मकर संक्रांति (Makar Sankranti) हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है।
यहां हम आपको देंगे मकर संक्रांति त्योहार से जुड़ी हर एक जानकारी।
स्नान-दान का पर्व मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) तीन साल बाद 14 जनवरी मंगलवार को मनाया जायेगा.
मकर संक्रांति इस साल 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य देव सुबह 9 बजकर 3 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
“मकर संक्रांति से सूर्य दक्षिणासनय से उत्तरायण की ओर बढ़ता है। इसका वैज्ञानिक कारण है। सूर्य धीरे धीरे उत्तरी गोलार्ध की ओर झुकता है, जिससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। मकर संक्रांति से शीत ऋतु का अंत और वसंत ऋतु की शुरुआत होती है।”
मकर संक्रान्ति मुहूर्त (Makar Sankranti Muhurat 2025)
14 जनवरी 2025 को इस साल मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाएगा। 14 जनवरी को सुबह 8 बजकर 55 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा। ऐसे में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक स्नान दान का शुभ मुहूर्त रहेगा। इसमें सुबह 8 बजकर 55 मिनट से लेकर दोपहर में 12 बजकर 51 मिनट तक का समय पुण्य काल रहेगा।
मकर संक्रान्ति मुहूर्त (Makar Sankranti Muhurat)
मकर संक्रान्ति पुण्य काल मुहूर्त 14 जनवरी की सुबह 09:03 से शाम 05:46 बजे तक रहेगा। महा पुण्य काल समय सुबह 09:03 से सुबह 10:48 बजे तक रहेगा।
मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। यूपी और बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी कहते हैं वहीं दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल कहा जाता है। मध्य भारत में इसे माघी/भोगली बिहू आदि के नाम से मनाते हैं। इस दिन कहीं दही-चूड़ा तो कहीं खिचड़ी और तिल के लड्डू बनाए जाते हैं।
14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसीलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जानते हैं। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है। इसलिए इसे उत्तरायण संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति से खरमास समाप्त होता है और शुभ व मांगलिक कार्यों की फिर से शुरुआत हो जाती है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकल कर अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर एक मास और इसके पश्चात शनि देव की ही राशि कुंभ में एक मास निवास करते हैं। इससे यह पर्व पिता व पुत्र की आपसी मतभेद को दूर करने तथा अच्छे संबंध स्थापित करने की सीख देता है। सूर्य के मकर राशि में आने पर शनि से संबंधित वस्तुओं के दान व सेवन से सूर्य के साथ शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
कुंडली में उत्पन्न अनिष्ट ग्रहों के प्रकोप से लाभ मिलता है। मकर संक्रांति को कई अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। कुछ जगहों पर इसे संक्रांति, पोंगल, माघी, उत्तरायण, उत्तरायणी और खिचड़ी जैसे नाम से जाना जाता है। चलिए जानते हैं मकर संक्रांति से जुड़ी सभी जानकारी यहां।
मकर संक्रांति से क्यों होते हैं दिन बड़े?
1. इस दिन सूर्य देव राशि परिवर्तन करके मकर राशि में गोचर करेंगे. ज्योतिष के अनुसार सूर्य का राशि परिवर्तन बहुत खास होता है. सूर्य को सभी राशियों का राजा माना जाता है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य के गोचर से जहां खरमास खत्म हो जाएगा, वहीं वसंत ऋतु के आगमन का भी संकेत मिलता है
2. मकर संक्रांति से सूर्य दक्षिणासनय से उत्तरायण की ओर बढ़ता है। इसका वैज्ञानिक कारण है। सूर्य धीरे धीरे उत्तरी गोलार्ध की ओर झुकता है, जिससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। मकर संक्रांति से शीत ऋतु का अंत और वसंत ऋतु की शुरुआत होती है।
3. सूर्य की किरणें: उत्तरायण काल में सूर्य की किरणें पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध पर सीधी पड़ती हैं। जिसके कारण दिन लंबे और रातें छोटी होती हैं। यदि हम इसे सरल शब्दों में समझें तो यह कहा जाता सकता हैं कि मकर संक्रांति के बाद सूर्य की किरणें धरती पर अधिक समय तक पड़ती हैं। यह एक धीमी प्रक्रिया है और धीरे-धीरे दिन और लंबे होते जाते हैं। बता दें कि यहां दिन लंबे होने का अर्थ यह है कि सूर्योदय जल्दी होता है और सूर्यास्त देर से होता है।
4. ऋतुएं बदलने का कारण : पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और इस (पृथ्वी) का अक्ष अपने घूर्णन के अक्ष से 23.5 डिग्री झुका हुआ है। इस झुकाव के कारण ही हमें ऋतुएं बदलती हुई दिखाई देती हैं।
5. सूर्य उत्तरायण : मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण काल शुरू हो जाता है। उत्तरायण काल में पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुकता है। और इस तरह मकर संक्रांति मनाएं सिर्फ एक त्योहार नहीं है बल्कि एक खगोलीय घटना भी है जो हमारे जीवन को प्रभावित करती है।
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