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Friday, July 4, 2025

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‘चुप क्यों हो बसंती’ जयंती रंगनाथन का नया उपन्यास

‘चुप क्यों हो बसंती’ जयंती रंगनाथन का नया उपन्यास रोचक व संवेदनशील है, उपन्यास का शीर्षक भी अत्यंत सार्थक है. जैसे जैसे आप कहानी को पढ़ते हुए आगे बढ़ते हैं आप इसके किरदारों से जुड़ जाते हैं. अगर आप एक रोचक, सकारात्मक और प्रेरक उपन्यास पढ़ना चाहते हैं तो ‘चुप क्यों हो बसंती’ को पढ़ सकते हैं।

‘चुप क्यों हो बसंती’ उपन्यास नारी मन की पड़ताल करता है. इस कृति में स्त्री जीवन के भोगे हुए यथार्थ की कथा है. जयंती रंगनाथन ने कथा नायिका बसंती और कथा नायिका की बहन कीर्ति के माध्यम से स्त्री जीवन के कटु यथार्थ का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है. बसंती की आन्तरिक भावनाओं को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है.

उपन्यास की कहानी में प्रवाह है, और अंत तक रोचकता बनी रहती है.

पुस्तक: चुप क्यों हो बसंती (उपन्यास)
लेखक: जयंती रंगनाथन
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन (म.प्र.)
मूल्य: 200 रुपए

वरिष्ठ कथाकार और पत्रकार जयंती रंगनाथन के लेखन का सफर बहुत लंबा है. जयंती रंगनाथन की प्रमुख रचनाओं में ‘आसपास से गुजरते हुए’, ‘खानाबदोश ख्वाहिशें’, ‘औरतें रोती नहीं’, ‘एफओ जिंदगी’, ‘शैडो’, ‘मैमराजी’ (उपन्यास), ‘एक लड़की दस मुखौटे’, ‘गीली छतरी’, ‘रूह की प्यास’ (कहानी संग्रह), ‘थर्टी शेड्स ऑफ़ बेला’, ‘कामुकता का उत्सव’, ‘तन पिंजड़ा मन बावरा’ (संपादित संग्रह), ‘बॉम्बे मेरी जान’ (संस्मरणात्मक उपन्यास), इनके अतिरिक्त बच्चों के लिए बाल उपन्यास भी शामिल हैं. लेखन में इतनी विविधता एकसाथ कम देखने को मिलती है. जयंती रंगनाथन के कथा साहित्य में नारी मन, उनकी समस्याओं, नारी की अस्मिता और उनके संघर्ष का यथार्थ चित्रण स्पष्ट रूप से झलकता है.

जयंती रंगनाथन का इस वर्ष सद्य: प्रकाशित उपन्यास ‘चुप क्यों हो बसंती’ अब तक प्रकाशित उनके कथा साहित्य से कथानक और घटनाओं की दृष्टि के साथ-साथ भावनात्मक धरातल पर कुछ अलग रंग लिए हुए है.

‘चुप क्यों हो बसंती’ की कथा बहुत ही रोचक व संवेदनशील है. इस उपन्यास में अनुभूतियों की सच्चाई है. बसंती के जीवन में आने वाली अनुकूलताओं और प्रतिकूलताओं और उनसे उत्पन्न हर्ष-विशाद के भाव को चित्रों में गूंथकर लेखिका ने उपन्यास की कथा लिखी है. निम्न मध्यम श्रेणी के परिवार के लोगों के जीवन के ताने-बाने को बुनता हुआ एक सामाजिक उपन्यास है. यह हमारे आसपास की दुनिया है. इस उपन्यास में दिखने वाले चेहरे हमारे बहुत करीबी परिवेश के जीते-जागते चेहरे हैं.

शुरुआत से ही उपन्यास पाठक को अपनी गिरफ्त में लेने लगता है. उपन्यास के केंद्र में बसंती की मुख्य भूमिका है. यह कथा बसंती, कीर्ति, प्रीति, नियोगी अंकल, इंदु, शेखर, अम्मा इत्यादि पात्रों के जीवन, उनके सुख-दुःख को बयां करती है. उपन्यास में अन्य गौण पात्र हैं मौलश्री, कमल, धीरेन्द्र, प्रमोद. इनके अलावा इस उपन्यास में कीर्ति की जेठानी, कीर्ति के सास ससुर, अभय सिंह, कमल के पिता के अलावा भी कुछ चरित्र है, जिनकी अलग-अलग गरिमा है. पात्र गढ़े हुए नहीं लगते हैं, सभी जीवंत लगते हैं.

‘चुप क्यों हो बसंती’ उपन्यास नारी मन की करता पड़ताल

कथाकार ने बड़ी कुशलता से बसंती के तनाव का सृजन किया है. यह उस समय की कथा है जब नवयुवतियां अपने आपको जानने, समझने और समाज में अपने आप को स्थापित करने की जद्दोजहद से जूझ रही थीं. यह आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी नारी को दर्शाने वाला बेहतरीन कहानी है. कथाकार पारिवारिक मूल्यों और संवेदनाओं के प्रति पाठकों को आत्मीयता का अहसास कराती है. प्रवाहमय भाषा में लिखा उपन्यास पाठकों को दुर्ग, भिलाई, रायपुर से लेकर बंबई के लोगों के जीवन की झलक दिखलाता है.

‘चुप क्यों हो बसंती’ उपन्यास नारी मन की पड़ताल करता है. इस कृति में स्त्री जीवन के भोगे हुए यथार्थ की कथा है. जयंती रंगनाथन ने कथा नायिका बसंती और कथा नायिका की बहन कीर्ति के माध्यम से स्त्री जीवन के कटु यथार्थ का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है. बसंती की आन्तरिक भावनाओं को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है. कथाकार ने कहानी को इतने बेहतरीन तरीके से लिखा है कि बसंती की हौजरी की दुकान, दुर्ग और रायपुर के टॉकीज, बंबई का जुहू बीच का जीवन्त चल चित्र पाठक के सामने चलता है.

बसंती का संघर्षमय जीवन

जयंती ने बसंती के अदम्य जिजीविषा और संघर्षमय जीवन का अंकन किया है. कथानक का प्रारंभ इस तरह होता है कि अम्मा अपनी दो लड़कियों बसंती, प्रीति के साथ अपनी बड़ी लड़की कीर्ति के पति धीरेन्द्र के एक्सीडेंट की खबर सुनकर ट्रैन में बिना रिजर्वेशन के बंबई के लिए आरक्षित डिब्बे में चढ़ती हैं.

ट्रैन में उनकी मुलाकात इंदु और इंदु के देवर शेखर से होती है. इंदु और शेखर बंबई शेखर की शादी के लिए लड़की देखने जा रहे हैं. अम्मा, बसंती और प्रीति पहली बार बंबई जा रही हैं. इंदु, बसंती को कीर्ति के फ्लैट का रास्ता अच्छी तरह से समझा देती है. कीर्ति के फ्लैट पर जाकर मालूम होता है कि धीरेन्द्र की मृत्यु हो चुकी है और सारा परिवार अस्पताल में ही है.

शाम तक इंतजार करने के बाद कीर्ति का परिवार फ्लैट पर आता है. बसंती देखती है कि डेढ़ कमरे के फ्लैट में इतने अधिक लोग रहते हैं. अम्मा और प्रीति दस दिन बाद अपने घर दुर्ग लौट गईं. धीरेन्द्र के परिवार के सभी सदस्य अपने-अपने काम में लग गए. एक दिन धीरेन्द्र के डोम्बिवली वाले चाचा कीर्ति के सास-ससुर से मिलने आते है और वापस जाते समय वे जुहू बीच जाते हैं और अपने साथ बसंती को और धीरेन्द्र की अविवाहित बुआ को भी साथ ले जाते है. जुहू बीच पर बसंती को इंदु भाभी मिलती हैं और वे कहती हैं कि वे जहां ठहरी हुई हैं वह मकान इस बीच से पास में ही है. वापस आते समय बुआ तो बस में चढ़ जाती है लेकिन बसंती बस में नहीं चढ़ पाती है. बसंती को देर से बस मिलती है और वह कीर्ति की ससुराल देर से पहुंचती है.

एक महीने बाद जब धीरेन्द्र की मृत्यु पर होने वाले सारे क्रियाक्रम निपट जाते हैं तब कीर्ति की सास कीर्ति को बसंती के साथ दुर्ग रवाना कर देती है. दुर्ग पहुंचकर बसंती अपनी हौजरी की दुकान पर जाने लग जाती है और बैंक में भर्ती की परीक्षा की तैयारी करती है. एक दिन दुकान पर कीर्ति का पहला प्रेमी कमल आता है और बसंती से पूछता है कि कीर्ति के हालचाल क्या हैं. बसंती कहती है, तुम स्वयं कीर्ति से जाकर मिल लो.

कमल घर पर कीर्ति से मिलता है. वह अभी भी कीर्ति से शादी करने को तैयार है. लेकिन न ही अम्मा और कमल का परिवार इन दोनों की शादी के लिए तैयार हो पाता है. बसंती कीर्ति से कहती है कि तुम एमए का फॉर्म भर दो और फिर से पढ़ाई शुरू करों. प्रीति जवान है. उसका पढ़ाई में ध्यान कम है. एक दिन कीर्ति सामने रहने वाले पुलिस वाले के साथ भाग जाती है, लेकिन बसंती, प्रीति को वापस घर ले आती है और अपनी अम्मा से कहती है कि अब प्रीति मेरी जिम्मेदारी है. बसंती प्रीति को समझाती है कि यदि तुम हायर सेकंडरी प्रथम श्रेणी में पास नहीं हुईं तो तुम्हें दुकान पर बैठा दिया जाएगा और तुम्हारी आगे की पढ़ाई बंद हो जायेगी. बसंती, बैंक में भर्ती के लिए जो परीक्षा हुई थी उसमें पास हो जाती है.

जिस दिन बसंती का बैंक में भर्ती के रायपुर में साक्षात्कार होता है उसी दिन शाम को शेखर और मौलश्री की शादी का रिसेप्शन होता है. बसंती अपने साक्षात्कार के पश्चात शादी के रिसेप्शन में नहीं जाती है और वह नियोगी अंकल के साथ कॉफी हाउस में कॉफी पीने के बाद टाकीज में मूवी देखने चले जाते हैं. बसंती की नौकरी बैंक में लग जाती है और उसकी पोस्टिंग रायपुर में हो जाती है. बसंती कीर्ति, प्रीति और अम्मा को रायपुर अपने पास बुला लेती है. अम्मा बसंती को शादी करने के लिए पीछे पड़ती है. नियोगी अंकल प्रमोद नाम के एक लड़के से बसंती की शादी के लिए अम्मा को तैयार कर लेते हैं. बसंती भी एक दिन प्रमोद से शादी करने के लिए तैयार हो जाती है.

एक दिन बैंक में बसंती के पास इंदु भाभी और शेखर बैंक से पैसे निकलवाने के लिए आते हैं, तब बसंती को मालूम पड़ता है कि शेखर की शादी नहीं हुई है. मौलश्री बंबई छोड़कर रायपुर आने को तैयार नहीं है. इंदु भाभी बसंती से कहती है कि तुम मेरे से घर पर मिलने आना. बसंती उसी दिन बैंक का काम निपटने के बाद इंदु भाभी के घर जाती है तो इंदु भाभी बसंती से कहती है मैं तुम्हें अपनी देवरानी बनाने को तैयार हूं. क्या तुम शेखर से शादी करोगी. बसंती को तो शेखर पहले से ही पसंद था. बसंती शर्माकर अपनी नजरें झुका लेती है. इंदु भाभी बसंती से कहती है मैं एक-दो दिन में शेखर की शादी के लिए तुम्हारा हाथ मांगने तुम्हारी अम्मा से मिलने आऊंगी.

इंदु भाभी बसंती के घर नहीं जा पाती है. उधर नियोगी अंकल बसंती की शादी प्रमोद से करवाने के लिए दबाव डालते हैं. बसंती प्रमोद के साथ शादी से मना कर देती है. नियोगी अंकल नाराज हो जाते हैं. कीर्ति और अम्मा दोनों दुर्ग चले जाते हैं. एक दिन जब बसंती की मुलाकात शेखर से होती है तब बसंती को पता चलता है कि इंदु तो हॉस्पिटल में एडमिट है. जिस दिन बसंती इंदु से मिलने उनके घर गई थी उसके दूसरे दिन ही इंदु घर में गिर गई थी और उनका गर्भ में जो बच्चा था वह भी ख़त्म हो गया था. इंदु बहुत कमजोर हो गई थी.

एक दिन सुबह जब बसंती बैंक जा रही थी, तब बारिश प्रारम्भ हो गई थी और बसंती भीग भी गई थी. उसी समय शेखर उधर से जा रहा था तो वह अपना कोट निकालकर बसंती को पहना देता है. एक दिन शनिवार को बैंक का काम पूरा करने के बाद बसंती वह कोट पहुंचाने इंदु के घर जाती है तो उसे घर पर सिर्फ शेखर मिलता है. फिर शेखर बसंती को कार से छोड़ने बसंती के घर जाता है और वहीं भोजन करता है. एक दिन कीर्ति और कमल बसंती के घर आते हैं. वे दोनों शीघ्र शादी करना चाहते हैं. एक रात को कमल के पिताजी कुछ गुंडों को लेकर बसंती के घर आ जाते है और कमल को अपने साथ ले चले जाते हैं. थोड़ी देर बाद कमल फिर आता है और कीर्ति से कहता है कि हमारी शादी अभी नहीं हो सकती है. मेरी पिताजी को हार्ट अटैक आ गया है और मैं शादी कर लूंगा तो मेरी मम्मी आत्महत्या कर लेगी. कमल वापस चला जाता है. उसी रात को ही कीर्ति अपने शरीर पर घासलेट डालकर जल कर मर जाती है.

कुछ दिनों पश्चात जब शेखर और बसंती अकेले में मिलते हैं तब शेखर बसंती से अपनी शादी का प्रस्ताव रखता है जिसे बसंती स्वीकार कर लेती है. शेखर और बसंती की शादी हो जाती है. प्रीति आईएएस की तैयारी कर कलेक्टर बन जाती है. बसंती बैंक में प्रोबेशनरी ऑफ़िसर बन जाती है और उसका स्थानांतरण अन्य शाखा में हो जाता है. शेखर रायपुर में अपनी फैक्ट्री डालता है. वह कुछ सालों बाद बंबई में भी अपनी फैक्ट्री जमा लेता है और फ्लैट भी ले लेता है. बसंती को एक बेटा और एक बेटी हो जाती है. बसंती जब पहली बार बंबई गई थी तब से ही वह बंबई में रहने का सपना देख रही थी. बसंती का पंद्रह साल बाद सपना पूरा हो जाता है.

उपन्यास की भाषा और प्रवाह पाठक को सतत जोड़े रखने में पूरी तरह सक्षम है. उपन्यास में मानवीय भावनाओं और मानसिक संघर्षों का अंतर्द्वंद है. लेखिका ने बसंती के मन की भावनाओं को बखूबी व्यक्त किया है. बसंती के जीवन में आये उतार-चढ़ाव की बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति इस उपन्यास में हुयी है. छोटे-छोटे कुल 5 अध्यायों में बंटा यह उपन्यास बसंती के भीतर की उदासी को उपन्यास के प्रारंभ में ही पाठकों के सामने रख देता है. इस उपन्यास में बसंती का मनोवैज्ञानिक पक्ष विस्तृत रूप से सामने आया है. उसकी असीम सहन शक्ति और उसकी मानसिक उहापोह का एक-एक रंग साफ दिखाई देता है. कथाकार ने पात्रों का चरित्रांकन स्वाभाविक रूप से किया है. कथाकार ने किरदारों को पूर्ण स्वतंत्रता दी है। उपन्यास समाप्त होने तक सभी पात्रों की मित्रता पाठक से हो चुकी होती है. इस उपन्यास के पात्र अपने ही करीबी रिश्तों को परत दर परत बेपर्दा करते हैं. बसंती के मन की गाँठे आसानी से नहीं खुलती हैं.

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