31.4 C
New Delhi
Saturday, July 5, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

मणिपुर का शिरोइ लिली ऑर्किड और प्राकृतिक सांस्कृतिक पर्यटन

मणिपुर को अपनी विविध वनस्पतियों व जीव-जंतुओं के कारण इसको ‘भारत का आभूषण’ या ‘पूरब का स्विट्जरलैंड’ भी कहा जाता है। इनमें लुभावने और हरे-भरे प्राकृतिक दृश्यों, विलक्षण वनस्पति, फूल, पौधे, आकर्षक जंगल , लहराती नदियाँ, हरे-भरे पहाड़ों से गिरते झरने, ऊंची पहाड़ियों पर छाई हरियाली शामिल है। इन सबके अलावा पर्यटकों के लिए कई और आकर्षण हैं जो राज्य को पर्यटन के लिए उत्कृष्ठ बनाते हैं।

मणिपुर का अर्थ ‘आभूषणों की भूमि’ यह भारत के पूर्वोत्तर में स्थित एक राज्य है। यह राज्य उत्तर में नागालैंड और दक्षिण में मिज़ोरम, पश्चिम में असम, और पूर्व में इसकी सीमा पड़ोसी देश म्यांमार से मिलती है।

सांस्कृतिक विविधता

मणिपुर के मूल निवासी मैतै जनजाति के लोग हैं, तथा अन्य निवासियों में नागा तथा कूकी जाति के लोग हैं जिनकी लगभग 60 जनजातियाँ मणिपुर में निवास करती हैं

घाटी में मीतई जनजाति और बिष्णुप्रिया मणिपुरी रहती है तो नागा और कूकी (कुकी-चिन) जनजातियाँ पहा‍ड़ियों पर रहती हैं।

कुकी-चिन जनजाति, बांग्लादेश, मिजोरम और म्यांमार के पहाड़ी इलाकों में पायी जाती है और यह प्रारम्भिक तौर पर बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी इलाकों में निवास करने वाला ईसाई समुदाय है।

इस राज्य में प्रत्येक जनजाति वर्ग की खास संस्कृति और रीति रिवाज हैं जो इनके नृत्य, संगीत व पारंपरिक प्रथाओं से दृष्टिगोचर होता है।

यहाँ के लोग संगीत तथा कला प्रेमी होते हैं और उसमें इनकी प्रवीणता शुरू से ही रहती है। कई भाषाओं, पहाड़ी और जनजाति संस्कृति, तथा कला प्रेमी होने के कारण यह राज्य संस्कृतिक्ता के विशाल सागर के सामान है।

मणिपुर के लोग कलाकार और सृजनशील होते हैं जो उनके द्वारा तैयार खादी व दस्तकारी के उत्पादों में झलकती है। इंक द्वारा बनाये गए उत्पाद विश्वभर में अपनी डिज़ाइन, कौशल व उपयोगिता के लिए जाने जाते हैं।

अन्य तिब्बत, म्यांमार, बांग्लादेश की तरह की तरह यहाँ नेपाल से आकर बसे नेपालियों लोगों की संख्या भी अधिक है जो अन्य समुदाय के लोगों के साथ सांस्कृतिक विरासत को साझा करते हैं।

खास बात, मणिपुर के निवासी बहुत ही सरल, मधुर-भाषी और मिलनसार व्यक्तित्व के होते हैं।

प्राकृतिक सुंदरता एवं संसाधन

मणिपुर राज्य में प्राकृतिक संसाधनों का प्रचुर भंडार है। यहां की प्राकृतिक छटा देखने योग्य होती है। यहां तरोताजा करने वाले जल-प्रपात, रंग-बिरंगे फूलों वाले पौधे, दुर्लभ वनस्पतियां व अनेक प्रकार के जीव-जन्तु और जंगल हैं।

पहाड़ी भू-भाग, चाय तथा घाटियों में धान की खेती, नम जलवाऊ, हरी-भरी भूमि और पहाड़, जल प्रपात, झरने और अनगिनत जलाशय इस राज्य को सुंदर बनाते हैं।

यहाँ पूरे साल बहने वाली नदियां और टेढ़े-मेढ़े गिरने वाले झरने हैं जो पर्वतों, पहाड़ियों पर बिखरी हरी आभा को और अधिक सुरम्य और लुभावना बनाते हैं

मणिपुर के साथ-साथ भारत की प्रसिद्ध लोकटक झील (लोकताक पाट) या लोकताक झील भी इस पहाड़ी राज्य को पर्यटन के दृष्टि से और अधिक आकर्षक बनती है, यह झील अपनी सतह पर तैरते हुए वनस्पति और मिट्टी से बने द्वीपों के लिये प्रसिद्ध है, जिन्हें “फुमदी” कहा जाता है।

फुमदी, मणिपुर के लोकतक झील में बने तैरते हुए द्वीपों की श्रृंखला को कहते हैं. इन्हें फुमथी या फुम के नाम से भी जाना जाता है.

मणिपुर के बिसेमपूर जिले में स्थित एस झील का कुल क्षेत्रफल लगभग २८० वर्ग किमी है। झील पर सबसे बड़ा तैरता द्वीप “केयबुल लामजाओ” कहलाता है और इसका क्षेत्रफल ४० वर्ग किमी है। यह संगइ हिरण (Eld’s deer या Sangai deer ) का अंतिम घर है जो एक विलुप्तप्राय जाति है।

इस फुमदी को केयबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान के नाम से भारत सरकार ने एक संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया है और यह विश्व का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीय उद्यान है।

लोकताक झील मणिपुर के लिये बहुत आर्थिक व सांस्कृतिक महत्त्व रखती है। इसका जल विद्युत उत्पादन, पीने और सिंचाई के लिये प्रयोग होता है। इसमें मछलियाँ भी पकड़ी जाती हैं।

शिरोइ लिली फेस्टिवल

मणिपुर को देश की ‘ऑर्किड बास्केट’ भी कहा जाता है। यहाँ ऑर्किड (Orchids) की 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। समुद्र तल से लगभग 5000 फीट की ऊँचाई पर स्थित शिरोइ पहाड़ियों में एक विशेष प्रकार का ऑर्किड (Orchids) पुष्प शिरोइ लिली पाया जाता है। शिरोइ लिली (Shirui Lily) का यह फूल पूरे विश्व में केवल मणिपुर में ही पैदा होता है। इस अनोखे और दुर्लभ पुष्प की खोज फ्रैंक किंग्डम वॉर्ड नामक एक अंग्रेज ने 1946 में की थी।

इसकी विशेषता यह है कि इसे सूक्ष्मदर्शी से देखने पर इसमे सात रंग दिखाई देते हैं। इस अनोखे लिली को 1948 में लंदन स्थित रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी ने मेरिट प्राइज से भी नवाजा गया था।

हर साल मणिपुर के उखरूल जिले में शिरोइ लिली फेस्टिवल (Shirui Lily Festival) का आयोजन बड़ी धूम धाम से किया जाता है और जिसको देखने के लिए  दुनियाभर से वनस्पति प्रेमी और अन्य पर्यटक पहुंचते हैं।

यह खास शिरोइ लिली का फूल केवल मानसून के महीने में खिलता है, इसलिए यह शिरोइ लिली फेस्टिवल (Shirui Lily Festival) इस समय ही मनाया जाता है।

मुख्य रूप से इस महोत्सव का उदेश्य  शिरुई लिली के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इस लुप्तप्राय होते फूल और वनस्पति की प्रजाति को बचाना है.

शिरुई लिली महोत्सव (Shirui Lily Festival) एक राजकीय उत्सव है जिसमें  सांस्कृतिक कार्यक्रम, लाइव संगीत,  सौंदर्य प्रतियोगिताएं, प्रदर्शनियां, लोकगीत, पारंपरिक नृत्य, और खेल प्रतियोगिताएं शामिल होती हैं.

इस महोत्सव के ज़रिए, उखरुल जिला अब मणिपुर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है।

पर्यटन

मणिपुर में प्रमुख पर्यटन स्थलों में,

  • श्री गोविंद जी मंदिर,
  • इमा मार्केट (इमा कीथेल) या माताओं का बाज़ार या ख्वाइरामबंद कीथेल या ख्वाइरामबंद मार्केट
  • इम्फाल में युद्ध कब्रिस्तान( जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शहीद हुए ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया हैं।)
  • इंफाल शहर के केंद्र में वीर टिकेंद्रजीत पार्क में स्थित शहीद मीनार ( जो उन सैनिकों की याद में बनाई गई थी, जिन्होंने 1891 में एंग्लो-मणिपुर युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।)
  • नुपी लान (महिलाओं का युद्ध, यह मणिपुर में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ महिलाओं द्वारा किए गए प्रदर्शनों का मेमोरियल) खोंघापत उद्यान।
  • आईएनए युद्ध संग्रहालय, मोइरांग (INA War Museum, Moirang) में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) का युद्ध संग्रहालय है यह द्वितीय विश्व युद्ध को समर्पित भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) का एकमात्र आधिकारिक संग्रहालय है तथा यह वह महत्वपूर्ण स्थान भी था जहाँ 14 अप्रैल, 1944 को भारतीय धरती पर दूसरी बार INA (भारतीय राष्ट्रीय सेना) ने तिरंगा झंडा फहराया था।
  • इसके अलावा लोकटक झील, कीबुल लामजो राष्ट्रीय उद्यान, विष्णुपुर स्थित विष्णु मंदिर, सेंड्रा, मोरेह सिराय गाँव, सिराय की पहा‍ड़ियाँ, डूको घाटी, राजकीय अजायबघर, कैना पर्यटक निवास, खोंगजोम वार मेमोरियल आदि मणिपुर के कुछ महत्त्व पूर्ण पर्यटक स्थल है।

मणिपुर में प्रवेश के लिए विदेशियों को परमिट

मणिपुर में प्रवेश करने वाले विदेशियों को, चाहे वे यहां जन्मे से हों, प्रतिबंधित क्षेत्र पर्मिट लेना आवश्यक होता है। यह चारों मुख्य महानगरों में स्थित विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय से मिलता है। यह पर्मिट मात्र  कुछ दिन के लिए वैध होता है, व सैलानी यहां भ्रमण करने के लिए प्राधिकृत ट्रैवल एजेंट द्वारा वयवस्थित चार लोगों के समूहों में ही जा सकते हैं। साथ ही विदेशी सैलानी यहां वायुयान द्वारा ही आ सकते हैं और उन्हें राजधानी इंफाल के बाहर घूमने की आज्ञा नहीं है।

इस संबंध में और अधिक जानकारी के लिए सरकारी वेबसाईट को देख सकते हैं और केवल आधिकारिक सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त ट्रैवल एजेंट से ही मार्गदर्शन लें।

मणिपुर का प्राचीन इतिहास

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मणिपुर का अपना एक प्राचीन एवं समृद्ध इतिहास है। जो  पुरातात्विक अनुसंधानों, मिथकों तथा लिखित इतिहास से प्राप्त होता है। इसका प्राचीन नाम कंलैपाक् (कंगलैपाक) भी है।

मणिपुर के सन्दर्भ में जहाँ पौराणिक कथाओं से इसका संबंध जोड़ा जाता है, वहीं प्राप्त तथ्यों से यह प्रमाणित भी होता है कि प्राचीन काल में पड़ोसी राज्यों द्वारा मणिपुर को विभिन्न नामों से पुकारा जाता था, जैसे बर्मियों द्वारा ‘कथे’, असमियों द्वारा ‘मोगली’, ‘मिक्ली’ आदि। प्राचीन अलिखित इतिहास और कई तथ्यों से यह भी पता चलता है कि मणिपुर को मैत्रबाक, कंलैपुं या पोंथोक्लम आदि नामों से भी जाना जाता था।

मणिपुर के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ईसवी में पाखंगबा के राज्याभिषेक के साथ शुरू होता है। उसने और उस राजवंश ने इस भूमि पर प्रथम शासक के रूप में १२० वर्षों (33-154 ई ) तक शासन किया। उसके बाद अनेक राजाओं ने मणिपुर पर शासन किया। आगे जाकर मणिपुर के महाराज कियाम्बा ने 1467, से लेकर अन्य राजाओं जैसे, खागेम्बा, चराइरोंबा , भाग्यचन्द्र (जयसिंह), गम्भीर सिंह ने  शासन कर मणिपुर की सीमाओं की रक्षा की।

मणिपुर की स्वतंत्रता और संप्रभुता 19वीं सदी के आरम्भ तक बनी रही। उसके बाद सात वर्ष (1819 से 1825 तक) तक बर्मी लोगों ने यहां पर कब्जा करके शासन किया। 1891  खोंगजोम युद्ध (अंग्रेज-मणिपुरी युद्ध ) हुआ जिसमें मणिपुर के वीर सेनानी पाउना ब्रजबासी ने अंग्रेजों के हाथों से अपने मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की और 1891 में मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया।

आधुनिक मणिपुर राज्य की स्थापना का श्रेय 18वीं सदी में जन्में चक्रवर्ती सम्राट बोधचन्द्र सिंह नामक राजा को जाता हैं। मणिपुर में प्राचीन कंगला फोर्ट स्थित हैं जो राजा-महाराजाओं का निवास स्थान हुआ करता था। मणिपुर के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ई. में राजा पाखंगबा से शुरू होता है। 1819 से 1825 तक यहां बर्मी लोगों ने शासन किया। 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध के बाद मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। 1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा तब मणिपुर का शासन महाराज बोधचन्द्र संभाल रहे थे। 21 सितंबर 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का अंग बन गया।

मणिपुर का प्राचीन इतिहास मैतेई समुदाय और इसके राजवंशों से जुड़ा हुई है। 1500 ईसा पूर्व से ही यह समुदाय यहां रहता आया है। मणिपुर को मणियों की भूमि और आभूषणों की धरती भी कहते हैं। प्राकृतिक खूबसूरती, कला और परंपराओं से समृद्ध मणिपुर को पूर्व का स्विट्जरलैंड भी कहा गया। 1724 तक इस राज्य को ‘कांगलेइपाक’ के नाम से जाना जाता था। राजा पामहेयीबा ने नाम बदल कर जो मणिपुर रखा।

राजा पम्हीबा

इतिहासकार और लेखक विक्रम संपत पेंगुइन की किताब शौर्यगाथाएं: भारतीय इतिहास के अविस्मरणीय योद्धा’ के अनुसार, मणिपुर में पहले बर्बर परंपराएं थीं। इसके अनुसार बड़ी रानी के अलावा दूसरी रानियों के बेटों को मौत के घाट उतार दिया जाता था, ताकि बड़े बेटे के उत्तराधिकार की राह में कोई दूसरा बेटा ना आए। पम्हीबा, राजा चराइरोंग्बा की छोटी रानी नंगशेल छाइबी बेटे थे। चूंकि पम्हीबा का जन्म छोटी रानी के यहां हुआ था, ऐसे में जन्म लेते ही मार दिया जाना था। हालांकि पम्हीबा की मां और रानी नंगशेल छाइबी ने अपने बेटे को बचाने के लिए पैदा होते ही एक नागा कबीले के प्रमुख के यहां भिजवा दिया।

बाद में जब बड़ी रानी को पता चला कि छोटी रानी का बेटा जिंदा है, तो वह पम्हीबा की हत्या करवाने के प्रयास करती रही। लेकिन हर बार पम्हीबा बच जाता था। फिर जब राजा चराइरोंग्बा को कोई और बेटा नहीं हुआ तो आखिरकार वे उत्तराधिकारी की तलाश करने लगे। एक दिन जब वह एक गांव से गुजर रहे थे और उनकी नजर एक होशियार बालक पर पड़ी। संयोगवश वह उनका बेटा पम्हीबा ही निकला और उसे लेकर वे वापस राजभवन पहुंचे तथा अपने उत्तराधिकारी बेटे के साथ राज्य का संचालन करने लगे। उसके बाद पम्हीबा, राजा चराइरोंग्बा की मौत के बाद राजा की गद्दी पर बैठा।

राजा पम्हीबा का बर्मा के साथ युद्ध

पम्हीबा जब गद्दी पर बैठे तब मणिपुर और बर्मा के बीच रिश्ते ठीक नहीं थे। बर्मा की सेना आए दिन मणिपुर पर हमला और लूटपाट करती रहती थी। 1562 में तो बर्मा के तोंगू वंश के शासक बाइनोंग ने मणिपुर को करीब करीब अपने कब्जे में ही ले रखा था। लेकिन राजा जे जैसे-जैसे ताकत हासिल कर, अपनी स्वतंत्रता भी हासिल कर ली थी। हालांकि तब हालत कमजोर ही थी। साल 1725 में पम्हीबा ने पहली बार बर्मा पर हमला कर उसकी सेना को बुरी तरह हराया। इसके बाद बर्मा के सैनिकों ने कभी मणिपुर में घुसने की हिम्मत नहीं की।

बर्मा के राजा तानिंगान्वे लड़ाई में हार गए। पम्हीबा ने उन्हें शांति वार्ता के लिए बुलाया। बातचीत की टेबल पर तानिंगान्वे ने दंभपूर्ण रवैया अपनाते हुए पम्हीबा की बेटी सत्यमाला से विवाह का प्रस्ताव रख दिया। यह बात पम्हीबा के आत्म सम्मान के खिलाफ थी। इसके बावजूद उन्होंने शादी की हामी भर दी। शादी वाले दिन जब बारात आई तो पम्हीबा मणिपुर के सैनिकों के साथ वेष बदलकर बारात वाली जगह पहुंचे और वहां पर उन्होंने कत्लेआम मचा दिया। बर्मा के सैनिकों को चुन- चुनकर मारा। इसके बाद बर्मा के सैनिकों और लोगों में राजा पम्हीबा का खौफ फैल गया।

साल 1717 में हिंदू धर्म के रामानंदी संप्रदाय के वैष्णव मत को मणिपुर में स्थापित करने का श्रेय भी पम्हीबा को ही जाता है। साल 1724 में पम्हीबा ने ही अपने प्रांत को संस्कृतनिष्ठ नाम ‘मणिपुर’ दिया था।

मणिपुर के मूल निवासी मैतै जनजाति के लोग हैं, जो यहाँ के घाटी क्षेत्र में रहते हैं। इनकी भाषा मेइतिलोन है, जिसे हम ‘मणिपुरी’ भाषा भी कहते हैं। साथ ही यहाँ के पर्वतीय क्षेत्रों में नागा व कुकी जनजाति के लोग भी रहते हैं जो इस राज्य की सांस्कृतिक विविधता को और अधिक बढ़ाते है।

 

 

Popular Articles