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Saturday, July 5, 2025

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तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा पर उनकी ही पार्टी का ‘तानाशाही’ का आरोप?

 

तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर ‘तानाशाही’ का आरोप लगाते हुए पार्टी के आलाकमान को एक प्रतिवेदन दिया है.

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा “तानाशाही, हठधर्मिता, मनमानी….” कुछ ऐसे शब्द है जो  उनके अपने भाषणों का हिस्सा होते हैं, और वो अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के ख़िलाफ़ अक्सर इन शब्दों का इस्तेमाल करती रही हैं.

बीबीसी की एक न्यूज के अनुसार, लेकिन् यही आरोप उनकी अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर लगाए है।

पिछले कुछ वर्षों मे राष्ट्रीय राजनीति में महुआ मोइत्रा ने अपने आप को तृणमूल कांग्रेस की नेता और बंगाल की दीदी ममता के आगे आकार तृणमूल कांग्रेस का चेहरा बनने की कोशिश की, उनकी इस महत्वाकांक्षा में उनको काँग्रेस पार्टी का भरपूर साथ मिला।

काँग्रेस पार्टी, महुआ मोइत्रा को समर्थन देकर, एक तीर से कई शिकार करना चाह रही है, जिसमें, से एक है बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को कमजोर करके ममता बनर्जी का जन-आधार खत्म करना और काँग्रेस को वापस खड़ा करना है। दूसरा उदेश्य, मामता बनर्जी के कद को राष्ट्रीय राजनीति में कम करना जिससे की  नेहरू परिवार के कॉंग्रेस के नेता राहुल गांधी के लिए विपक्ष के नेता के रूप में स्थान सुरक्षित रखा जा सके और विपक्ष के पास उनके अलावा कोई दूसरा विकल्प न रहे सकें।

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर क्या आरोप लगाए?

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर ‘मनमानी’ करने और ‘हठधर्मिता’ के भी आरोप लगाए जा रहे हैं और ये पार्टी विधायक के ही आरोप हैं जिसको लेकर तृणमूल कांग्रेस के अंदर ही अंदर बहस भी छिड़ी हुई है. मीडिया के अनुसार ये सभी विधायक पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से हैं जो महुआ मोइत्रा का संसदीय क्षेत्र भी है.

पार्टी के ‘आलाकमान’ को दिए गए प्रतिवेदन में जिन विधायकों के हस्ताक्षर हैं उनमे बिम्लेंदु सिन्हा राय भी हैं जो करीमपुर विधानसभा सीट से जीतकर आए हैं. इसी सीट से महुआ मोइत्रा भी विधायक रह चुकी हैं.

राय के अलावा नक्काशीपाड़ा के विधायक कल्लोल ख़ान, चपरा के विधायक रुक्बनुर रहमान, दक्षिण कृष्णानगर के विधायक उज्ज्वल बिस्वास, पलाशीपाड़ा के विधायक मानिक भट्टाचार्य और कालीगंज से विधायक नसीरुद्दीन अहमद ने भी इस प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर किए हैं.

इस प्रतिवेदन में तृणमूल कांग्रेस के पश्चिम बंगाल राज्य के अध्यक्ष सुब्रत बक्शी को संबोधित किया गया है जिसमें आरोप लगाए गए हैं “लोकसभा में निर्वाचन के बाद से ही महुआ मोइत्रा उत्तरी नदिया ज़िला तृणमूल कांग्रेस की अनदेखी कर रही हैं. वो स्थानीय नेताओं के साथ तालमेल नहीं बैठा पाई हैं और बिना किसी की सलाह लिए जो मन में आ रहा है वो कर रही हैं.”

ये भी आरोप लगाए गए हैं कि महुआ मोइत्रा ‘असामाजिक तत्वों’ को ‘प्रोत्साहन’ दे रही हैं जिसकी वजह से ‘अल्पसंख्यकों के बीच पार्टी की छवि धूमिल’ हो रही है.

सांसद होने के साथ-साथ महुआ मोइत्रा तृणमूल कांग्रेस की उत्तरी नदिया ज़िला अध्यक्ष भी हैं. लेकिन, ऐसा नहीं है कि पहली बार पार्टी के अंदर से नेताओं का आक्रोश उनके ख़िलाफ़ पनपा हो.

तृणमूल कांग्रेस के कई नेता जता चुके हैं नाराज़गी

तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेता बताते हैं कि साल 2019 में भी जब उन्हें पहली बार उत्तरी नदिया का ज़िला अध्यक्ष बनाया गया था तब भी उनकी कार्यशैली को लेकर पार्टी के नेताओं में, और ख़ासतौर पर ज़िला इकाई के अंदर, असंतोष पनपने लगा था. नेताओं का कहना है कि इसी वजह से साल 2021 में उन्हें ज़िला अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था.

लेकिन जब पिछले संसदीय सत्र में उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी तो उन्हें एक बार फिर ज़िला इकाई की ज़िम्मेदारी सौंप दी गयी थी क्योंकि पार्टी संदेश देना चाहती थी कि ऐसी घड़ी में वो महुआ मोइत्रा के साथ खड़ी है.

विधायकों के प्रतिवेदन में ये भी आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने किसी भी विधायक या वरिष्ठ नेताओं से परामर्श किए बिना ही तीन प्रखंड अध्यक्षों के साथ 16 अंचल और 116 बूथ स्तरीय अध्यक्षों को भी बदल दिया.

तृणमूल कांग्रेस पार्टी के विधायकों का क्या है कहना

बीबीसी ने जब प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर करने वाले विधायकों से संपर्क किया तो उन्होंने इसके बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वो महुआ मोइत्रा को लेकर मीडिया से कोई चर्चा भी नहीं करना चाहते.

हालांकि फ़ोन पर संपर्क करने पर एक विधायक का कहना था ” ज़िला कमिटी किस हिसाब से चलाई जा रही है उसकी जानकारी ज़िले के विधायकों को भी नहीं है.”

उनका कहना था कि हाल ही में पश्चिम बंगाल की विधानसभा के सत्र के दौरान सभी छह विधायकों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाक़ात की थी और उनका ध्यान “महुआ मोइत्रा की कार्यशैली” की तरफ़ खींचा था.

तृणमूल कांग्रेस से चपरा के विधायक रुक्बनुर रहमान ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि वो प्रतिवेदन को लेकर मीडिया से इसलिए चर्चा नहीं करना चाहते हैं क्योंकि ‘ये पार्टी का अंदरूनी मामला’ है.

फ़ोन पर चर्चा के दौरान वो इतना ज़रूर कह रहे थे, “महुआ मोइत्रा ना सिर्फ़ स्थानीय विधायकों की अनदेखी कर रही हैं बल्कि पुराने नेताओं को भी संगठन के फ़ैसलों में शामिल नहीं कर रही हैं. उनकी कार्यशैली से संगठन के नेताओं और उनके बीच तालमेल नहीं बैठ पा रहा है.”

विधायकों का कहना है कि उन्होंने पार्टी की केंद्रीय कमिटी को भी अपनी भावनाओं से अवगत कराया है.

उन्होंने कहा कि प्रतिवेदन देने की नौबत इसलिए आई क्योंकि अगर महुआ मोइत्रा किसी विधायक के क्षेत्र में कोई कार्यक्रम या भ्रमण कर रही होती हैं तो वो इसकी सूचना तक संबंधित विधायक को नहीं देती हैं.

तृणमूल कांग्रेस पार्टी की सांसद महुआ मोइत्रा ने क्या कहा

इन आरोपों को लेकर जब पत्रकारों ने महुआ मोइत्रा से उनकी प्रतिक्रया जाननी चाही तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने लिखा है कि महुआ मोइत्रा ने ये कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि “ये ज़िला स्तरीय मुद्दा है और मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती हूं.”

वैसे विधायक रुक्बनुर रहमान कहते हैं कि ममता बनर्जी ने सभी विधायकों की बात ‘ग़ौर से सुनी’ और इस मामले का हल निकालने का आश्वासन भी दिया है इसलिए विधायक अब इस पर मीडिया में चर्चा करना नहीं चाहते हैं.

एक अन्य विधायक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बात की. वो कहते हैं, “अभी से वो कहती चल रही हैं कि आगामी विधानसभा में कई विधायकों को पार्टी बदल देगी. इस तरह की बातों से हमारे समर्थक निराश हो रहे हैं और इसका असर मतदाताओं पर भी पड़ रहा है.”

महुआ मोइत्रा की “कार्यशैली से क्षुब्ध” एक और नेता का कहना है “उनकी कार्यशैली की वजह से ही वर्ष 2016 की तुलना में संगठन को वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों में 12 प्रतिशत वोटों का नुक़सान हो चुका है. 12 प्रतिशत वोट बहुत होते हैं.”

तृणमूल कांग्रेस को क्या नुक़सान होगा ?

तृणमूल कांग्रेस के इस विधायक का ये भी कहना है कि अगर आलाकमान उत्तरी नदिया ज़िला कमिटी के नेतृत्व को लेकर जल्द कोई फ़ैसला नहीं करता है तो आगामी चुनावों में भी “संगठन को और भी ज़्यादा नुक़सान” उठाना पड़ सकता है.

कृष्णानगर संसदीय सीट के तहत कुल सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें से पांच पर मौजूदा विधायकों ने आवाज़ बुलंद की है जबकि दो अन्य विधायकों ने प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.

इन पाँचों के अलावा महुआ मोइत्रा के पुराने विधानसभा क्षेत्र, करीमपुर के मौजूदा विधायक भी बाक़ी के पांच विधायकों के समर्थन के लिए खुलकर सामने आये हैं.

क्षेत्र के जिन विधायकों ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं उनमें पार्टी के तेहाटा सीट से विधायक तापस साहा और उत्तरी कृष्णानगर के विधायक मुकुल रॉय हैं.

जानकारों को लगता है कि इन विधायकों के हस्ताक्षर नहीं करने से पार्टी में “अंदरूनी गुटबाज़ी” के संकेत भी दिखने लगे हैं.

तृणमूल कांग्रेस की गुटबाजी से किसको फ़ायदा?

तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी को संयुक्त विपक्ष, राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख चेहरा बनाना चाह रही है क्योंकि उनके करिश्माई नेतृत्व की वजह से ही दशकों पुरानी काँग्रेस और वामदलों का बंगाल की सत्ता के गलियारों से पूरी तरह से सफाया हो चुका है और राष्ट्रवादी बीजेपी को सत्ता से दूर रखा हुआ है

ममता बनर्जी की नेतृत्व क्षमता, बेदाग राजनैतिक सफर, व्यक्तिगत जीवन में सुचिता और सरलता, जैसी खूबियाँ  काँग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का नेता बनाने में सबसे बड़ी बाधक हैं और इन सभी की काट के लिए काँग्रेस के नेता कई वर्षों से प्रायरत है, जिसका प्रतिबिंब तृणमूल कांग्रेस की पिछली कई आंतरिक कलह या मतभेदों के रूप में दिखाई देता है।

भविष्य में देखते है कि  काँग्रेस ममता बनर्जी और उनकी की तृणमूल कांग्रेस को राजनीति के दंगल में परास्त कर पाती है या नहीं ?

 

मोंकटाइम्स (monktimes.com) के लिए न्यूज-डेस्क द्वारा प्रकाशित.

अस्वीकरण (Disclaimer): यहाँ दी गई जानकारी विभिन्न इंटरनेट पर उपलब्ध मीडिया स्रोतों पर आधारित है,जिनका हमारे द्वारा सत्यापन नहीं किया जाता है। 

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