ग्वादर पाकिस्तान का एक समुद्र तटीय शहर है जिसको चीन का पाकिस्तान में उपनिवेशक शहर भी कहा जाता है।
ग्वादर पाकिस्तान में चीन का एक प्रमुख सैन्य अड्डा माना जाता है, यहाँ चीन द्वारा निर्मित पर एक गहरे पानी का बंदरगाह, विशाल सैन्य और असैनिक हवाई अड्डा भी है, चीनी सैनिकों, कर्मचारी, अधिकारी और सहायक स्टाफ के लिए तमाम जरूरतों की चीजों के साथ रहने की व्यवस्था भी पाकिस्तान द्वारा की गई है। साथ ही नगर की बाहरी सीमा पर पाकिस्तानी सुरक्षाबल देखरेख करते हैं।
ग्वादर का इतिहास
पाकिस्तान का तटीय शहर ग्वादर, जिस इलाके में स्थित है उसे मकरान कहा जाता है और इतिहास में इस इलाके का जिक्र महत्वपूर्ण है। वैसे तो प्रतिकूल जलवाऊ के चलते ग्वादर की आबादी कम ही रही लेकिन वहां हजारों सालों से लोग रहते आ रहे थे।
ईसा पूर्व 325 में जब सिकंदर भारत से वापस यूनान जा रहा था तब वह इस रास्ते में ग्वादर पहुंचा, सिकंदर ने सेल्युकस को यहां का राजा बना दिया था। ईसा पूर्व 303 तक यह इलाका सेल्युकस के कब्जे में रहा. लेकिन 303 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने हमला कर इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया, अगले 100 साल तक मौर्य वंश के पास रहने के बाद 202 ईसा पूर्व में ग्वादर पर ईरानी शासकों का कब्जा हो गया।
अरब सैन्य कमांडर मोहम्मद बिन कासिम ने 711 में हमला कर इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद यहां बलोच कबीले के लोगों का शासन चलने लगा.
15वीं सदी में पुर्तगालियों ने वास्कोडिगामा के नेतृत्व में यहां हमला किया. मीर इस्माइल बलोच की सेना से पुर्तगाली पार नहीं पा सके. लेकिन पुर्तगालियों ने ग्वादर में आग लगा दी. 16वीं सदी में अकबर ने ग्वादर को जीत लिया और 18वीं सदी तक यहां मुगल राजाओं का राज चलता रहा. यहां कलात वंश के लोग मुगलों के नीचे शासन करने लगे.
1783 में ओमान की गद्दी को लेकर अल सैद राजवंश के उत्तराधिकारियों में विवाद हो गया. इस विवाद के चलते सुल्तान बिन अहमद को मस्कट छोड़कर भागना पड़ा. कलात वंश के मीर नूरी नसीर खान बलोच ने उन्हें ग्वादर का इलाका दे दिया और अहमद इस इलाके के राजा बन गए.
उस समय ग्वादर की जनसंख्या बेहद कम थी. सुल्तान बिन अहमद ने ग्वादर में एक किला भी बनाया था । उस समय कलात राजा ने शर्त रखी थी कि जब सुल्तान बिन अहमद को ओमान की गद्दी वापस मिल जाएगी तब, ग्वादर फिर से कलात वंश के पास आ जाएगा। 1797 में सुल्तान बिन अहमद को ओमान की गद्दी तो मिल गई, लेकिन सुल्तान बिन अहमद ने कलात राजा को ग्वादर वापस नहीं किया और इससे दोनों के बीच विवाद हो गया।
ग्वादर का स्वामित्व ब्रिटेन के पास
उस समय तक भारत पर अंग्रेजी हुकूमत (ब्रिटेन) का कब्जा हो गया था तो इस विवाद ने ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों को हस्तक्षेप करने का मौका दे दिया. उन्होंने ओमान के सुल्तान से इस इलाके का इस्तेमाल करने की इजाजत मांगी और सुल्तान बिन अहमद ने इजाजत दे दी.
अंग्रेजी हुकूमत ने ग्वादर में 1863 में ब्रिटिश सहायक राजनीतिक एजेंट का मुख्यालय बनाया. अंग्रेजों ने ग्वादर में एक छोटा बंदरगाह बनाना शुरू किया जहां स्टीमर और छोटे जहाज चलने लगे. अंग्रेजों ने यहां पोस्ट और टेलीग्राफ का दफ्तर भी बनाया. हालांकि ग्वादर का अधिकार ओमान के पास ही रहा.
ग्वादर बना पाकिस्तान का हिस्सा
अंग्रेजी हुकूमत को 1947 तक भारतीय उपमहादीप से पूरी तरह खदेड़ दिया गया था, जाने से पहले वह जहर और आतंक का बीज बोकर गए और भारत तथा पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बना दिए गए। तब मकरान का हिस्सा पाकिस्तान को दे दिया गया और उसे जिला बना दिया गया. ग्वादर का स्वामित्व अभी भी ओमान के ही पास था. हालांकि ग्वादर के लोगों ने पाकिस्तान में मिलने के लिए आंदोलन करना शुरू कर दिया.
1954 में पाकिस्तान ने ग्वादर में बंदरगाह बनाने के लिए अमेरिका के साथ बात शुरू की. अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे ने ग्वादर का भी सर्वे किया. इस सर्वे से पता चला कि ग्वादर को डीप सी पोर्ट यानी पानी के बड़े जहाजों के अनुकूल बंदरगाह बनाने की सही परिस्थितियां हैं.
भारत और ओमान के संबंध अच्छे थे. इसलिए पाकिस्तान को लगता था कि ओमान ग्वादर को भारत को सौंप सकता है. इसलिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री फिरोज शाह नून ओमान के दौरे पर गए और ओमान के सुल्तान के साथ करीब तीन मिलियन डॉलर की रकम में ग्वादर का सौदा कर लिया. 8 दिसंबर 1958 को ग्वादर पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. उसे मकरान जिले में तहसील का दर्जा मिला.
ग्वादर में जलवाऊ परिवर्तन
एक समय था जब पाकिस्तान के तटीय शहर ग्वादर में बहुत कम लोग समझते थे कि पर्यावरण परिवर्तन क्या होता है. अब, पिछले एक दशक से वहां खराब मौसम का प्रकोप जारी है और लोगों की जान खतरे में है.
फरवरी, 2024 में 30 घंटे की लगातार बारिश से ग्वादर बुरी तरह प्रभावित हुआ था. तूफान के कारण सड़कें, पुल और संचार प्रणालियां बाधित हो गईं, और तटीय शहर का पाकिस्तान के अन्य इलाकों से संपर्क भी कुछ समय के लिए टूट गया था।
ग्वादर बलूचिस्तान प्रांत का हिस्सा है, जबकि बलूचिस्तान पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक शुष्क, पहाड़ी और विशाल प्रांत है, जहां गर्म और ठंडा दोनों मौसम कठोर हैं. इस शहर की आबादी लगभग 90,000 है और यह रेत के टीलों पर बसा है. यह तीन तरफ से अरब सागर से घिरा हुआ है.
आसपास के क्षेत्र की तुलना में इसकी ऊंचाई कम है और यह तथ्य इसे अतिरिक्त खतरों के प्रति उजागर करता है. ग्वादर के जलविज्ञानी पजरीद अहमद चेतावनी देते हैं, “यह स्थिति किसी द्वीप से कम नहीं है. अगर समुद्र का स्तर बढ़ता रहा, तो शहर के कई निचले इलाके आंशिक रूप से या पूरी तरह से जलमग्न हो जाएंगे.”
समुद्र जो कभी वरदान हुआ करता था
समुद्र, जो कभी ग्वादर के मछुआरों और स्थानीय पर्यटन क्षेत्रों के लिए वरदान था, अब वह जीवन और आजीविका के लिए खतरा बन गया है. जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जल के गर्म होने से बड़ी और अधिक शक्तिशाली लहरें पैदा हो रही हैं. ग्रीष्मकालीन मानसूनी हवाओं के कारण ये लहरें और भी ऊंची हो जाती हैं. गर्म हवा में अधिक नमी होती है और इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में अधिक बारिश भी होगी.
ग्वादर विकास प्राधिकरण के पर्यावरण उपनिदेशक अब्दुल रहीम कहते हैं, “समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण लहरें अधिक तीव्र हो गई हैं. ज्वार-भाटे और लहरों के पैटर्न बदल गए हैं.” उन्होंने बताया कि सैकड़ों घर बह गए हैं और यह बहुत चिंताजनक है.
पिघलते ग्लेशियरों के कारण समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है और यह तटीय कटाव का एक अन्य कारण है. राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक 1916 और 2016 के बीच कराची का समुद्र स्तर लगभग आठ इंच (लगभग 20 सेंटीमीटर) बढ़ गया है और 2040 तक इसमें आधा इंच (लगभग 1.3 सेंटीमीटर) की वृद्धि होने का अनुमान है.
घरों में घुसता पानी
समुद्री लहरों ने ग्वादर के पास पेशुकान और गांज जैसे आस-पास के इलाकों में मस्जिदों, स्कूलों और बस्तियों को भी निगल लिया है. दर्जनों किलोमीटर तक तट समतल होते जा रहे हैं, क्योंकि उन पर कोई संरचना नहीं बची है. अधिकारियों ने समुद्री जल के प्रवेश को रोकने के लिए पत्थर या कंक्रीट की समुद्री दीवारें बनानी शुरू कर दी हैं।
लेकिन यह एक बड़ी समस्या का छोटा सा समाधान है क्योंकि ग्वादर के लोग और व्यवसाय विभिन्न मोर्चों पर जलवायु परिवर्तन से लड़ रहे हैं. सरकारी जमीन पर खारे पानी के तालाब उभर रहे हैं, जिनमें नमक के क्रिस्टल धूप में चमकते रहते हैं।
ग्वादर के पूर्व स्थानीय पार्षद कादिर बख्श हर दिन अपने घर के आंगन में पानी रिसने से परेशान थे, जिसे केवल नियमित पंपिंग के जरिए ही निकाला जाता था. उनका कहना है कि वहां दर्जनों घरों की यही समस्या है.
दूसरी ओर अहमद और रहीम समेत कई सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भूमि उपयोग में परिवर्तन और अनधिकृत भवनों के निर्माण से स्थिति और खराब हो रही है. इसके उलट, स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ प्रमुख निर्माण परियोजनाओं ने पारंपरिक जल निकासी के रास्तों को नष्ट कर दिया है.
ग्वादर चीनी निवेश वाली सीपीईसी परियोजना का केंद्र भी है. शहर ने गहरे समुद्र में स्थित बंदरगाह, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक्सप्रेसवे और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण पर करोड़ों डॉलर खर्च किए हैं. लेकिन एक दशक के विदेशी निवेश के बावजूद, यहां के लोगों के लिए कोई पर्याप्त सीवेज या जल निकासी व्यवस्था नहीं है. ग्वादर की कम ऊंचाई, उच्च खारे पानी का स्तर, बढ़ता समुद्र स्तर और भारी बारिश शहर के लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं.
ग्वादर में आम जनता को हो रही बुनियादी समस्याओं से न तो चीनी सेना और चीन की सरकार को कोई सरोकार है और न ही पाकिस्तानी सरकार को, ग्वादर की आम जनता पाकिस्तानी सरकार से मदद की उम्मीद में अपनी जिंदगी के हर दिन को संघर्ष के साथ निकाल रही है।