भुकुंट भैरव (Shri Bhukunt Bhairav Temple Kedarnath) भारत के उत्तर में पवित्र हिमालय में उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल विराजमान केदारनाथ धाम, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। केदारनाथ मंदिर का इतिहास पांडवों, आदि गुरु शंकराचार्य और राजा भोज से जुड़ा है। केदारनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर कई मान्यताएं हैं। कुछ लोग मानते हैं कि पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय ने केदारनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था और उसके बाद आदि गुरु शंकराचार्य जी ने 8वीं शताब्दी में इसका जिर्णोद्धार करवाया था. तथा उन्होंने मंदिर को वर्तमान रूप में स्थापित किया था. आदि गुरु शंकराचार्य जी ने मंदिर को उत्तराखंड की प्रसिद्ध कत्यूरी शैली में ही बनवाया था.
केदारनाथ धाम से संबंधित अलिखित मान्यताओं के अनुसार मंदिर का पुनः निर्माण (जिर्णोद्धार) राजा भोज ने 1076-1099 के बीच करवाया था और पुनः रखरखाव निर्माण (जिर्णोद्धार) 12-13वीं शताब्दी में हुआ था. एक मान्यता के अनुसार, केदारनाथ मंदिर 400 सालों से भी अधिक तक बर्फ में दबा रहा था.
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के चार धामों में से एक है और यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह अपनी अद्भुत आध्यात्मिक और प्राकृतिक छटा के लिए विश्वभर में श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु दुर्गम यात्रा कर बाबा केदार के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। लेकिन जैसे ही सर्दियां दस्तक देती हैं, बर्फ की मोटी परतें इस पूरे क्षेत्र को ढक लेती हैं। ऐसे में, श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। जानते हैं कि, जब इस भयंकर बर्फ और ठंड के मौसम में इंसान भी यहां नहीं टिक पाता, तो उस दौरान इस पवित्र धाम की रक्षा कौन करता है?
भुकुंट भैरव : केदारनाथ के क्षेत्रपाल
इस रहस्यमय प्रश्न का उत्तर छिपा है केदारनाथ धाम से लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित एक प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिर में भुकुंट भैरव मंदिर। यह मंदिर, जिसे केदारनाथ का क्षेत्रपाल भी कहा जाता है, सदियों से स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के बीच गहरी आस्था का केंद्र रहा है। मान्यता है कि जब केदारनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं, तो भगवान भैरव ही इस पूरे क्षेत्र और मंदिर की अलौकिक शक्तियों से रक्षा करते हैं।
भुकुंट भैरव मंदिर: रहस्य और मान्यताएं
भुकुंट भैरव मंदिर का शांत और रहस्यमय वातावरण किसी भी आगंतुक को एक अलग ही अनुभूति कराता है। छोटे से आकार का यह मंदिर, अपनी प्राचीन वास्तुकला और आसपास के नैसर्गिक सौंदर्य के कारण विशेष महत्व रखता है। इस मंदिर से जुड़ी कई रोचक तथ्य और मान्यताएं हैं:
केदारनाथ के क्षेत्रपाल:
भुकुंट भैरव को केदारनाथ क्षेत्र का रक्षक माना जाता है। क्षेत्रपाल का अर्थ है क्षेत्र का पालन करने वाला या रक्षक। मान्यता है कि भगवान भैरव अपनी दिव्य शक्तियों से पूरे केदारनाथ क्षेत्र को किसी भी नकारात्मक ऊर्जा और विघ्न से बचाते हैं।
कपाट बंद होने पर विशेष पूजा:
जब शीतकाल में केदारनाथ के कपाट बंद होते हैं, तो भुकुंट भैरव मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह प्रार्थना भगवान भैरव से पूरे शीतकाल में केदारनाथ धाम की सुरक्षा करने और अगले यात्रा सीजन के लिए शांति और समृद्धि बनाए रखने के लिए की जाती है।
यात्रा से पहले दर्शन:
केदारनाथ यात्रा शुरू होने से पहले, कई श्रद्धालु भुकुंट भैरव मंदिर के दर्शन करना शुभ मानते हैं। यह माना जाता है कि भगवान भैरव की अनुमति और आशीर्वाद से यात्रा निर्विघ्न रूप से संपन्न होती है।
भुकुंट भैरव कि पौराणिक कथाएं:
इस मंदिर से जुड़ी कई स्थानीय पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जो भगवान भैरव की शक्ति और केदारनाथ क्षेत्र से उनके अटूट संबंध को दर्शाती हैं। हालांकि, इन कथाओं के प्रामाणिक स्रोत सीमित हैं, लेकिन ये लोककथाएं स्थानीय संस्कृति और आस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य:
भुकुंट भैरव मंदिर एक शांत और रमणीय स्थान पर स्थित है। यहां से केदारनाथ घाटी और आसपास के बर्फ से ढके पहाड़ों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। यह प्राकृतिक सौंदर्य भी इस स्थान की आध्यात्मिक महत्ता को और बढ़ाता है।
सर्दियों में जब केदारनाथ धाम पूरी तरह से बर्फ से ढक जाता है और मानवीय गतिविधियां थम जाती हैं, तो यह विश्वास और आस्था ही है जो इस पवित्र स्थान की रक्षा का आश्वासन देती है। भुकुंट भैरव मंदिर, उस अदृश्य शक्ति का प्रतीक है जो कठिन परिस्थितियों में भी केदारनाथ की आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखती है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह हिमालय की रहस्यमय और दिव्य शक्तियों का भी प्रमाण है। यदि आप केदारनाथ की यात्रा पर जाएं, तो भुकुंट भैरव मंदिर के दर्शन करना न भूलें।
केदारनाथ मंदिर यात्रा
केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। मान्यता है कि स्वयंभू शिवलिंग का अर्थ है जो स्वयं प्रकट हुआ. यह केदारनाथ मंदिर, चौरीबारी हिमनद के कुंड से निकलती मंदाकिनी नदी के समीप, केदारनाथ पर्वत शिखर के पाद में, कत्यूरी शैली द्वारा निर्मित, केदारनाथ मंदिर (३,५६२ मीटर) की ऊँचाई पर अवस्थित है। इसे १००० वर्ष से भी पूर्व का निर्मित माना जाता है। जनश्रुति है कि इसका निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय द्वारा करवाया गया था।
मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है. ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ में ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से मोक्ष प्राप्त होता है.मंदिर के पास एक बड़ी चट्टान है, जिसे भीमशिला कहा जाता है। यह माना जाता है कि 2013 की बाढ़ में यह चट्टान मंदिर को बचाने के लिए आई थी.
केदारनाथ यात्रा के लिए उत्तराखंड सरकार के पर्यटन विभाग की सरकारी वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन जरूरी है।
केदारनाथ यात्रा के लिए पहले ऋषिकेश या हरिद्वार पहुंचे, फिर सोनप्रयाग तक बस या टैक्सी लें।
सोनप्रयाग से गौरीकुंड और वहां से 16 किमी की पैदल यात्रा कर केदारनाथ पहुंचा जा सकता है।
केदारनाथ पर्वत की चढ़ाई में आमतौर पर गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक लगभग 6 से 10 घंटे लगते हैं, जो आपकी शारीरिक क्षमता और चुने हुए रास्ते पर निर्भर करता है।
पैदल यात्रा:
गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक लगभग 16 किलोमीटर का पैदल रास्ता है, जो मध्यम कठिनाई स्तर का है। और इस पैदल यात्रा में 6 से 10 घंटे लग सकते हैं, जो आपकी गति और आराम पर निर्भर करता है।
अन्य विकल्प:
आप टट्टू, पालकी या खच्चर का उपयोग करके भी यात्रा कर सकते हैं, जिससे समय कम हो सकता है।
हेलिकॉप्टर सेवा:
फाटा से केदारनाथ तक हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है, जो यात्रा को काफी कम समय में पूरा कर सकती है।
केदारनाथ यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून तक है, जब मौसम आमतौर पर सुहावना होता है और तापमान 15-30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। आप सर्दियों से पहले के महीनों, जैसे कि सितंबर और अक्टूबर में भी जा सकते हैं, लेकिन तापमान ठंडा हो सकता है।
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