पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) की तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार 13 जनवरी को दोपहर 05 बजकर 03 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 14 जनवरी को रात्रि को 03 बजकर 56 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए पौष पूर्णिमा 13 जनवरी (Paush Purnima 2025 Shubh Muhurat) को मनाई जाएगी।
पूर्णिमा या पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) तिथि के दिन चांद यानी चंद्रदेव अपनी पूर्णकला के साथ आसमान में शोभायमान होते हैं इसलिए पूर्णिमा तिथि का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्व है। चंद्रमा का पूर्ण प्रभाव में होना चंद्रमा के शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है। ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह बताया गया है।
एक साल में 12 पूर्णिमा तिथियों का उल्लेख मिलता है। हर पूर्णिमा का अपना महत्व होता है। आज पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। आज से महाकुंभ भी आरंभ होने जा रहा है। इससे पौष पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ गया है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार पौष पूर्णिमा से मां लक्ष्मी अपनी अष्ट सिद्धियों को जागृत करती हैं और पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए कर्मशील व्यक्ति को धन-धान्य प्रदान करती हैं। इसी कारण से पौष पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधान माना गया है।
खरमास का समापन और शुभ कार्य का प्रारंभ
पौष महीने में शुभ काम वर्जित माने जाते है, पौष महीने में मांगलिक कार्य जैसे शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि नहीं किए जाते हैं। इस महीने में सूर्य धनु राशि में होते हैं, जिसे खरमास कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार, खरमास में शुभ कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है। पौष पूर्णिमा की तिथि समाप्ति के साथ ही खरमास (पौष मास) का समापन हो जाएगा और शुभ कार्य का प्रारंभ हो जाएंगें.
पौष पूर्णिमा से प्रयागराज महाकुंभ 2025 की शुरुआत
आज पौष पूर्णिमा है और इसी के साथ महाकुंभ 2025 की शुरुआत भी हो गई है। आज सुबह से लाखों की संख्या में साधु-संतों और श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा तिथि पर स्नान और दान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है। कल मकर संक्रांति और यह पहला अमृत स्नान भी जिसमें सभी 13 अखाड़ों के साधु-संत और नागा साधु समेत आमजन संगम में डुबकी लगाएंगे।
इस बार महाकुंभ बहुत ही खास है क्योंकि यह 144 साल बाद दोबारा से आयोजन किया जा रहा है। आज पौष पूर्णिमा पर स्नान का मुहूर्त सुबह 5 बजकर से 27 मिनट से शुरू हुआ है जो दिन भर चलेगा।
पौष पूर्णिमा पूजा विधि और स्नान दान का महत्व (Paush Purnima Puja Vidhi)
Paush Purnimai: एक साल में 12 पूर्णिमा तिथियों का उल्लेख मिलता है। हर पूर्णिमा का अपना महत्व होता है। आज पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। साथ ही आज से महाकुंभ भी आरंभ होने जा रहा है। इससे पौष पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ गया है। मान्यता के अनुसार पौष पूर्णिमा से मां लक्ष्मी अपनी अष्ट सिद्धियों को जागृत करती हैं और पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए व्यक्ति को धन-धान्य प्रदान करती हैं। इसी कारण से पौष पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधान माना गया है।
पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) तिथि
- पौष पूर्णिमा तिथि आरंभ: 13 जनवरी, सोमवार, प्रातः 5:25 मिनट से
- पौष पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 जनवरी, मंगलवार, तड़के 3:56 मिनट पर
- उदया तिथि के अनुसार, पौष पूर्णिमा की पूजा आज यानी 13 जनवरी को की जाएगी।
पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: 13 जनवरी, प्रातः 5: 27 मिनट से 6:21 मिनट तक है।
- अभिजीत मुहूर्त: 13 जनवरी, दोपहर 12:09 मिनट से 12:51 मिनट तक है।
- गोधुलि मुहूर्त: 13 जनवरी, सायं 05:42 मिनट से 06:09 मिनट तक है।
पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) पर स्नान दान मुहूर्त
- रवि योग: प्रातः 7:15 मिनट से प्रातः 10:38 मिनट तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 02:15 मिनट से दोपहर 02: 57 मिनट तक
ऐसे में पौष पूर्णिमा के दिन स्नान-दान के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय शुभ रहेगा। इस समय में स्नान-दान करने से अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होगी। वहीं, मां लक्ष्मी की प्रातः पूजा के लिए अभिजीत मुहूर्त एवं संध्या पूजा के लिए गोधुलि मुहूर्त उत्तम रहेगा। मां लक्ष्मी प्रसन्न होंगी।
पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) व्रत की पूजा विधि
- पौष पूर्णिमा दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर लें।
- यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान कर सकते हैं, वरना घर पर ही सामान्य जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।
- इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और ॐ घृणिः सूर्याय नमः मंत्र का जप करें।
- इसके बाद एक चौकी पर साफ-सुथरा लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
पूजा में धूप, दीप नैवेद्य आदि अर्पित करें। - शाम के समय पूजा के दौरान अपने समक्ष जल का कलश रखें।
- विष्णु जी को पंचामृत, केला और पंजीरी का भोग अर्पित करें।
- इसके बाद पंडित को बुलाकर सत्यनारायण की कथा करवाएं और आसपास के लोगों को भी आमंत्रित करें।
- पूजा के बाद परिवार और अन्य लोगों में प्रसाद बांटे और दान-दक्षिणा दें।
पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) पर करें स्तोत्र का पाठ
पौष पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी जी को समर्पित कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। इस स्त्रोत का पाठ करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और साधक पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखती हैं जिससे धन की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।
कनकधारा स्तोत्र यानी स्वर्ण अर्थात धन की वर्षा करने वाला मंत्र और स्तोत्र जिसकी रचना भगवान शिव के अंशावतार आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी। इस स्तोत्र का पाठ शुक्रवार, पूर्णिमा के दिन, दिवाली और संभव हो तो नियमित करना चाहिए। जो लोग कनकधारा स्तोत्र का पाठ करते हैं उनके घर देवी लक्ष्मी धन की वर्षा करती हैं।
पूर्णिमा के दिन अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है।
कनकधारा स्तोत्र की कथा
एक बार शंकराचार्य भिक्षा मांगने के लिए घूमते घूमते हुए एक ब्राह्मण के घर पहुंचे। इतने तेजस्वी अतिथि को देखकर संकोच के मारे उस ब्राह्मण की पत्नी लज्जित हो गई। उसके पास भिक्षा देने के लिए कुछ था नहीं। उसे अपनी स्थिति पर रोना आ गया। नम आंखों के साथ उसने घर में रखें कुछ आंवला लिए और सूखे आंवले तपस्वी को भिक्षा में दे दिए। शंकराचार्यजी को उनकी यह दशा देखकर उन पर तरस आ गया। उन्होंने तुरंत ही ऐश्वर्य दायक, दशविध लक्ष्मी देने वाली, अधिष्ठात्री, करुणामयी, वात्सल्यमयी, नारायण पत्नी, महालक्ष्मी को संबोधित करते हुए एक स्तोत्र की रचना की। इस स्तोत्र के पाठ करने से वहां सोने की वर्षा होने लगी। इससे इस स्तोत्र का नाम कनकधारा स्तोत्र हुआ। कनक का मतलब सोना होता है। वर्षा के समान सोना बरसने ही यह स्तोत्र श्री कनकधारा स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रस्तुत है संपूर्ण कनकधारा स्तोत्र।
श्री कनकधारा स्तोत्रम्
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।
पौष पूर्णिमा (Paush Purnima) व्रत का महत्व
पौष माह की पूर्णिमा साल 2025 की पहली पूर्णिमा है। कई साधक पूर्णिमा पर व्रत आदि भी करते हैं। इस दिन पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी और सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पौष पूर्णिमा से मां लक्ष्मी अपनी अष्ट सिद्धियों को जागृत करती हैं और पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए व्यक्ति को धन-धान्य प्रदान करती हैं। पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान और जरूरतमंदों में दान करने से सुख-समृद्धि का घर में आगमन होता है। मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपनी कृपा बरसाती हैं। वहीं, मां लक्ष्मी की पूजा से घर में धन-संपदा आती है। घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगता है।
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