बर्नआउट (Burnout): भारत के लगभग 52 प्रतिशत कर्मचारी कामकाज और निजी जिंदगी के बीच खराब संतुलन की वजह से ‘बर्नआउट’ जैसी स्थिति का अनुभव करते हैं। एक अध्ययन रिपोर्ट में यह निष्कर्ष पेश किया गया है। ‘बर्नआउट’ का मतलब है कि कर्मचारी लंबे समय तक तनाव रहने की वजह से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर थकान महसूस करने लगता है।
बर्नआउट की बढ़ती समस्या
न्यूयॉर्क स्थित बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट प्लेयर वर्टेक्स ग्रुप ने भारत के 5 राज्यों में किए गए एक सर्वेक्षण के आधार पर यह नतीजा निकाला है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि महामारी के बाद की दुनिया की चुनौतियों का सामना कर रहे 52 प्रतिशत कर्मचारी कामकाज और निजी जिंदगी के बीच सही संतुलन न होने की वजह से ‘बर्नआउट’ का अनुभव करते हैं।
वर्टेक्स ग्रुप ने बयान में कहा कि इस सर्वेक्षण में कर्मचारियों की अपने कार्यस्थल से अपेक्षा पर बल दिया गया है। इसमें लचीले कामकाजी घंटों की बढ़ती मांग और व्यक्तिगत एवं पेशेवर कर्तव्यों के बीच एक स्वस्थ संतुलन पर प्रकाश डाला गया है। सर्वेक्षण में दिल्ली, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और आंध्रप्रदेश में रहने वाले 1,500 से अधिक कामकाजी व्यक्तियों से जानकारी एकत्र की गई।
वर्टेक्स ग्रुप के संस्थापक गगन अरोड़ा ने कहा कि कामकाज और जिंदगी के बीच संतुलन समय की मांग है, खासकर आईटी क्षेत्र में। संगठनों को कर्मचारियों की अपेक्षाओं के अनुरूप ढलना चाहिए और सप्ताहांत पर उन पर काम का बोझ नहीं डालना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सप्ताहांत कर्मचारियों के लिए तरोताजा होने और अगले हफ्ते के लिए खुद को तैयार करने का समय होना चाहिए। जब तक बहुत जरूरी न हो, कर्मचारियों को इस समय काम नहीं सौंपा जाना चाहिए। सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि 23 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी निर्धारित कामकाजी घंटों से अधिक काम करते हैं।
बर्नआउट का असर कामकाज पर भी?
इसके मुताबिक कर्मचारियों का मानसिक स्वास्थ्य नियोक्ता संगठन के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और काम से जुड़े तनाव के चलते हाल ही में कई कारोबारी दिग्गजों एवं कर्मचारियों की असमय मौत उच्च तनाव वाले व्यवसायों में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की तत्काल जरूरत पर बल देती है।
इस सर्वेक्षण में एक चौंकाने वाला निष्कर्ष भी सामने आया कि 8-9 घंटे की शिफ्ट में 20 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी केवल 2.5 से 3.5 घंटे ही उत्पादक होते हैं। यह दर्शाता है कि काम के घंटे बढ़ाने से कर्मचारी की उत्पादकता और रचनात्मकता काफी कम हो सकती है।
अरोड़ा ने कहा कि इस प्रौद्योगिकी-केंद्रित दौर में इंसान काम और जिंदगी के बीच खराब संतुलन की वजह से रोबोट में तब्दील होते जा रहे हैं और आखिरकार अपनी जान गंवा दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में कार्यालय से परे काम के घंटे बढ़ाने के बजाय कौशल और उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना महत्वपूर्ण है।
बर्नआउट क्या है?
बर्नआउट को सामान्यतः “काम से थकावट” के रूप में जाना जाता है, जो लगातार काम के दबाव, ज़िम्मेदारी और उच्च अपेक्षाओं के कारण होती है. यह अक्सर कार्यस्थल पर अत्यधिक तनाव, काम का बोझ, लंबी काम करने की अवधि, और सहयोग की कमी के कारण होता है.
बर्नआउट के लक्षण क्या है?
बर्नआउट के लक्षण कई तरह से प्रकट हो सकते हैं, जिनमें लगातार थकान, चिड़चिड़ापन, उत्साह और प्रेरणा की कमी, काम में रुचि की कमी, और सहकर्मियों से दूरी बनाना शामिल हैं. इसके अलावा लगातार थकान, सिरदर्द, पेट अपसेट रहना, और नींद की समस्याएँ भी बर्नआउट के शारीरिक लक्षण हो सकते हैं. बर्नआउट के मानसिक लक्षणों की बात करें तो चिंता, अवसाद, आत्म-संदेह या आत्मविश्वास में कमी, और असहायता की भावना शामिल हो सकती हैं.
बर्नआउट से बचने के उपाय:
- तनाव कम करें: काम के बीच में ब्रेक लें, व्यायाम करें, और पर्याप्त नींद लें.
- कार्य-जीवन संतुलन बनाएँ: काम और निजी जीवन के बीच संतुलन स्थापित करें, और अपने लिए समय निकालें.
- सहकर्मियों और परिवार के साथ संबंध मजबूत करें: सहयोग और समर्थन के लिए अपने सहकर्मियों और परिवार के साथ संबंध बनाए रखें.
- जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएँ: सकारात्मक सोच रखें, अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें, और अपनी रुचियों को समय दें.
- मदद के लिए जायें : अगर आपको बर्नआउट के लक्षण दिखाई देते हैं, तो मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से मदद लेने में संकोच न करें.
बर्नआउट से संबंधित लेख का उदेश्य सिर्फ जानकारी देना है. स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह या जांच के लिए, किसी पेशेवर डॉक्टर से बात करें।
(इनपुट मीडिया)
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