चीन भारतीय उपमहादीप में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीप, म्यांमार, नेपाल, भूटान थाईलैंड आदि अविकसित और गरीब देशों को अपने कर्ज के जाल में फंस कर उनके जमीन और संसाधनों का उपयोग अपने व्यापार को बढ़ाने में और सैन्य अड्डे स्थापित करने में करते रहा है।
गरीब देशों में मूल्यविहीन, सत्तालोलुप और भ्रस्टाचारी नेताओं की भरमार होती है, जिनको स्वयं के हित के आगे गरीब जनता कि बदहाली और भूख और राष्ट्र निर्माण दूर तक नजर नहीं आता है इसका दुनिया में सबसे बेहतरीन उदाहरण पाकिस्तान है जो कई दशकों से इन हालत में है. और अब बांग्लादेश उसके कदमों पर चल रहा है
बांग्लादेश को ‘बदहाल होने का मंत्र’ मिला
पाकिस्तान का ‘बदहाल होने का मंत्र’ अब चीन और अमेरिका कि मिली भगत से बांग्लादेश को मिल गया है और वहाँ पर भी पिछले एक वर्ष से धीरे धीरे उद्योग और व्यापार लगभग बंद हो रहा है, निर्माणकारी कारखाने, फ़ैक्टरियाँ और मशीनों का शोर अब खामोश हो रहा है।
सुबह से लेकर रात तक लगातार मेहनत करके अपने परिवार के लिए रोटी जुटाने वाले हाँथ अब काम कि तलाश में तो हैं लेकिन आखिर बंद होती फैक्ट्रियों में कैसे मिलेगा काम?
“प्रार्थना से मन को शांति मिल सकती है भूखे बच्चों के पेट को नहीं” फिर भी गरीब प्रार्थना के सहारे जिंदा है, कि कभी तो इस देश के नेताओं को अक्ल आएगी और वह देश की तरक्की और गरीब परिवारों के भूखे पेट के बारे में सोचेंगे, सिर्फ अपने परिवार के लिए नहीं।
तथाकथित कट्टरपाथीं लोगों द्वारा संचालित यूनुस सरकार ने बांग्लादेश को विकास के रास्ते से नीचे उतार कर कई दशकों पीछे धकेल दिया है और यह कहना अभी जल्दबाजी नहीं होगी कि आने वाले समय में बांग्लादेश एक बड़ा आतंकवादी निर्माता और निर्यातक देश बन गया।
बांग्लादेश को मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा अब नहीं रही
अभी हाल ही में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में छठे बिम्सटेक समिट से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की मुलाक़ात के बाद लग रहा था कि दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ़ पिघल जाएगी.
लेकिन, इस बैठक के तीन दिन बाद ही भारत सरकार ने बांग्लादेश को 2020 से मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ले ली. इस सुविधा के कारण बांग्लादेश भारत के एयरपोर्ट और बंदरगाहों का इस्तेमाल तीसरे देश में अपने उत्पादों के निर्यात के लिए करता था.
बांग्लादेश को मिली यह सुविधा ख़त्म करने का कारण बताते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि भारत के एयरपोर्ट और बंदरगाहों पर भीड़ बढ़ गई थी, इसलिए यह फ़ैसला लेना पड़ा.
जायसवाल ने कहा था कि भीड़ के कारण भारतीय निर्यात की लागत और लेटलतीफी बढ़ गई थी. भारत के इस फ़ैसले को बांग्लादेश के आर्थिक विकास के लिए एक बहुत बड़े धक्के के तौर पर माना गया
बांग्लादेश का जवाबी फ़ैसला
बांग्लादेश ने भी भारत के खिलाफ एक जवाबी फ़ैसला किया है जिसके तहत बांग्लादेश ने भारत से लैंड पोर्ट रूट के ज़रिए सूत के आयात पर पाबंदी लगा दी है.
हालांकि, बांग्लादेश का यह कदम उसके अपने बंद होते कपड़ा उद्योग पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा है.
बांग्लादेश के अंग्रेज़ी अख़बार ने वास्तविकता से परे लिखा है कि “नेशनल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू (एनबीआर) ने स्थानीय कपड़ा उद्योग को भारत के कच्चे माल से बचाने के लिए यह फ़ैसला किया है”.
लेकिन सही आर्थिक मोर्चों पर कहा जा रहा है कि ये फ़ैसला ख़ुद बांग्लादेश पर भारी पड़ेगा और रहे सहे कारखाने भी अधिक कीमत वाले आयातित माल के बोझ से बंद हो जाएंगे।
सच्चाई से दूर अख़बार लिखता हा कि, इस फ़ैसले का बांग्लादेश के कपड़ा मिल मालिकों ने स्वागत किया है, जबकि वास्तव में मिल मालिकों से लेकर निर्यातकों ने लागत में बढ़ोत्तरी के कारण इसका विरोध किया है.
शायद यह छोटी से बात कि ज्यादा कीमत पर आयात किया माल, बांग्लादेशी कपड़ा उद्योग को विश्व के मार्केट कि स्पर्धा में कितना प्रतियोगी रखा पाएगा? यह बात देश के नेता, जनता और अर्थशास्त्री समुदाय को कितना समझ में आएगी कहना मुश्किल है।
बांग्लादेश के एक मिल मालिक का कहना है कि, यूनुस सरकार का यह फ़ैसला सही नहीं है. बांग्लादेश पहले से ही अमेरिकी बाज़ार में निर्यात पर भारी टैरिफ का सामना कर रहा है और हमें भारतीय उत्पादों से भी चुनौती मिल रही है. ऐसी स्थिति में भारत से सूत आयात पर किसी भी तरह की पाबंदी से बांग्लादेश का निर्यात प्रभावित होगा. हमें भारत से सूत आयात की अनुमति मिलनी चाहिए. मुक्त बाज़ार में इस तरह की पाबंदी का कोई मतलब नहीं है.
बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग के लिए भारत ने पिछले साल 1.6 अरब डॉलर का सूत निर्यात किया था. इसके अलावा 8.5 करोड़ मानव निर्मित फाइबर का निर्यात भी किया था. इनमें से ज़्यादातर सूत लैंड रूट के ज़रिए बांग्लादेश पहुँचा था. जिससे बांग्लादेश को अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में काफी बढ़त मिल गई थी।
भारत के अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के कार्यकारी निदेशक सिद्धार्थ राजगोपाल ने कहा, ”भारत से बांग्लादेश को जितने सूत का निर्यात होता है, उसका 32 प्रतिशत लैंड पोर्ट के ज़रिए होता है. बांग्लादेश का यह फ़ैसला काफ़ी चिंताजनक है.”
सिद्धार्थ राजगोपाल ने कहा, ”उत्तर भारत की कपड़ा मिलों से लैंड रूट के ज़रिए सूत का निर्यात बांग्लादेश होता था क्योंकि लागत कम लगती है. अब इन्हें मुंद्रा, थूठुकुडी या नहवा शेवा पोर्ट से निर्यात करना होगा. ऐसी स्थिति में लागत ज़्यादा लगेगी. बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ा निर्यातक जो भारत से सूत आयात करते थे, उन्हें भी ज़्यादा पैसे देने होंगे और आपूर्ति में भी देरी होगी.”
बांग्लादेश को क्या नुक़सान?
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने एक न्यूज वेबसाईट से कहा कि, ”बांग्लादेश का 80 फ़ीसदी निर्यात कपड़ा है. बांग्लादेश के लोग बहुत ही अच्छी क्वॉलिटी का कपड़ा बनाते हैं. कपड़े बनाने के दो तरीक़े हैं. एक तो यह है कि आप चीन से फैब्रिक आयात कर लो और सीधे अपने लेबर से कट करवा दो और सिलाई कर लो और मार्केट में भेज दो. लेकिन, इसमें वैल्यू एडिशन नहीं होता है.
दूसरा तरीक़ा है कि आप सूत लाइए और फिर फैब्रिक बनाइए और उसे कपड़ों में बदलिए.” इसमें वैल्यु एडिशन अधिक होता है और ज़्यादा लोगों को रोज़गार भी मिलता है. बांग्लादेश के कपड़ा कारोबारी एक साल में लगभग 1.5 अरब डॉलर का सूत भारत से ले रहे थे और इससे यार्न को फैब्रिक बनाने वाली बांग्लादेश में कई इंडस्ट्री चल रही थी. अब ये सीधे चीन से फैब्रिक आयात करेंगे और कपड़ा बनाएंगे. इससे क्वॉलिटी पर भी बुरा असर पड़ेगा क्योंकि इसमें कोई वैल्यू एडिशन नहीं होगा. ऐसे में बांग्लादेश में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां जाएंगीं. इससे चीन को फ़ायदा होगा लेकिन बांग्लादेश को नुक़सान होगा.”
ट्रांसशिपमेंट पर रोक को लेकर भारत भले तर्क दे रहा है कि उसने लॉजिस्टिकल समस्या के कारण यह फ़ैसला किया, लेकिन जियोपॉलिटिक्स में टाइमिंग भी मायने रखती है.
दूसरी तरफ़ बांग्लादेश भले कह रहा है कि उसने स्थानीय कपड़ा उद्योग के हित में यह फ़ैसला किया है, लेकिन इस फ़ैसले की टाइमिंग भी कई बातें कहती हैं.
कट्टरपंथी सरकार के मुखिया चीन की शरण में
मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च तक चीन के दौरे पर थे. इसी दौरे में यूनुस ने ऐसा बयान दिया, जिससे भारत का नाराज़ होना लाजिमी था.
मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर भारत की लैंडलॉक्ड स्थिति का हवाला दिया था. यूनुस ने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत का समंदर से कोई कनेक्शन नहीं है और बांग्लादेश ही इस इलाक़े का अभिभावक है.
मोहम्मद यूनुस ने कहा था, ”भारत के सेवन सिस्टर्स राज्य लैंडलॉक्ड हैं. इनका समंदर से कोई संपर्क नहीं है. इस इलाक़े के अभिभावक हम हैं. चीन की अर्थव्यवस्था के लिए यहाँ पर्याप्त संभावनाएं हैं. चीन यहाँ कई चीज़ें बना सकता है और पूरी दुनिया में आपूर्ति कर सकता है.”
भारत के पूर्वोत्तर राज्य दशकों से उग्रवाद ग्रस्त रहे है और बांग्लादेश पर इन राज्यों में उग्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है.
हालांकि, पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद अभी काबू में है लेकिन एक किस्म की बेचैनी अब भी देखने को मिलती है. भारत का यह इलाक़ा काफ़ी संवेदनशील माना जाता है.
ख़ास कर सिलीगुड़ी कॉरिडोर के कारण. महज 22 किलोमीटर चौड़े इस कॉरिडोर के ज़रिए ही पूर्वोत्तर भारत का बाक़ी भारत से ज़मीन से जुड़ाव है.
बांग्लादेश और नेपाल भी इसी कॉरिडोर के साथ सीमा साझा करते हैं. इसे ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है. भूटान और चीन भी इस कॉरिडोर से महज कुछ किलोमीटर ही दूर हैं.
चीन को क्या फ़ायदा?
पिछले साल सोशल मीडिया पर इस बात की काफ़ी चर्चा थी कि बांग्लादेश लालमोनिरहाट में चीन के सहयोग से बने एक पुराने एयरबेस को फिर से ऑपरेशनल बना रहा है.
यह भारत की सीमा से महज 12-15 किलोमीटर दूर है और सिलीगुड़ी कॉरिडोर से लगभग 135 किलोमीटर.
हालांकि, इन ख़बरों को फेक न्यूज़ बताकर ख़ारिज कर दिया गया. लेकिन, मोहम्मद यूनुस के चीन दौरे से इस पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है.
मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर भारत को लैंडलॉक्ड बताकर फिर से बहस छेड़ दी है कि क्या बांग्लादेश इस इलाक़े की संवेदनशीलता का फ़ायदा उठाना चाहता है?
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि मोहम्मद यूनुस ने जानबूझकर पूर्वोत्तर भारत का ज़िक्र किया है.
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ”मोहम्मद यूनुस को पता है कि यह भारत का संवेदनशील इलाक़ा है. ऐसा लगता है कि चीन ने अपनी बात मोहम्मद यूनुस से कहलवाई है. चीन को आमंत्रित कर मोहम्मद यूनुस ने भारत को कुरेदने की कोशिश की है. यूनुस यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बांग्लादेश के पास भारत के अलावा चीन भी विकल्प है. यूनुस चाइना कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं और अगर ज़रूरत पड़ेगी तो इसे खेलेंगे भी.”
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भी मोहम्मद यूनुस मिलना चाहते थे, लेकिन भारत ने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया था.
लेकिन, इस बार मोहम्मद यूनुस जब चीन के दौरे से लौटे, तो थाईलैंड में पीएम मोदी भी मोहम्मद यूनुस से मिलने के लिए राज़ी हो गए.
तनाव किस पर पड़ेगा भारी
कई हल्कों में बैंकॉक में पीएम मोदी के साथ मोहम्मद यूनुस की मुलाक़ात को बांग्लादेश में उनकी जीत के रूप में देखा गया. और कहा गया कि मोहम्मद यूनुस के चीन दौरे ने भारतीय प्रधानमंत्री को उनसे मिलने पर मजबूर कर दिया. लेकिन हालिया घटनाक्रम भारत के पक्ष होने से लग रहा है कि शायद भारत ज्यादा जल्दबाजी में नहीं है
जब ट्रंप ने बांग्लादेश पर 37 फ़ीसदी टैरिफ़ की घोषणा कर रखी है, तभी भारत ने बांग्लादेश को मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा पर रोक लगा दी. ऐसा बैंकॉक में मोदी और यूनुस की मुलाक़ात के चंद दिनों बाद ही हुआ.
भारत का यह फ़ैसला बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय ट्रेड में बड़ी चोट दे रहा है. भारत के फ़ैसले से बांग्लादेश का दक्षिण-पूर्वी एशिया, मध्य एशिया और यूरोपियन मार्केट में व्यापार प्रभावित होगा.
बांग्लादेश के निर्यातकों के लिए अब विश्व व्यापार का सौदा महंगा हो गया, लेटलतीफ़ी बढ़ सकती है और ट्रांसपोर्टेशन रूट को लेकर अनिश्चितता भी बढ़ गई है.
नतीजतन बांग्लादेश कि कपड़े की फैक्ट्रियां बंद हो सकती हैं और हज़ारों लोग बेरोज़गार हो सकते हैं. भारत को लेकर मोहम्मद यूनुस के रुख़ से उन्हें चीन से तारीफ़ मिल सकती है और यहाँ तक कि बांग्लादेश के भीतर कट्टरपंथी लोगों से भी वाहवाही मिल सकती है. लेकिन, भारत के साथ बढ़ते अविश्वास के कारण उसे आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ सकता है.
मोहम्मद यूनुस और उनके तथाकथित कट्टरपंथी सलाहकारों को समझना पड़ेगा कि, बांग्लादेश के लिए चीन, भारत जैसा कभी नहीं बन सकता है.
बांग्लादेश को समझना चाहिए कि भारत के साथ जो ट्रेड उसका दिखता है, उसका बड़ा हिस्सा तो रोज़ की ज़रूरतों का है. ये चीन से संभव नहीं है. भारत ने बांग्लादेश को बड़ी रियायत दे रखी है.
बांग्लादेश से भारत में सिरगेट और शराब को छोड़कर सारी चीज़ें ज़ीरो टैरिफ पर आती हैं. भारत ने 2006 में ऐसा एकतरफ़ा फ़ैसला किया था. बांग्लादेश के लोग चीन से ज़ीरो टैरिफ में फैब्रिक ख़रीदते हैं और भारत को कपड़े बनाकर भेज देते हैं. इससे हमारी लोकल इंडस्ट्री को परेशानी होती है, लेकिन सारी चीज़ों को सहते हुए भी भारत ने बांग्लादेश को यह सुविधा दे रखी है.
अक्सर चीन जो ख़ुद नहीं कहना चाहता है, उसे कई बार अपने कर्ज में दबे गुलाम देशों जैसे पाकिस्तान, मालदीप, श्रीलंका और बांग्लादेश से कहलवा देता है.
इस लड़ाई में अगर भारत बांग्लादेश के उत्पादों पर टैरिफ फ्री का प्रावधान हटा दे, तो उनके लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी. अभी तक हो रही आर्थिक तरक्की के चलते बांग्लादेश भी विकासशील देशों की श्रेणी में आने की राह पर है जिसके कारण यूरोप के देशों मिली ड्यूटी फ्री एक्सपोर्ट की सुविधा भी ख़त्म हो जाएगी ऐसे में अब आने वाले साने में बांग्लादेश और उसकी गरीब जनता की राहें बहुत कठिन दिखती हैं.