जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में सूखा के कारण हर साल 307 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी खतरे में है लेकिन क्या प्रकृति आधारित समाधान को अपना कर इसे रोक सकते हैं?
जलवायु परिवर्तन पर यूएन रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में सूखा 30 फीसदी ज्यादा पड़ रहा है।
भूमि और सूखा निपटान सम्मेलन
दुनियाभर में बढ़ते सूखा और जमीन के खराब होते हालात पर चर्चा के लिए, सऊदी अरब के रेगिस्तानी शहर रियाद में दुनियाभर के नेता जुटे.
यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के भूमि और सूखा निपटान सम्मेलन (यूएनएनसीसीडी कॉप16) (Land and Drought Settlement Conference, UNCCD COP16, Stands for the 16th Conference of the Parties to the United Nations Convention to Combat Desertification (UNCCD)), के तहत था .
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने इसे “चांद पर जाने जैसा क्षण” बताया है.
उनका कहना है कि इस सम्मेलन में भूमि और सूखा प्रतिरोधी उपायों पर तेजी से काम करने की जरूरत है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस समस्या से निपटने के लिए खरबों डॉलर की जरूरत होगी.
विश्व में हर साल 307 अरब डॉलर का नुकसान
यूएन रिपोर्ट के अनुसार, सूखा की वजह से हर साल वैश्विक अर्थव्यवस्था को 307 अरब डॉलर का नुकसान होता है. यह अनुमान पहले की तुलना में काफी ज्यादा है क्योंकि पिछली गणनाओं में सिर्फ कृषि पर ध्यान दिया गया था. नई रिपोर्ट में स्वास्थ्य और ऊर्जा क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी जोड़ा गया है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि 40 फीसदी वैश्विक भूमि खराब हो चुकी है. 2000 से अब तक सूखा की घटनाएं 29 फीसदी बढ़ गई हैं. इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और अस्थिर भूमि प्रबंधन है. इससे कृषि, जल सुरक्षा और 1.8 अरब लोगों की आजीविका खतरे में है.
सूखा कैसे करता है असर
वैज्ञानिकों का कहना है कि सूखा जल और वायु की गुणवत्ता को खराब करता है।
सूखा के कारण धूल भरी आंधियों और सांस की बीमारियों को बढ़ाता है.
सूखा बिजली उत्पादन और ग्रिड बाधित करता है और नदियां सूखने से खाद्य आपूर्ति पर असर डालता है. जलवायु परिवर्तन के कारण बेरोजगारों की संख्या बड़ रही है.
यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थियाव ने कहा कि यह सम्मेलन भूमि और सूखा प्रतिरोधी उपायों को बढ़ावा देगा. इससे खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, मानव विकास और शांति को बढ़ावा मिलेगा.
रियाद सम्मेलन में “रियाद ग्लोबल ड्रॉउट रेसिलियंस पार्टनरशिप” (Riyadh Global Drought Resilience Partnership)लॉन्च की गई. यह साझेदारी 80 सबसे कमजोर देशों को सूखा से निपटने के लिए सार्वजनिक और निजी वित्त को फंडिंग करेगी.
सऊदी अरब, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक और ओपेक फंड ने 2.15 अरब डॉलर की शुरुआती राशि देने की घोषणा की है.
प्रकृति-आधारित समाधान
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रकृति-आधारित उपाय, जैसे पेड़ लगाना, पशुओं की चराई को प्रबंधित करना और शहरी क्षेत्रों में हरित स्थान बनाना, सूखा से लड़ने के किफायती तरीके हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि प्राकृतिक संसाधनों में निवेश से हर एक डॉलर पर 1.40 से 27 डॉलर तक का लाभ मिलता है. इसमें मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने और पानी रोकने की क्षमता बढ़ाने जैसे उपाय शामिल हैं.
स्पेन और भारत जैसे देशों ने इन उपायों को अपनाया है और सकारात्मक नतीजे देखे हैं. स्पेन में किसानों ने जैविक खाद का उपयोग किया और बाढ़ रोकने के लिए वेटलैंड्स बनाए.
एक संयुक्त राष्ट्र अध्ययन के अनुसार, भूमि का क्षरण पृथ्वी की क्षमता को कमजोर कर रहा है. इसे ठीक न करने पर आने वाली पीढ़ियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
पिछले तीन वर्षों में 30 से अधिक देशों ने सूखा आपातकाल घोषित किया, जिनमें भारत, चीन, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं.
भारत में सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह मेघालय में भी अब पानी का संकट गहरा रहा है.
सम्मेलन के अनुसार, 11 दिसंबर को “फाइनेंस डे” के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के प्रतिनिधि भूमि और सूखा निपटान के लिए फंडिंग पर चर्चा करेंगे.
यूएनसीसीडी रिपोर्ट के सह-लेखक कावेह मदानी ने कहा, “प्रकृति में निवेश करना सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद है. इससे रोजगार बढ़ता है, खाद्य और मानव सुरक्षा सुनिश्चित होती है और संघर्षों का खतरा कम होता है.” उनका कहना है कि सबूत दिखाते हैं कि यह निवेश लंबे समय में लाभकारी है.
पिछले दशक की स्थिति की बात करें तो अब काफी हद तक सूखा की समस्या, पानी की समस्या और जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ी है और सरकार तथा जनता के बीच इस पर एक राय है और सामूहिक सहयोग है।
भारत में सूखा की समस्या के समाधान के लिए प्रकृति आधारित कुछ प्रयोग अब एक जन आन्दोलन की तरह हो गए हैं जैसे, पेड़ लगाना (वृक्षारोपण), शहरी क्षेत्रों में हरित स्थान बनाना, जैविक खेती, कम पानी से बागवानी विधि से खेती करना, सूखा से लड़ने के किफायती तरीके हैं