मध्यभारत में बहने वाली नर्मदा नदी या नर्बदा को हिंदू पुराणों में ‘रेवा’ भी कहा गया है। हिंदू धर्म में इसे 7 पवित्र नदियों में से एक माना गया है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के अमरकण्टक नामक पहाड़ी स्थान से निकलकर गुजरात राज्य के खम्बात की खाड़ी के समुद्र में मिल जाती है।
नर्मदा नदी के करीब 1300 किलोमीटर से अधिक लंबे मार्ग में कई पहाड़, जंगल, प्राचीन तीर्थ, मंदिर और पुरा स्थलों को देखा जा सकता है। नर्मदा नदी की कुल 41 सहायक नदियां हैं। भारत में कई नदियां पश्चिम से होकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। वहीं नर्मदा जिसे रेवा भी कहते हैं जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है और अरब सागर में जाकर गिरती है। नर्मदा को भारत की सबसे प्राचीन नदियों में से एक माना जाता है। प्रति वर्ष माघ माह में शुक्ल पक्ष सप्तमी को नर्मदा जयन्ती भी मनायी जाती है।
नर्मदा नदी भारत की पश्चिम में बहने वाली सबसे बड़ी नदी है।
नर्मदा नदी उल्टी (पूर्व से पश्चिम) इसलिए बहती है, क्योंकि इसका ढलान उल्टी (पश्चिम) दिशा में है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, रिफ़्ट वैली नामक भौगोलिक संरचना की वजह से नर्मदा नदी उल्टी (पश्चिम) दिशा बहती है. वहीं, पौराणिक कथाओं के अनुसार, नर्मदा ने आजीवन कुंवारी रहने का फैसला लिया था और इसलिए वह उल्टी दिशा में बहने लगी थीं।
नर्मदा नदी का उद्गम
नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले में विंध्यांचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर स्थित अमरकंटक में नर्मदा कुंड से हुआ है. यह नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के बहुत ही थोड़े से भू-भाग, और गुजरात के मध्य में से होकर अरब सागर में जाकर मिल जाती है। नर्मदा नदी को ‘मध्य प्रदेश और गुजरात दोनों की ही ‘जीवन रेखा’ भी कहा जाता है.
नर्मदा नदी को मुक्तिदायनी देवी या मुक्ति देने वाली माँ के रूप में भी पूजा जाता है और कहीं कहीं इसे ‘आकाश की बेटी’ भी कहा जाता है।
नर्मदा नदी उत्तर और दक्षिण भारत के बीच अचिह्नित सीमा बनाती है।
नर्मदा की प्रमुख सहायक नदियाँ बारना, तवा, कनार, कोलार, मान, हथिनी, उरी, शक्कर आदि हैं। यह खंभात की खाड़ी में गिरने से पहले पश्चिम की ओर (1, 312 किमी) बहती है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश की सबसे लंबी नदी है और इसे “मध्य प्रदेश की जीवन रेखा” कहा जाता है।
नर्मदा नदी का महत्व
मत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा इस तरह वर्णित है कि, यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है। आशय यह कि गंगा कनखल में और सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है किन्तु गांव हो या वन नर्मदा हर जगह पुण्य प्रदायिका महासरिता है।
पुराणों में ऐसा वर्णित है कि संसार में एकमात्र मां नर्मदा नदी ही है जिसकी परिक्रमा सिद्ध, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मानव आदि करते हैं। मां नर्मदा की महिमा का बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता।
आदिगुरु शंकराचार्यजी ने नर्मदाष्टक में माता को सर्वतीर्थ नायकम् से संबोधित किया है। अर्थात माता को सभी तीर्थों का अग्रज कहा गया है।
पुराणों में नर्मदा नदी
स्कंद पुराण में वर्णित है कि राजा हिरण्यतेजा ने चौदह हजार दिव्य वर्षों की घोर तपस्या से शिव भगवान को प्रसन्न कर नर्मदा जी को पृथ्वी तल पर आने के लिए वर मांगा। शिव जी के आदेश से नर्मदा जी मगरमच्छ के आसन पर विराज हो कर उदयाचल पर्वत पर उतरीं और पश्चिम दिशा की ओर बहकर आगे चली गईं।
स्कंद पुराण के रेवाखंड में ऋषि मार्केडेयजी ने लिखा है कि नर्मदा के तट पर भगवान नारायण के सभी अवतारों ने आकर मां की स्तुति की। सत्युग के आदिकल्प से इस धरा पर जड़, जीव, चैतन्य को आनंदित और पल्लवित करने के लिए शिवतनया का प्रादुर्भाव माघ मास में हुआ था। पुराणों के अनुसार नर्मदा नदी को पाताल की नदी माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार नर्मदा के तट पर हैहयवंशी छत्रियों और भार्गववंशी ब्राह्मणों का प्राचीनकाल से ही राज रहा है। सहस्रबाहु महेश्वर (प्राचीन महिष्मती) का राजा था और उनके कुल पुरोहित भार्गव प्रमुख जमदग्नि ॠषि (परशुराम के पिता) थे।
वैसे तो नर्मदा नदी की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। जैसे कि, रेवा खंड के अनुसार नर्मदा नदी भगवान शिव के पसीने से उत्पन्न हुई थी, जब वे ऋक्ष पर्वत पर तपस्या कर रहे थे। इसी कारण नर्मदा नदी को शिव की पुत्री कहा जाता है।
नर्मदा जी को पवित्र इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इस नदी के तल पर बाणलिंग नामक कंकड़ पाए जाते हैं। ये कंकड़ सफेद क्वार्ट्ज से बने होते हैं और लिंग (शिवलिंग) के आकार के होते हैं। इन्हें शिव का साकार रूप माना जाता है और एक लोकप्रिय कहावत है, “जिते नर्मदा के कंकर उत्ते संकर” जिसका अर्थ है कि ‘जहाँ नर्मदा के कंकड़ उधर ही शिव हैं’।
आदि शंकराचार्य की अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से मुलाकात नर्मदा के तट पर स्थित ओंकारेश्वर नामक शहर में हुई थी।
ऐसा भी कहा जाता है कि नर्मदा का संगम सोनभद्र नदी से हुआ है, जो छोटा नागपुर पठार पर बहने वाली एक और नदी है । पुराणों के अनुसार , नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है, क्योंकि यह अपने चट्टानी तल से छलांग लगाती है
नर्मदा नदी के तट पर ओंकारेश्वर मांधाता, नर्मदा नदी के मध्य द्वीप पर स्थित है। दक्षिणी तट पर ममलेश्वर (प्राचीन नाम अमरेश्वर) मंदिर भी स्थित है । ओंकारेश्वर में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है।
नर्मदा की घाटी का सभ्यता काल
नर्मदा की घाटी को विश्व की सबसे प्राचीनतम घाटियों में गिना जाता है। यहां पर डायनासोर के अंडे भी पाए गए हैं और यहां कई विशालकाय जन्तु की प्रजातियों के कंकाल भी मिले हैं। इसके मिलने से यह सिद्ध होता है कि यह नदी और घाटी कितनी पुरानी है। यहां डायनासोर के अंडों के जीवाश्म पाए गए, तो दक्षिण एशिया में सबसे विशाल भैंस के जीवाश्म भी मिले हैं। डॉ. शशिकांत भट्ट की पुस्तक ‘नर्मदा वैली : कल्चर एंड सिविलाइजेशन’ नर्मदा घाटी की सभ्यता के बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। इस किताब के अनुसार नर्मदा किनारे मानव खोपड़ी का 5 से 6 लाख वर्ष पुराना जीवाश्म मिला है। इससे यह खुलासा होता है कि यहां सभ्यता का काल कितना पुराना है।
नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ जिसके बारे में कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व 25 करोड़ साल पुराना है। यह मीठे पानी का मगरमच्छ दुनिया के अन्य मगरमच्छों से एकदम अलग है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि, नर्मदा का अस्तित्व भी 25 करोड़ साल पुराना है।
पुरातत्व विभाग को समय समय पर खोजों के दौरान नर्मदा के तट और घाटी के कई इलाकों में हजारों साल प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष और जीवाश्म भी मिलते रहते हैं।
नर्मदा पुष्करम त्यौहार
नर्मदा पुष्करम नर्मदा नदी का त्यौहार है जो हर 12 साल में एक बार मनाया जाता है। यह पुष्करम बृहस्पति के वृषभ राशि में प्रवेश के समय से 12 दिनों की अवधि के लिए मनाया जाता है।
नर्मदा नदी के तट पर अमरकंटक मंदिर, ओंकारेश्वर मंदिर , चौसठ योगिनी मंदिर , चौबीस अवतार मंदिर , महेश्वर मंदिर , नेमावर सिद्धेश्वर मंदिर और भोजपुर शिव मंदिर बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध हैं। नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक, नर्मदा नदी में पवित्र स्नान और पूजा करने के लिए सबसे अच्छे स्थान में से एक है हैं।
हिंदू धर्म में, नर्मदा नदी का गहरा आध्यात्मिक महत्व है, जिसे भगवान शिव के दिव्य सार द्वारा पवित्र माना जाता है। नर्मदा पुष्करलु एक पवित्र अवधि का प्रतीक है, जिसके दौरान नर्मदा नदी और शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है, इस से माना जाता है कि, भक्तों को अपने पापों से मुक्ति पाने और इसकी पवित्र धाराओं में स्नान करके आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिलता है। इस अवधि के दौरान, नर्मदा नदी का जल दिव्य ऊर्जा से भर जाता है।
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