन्य देशों में घाना, क्यूबा, पेरू, एंटीगुआ और बारबुडा के विदेश मंत्री डायलॉग में भाग लेने पहुंच रहे हैं.
रायसीना डायलॉग की शुरुआत कैसे हुई?
भारत के विदेश मंत्रालय ने 2016 में इस भारतीय अंतरराष्ट्रीय संवाद की शुरुआत की. इसका उद्देश्य दुनिया भर के नेताओं और विचारकों को एक साथ लाना है.
रायसीना डायलॉग को म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन और सिंगापुर के शांगरी-ला डायलॉग के समकक्ष माना जाता है. इसमें भूराजनीति और भूअर्थशास्त्री मामलों की चर्चा होती है.
इस बार वार्ता के छह केंद्रबिंदु निर्धारित किए गए हैं.इसी आधार पर वार्ता की जाएगी. इसमें राजनीति, प्रकृति, डिजिटल दुनिया, चरमपंथ, भारत और शांति शामिल हैं.
इस सम्मेलन का नाम रायसीना हिल्स के नाम पर रखा गया. जहाँ कभी रायसीना हिल हुआ करता था अब वहां भारत के राष्ट्रपति का भवन, संसद और प्रमुख मंत्रालय हैं.
कनाडा में नेतृत्व परिवर्तन से भारत के साथ रिश्तों में नई ऊर्जा?
रायसीना डायलॉग के दौरान कनाडा में भी नेतृत्व परिवर्तन के बाद संबंधों में नरमी देखनें को मिल सकती है. दिल्ली में मौजूद कनाडाई सुरक्षा खुफिया सेवा के निदेशक डैनियल रोजर्स के भी इस वार्ता में शामिल होने की संभावना है. वह खुफिया सुरक्षा सम्मेलन में भाग लेने दिल्ली पहुंचे थे.
इसके अलावा, कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी एबॉट भी मौजूद रहेंगे. यह नियमित रूप से इस डायलॉग में आते रहे हैं.
विदेश मंत्रालय की सूची के अनुसार, भूटान के विदेश मंत्री डी.एन.धुंग्येल, नेपाल के विदेश मंत्री आरज़ू राणा देउबा, मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला खलील और मॉरीशस के विदेश मंत्री धनंजय रामफुल डायलॉग में मौजूद रहेंगे.
पश्चिम एशिया (जीसीसी) और दक्षिण पूर्व एशिया (आसियान) के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के प्रयास के बावजूद अच्छा प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है. हालांकि फिलीपींस के विदेश मामलों के सचिव एनरिक मनालो और थाईलैंड के विदेश मंत्री मैरिस सांगियाम्पोंगसा आ रहे हैं.
रूसी विदेश मंत्री लावरोव शामिल नहीं होंगे
रायसीना डायलॉग में इस बार रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति को लेकर वाशिंगटन में हुआ ट्रंप और ज़ेलेंस्की का टकराव. इसके बाद फिर शांति वार्ता की पहल और फिर अमेरिका और रूस के बीच वार्ता चर्चा के केंद्र में रहेगी.
इस डायलॉग में 20 विदेश और अन्य मंत्रियों में से 11 यूरोप से आ रहे हैं. इस वार्ता में यूक्रेन के विदेश मंत्री एंड्री सिबिहा भी शामिल हो रहे हैं.
2024 में इसी रायसीना डायलॉग में आए यूरोप के 21 विदेश मंत्रियों में से 15 ने भारत को यूक्रेन पर अपना रूख बदलने के लिए प्रयास किया था. इसमें मुख्य अतिथि ग्रीक प्रधान मंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस भी शमिल थे.
इस कार्यक्रम में इस बार रूसी विदेश मंत्री लावरोव शामिल नहीं हो रहे हैं. 2023 में इन्हें एक सत्र के दौरान यूक्रेन युद्ध पर सवालों की बौछार का सामना करना पड़ा था. युद्ध विराम में रूस की भूमिका को लेकर माहौल तल्ख हो गया था.
इस साल सबकी निगाह यूरोपियन और अमेरिकी नेताओं के बहस पर होगी. इसमें सबसे महत्वपूर्ण तुलसी गबार्ड हैं. वह अभी अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक हैं. यह अमेरिका और रूस के संबंध बेहतर करने की वकालत कर चुकी हैं.
इस श्रृंखला में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख राफेल ग्रॉसी का भी नाम है. यह यूक्रेन युद्ध और ईरान के साथ परमाणु वार्ता को पुनर्जीवित करने की संभावना पर चर्चा करेंगे.
अमेरिका की खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड करेगी संबोधित
रायसीना डायलॉग में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की विदेश नीति में आए बड़े बदलावों पर फिर से चर्चा होने की उम्मीद है.
इसमें यूक्रेन युद्ध, रूस से वार्ता, भारत सहित दुनिया भर से रिश्तों में कड़वाहट ला रही टैरिफ व्यवस्था, नाटो और यूरोपीय देशों से खराब होते अमेरिका के संबंध और अमेरिका की अनिश्चिता भरी इंडो-पैसिफिक नीति सहित चीन और ताइवान का मामला शामिल है.
इस रायसीना डायलॉग को अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड भी संबोधित करेंगी. राष्ट्रपति ट्रंप के विशेष सहायक व राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के अधिकारी रिकी गिल और ट्रंप के वरिष्ठ सलाहकार जेम्स कैराफानो को भी वक्ताओं के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
अमेरिका से आया वक्ताओं का दल ट्रंप की नीतियों का बचाव और नीति में आ रहे उतार-चढ़ाव को स्पष्ट करते हुए दिखाई देगा. एक महीने ही पहले म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अमेरिकी नीतियों को लेकर माहौल काफी गरमा गया था. इस अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने यूरोप को चेतावनी दी थी.
क्वाड पैनल की भी उम्मीद
रायसीना डायलॉग में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को लेकर क्वाड पैनल की उम्मीद है. इसमें क्वाड के चारों देश भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के वरिष्ठ नौ सेना अधिकारी शामिल हो सकते हैं.
क्वाड लीडर शिखर सम्मेलन की मेजबानी इस साल भारत करेगा. इसमें समुद्री सहयोग के विस्तार पर कुछ घोषणाएँ होने की बहुत ही उम्मीद है.
क्वाड भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका का एक समूह है. इन चारों देशों का यह एक अनौपचारिक मंच है. ये देश इस माध्यम से मिलकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र की रणनीतिक सुरक्षा और आपसी सहयोग पर चर्चा करते हैं.
इसका प्रमुख लक्ष्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना है.
भारत का विदेश मंत्रालय हर साल इस रायसीना डायलॉग इवेंट का आयोजन करता आ रहा है और यह 10 वाँ संस्करण है