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Friday, July 4, 2025

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बांग्लादेश क्या भारत विरोधी रुख़ अपनाने का जोख़िम उठाएगा?

MonkTimes – हिन्दी समाचार सेवा: बांग्लादेश में पिछले वर्ष हुए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी समर्थक हिंसक प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना को प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था. इसके बाद बांग्लादेश से कई हैरान करने वाले घटनाक्रम सामने आए हैं. इनमें एक समय के दुश्मन रहे और बांग्लादेश में लाखों लोगों का नर-संहार करने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ती निकटता भी शामिल है.

दशकों के तनावपूर्ण संबंधों के बाद, पिछले महीने, दोनों देशों ने पहली बार सीधे व्यापार शुरू किया. इसके तहत बांग्लादेश ने पाकिस्तान से 50,000 टन चावल का आयात किया.

दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें और सैन्य संपर्क भी फिर से शुरू हो गए हैं, वीज़ा प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है और सुरक्षा मामलों पर सहयोग की भी ख़बरें आ रही हैं.

बांग्लादेश-पाकिस्तान संबंध कैसे रहे?

अविभाजित भारत से अलग हुए बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच गहरे, दर्दनाक ऐतिहासिक संबंध हैं. उनके बीच दुश्मनी 1971 से चली आ रही है. उस समय मौजूदा बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था और वो अंग्रेजों द्वारा भारत के बंटवारे में पाकिस्तान को दिया गया था.

लेकिन तब पूर्वी पाकिस्तान ने इस्लामाबाद से आज़ादी पाने के लिए संघर्ष शुरू किया था.

नौ महीने तक चले युद्ध के दौरान भारत ने बंगाली विद्रोहियों का समर्थन किया था, जिसके बाद बांग्लादेश का गठन हुआ.

भले ही उस समय के घाव गहरे हैं, फिर भी 2001 से 2006 के बीच ढाका के इस्लामाबाद के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थे. उस दौरान ढाका में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी की गठबंधन सरकार थी.

ज्ञात हो की बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तान समर्थक माना जाता रहा है, और यहाँ तक की जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तानी फौज द्वारा बांग्लादेश में किए गए नरसंहार को कई बार जायज भी ठहरा चुकी है।

2009 में शेख़ हसीना के शुरू हुए शासन के दौरान दोनों देशों के संबंध बदल गए, शेख़ हसीना का शासन 15 साल तक चला.

हसीना के दौर में उनकी सरकार को देश के विकास में भारत का पुरज़ोर समर्थन मिला और उन्होंने पाकिस्तान से दूरी बनाए रखी. इसके कारण उनकी सरकार के खिलाफ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के समर्थन से बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शनों को अंजाम दिया गया, जिसके चलते वह पिछले साल भारत चली गईं, और फिर पाकिस्तान-बांग्लादेश संबंधों में नरमी की शुरुआत हो गई।

इन घटनाओं पर भारत सहित अमेरिका में भी कड़ी नज़र रखी जा रही है, क्योंकि चीन अपने कर्ज के जाल में फंसा कर, पाकिस्तान की तरह यहाँ पर भी अपना औपनिविशिक अड्डा स्थापित कर सकता है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान के संबंधों पर भारत की नज़र

शेख़ हसीना के सत्ता से हटने के बाद से बांग्लादेश और भारत के बीच निकटता में कमी आई है.

बांग्लादेश की मांग है कि भारत शेख़ हसीना को बांग्लादेश में मानवता के ख़िलाफ़ अपराध, मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने के लिए प्रत्यर्पित करे.

भारत ने बांग्लादेश की मांगों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. वहीं हसीना ने अपने ख़िलाफ़ लगे आरोपों से इनकार किया है.

कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ढाका और इस्लामाबाद के बीच संबंधों को पुनर्जीवित करना एक सुनियोजित कदम है जिसमें चीन की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। साल 2023 से बांग्लादेश के पटल पर हो रही राजनैतिक, सामाजिक, और सैनिक गतिविधियों को देखकर इस बात का आभास हो जाता है कि, महीनों तक चली बांग्लादेश अल्पसंख्यकों पर हिंसा के संबंध में किसी भी विदेशी मानवअधिकार संगठन या देश ने कोई ब्यान तक नहीं दिया।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने हाल के महीनों में कई बार बहुपक्षीय मंचों पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ से मुलाकात की.

जनवरी में एक उच्चस्तरीय बांग्लादेशी सैन्य प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान का दौरा किया और पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर के साथ बातचीत की. बांग्लादेशी नौसेना ने फरवरी में कराची तट पर पाकिस्तान द्वारा आयोजित एक बहुराष्ट्रीय समुद्री अभ्यास में भी हिस्सा लिया.

वीना सीकरी 2003 से 2006 के बीच बांग्लादेश में भारत की उच्चायुक्त थीं.

सीकरी ने कहा कि ढाका में अपने कार्यकाल के दौरान भारत ने बार-बार यह मुद्दा उठाया था कि भारतीय में हिंसा, उपद्रव और आतंक फैलाने के लिए लोगों को आईएसआई (पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी) और बांग्लादेशी सेना के एक हिस्से की मदद से बांग्लादेश में प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

उन्होंने कहा, “हमने बांग्लादेशी अधिकारियों को सबूत भी मुहैया कराए.” लेकिन हमेशा की तरफ उस समय पाकिस्तान और बांग्लादेश के अधिकारियों ने इन आरोपों से इनकार किया था और फिर काँग्रेस की सरकार की टफ से कोई कदम नहीं उठाए गए।

भारत के लिए सुरक्षा चिंता

बांग्लादेश और भारत के समान सांस्कृतिक संबंध, भाषा, व्यापार, आपस में जुड़ी हुई, कृषि भूमि और गाँव, के आलवा सघन जंगल, पहाड़ और दुर्गम भूमि के कारण सरहद पर बांग्लादेश की ओर से हो रही घुसपैठ को रोकना मुश्किल काम होता है. और इसी के चलते भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में विदेशों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के लिए बांग्लादेश मुख्य गढ़ बना हुआ था।

साल 2009 में हसीना की अवामी लीग के सत्ता में आने के बाद, बांग्लादेश ने इन आतंकवादी समूहों और विदेशी फन्डिंग पर नकेल कसी और उनके ठिकानों को नष्ट कर दिया था.

लेकिन एक बार फिर बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सैन्य संबंधों की बहाली भारत के लिए एक बड़ी सुरक्षा चिंता का विषय है.

पाकिस्तान सैन्य संबंध के साथ साथ बांग्लादेश में इस्लामी पार्टियों जैसे जमात-ए-इस्लामी के साथ भी संबंधों को पुनर्जीवित कर रहा है. जमात-ए-इस्लामी वही पार्टी है जिसने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया था.

यूनुस प्रशासन के प्रेस कार्यालय ने भारतीय मीडिया की उन रिपोर्टों को सिरे से खारिज कर दिया है, जिनमें कहा गया है कि आईएसआई के वरिष्ठ अधिकारी ढाका गए हैं.

साथ ही, यूनुस के कार्यालय ने उन रिपोर्टों को भी ‘निराधार’ बताया है, जिनमें दावा किया गया है कि पाकिस्तानी एजेंट बांग्लादेश में एक भारतीय विद्रोही समूह के शिविर को फिर से खोलने के लिए काम कर रहे थे.

कई विश्लेषकों का कहना है कि बांग्लादेशी राजनेता जानते हैं कि घनिष्ठ आर्थिक और भाषाई संबंधों के कारण उनका देश भारत विरोधी रुख अपनाने का जोखिम नहीं उठा सकता.

बांग्लादेश-पाकिस्तान के संबंध सामान्य पाएंगे?

भारत में आशंकाओं के बावजूद, बांग्लादेशी राजनयिकों का तर्क है कि पाकिस्तान के साथ संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक 1971 के युद्ध से संबंधित मुद्दों का समाधान नहीं हो जाता.

युद्ध के दौरान, लाखों बंगाली मारे गए और हजारों महिलाओं का बलात्कार किया गया.

युद्ध का अंत 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सुरक्षा और नागरिक कर्मियों के भारतीय और बांग्लादेशी सेना की संयुक्त कमान के सामने आत्मसमर्पण करने के साथ हुआ था.

इसे इस्लामाबाद में अपमानजनक अध्याय के रूप में देखा जाता है.

बांग्लादेश ने युद्ध के दौरान किए गए अत्याचारों के लिए पाकिस्तान से औपचारिक माफी की मांग की है, लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा करने में कोई इच्छा नहीं दिखाई है.

बांग्लादेश के पूर्व राजनयिक हुमायूं कबीर ने कहा, “पाकिस्तान को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किए गए अपराधों को स्वीकार करना चाहिए. हमने पाकिस्तान के साथ कई द्विपक्षीय बैठकों में दोनों देशों के बीच 1971 से पहले की संपत्तियों के बंटवारे का मुद्दा भी उठाया था.”

यहां तक ​​कि इकराम सहगल जैसे पूर्व पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि ‘द्विपक्षीय संबंधों में मुख्य बाधा बांग्लादेशियों की यह मांग है कि 1971 में जो कुछ हुआ, पाकिस्तान उसके लिए माफी मांगे.’

भारत के लिए ज़रूरी है स्थिर बांग्लादेश

भले ही ढाका और इस्लामाबाद के बीच संबंधों पर तनावपूर्ण अतीत की छाया हो, लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दोनों देश पहले द्विपक्षीय व्यापार को सुधारने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं.

फ़िलहाल दोनों के बीच व्यापार 70 करोड़ डॉलर से कम है. लेकिन पाकिस्तान की 25 करोड़ से अधिक आबादी बांग्लादेश के लिए एक बड़ा बाज़ार बन सकती है.

वर्तमान में दोनों पक्षों की ओर से उच्च टैरिफ़ सहित कई बाधाएं हैं और व्यवसायों और निर्यातकों को वीजा और यात्रा संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है.

साल के आखिर तक बांग्लादेश में आम चुनाव होने की उम्मीद है और नई सरकार की विदेश नीति की प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं.

लेकिन जो भी हो, देश में शांति और स्थिरता के लिए एक स्थिर बांग्लादेश और उसके साथ कनेक्टिविटी का होना भी बहुत महत्वपूर्ण है।

 

कमलेश पाण्डेय
अनौपचारिक एवं औपचारिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय, तथा समसामयिक पहलुओं, पर्यावरण, भारतीयता, धार्मिकता, यात्रा और सामाजिक जीवन तथा समस्त जीव-जंतुओं पर अपने विचार व्यक्त करना।

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