पंचतंत्र की कहानी (Panchtantra Story): चालाक खटमल
Author of Panchtantra: संस्कृत विद्वान आचार्य विष्णु शर्मा
पंचतंत्र एक नीति, कथा और कहानियों का संग्रह है जिसके रचयिता मशहूर भारतीय विद्वान श्री आचार्य विष्णु शर्मा है।
पंचतंत्र की कहानियों में बच्चों के साथ-साथ बड़े भी बहुत रुचि रखते हैं।
पंचतंत्र की कहानी में हमेशा कोई ना कोई शिक्षा या मूल जरूर छिपा होता है, जो हमें सीख देती है।
संस्कृत के महान विद्वान लेखक आचार्य श्री विष्णु शर्मा पंचतंत्र संस्कृत में लिखित नीति पुस्तक के लेखक माने जाते हैं।
जब यह ग्रंथ बनकर तैयार हुआ तब विष्णु शर्मा की उम्र लगभग 40 वर्ष की थी, और उनका कालखंड लगभग चौथी-छठी शताब्दी ई.पू. का माना जाता है.
विष्णु शर्मा भारत के महिलारोप्य नामक नगर में रहते थे, जिसका भारत के वर्तमान मानचित्र पर स्थान अज्ञात है।
आचार्य विष्णु शर्मा जिस राज्य में रहते थे, उस राज्य के राजा के 3 मूर्ख पुत्र थे जिनकी शिक्षा की जिम्मेदारी विष्णु शर्मा को दी गई थी. लेकिन, आचार्य विष्णु शर्मा जानते थे कि यह इतने मूर्ख हैं कि इनको शास्त्र या पुराने तरीकों से शिक्षित नहीं किया जा सकता है.
तब उन्होंने नय तरीके से जंतु कथाओं के द्वारा पढ़ाने का निश्चय किया और पंचतंत्र को पांच समूह लगभग चौथी-छठी शताब्दी ई.पू में लिखा था
पंचतंत्र को पांच भागों में बांटा गया हैं।
- मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव)
- मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति या उसके लाभ)
- संधि-विग्रह/काकोलूकियम (कौवे या उल्लुओं की कथा)
- लब्ध प्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर; यदि जान पर आ बने तो क्या?)
- अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठाएं)
पंचतंत्र की कहानी (Panchtantra Story): चालाक खटमल
एक राजा के शयनकक्ष में मंदविसर्पिणी नाम की जूँ ने डेरा डाल रखा था।
रात को जब राजा सोने जाता तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का खून चूसकर, फिर अपने स्थान पर जा कर छिप जाती।
संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का एक खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ पहुँचा।
जूँ ने जब उसे देखा तो वहाँ से चले जाने को कहा। उसे अपने अधिकार क्षेत्र में किसी अन्य का दखल सहन नहीं था। लेकिन खटमल भी कम चतुर नहीं था, बोला, “देखो, मेहमान से इस तरह का बरताव नहीं किया जाता, आज रात मैं तुम्हारा मेहमान हूँ।”
जूँ अंतत: खटमल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई और उसे शरण देते हुए बोली, “ठीक है, तुम यहाँ रातभर रुक सकते हो, लेकिन राजा को काटोगे तो नहीं, उसका खून चूसने के लिए?” खटमल बोला, “लेकिन मैं तुम्हारा मेहमान हूँ, मुझे कुछ तो दोगी खाने लिए, और राजा के खून से बढ़िया भोजन और क्या हो सकता है।”
जूँ बोली, ठीक है, “तुम चुपचाप राजा का खून चूस लेना, उसे पीड़ा का एहसास नहीं होना चाहिए।”
जैसा तुम कहोगी, बिल्कुल वैसा ही होगा, कहकर खटमल शयनकक्ष में राजा के आने की प्रतीक्षा करने लगा।
रात ढलने पर राजा आया और बिस्तर पर पड़कर सो गया।
खटमल सबकुछ भूलकर राजा को काटने दौड़ा और खून चूसने लगा।
ऐसा स्वादिष्ट खून उसने पहली बार चखा था, इसलिए वह जोर-जोर से काटकर खून चूसने लगा।
खटमल के काटकर खून चूसने से राजा के शरीर में तेज खुजली होने लगी और उसकी नींद उचट गई।
उसने क्रोध में भरकर अपने सेवकों से काटनेवाले जीव को ढूँढ़कर मारने को कहा।
यह सुनकर चतुर खटमल तो पलंग के पाए के नीचे छिप गया, लेकिन चादर के कोने पर बैठी जूँ राजा के सेवकों की नजर में आ गई। उन्होंने उसे पकड़ा और मार डाला।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि, जाँच -परख करने के बाद ही अनजानों पर भरोसा करें।