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Friday, July 4, 2025

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बांग्लादेश के तौहीद हुसैन की जयशंकर से मुलाक़ात, पाकिस्तान परस्त जमात-ए-इस्लामी की टिप्पणी

बांग्लादेश  में शेख़ हसीना की सरकार की बेदख़ली के बाद से बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में अब भी वो भरोसा नहीं लौट पाया है। विदेशी तत्वों और पाकिस्तान समर्थित अलगवादियों के उत्पात के चलते अब, बांग्लादेश के भीतर भारत के प्रति भरोसा अब बड़ा मुद्दा बना हुआ है और आए दिन भारत को लेकर तथा अल्पसंख्यक हिंदुओं पर कुछ न कुछ विवाद देखने को मिलता रहता है.

अंतरिम सरकार से लेकर जमात ए इस्लामी और प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेता बयानबाज़ियां कर रहे हैं. इन बयानों में भारत से लेकर बांग्लादेश के गठन की चर्चाएं रहती हैं.

दोनों देशों के संबंधों को बेहतर करने की दिशा में बीते दिसंबर में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बांग्लादेश का दौरा किया था.

ओमान की राजधानी मस्कट में आयोजित इंडियन ओशियन कॉन्फ्रेंस में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार तौहीद हुसैन के साथ मुलाक़ात हुई थी.

इंडियन ओशियन कॉन्फ्रेंस से इतर हुई बैठक को दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है क्योंकि इस कॉन्फ़्रेंस में बांग्लादेश को बुलाया गया था. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक्स पर तौहीद हुसैन की तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा था कि बातचीत द्विपक्षीय संबंधों और बिम्सटेक पर केंद्रित थी.

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार तौहीद हुसैन ने भारत के अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से कहा है कि अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अप्रैल में बिम्सटेक सम्मेलन से इतर मुलाक़ात हो सकती है. इसके अलावा उन्होंने बताया है कि शेख़ हसीना के जाने के बाद भारत के साथ रिश्ते तनावपूर्ण थे.

तौहीद हुसैन ने और क्या कहा?

साल 2006 से लेकर 2009 तक बांग्लादेश के विदेश सचिव रहे तौहीद हुसैन ने द हिंदू अख़बार के साथ विस्तार से बातचीत की है. इस दौरान उन्होंने बताया है कि अंतरिम सरकार के देश संभालने के बाद से ही दोनों देशों के बीच रिश्ते तनावपूर्ण माहौल में शुरू हुए थे.

उन्होंने कहा, “15 से अधिक सालों से भारत के संबंध एक ढर्रे पर चल रहे थे और एकाएक इस पर ब्रेक लग गया. शायद नई हक़ीक़त को स्वीकार करने में कुछ समय लगता है लेकिन मुझे लगता है कि छह महीनों में ये ख़त्म हो चुका है. हमें अब एक ऐसा वातावरण चाहिए जहां पर हम एक-दूसरे के साथ काम कर सकें. बीते छह महीनों की तुलना में वास्तव में अब हम बेहतर तरीक़े से बातचीत कर सकते हैं.”

बीते सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर थे और विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जानकारी दी थी कि पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच बांग्लादेश के हालात पर भारत की चिंताओं को लेकर चर्चा हुई है.

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार तौहीद हुसैन से सवाल पूछा गया था कि क्या इसको लेकर उन्होंने मस्कट में जयशंकर से कोई चर्चा की है? इस पर उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ नहीं पूछा क्योंकि ये भारत का आंतरिक मामला है और उन्हें लगता कि इस पर कोई चिंता की बात नहीं है.

उन्होंने कहा, “हमारे द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य होना चाहिए जो कि कई क्षेत्रों में हो रहे हैं. उदाहरण के तौर पर व्यापार में कुछ समय के लिए रुकावटें आईं लेकिन अब वो फिर से रफ़्तार पकड़ चुका है.”

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मुद्दे को लेकर दोनों देश कई बार आमने-सामने आ चुके हैं. क्या ये मामला भारत और बांग्लादेश के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है?

इस सवाल पर तौहीद हुसैन ने कहा है कि बांग्लादेश में रहने वाला अल्पसंख्यक समुदाय या हिंदुओं के अधिकार मुसलमान या बहुसंख्यक समुदाय जैसे ही हैं, दोनों समान अधिकारों वाले समान नागरिक हैं, और उन्हें सुरक्षा का भी समान अधिकार है.

उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से पाँच अगस्त (बीते साल जब शेख़ हसीना ने इस्तीफ़ा दिया) के बाद इस मुद्दे को लेकर भारतीय मीडिया में एक अजीबोगरीब उन्माद फैला जो कि अधिकतर झूठ पर आधारित था. संयुक्त राष्ट्र की जांच देखिए जो दो दिन पहले प्रकाशित हुई है जो कहती है (हिंसा में अंतरिम सरकार शामिल नहीं थी). वे हमारे निवेदन पर आए थे क्योंकि हम हालात की एक तटस्थ जांच चाहते थे.”

शेख़ हसीना के भारत में होने पर प्रतिक्रिया

बीते साल में विरोध प्रदर्शन के बाद शेख़ हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर जब बांग्लादेश छोड़ना पड़ा तो वो सीधे भारत आईं. तब से वो भारत में ही हैं और इसको लेकर दोनों देशों के बीच भी विवाद है.

बांग्लादेश चाहता है कि शेख़ हसीना को भारत उन्हें सौंपे और उसने भारत से इसकी मांग भी की है.

तौहीद हुसैन कहते हैं कि उनके (हसीना) ख़िलाफ़ मामले हैं और भारत से उन्हें भेजने के लिए कहा गया है ताकि वो क़ानूनी मामलों का सामना करें जब भारत सरकार ये नहीं करती है तो उम्मीद करते हैं कि उन पर कुछ पाबंदियां रहेंगी ताकि वो भड़काऊ और झूठे बयान न दें जो लोगों की भावनाओं को भड़का देती हैं.

उन्होंने कहा, “बीते 15 सालों से वो सत्ता में थीं और उनकी कार्रवाइयों से लोग नाराज़ हैं, वो ये देखना चाहते हैं कि वो (हसीना) बांग्लादेश में हालात को अस्थिर न करें.”

बांग्लादेश क्या आधिकारिक तौर पर शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण का निवेदन भारत से करेगा? इस पर तौहीद हुसैन ने कह कि ‘हमारे बीच प्रत्यर्पण संधि है और हमने क़ानूनी मामलों का सामना करने के लिए कई अभियुक्तों को भारत को सौंपा है. मुझे लगता है कि भारत क़ानूनी कार्रवाई के लिए उन्हें बांग्लादेश को सौंपेगा.’

जमात-ए-इस्लामी ने भारत को लेकर क्या कहा

अंतरिम सरकार के नुमाइंदों से अलग बांग्लादेश के अंदर भी कई विचार खुलकर सामने आ रहे हैं. जैसे बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार के बारे में कई विश्लेषक कहते हैं कि यह असल में जमात की सरकार है.

बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी की पहचान एक रूढ़िवादी इस्लामिक संगठन की है, जो बांग्ला राष्ट्रवाद से ज़्यादा ज़ोर इस्लामिक राष्ट्रवाद पर देता है.

बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख शफ़ीक़ुर रहमान मोहम्मद यूनुस का खुलकर समर्थन करते रहे हैं. जब भी मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार पर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और अवामी लीग के नेता हमला बोलते हैं तो शफ़ीक़ुर रहमान बचाव करते हैं.

शफ़ीक़ुर रहमान ने 16 फ़रवरी को बांग्लादेश की न्यूज़ वेबसाइट प्रथम आलो को दिए इंटरव्यू में पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी से अपने संबंधों को लेकर कहा, ”अगर बीएनपी का हमसे वैचारिक विरोध है तो उसने 1991 में सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं होने पर हमसे मदद क्यों मांगी थी? तब भी बीएनपी की नेता वही थीं और अब भी वही हैं. जमात ने अपने फ़ायदे के लिए समर्थन नहीं दिया था. बीएनपी को इसका जवाब देना चाहिए कि वैचारिक मतभेद होने के बावजूद हमसे समर्थन क्यों लेती है.”

बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध में जमात की भूमिका पर हमेशा से सवाल उठता रहा है. जमात के बारे में कहा जाता है कि वह अलग बांग्लादेश नहीं चाहता था.

इस सवाल के जवाब में शफ़ीक़ुर रहमान ने कहा, ”1971 में हमारा रुख़ सिद्धांत से जुड़ा था. हम भारत के फ़ायदे के लिए स्वतंत्र देश नहीं चाहते थे. हम चाहते थे कि पाकिस्तानी हमें मताधिकार देने के लिए मजबूर हों. अगर यह संभव नहीं होता तो कई देशों ने गुर्रिल्ला युद्ध के ज़रिए आज़ादी हासिल की है.”

“अगर हमें किसी के ज़रिए या किसी के पक्ष में आज़ादी मिलती तो यह एक बोझ हटाकर दूसरे बोझ के तले दबने की तरह होता. पिछले 53 सालों से बांग्लादेश के लिए क्या यह सच नहीं हुआ है? हमें यह क्यों सुनने के लिए मिलना चाहिए कि कोई ख़ास देश किसी ख़ास पार्टी को पसंद नहीं करता है. कोई ख़ास देश अगर नहीं चाहता है तो कोई ख़ास पार्टी सत्ता में नहीं आ पाती है. क्या स्वतंत्र देश का यही तेवर होता है? बांग्लादेश के युवा अब ये सब सुनना नहीं पसंद करते हैं.”

बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तान परस्त भी कहा जाता है. शफ़ीक़ुर रहमान से प्रथम आलो ने पूछा कि 1971 में पाकिस्तानी सेना ने बंगालियों के साथ क्रूरता की थी, इसमें कोई शक नहीं है. इसके जवाब में रहमान ने कहा, ”बिल्कुल यह सच है. लेकिन यह क्रूरता 16 दिसंबर 1971 से पहले और 16 दिसंबर 1971 के बाद भी जारी है.”

बांग्लादेश के भीतर भले बीएनपी और जमात के बीच मतभेद है लेकिन भारत को लेकर दोनों की राय एक जैसी है. बांग्लादेश में कई तरह की चीज़ें चल रही हैं लेकिन भारत का मुद्दा कहीं न कहीं आ ही जा रहा है.

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के महासचिव मिर्ज़ा फ़ख़रुल इस्लाम आलमगीर ने सोमवार को भारत पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत तीस्ता नदी के पानी पर मनमानी कर रहा है.

मिर्ज़ा फ़ख़रुल इस्लाम सोमवार को एक कार्यक्रम में कहा, ”एक तरफ़ तो भारत में तीस्ता नदी का पानी जितना मिलना चाहिए उतना नहीं दे रहा है और दूसरी तरफ़ हमारी दुश्मन को दिल्ली में सारे सुख सुविधाओं के साथ रख रहा है. हमारी दुश्मन दिल्ली में बैठकर कई फरमान दे रही हैं.”

बांग्लादेश अभी भी राजनैतिक और प्रशासनिक अराजकता के दौर से गुजर रहा है, और शायद लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत चुनाव ही एकमात्र विकल्प है जो देश को पाकिस्तान की तरह गरीबी और आतंकवाद से बचा ससक्त है।

 

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