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Friday, July 4, 2025

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पुरी रथयात्रा से पहले क्यों बीमार पड़ जाते हैं भगवान जगन्नाथ?

सम्पूर्ण जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ का 11 जून को प्राकट्य उत्सव है और स्नान यात्रा भी है. आश्चर्यजनक रूप से रथयात्रा से पहले इसी स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ जी 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं और फिर वो किसी भक्त को दर्शन नहीं देते हैं. बल्कि, आने वाले इन 15 दिनों तक वो सिर्फ भक्तों से अपनी सेवा करवाते हैं.

यह सत्य है हर साल, ओडिशा के पुरी में होने वाली विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा से पहले एक ऐसा समय आता है जब 15 दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा एकांतवास में चले जाते हैं। इस अवधि को ‘अनसर काल’ कहा जाता है। मान्यता है कि इन 15 दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों  होता है और इस रहस्यमयी बीमारी के पीछे क्या मान्यताएं हैं?

आइए जानते हैं।

जगन्नाथ स्वामी बीमारी क्यों पड़ जाते है?

Why lord jagannath falls sick for 15 days: रथयात्रा से पहले ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ का ‘स्नान पूर्णिमा’ अनुष्ठान होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को मंदिर के बाहर, सार्वजनिक रूप से, 108 घड़े सुगंधित जल से महास्नान कराया जाता है। इस विशाल स्नान के बाद, लोकमान्यता है कि भगवान को ज़ुकाम और बुखार आ जाता है। उन्हें तेज़ ठंड लगती है और वे अस्वस्थ महसूस करने लगते हैं। भगवान जगन्नाथ, जिन्हें पुरी का अधिपति माना जाता है, हर साल एक ऐसे अनुष्ठान से गुजरते हैं जहाँ उन्हें “बीमार” माना जाता है। यह सुनकर कई लोगों को आश्चर्य होता है कि भला भगवान भी बीमार पड़ सकते हैं! दरअसल, इसके पीछे एक बहुत ही दिलचस्प और महत्वपूर्ण कथा जुड़ी हुई है। यह कथा है भगवान जगन्नाथ और उनके अनन्य भक्त माधव दास की।

भगवान जगन्नाथ और भक्त माधव दास की कहानी

बहुत समय पहले पुरी में एक महान भक्त माधव दास रहते थे। वे भगवान जगन्नाथ के प्रति अपनी असीम श्रद्धा के लिए जाने जाते थे। माधव दास अपना जीवन भगवान की सेवा और उन्हीं के प्रसाद (महाप्रसाद) पर व्यतीत करते थे। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि वे भगवान को अपने आराध्य ही नहीं, बल्कि अपने सबसे प्रिय मित्र और संरक्षक के रूप में भी देखते थे।

एक बार माधव दास को बहुत तेज बुखार हो गया। उनकी हालत इतनी गंभीर हो गई कि वे उठ भी नहीं पा रहे थे। ऐसे में उन्हें अपनी दैनिक दिनचर्या पूरी करने, यहाँ तक कि भगवान का प्रसाद ग्रहण करने में भी कठिनाई होने लगी। उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं था, और वे अकेलेपन में बीमारी से जूझ रहे थे। भक्त की इस पीड़ा को देखकर भगवान जगन्नाथ स्वयं विचलित हो गए। वे अपने भक्त की सेवा के लिए एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर माधव दास के पास पहुँचे। भगवान ने माधव दास की सेवा की, उन्हें दवा पिलाई, और उनकी हर ज़रूरत का ख्याल रखा। उन्होंने माधव दास को अपने हाथों से प्रसाद खिलाया और उनकी देखभाल की जब तक कि वे ठीक नहीं हो गए।

जब माधव दास स्वस्थ हुए, तो उन्हें एहसास हुआ कि उनकी सेवा करने वाला कोई और नहीं, बल्कि स्वयं भगवान जगन्नाथ थे! वे भगवान की इस असीम कृपा और अपने प्रति उनके प्रेम से अभिभूत हो गए। माधव दास ने भगवान से पूछा कि आपने मेरी सेवा क्यों की, जबकि आप तो पूरे ब्रह्मांड के स्वामी हैं? भगवान जगन्नाथ ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, तुम मेरे प्रिय भक्त हो, और जब मेरा भक्त कष्ट में होता है, तो मैं उसे कैसे अकेला छोड़ सकता हूँ? तुम्हारी बीमारी को मैंने स्वयं अनुभव किया, ताकि तुम जल्दी स्वस्थ हो सको। लेकिन कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है। तुम्हारी बीमारी के 15 दिन बाकी है। उसे मैं अपने ऊपर ले लेता हूं। आश्चर्य की बात यह है कि उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी। उस दिन से यह परंपरा आजतक चली आ रही है और हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान बीमार पड़ जाते हैं। उसके बाद वह 15 दिन के लिए एकांतवास में चले जाते हैं, जिसे ‘अनासर’ कहते हैं. फिर, भगवान जगन्नाथ के ठीक होने के बाद नैनासर उत्सव मनाया जाता है जिसे रथयात्रा कहते हैं।

अनसर काल में दर्शन और परंपराएं

यह कथा जगन्नाथ जी की रथयात्रा से पहले निभाई जाती है, जब भगवान को स्नान कराया जाता है और वे बीमार पड़ जाते हैं। इस अवधि को ‘अनसर’ के नाम से जाना जाता है और इस दौरान भक्तों को उनके दर्शन नहीं होते। यहीं से भगवान जगन्नाथ के बीमार पड़ने की कथा का संबंध जुड़ता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ अपनी ‘अनसर’ (अनवसर) अवधि के दौरान, जिसे जगन्नाथ धाम पुरी में विशेष रूप से मनाया जाता है, वास्तव में अपने भक्तों के कष्टों को अपने ऊपर लेते हैं। यह वह समय होता है जब भगवान को एकांत में रखा जाता है, और वे स्वयं को स्वस्थ करते हैं। यह भगवान की अपने भक्तों के प्रति असीम करुणा और प्रेम का प्रतीक है। इस दौरान भगवान को जड़ी-बूटियों और विशेष उपचारों से ठीक किया जाता है, ठीक वैसे ही जैसे किसी मनुष्य को बीमारी से उबरने के लिए उपचार की आवश्यकता होती है।

जगन्नाथ स्वामी मंदिर में नवकलेवर क्या है?

जगन्नाथ स्वामी जी के मंदिर में हर बारह साल बाद नवकलेवर की रस्म होती है और इस दौरान मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा जी की मूर्तियां बदली जाती हैं। मूर्तिया एक विशेष प्रकार की काष्ठ की होती है और इनको बनाने का भी मंदिर में एक लिखित विधान है। ऐसा कहा जाता है कि इस प्रथा को निभाते समय किसी पुजारी की इस पर नज़र न पड़े, इसलिए पुजारी की आँखों पर पट्टियाँ बांध दी जाती है और बंद आँखों से ही यह प्रतिस्थापना का कार्य पूरा कीया जाता है।

जगन्नाथ पुरी रथयात्रा

जगन्नाथ पुरी जाने का सबसे अच्छा समय जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान है, यह यात्रा प्रति वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है और 9 दिनों तक चलती है. इस दौरान, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के रथों को पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक खींचा जाता है।

यदि आप जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान पुरी जाना चाहते हैं, तो आपको यात्रा शुरू होने से कुछ दिन पहले ही वहां पहुंच जाना चाहिए, क्योंकि इस समय पुरी में काफी भीड़ होती है. आप इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन कर सकते हैं और रथ यात्रा में भाग ले सकते हैं।

जगन्नाथ रथयात्रा के अलावा, पुरी में कुछ अन्य पर्यटन स्थल भी हैं, जिनका अवलोकन भी सुखद रहेगा, जैसे कि स्वामी युकतेश्वर गिरी जी का आश्रम और समाधि स्थल, पुरी का विशाल समुद्र तट एवं संध्या आरती, सुदर्शन मंदिर, और कोणार्क का सूर्य मंदिर।

 

 

 

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