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Friday, July 4, 2025

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भगोरिया उत्सव और ताड़ी का चलन कितना तर्क संगत हैं?

भगोरिया त्यौहार एक आदिवासी हाट या मेला होता है जिसमें आदिवासी समुदायों द्वारा अपने अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है।यह मुख्यतः मध्य भारत और उसके आसपास के राज्यों में आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाता है।

आदिवासी समुदायों में भगोरिया उत्सव एक खास पर्व है, जिसे होली से 7 दिनों पहले मनाया जाता है। यह प्यार, मेल-जोल और मस्ती का त्योहार होता है, जिसमें पारंपरिक लोक नृत्य, संगीत और हाट बाजार लगते हैं।

भगोरिया उत्सव और ताड़ी

भगोरिया मेले में ताड़ी पीने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। यह लोगों को तरोताजा रखता है और उत्सव में आनंद बढ़ाता है। हालांकि, कई बार यह नशे का कारण भी बन जाता है, जिससे अनियंत्रित व्यवहार और विवाद की स्थिति पैदा हो सकती है।

ताड़ी (Coconut Toddy या Palm wine) जिसे कुछ जगहों पर “नीरा” भी कहा जाता है, एक पारंपरिक नैचुरल ड्रिंक है जो नारियल,  ताड़ या इसी प्रजाति के अन्य पेड़ों से निकालने वाला रस होता है।  इसे सुबह के समय ताजे रूप में पिया जाए तो यह हेल्थ के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन जब इसे किण्वित (ferment) किया जाता है, तो यह शराब में बदल जाता है और नशे का कारण बनता है।

एक मादक पेय ताड़ की विभिन्न प्रजाति के वृक्षों के रस से बनती है तथा ताड़ी अप्रैल माह से जुलाई माह तक पेड़ से अधिक मात्रा में निकलता है। ताड़ी विशेष रूप से नदी और समुद्र के तटवर्ती क्षेत्रों में अधिक मात्रा में निकाली जाती है और उपयोग भी की  जाती है।

सर्दी के मौसम की जाने और गर्मी के आने के संधि काल, अथवा हिन्दू कलंडर के अनुसार फाल्गुन मास में पड़ने वाले  होली और भगोरिया उत्सव जैसे त्योहारों में ताड़ी का विशेष महत्व होता है। आदिवासी क्षेत्रों में यह न केवल एक पारंपरिक पेय है बल्कि मेलों और उत्सवों में सामूहिक रूप से इसको पीना स्थानीय संस्कृति का हिस्सा भी है।

ताड़ी (Palm wine) एक मादक पेय है जो ताड़ की विभिन्न प्रजाति के वृक्षों के रस से बनती है तथा ताड़ी अप्रैल माह से जुलाई माह तक ताड़ के पेड़ के फल से निकलता है। ताड़ी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड एवं बिहार जो कि भारत के राज्य हैं …

प्राचीन समय में सुबह में ताजी ताड़ी के फायदे (Palm wine, Coconut Toddy Benefits) भी हुआ करते थे , लेकिन यह बिना किसी मिलावट के और बिना फर्मेन्ट हुई होती थी। धूप और गर्मी से यह फर्मेन्ट (सड़ जाती) हो जाती है जो एक प्रकार से रासायनिक क्रिया से हानिकारक अल्कोहल में बदल जाति है।

(सावधानी: अल्कोहल किसी भी रूप में शरीर के लिए हानिकारक होता है और इसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है। और न ही हम इसके सेवन का समर्थन करते हैं।)

सुबह में ताजी ताड़ी के फायदे,

  • पाचन में मददगार: ताजा ताड़ी प्रोबायोटिक्स से भरपूर होती है, जो पाचन तंत्र को मजबूत करती है और पेट से जुड़ी समस्याओं को कम करने में सहायक होती है।
  • ऊर्जा का प्राकृतिक स्रोत: इसमें नेचुरल शुगर और विटामिन होते हैं, जो शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  • त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद: ताड़ी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स और पोषक तत्व त्वचा को निखारने और बालों को मजबूत करने में मदद करते हैं।
  • डिहाइड्रेशन से बचाव: गर्मी के मौसम में यह शरीर को हाइड्रेट रखता है और इलेक्ट्रोलाइट्स को बनाए रखता है।
  • हड्डियों के लिए फायदेमंद: इसमें कैल्शियम, पोटैशियम और आयरन जैसे खनिज तत्व होते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं।

ताड़ी के नुकसान (Toddy Side Effects)

  • नशे का कारण बन सकती है: अगर ताड़ी को लंबे समय तक स्टोर किया जाए, तो यह अल्कोहल में बदल जाती है, जिससे नशे की आदत लग सकती है।
  • लिवर को नुकसान: नियमित रूप से किण्वित ताड़ी पीने से लिवर से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
  • ब्लड शुगर लेवल बढ़ा सकती है: मधुमेह रोगियों के लिए यह नुकसानदेह हो सकती है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक शुगर की मात्रा अधिक होती है।
  • पेट की बीमारियां: यदि ताड़ी अशुद्ध या अधिक खट्टा हो जाए, तो यह पेट दर्द, गैस और डायरिया का कारण बन सकती है।
  • इन्फेक्शन का खतरा: अगर ताड़ी को सही तरीके से स्टोर न किया जाए, तो उसमें बैक्टीरिया विकसित हो सकते हैं, जिससे फूड पॉइजनिंग का खतरा रहता है।
(सावधानी: अल्कोहल किसी भी रूप में शरीर के लिए हानिकारक होता है और इसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है। और न ही हम इसके सेवन का समर्थन करते हैं।)

भगोरिया उत्सव

भगोरिया त्यौहार एक आदिवासी हाट या मेला होता है जिसमें आदिवासी समुदायों द्वारा अपने अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है।यह मुख्यतः मध्य भारत और उसके आसपास के राज्यों में आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाता है।

आदिवासी समुदायों में भगोरिया उत्सव एक खास पर्व है, जिसे होली से 7 दिनों पहले मनाया जाता है। यह प्यार, मेल-जोल और मस्ती का त्योहार होता है, जिसमें पारंपरिक लोक नृत्य, संगीत और हाट बाजार लगते हैं।

भगोरिया मेले के शोर शराबे, ढोल और मांडर के थापों के बीच यहाँ हर ओर रंग ही रंग होता है, जिसमें एक और रंग घुला होता है और वह है प्रेम का रंग

भगोरिया के नाम से जाने जाने वाले इन मेलों में युवक-युवतियाँ एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार भी करते हैं.

परंपरागत तौर पर भगोरिया उत्सव में होने वाले सामूहिक नृत्य के दौरान लड़के और लड़की एक दूसरे के प्रणय निवेदन को मानकर शादी ( भागकर) कर लेते है।

लाल, गुलाबी, हरे, पीले रंग के फैंटे यानी पगरियाँ. कानों में चाँदी की लरें, कलाइयों और कमर में कड़े और कंडोरे पहने पुरुष.

कुछ के कमर में इनकी जगह घुंघरू बाँधते हैं जिनकी थाप शोर-शराबे के बीच भी साफ़ सुनाई पड़ती है.

महिलाओं के जमुनिया, कथई, काले और ब्लू रंग की भिलोंडी लहंगे, पोल्का और ओढनियां एक बहार सी ला देते है.

झाबुआ के वालपुर गाँव में लगने वाले सप्ताहिक हाट में आदिवासी युवक-युवतियाँ जीवन का एक नया रंग तलाशते नज़र आते हैं.

भगोरिया के बारे में कहा जाता है कि शायद प्रारंभ में सामाजिक अस्वीकृति या फिर कन्या के पिता को वर द्वारा दहेज देने की रस्म के कारण यह प्रथा शुरू हुई होगी.

लेकिन प्रेमी युगलों के भागने की शुरू हुई यह प्रथा अब इतनी मान्य हो गई है कि इन मेलों को भगोरिया मेलों के नाम से ही जाना जाने लगा है.

कुछ लोग इसे हिरणकश्यप द्वारा प्रहलाद को मारने, नरसिंह द्वारा उन्हें बचाने और उन्हें भगाने की धार्मिक आस्था से भी जोड़ते हैं.

भील प्रहलाद को अपना पितृ पुरुष भी मानते हैं.

इस संदर्भ में लिखी गई किताबों में भगोरिया की शुरूआत राजा भोज के समय के भील राजाओं कासूमार और बालून द्वारा अपनी राजधानी भागोर में आयोजित विशाल मेले को माना गया है.

जहाँ शायद बड़े पैमाने पर स्वयंवर की प्रथा प्रचलित रही होगी.

शिक्षा और गैर आदिवासी समाज में चल रही रस्मों को जानने के कारण कुछ युवतियाँ भगोरिया के रस्म को नापसंद करती है और उनका कहना है कि इतनी सामूहिक तौर पर प्रेम की अभिव्यक्ति से महिलाओं की बेइज़्जती होती है.

आदिवासी समाज में प्रणय सूत्र

हालाँकि ऐसा नहीं कि आदिवासी समाज में सारे प्रणय सूत्र भगोरिया मेले में ही जुड़ते हैं.

हिल जाति में युवक-युवतियों द्वारा एक दूसरे को पसंद करने के बाद वर पक्ष कन्या के यहाँ तीर और चोली भेजने की भी परंपरा है.

जिसमें चोली रख तीर वापस कर देने का अर्थ होता है, प्रणय निवेदन की स्वीकृति.

चोली वापस करने की स्थिति में यह लड़के वालों के अपमान के रूप में भी लिया जाता है जिससे आपस में कई परिवारों के बीच खूनी संघर्ष की घटनाओं की बातें भी सुनने में आती हैं.

सामान्यतः भगोरिया के नाम से जाने जाने वाले इन मेलों में युवक-युवतियाँ एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार करते हैं और परंपरागत तौर पर भगोरिया उत्सव में होने वाले सामूहिक नृत्य के दौरान लड़के और लड़की एक दूसरे के प्रणय निवेदन को मानकर शादी ( भागकर) कर लेते है।

इस उत्सव में होने वाले विवाह को भगोरिया विवाह के नाम से भी जाना जाता है, यह आदिवासी समुदाय में मनाए जाने वाले भगोरिया त्योहार के दौरान होने वाला विवाह होता है और इस त्योहार में युवक-युवतियां एक-दूसरे को पसंद करके शादी करते हैं.

भगोरिया मेले में ताड़ी पीने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। यह लोगों को तरोताजा रखता है और उत्सव में आनंद बढ़ाता है। हालांकि, कई बार यह नशे का कारण भी बन जाता है, जिससे अनियंत्रित व्यवहार और विवाद की स्थिति पैदा हो सकती है।

(सावधानी: अल्कोहल किसी भी रूप में शरीर के लिए हानिकारक होता है और इसका किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता है। और न ही हम इसके सेवन का समर्थन करते हैं।)

 

 

 

कमलेश पाण्डेय
अनौपचारिक एवं औपचारिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय, तथा समसामयिक पहलुओं, पर्यावरण, भारतीयता, धार्मिकता, यात्रा और सामाजिक जीवन तथा समस्त जीव-जंतुओं पर अपने विचार व्यक्त करना।

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