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Friday, July 4, 2025

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ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) अफ़गान शरणार्थियों की एक उम्मीद

ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) की शिक्षा के लिए तालिबान शासित अफ़ग़ानिस्तान में कड़े संघर्ष की कहानी, लड़कियों और महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है, डॉक्टर बनने के अपने लक्ष्य लिए उन्होंने सभी बड़ी चुनौतियों को पार किया.

ज़ाकिरा हिकमत द्वारा तुर्की में अफ़गान शरणार्थियों की मदद के लिए बनाए गए उनके संगठन के काम के लिए अमेरिका द्वारा व्हाइट हाउस में अंतरराष्ट्रीय सम्मान (इंटरनेशनल वुमेन ऑफ़ करेज अवॉर्ड) से सम्मानित भी किया गया.

ज़ाकिरा का मक़सद बदला

अफ़ग़ानिस्तान में डांस करना या इस तरह की गतिविधियां प्रतिबंधित हैं, लेकिन मध्य तुर्की के शहर कायसेरी में अफ़ग़ान शरणार्थी एकजुटता संघ (अफ़ग़ान रिफ़्यूज़ी सॉलिडैरिटी एसोसिएशन) के इस कार्यक्रम में लोग अपनी बात कहने के लिए आज़ाद हैं. डॉ. ज़ाकिरा हिकमत ने साल 2014 में इस चैरिटी संगठन की स्थापना की थी.

ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) के अनुसार, “नृत्य और संगीत हमेशा हमारे साथ रहेंगे और यह शरणार्थियों के लिए थेरेपी है, जो अलग-अलग समुदाय से आते हैं और जिनकी अलग-अलग समस्याएं हैं.”

तुर्की में एक लाख से भी ज़्यादा अफ़ग़ान शरणार्थी हैं और उनमें से हज़ारों लोग बिना किसी उचित दस्तावेज़ के रह रहे हैं. इनमें से अलग-अलग देशों के लाखों लोग, बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. किसी दूसरे देश में बिना वहां की भाषा जाने, खाने से लेकर रहने तक के लिए किसी ठिकाने के लिए जूझ रहे हैं.

ज़ाकिरा हिकमत ने तालिबान के दौर में कैसे की पढ़ाई?

ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) को भी हज़ारों दूसरी लड़कियों की तरह साल 1996 में तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद स्कूल जाना बंद करना पड़ा था. यह अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी शासन का पहला दौर था.

लेकिन देश के दक्षिण पूर्वी प्रांत ग़ज़नी में ज़ाकिरा हिकमत अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए डटी हुई थीं.

ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) कहती हैं, “मैंने इस अंधकारमय समय से बाहर निकलने और अज्ञानता से बचने के लिए अपने शिक्षकों और परिवार की मदद से चोरी-छिपे पढ़ाई करने की कोशिश जारी रखी.”

“मैं एक ग़रीब परिवार में पैदा हुई थी. उनके पास नोटबुक और पेन के लिए पैसे नहीं थे. मेरी मां ने मेरे और मेरे भाई-बहनों के लिए स्कूल के सामान ख़रीदने के लिए अपने कपड़े भी बेच दिए थे.”

ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) के अनुसार, “जब उन्होंने सुना कि तालिबान आ रहे है तो उन्हें भागकर छिपना पड़ा.”

ऐसी असंभव परिस्थितियों के बावजूद ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) अपनी पढ़ाई जारी रखने में क़ामयाब रहीं और तालिबान के सत्ता से हटने के बाद तुर्की में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए तीन स्कॉलरशिप भी जीतने में सफल रहीं.

लेकिन ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) का नाम स्कॉलरशिप की लिस्ट से हटा दिया जाता था क्योंकि वह एक महिला थीं.

ज़ाकिरा हिकमत बताती हैं, “बहुत आग्रह करने के बाद तुर्की दूतावास ने मुझे परीक्षा की कॉपी दिखाई. मैंने काफ़ी अच्छे नंबर हासिल किए थे. लेकिन अफ़ग़ान अधिकारियों ने मेरा और गज़नी प्रांत की पाँच अन्य लड़कियों के नाम लिस्ट से हटा दिए थे और उन्होंने टर्किश दूतावास से कहा था कि लड़कियों को अकेले विदेश यात्रा नहीं करनी चाहिए.”

आख़िरकार अधिकारियों ने नरमी दिखाई और ज़किरा को सपने पूरा करने के लिए तुर्की जाने की मंज़ूरी दे दी.

ज़ाकिरा (Zakira Hikmat) साल 2008 में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए तुर्की गई थीं. लेकिन संयोग से हुई एक मुलाक़ात ने उनकी दिशा को बदल कर रख दिया.

एक घटना ने बदली ज़ाकिरा हिकमत सोच

ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) फोन पर फ़ारसी भाषा में बात कर रहीं थीं. तभी एक रोती हुई महिला उनके पास दौड़ते हुए आई और गले लगाने लगी.

महिला ने ज़ाकिरा हिकमत से पूछा, “आप कहां से हैं, क्योंकि आप फ़ारसी बोल रही हैं.”

महिला ने ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) को बताया कि वह अपने परिवार के साथ चार दिन और चार रातों तक बस टर्मिनल पर फंसी रहीं. वह टर्किश भाषा नहीं बोल पाती थीं और उनको नहीं पता था कि आगे क्या करना है?

ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) ने उन प्रवासियों को इमिग्रेशन ऑफ़िस पहुंचाने और अधिकारियों से मदद दिलाने में सहायता की.

इस अनुभव ने उनको यह एहसास दिलाया कि सिर्फ़ दवा के ज़रिए ही नहीं बल्कि दूसरे तरीकों से भी वह लोगों की मदद कर सकती हैं.

इसी वजह से ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) ने एएसआरए की स्थापना की, जो ना केवल अफ़ग़ान बल्कि तुर्की में सीरियाई, इराक़ी और ईरानी प्रवासियों की मदद भी करता है.

अब तक यह संगठन 62 शहरों में 130,000 से ज़्यादा लोगों की मदद कर चुका है.

दवा नाकाफ़ी

एक ईरानी महिला ने बताया, “एक दिन पुलिस हमारे घर आई और हम सभी को एक शिविर में लेकर गई. हमारे आठ रिश्तेदारों को हिरासत में लिया गया था क्योंकि उनके पास अभी तक आधिकारिक दस्तावेज़ नहीं थे.”

हालांकि उन्होंने अपना नाम इस्तेमाल ना करने की इच्छा जताई.

उन्होंने बताया, “वह एक सामान्य यूरोपीय शरणार्थी शिविर की तरह नहीं था. असल में एक जेल की तरह था.”

43 वर्षीय ईरानी महिला ने बताया कि शरणार्थी शिविर में खाने के लिए पर्याप्त खाना भी नहीं था और वहां स्वास्थ्य सुविधाओं का कोई नामो-निशान तक नहीं था.

43 वर्षीय ईरानी महिला ने कहा, “जब उन्होंने हमें किसी से संपर्क करने की इजाज़त दी तो मैंने डॉ. ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) को कॉल किया और यह एक चमत्कार की तरह था. एएसआरए ने हमें शिविर से रिहा करवाया.”

हालांकि बचपन से ही ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) का सपना डॉक्टर बनने का रहा है लेकिन उन्होंने पाया कि एएसआरए चलाने का फ़ैसला उनके लिए स्वाभाविक था.

डॉ. ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) कहती हैं, “चार साल से भी ज़्यादा वक़्त तक मैं एक सरकारी अस्पताल के शरणार्थी विभाग की सीनियर डॉक्टर थी.”

“रिफ़्यूजी हमारे पास बहुत सी समस्याएं लेकर आते थे और मैंने महसूस किया कि उन सभी समस्याओं का इलाज केवल दवा से मुमकिन नहीं है.”

तालिबान और महिलाएं

तीन महीने पहले चार बच्चों के पिता, फ़रायदून तलाई को तुर्की में रहने के लिए दस्तावेजों की अवधि बढ़ाने से मना कर दिया गया.

अफ़ग़ानिस्तान के पंजशीर प्रांत के शरणार्थी फ़रायदून तलाई ने बताया, ”ज़ाकिरा (Zakira Hikmat) ने मुझे एक वकील दिया. मैं अनपढ़ हूं तो उन्होंने मेरी अपील भी लिखी और मैंने इसे अदालत में पेश किया.”

एएसआरए ने शरणार्थी फ़रायदून की मदद ना केवल क़ानूनी समस्याओं में की बल्कि उनकी निजी समस्याओं में भी सहायता उपलब्ध करवाई.

शरणार्थी फ़रायदून ने बताया, “मेरा बेटा तीन साल तक अस्पताल में रहा और ज़ाकिरा ने दस्तावेजों के अनुवाद में मेरी सहायता की.”

उन्होंने रोते हुए कहा, “जब मेरे बेटे की मृत्यु हुई तो डॉ. ज़ाकिरा (Zakira Hikmat) ने अंतिम संस्कार में भी सहायता की.”

डॉ. ज़ाकिरा को उम्मीद है कि एएसआरए के काम के ज़रिए वह तुर्की में बड़ी तादाद में अफ़ग़ान प्रवासियों की मदद करना जारी रख पाएंगी ताकि वह अपने और अपने बच्चों को लिए बेहतर जीवन जी सकें.

ज़ाकिरा हिकमत (Zakira Hikmat) के जज्बे को सलाम, मौत का डर भी शिक्षा को आगे बढ़ने से नहीं रुक सका।

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