नदियाँ जीवन का आधार है, लेकिन तेजी से बढ़ते प्रदूषण के कारण कई नदियाँ अब “मृत” होने की कगार पर है हिमालय से निकालने वाली जीवन दायनी गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियाँ भी दुनिया की प्रदूषित नदियों में शामिल हो चुकी है.
नदियाँ जीवन और सभ्यता के अस्तित्व तथा सारे पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ मानी जाती हैं, लेकिन बढ़ती जनसंख्या तथा उनके लिए जुटाए जाने वाले संसाधन, मानव सभ्यता के विकास के बढ़ते चरण, और प्रकृति के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया के कारण दिनों-दिन जल, थल और नभ में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
नदियाँ में बढ़ता प्रदूषण
बढ़ते प्रदूषण एवं कम होते जल-स्तर के कारण नदियाँ अपने वास्तविक स्वरूप से अलग होती जा रही है. अपने उद्गम स्थल से निकलते समय नदियाँ निर्मल और स्वच्छ होती हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे मानव आबादी और शहरों से गुजरती है, उनमें गंदगी और प्रदूषण का स्तर बढ़ता जाता है।
उद्गम स्थल से लेकर अस्त या नदी के समुद्र में विलीन होने तक प्रदूषित जल अपने उचितम् स्तर की तरफ बढ़ता जाता है, इसका उदाहरण गंगा नदी है, जिसका देवप्रयाग में एमपीएन (मॉस्ट प्रॉबेबल नंबर) मात्र 33 प्रति 100 एमएल होता है, लेकिन दक्षिणेश्वर (कोलकाता) तक पहुंचते-पहुंचते यह एक लाख से भी ऊपर चला जाता है।
इसके लिए केवल औद्योगीकरण और शहरीकरण जिम्मेदार नहीं है अपितु, हमारी जीवनशैली और हमारा प्राकृतिक संसाधनों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया भी उतना ही जिम्मेदार है।
बदबूदार थेम्स नदी कैसे हुई साफ?
भारत जैसे विकासशील देशों के सामने नदियों को लेकर जो चुनौती है उनसे कई विकसित देश पहले ही गुजर चुके है. ब्रिटेन में थेम्स नदी (Thames River), जो लंदन की जीवन रेखा मानी जाती है, कभी दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक हुआ करती थी। नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम ने इसे 1957 में, “बायोलॉजिकली डेड” घोषित कर दिया था, क्योंकि इसमें ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियां जीवित नहीं रह पाती थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए बम धमाकों से शहर की सीवेज प्रणाली नष्ट हो गई थी, जिससे नदी में गंदगी और जहरीले कचरे का ढेर लग गया था।
19वीं सदी में खराब जल निकासी और गंदे पानी के कारण लंदन में कई बार हैजा फैला, 1854 में डॉ. जॉन स्नो ने यह साबित किया कि यह बीमारी दूषित पानी के कारण फैल रही थी, लेकिन 1858 में “द ग्रेट स्टिंक” (The Great Stink) नाम का संकट लंदन शहर पर आया, जब थेम्स नदी (Thames River) की बदबू असहनीय हो गई थी और संसद को मजबूरन नया सीवेज सिस्टम बनाना पड़ा। 1870 में जोसेफ बाजल्गेट ने आधुनिक सीवेज प्रणाली तैयार की, जिससे थेम्स नदी (Thames River) की स्थिति में सुधार किया जा सके.
1960 के दशक से सरकार ने थेम्स नदी (Thames River) की सफाई के लिए कई कदम उठाए. जल निकासी प्रणाली को ठीक किया गया, उद्योगों से निकलने वाले रसायनों पर प्रतिबंध लगाया गया और पानी की गुणवत्ता में सुधार आया. आज, यह नदी 125 से अधिक प्रजातियों का घर है, और कभी-कभी यहां व्हेल भी आ जाती है. हालांकि, थेम्स नदी (Thames River)प्लास्टिक प्रदूषण अभी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है, जिसे रोकने के लिए लंदन में सफाई अभियान लगातार चलाए जाते रहते है.
भारत में नदियों की हालत
भारत में भी ऐसी कई नदियां है जो बायोलॉजिकली डेड होने की कगार पर है. जिनको अब नदियों के नाम से नहीं बल्कि नालों के नाम से जाना जाता है. उनके नदी होने के अस्तित्व का भी कुछ पता नहीं है. दिल्ली की साहिबी नदी इसका एक उदाहरण माना जा सकता है. अब यह नदी नाला बन चुकी है और इसको नजफगढ़ के नाले के नाम से जाना जाता है. दिल्ली का सीवेज यमुना तक पहुंचाने में इसका सबसे बड़ा योगदान रहता है. हालांकि विद्वानों का मानना है कि यह नदी वैदिक काल से मौजूद रही है.
साहिबी नदी या साबी नदी अरावली पहाड़ी से निकलने वाली एक अल्पकालिक और वर्षा पर आधारित नदी है इस नदी को सहाबी नदी के नाम से भी जाना जाता है. यह नदी राजस्थान हरियाणा और दिल्ली में बहती है। दिल्ली में इसको नजफगढ़ के नाले के नाम से जाना जाता है।
पिछले कई दशकों से हिमालय से निकालने वाली गंगा और यमुना भी दुनिया की सबसे दूषित नदियों में शामिल हो चुकी हैं. इसमें नदियों के प्रदूषित होने के मुख्य कारण प्राकृतिक संसाधनों की उपेक्षा, बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, औद्योगीकरण, जीवनशैली में बदलाव, और वनों की कटाई हैं।
गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है, जो देश के 27% भूभाग में फैली हुई है और 47% जनसंख्या को सहारा देती है. यह नदी 11 राज्यों से होकर गुजरती है, जिसमें उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सबसे बड़े क्षेत्र लगभग 3 लाख वर्ग किमी में फैले है. पिछले दशकों में गंगा के पानी में प्रदूषित हानिकारक बैक्टीरिया की मात्रा तेजी से बढ़ी है. दक्षिणेश्वर में यह 1986-1990 के बीच औसतन प्रति 100 मिलीलीटर एमपीएन 71,900 थी, जो 2006-2010 में बढ़कर 1,05,000 हो गई. प्रयागराज में यह 1986-1990 में 4,310 थी, जो 2006-2010 में 16,600 हो गई है।
सीवेज ट्रीटमेंट और गंगा का बढ़ता प्रदूषण
गंगा और यमुना में बड़ी मात्रा में सीवेज बहाया जाता है. झारखंड राज्य में उत्पन्न 100% सीवेज बिना ट्रीटमेन्ट के गंगा में जाता है, जबकि पर्यावरण की दृष्टि से यह सबसे कम प्रदूषण फैलाने वाला राज्य है। सबसे अधिक सीवेज डिस्चार्ज करने वाले राज्यों में दिल्ली सबसे ऊपर है. दिल्ली से प्रति दिन लगभग 327 करोड़ लीटर सीवेज गंगा में जाता है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश से लगभग 120 करोड़ लीटर और पश्चिम बंगाल और बिहार से लगभग 70 करोड़ लीटर सीवेज प्रति दिन गंगा में जाता है. गंगा में प्रदूषण के अन्य स्रोत में औद्योगिक कचरा (15%) भी है।
भारत सरकार ने गंगा नदी की सफाई के लिए नमामि गंगे मिशन जैसे कई महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए है. जिसका मुख्य उद्देश्य सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना, औद्योगिक कचरे के निपटारे को नियंत्रित करना और जंगल उगाने को बढ़ावा देना है. लेकिन इन योजनाओं में कई चुनौतियां आई हैं, जैसे परियोजनाओं में देरी और नियमों का प्रभावी रूप से लागू ना हो पाना शामिल है. हालांकि यह आसान काम नहीं है क्यूंकि गंगा ग्यारह राज्यों से होकर गुजरती है. ऐसे में कई तरह के रुकावट सामने आ सकते है।
राइन नदी को कैसे बचाया?
1986 में, बासेल (स्विट्जरलैंड) के सांडोज कारखाने में आग लगने के कारण बड़ी मात्रा में कीटनाशक राइन नदी में फैल गए, जिससे गंभीर पर्यावरणीय क्षति हुई. इसके जवाब में, 1987 में राइन एक्शन प्रोग्राम शुरू किया गया, जिसमें 15 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक राशि प्रदूषण नियंत्रण पर निवेश की गई. इस पहल के परिणामस्वरूप, अब 95% औद्योगिक अपशिष्ट जल को साफ किया जाता है. नदी में 63 प्रजातियों की मछलियां फिर से पाई जाने लगी है, जिससे इसका पारिस्थितिकी तंत्र काफी हद तक सुधर गया है.
राइन नदी चार देशों से गुजरते हुए जर्मनी में शामिल होती है. ये सारे देश मिलकर इसको साफ रखने में सहयोग करते है. यह नदी 1200 किलोमीटर में फैली हुई है और 9 अंतरराष्ट्रीय स्टेशन इससे मिलकर साफ रखते है. वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स, नदी के करीब प्राकृतिक संरक्षित इलाका और खेती में हानिकारक कीटनाशक और उर्वरकों का इस्तेमाल ना करना, इसको साफ रखने में मददगार साबित होते है. इसके अलावा नदी की सहायक नदियों की सफाई का भी ध्यान रखा जाता है.
भारत में नदियों को साफ करने का और लगातार उसे साफ बनाए रखने का काम जटिल अवश्य नजर आ सकता है लेकिन, जन-भागीदारी और सरकारी तंत्र की ईमानदार मंशा से इसके लिए प्रयास किया जाए तो यह असंभव नहीं है. नदियों की सफाई सिर्फ एक सरकारी अभियान नहीं, बल्कि एक सामूहिक जिम्मेदारी होती है क्योंकि नदियाँ ही हमारे जीवन और हमारी सभ्यता का आधार है, एक उदाहरण के तौर सरस्वती नदी के विलुप्त होने पर मोहन-जोदड़ो जैसी विकसित सभ्यता, पूरे मानव समाज और जीवों के साथ विलुप्त हो गई थी। इसलिए नदियाँ सिर्फ और सिर्फ जन भागीदारी और जागरूकता, तकनीकी निवेश तथा सख्त कानूनों के माध्यम से ही बचा सकते है।