मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने 40 साल के राज में क़रीब-क़रीब पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को एक सरकार के अंतर्गत जोड़ दिया था.
आज का पूरा भारत, आज का पूरा पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान का कम से कम पूर्वी भाग, आज का पूरा बांग्लादेश मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) के अधिकार क्षेत्र में था.
“मौर्य सम्राट अशोक पहले शासक थे जिन्होंने भारत को एक राष्ट्र के रूप में पिरोया. इतना ही नहीं महात्मा गाँधी से कहीं पहले उन्होंने ही अहिंसा की अवधारणा की शुरुआत की, वो शायद दुनिया के पहले राजा थे जिन्होंने एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की.”
यही नहीं वो एक ऐसे धर्म को विश्वव्यापी धर्म की श्रेणी तक पहुंचाने में भी कामयाब रहे जिसके अनुयायी उस दौर में बहुत कम थे. उन्होंने ऐसी नैतिक अवधारणाओं का सूत्रपात किया जिनका असर आज तक देखा जा सकता है.
ब्रिटिश प्रशासित भारत में जन्मे चार्ल्स (रॉबिन) एलन, स्वतंत्र लेखक और इतिहासकार, अपनी किताब ‘अशोका द सर्च फॉर इंडियाज़ लॉस्ट एम्परर’ (Ashoka: the Search for India’s Lost Emperor )में लिखते हैं, “अशोक को सही मायनों में भारत का संस्थापक पिता कहा जा सकता है.”
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) का शासन
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) पहले शासक थे जिन्होंने भारत को एक राष्ट्र के रूप में पिरोया. इतना ही नहीं महात्मा गाँधी से कहीं पहले उन्होंने ही अहिंसा की अवधारणा की शुरुआत की, वो शायद दुनिया के पहले राजा थे जिन्होंने एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की.
एक विजेता जिसने युद्ध की विभीषिकाओं को देखते हुए विजय को त्याग दिया. एक साधु या कहें साधु और सम्राट का अद्भुत समन्वय था.
एक प्रतिभाशाली राजा जिसे मानवीय मूल्यों की गहरी समझ थी. जानीमानी भारतीय इतिहासकार, रोमिला थापर अपनी किताब ‘अशोक एंड द डिकलाइन ऑफ़ मौर्याज़’ (Asoka and the Decline of the Mauryas) में लिखती हैं,
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) बहुत मायनों में अपने काल का प्रतिनिधित्व करते थे. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि उन्होंने अपने समय को समझा और भारतीय संदर्भ में उसकी जो ज़रूरतें थीं, उन्हें पूरा किया.
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) की कहानी उनके दादा चंद्रगुप्त मौर्य और महान रणनीतिकर, अर्थशास्त्री, विद्वान चाणक्य से शुरू होती है जिसने चंद्रगुप्त मौर्य मगध की गद्दी पर बैठाया था. सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य के पोते थे.
ईसा पूर्व 323 में यूनानी राजा सिकंदर (अलेक्जेंडर) की मृत्यु के एक दो साल के अंदर ही सिंधु नदी के पूर्व में यूनानी आधिपत्य समाप्त होने लगा था.
चाणक्य के मार्गदर्शन में, चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध राज्य के राजा नन्द वंश के अंतिम सम्राट घनानन्द को हराकर उत्तरी भारत में अपने राज्य की स्थापना की.
चंद्रगुप्त मौर्य के 24 वर्ष के शासन में उनकी सेना अजेय रही.
ईसा पूर्व 305 में जब बेबीलोन और पर्सिया के नए शासक सेल्यूकस ने सिकंदर की खोई हुई भूमि जीतने की कोशिश की तो उन्हें चंद्रगुप्त मौर्य के हाथों हार का सामना करना पड़ा.
चंद्रगुप्त मौर्य के बाद बिंदुसार मगध के राजा बने और आचार्य चाणक्य मौर्य सम्राट बिंदुसार के भी मार्गदर्शक बने. आचार्य चाणक्य के शिष्य आचार्य राधागुप्त, मौर्य सम्राट बिन्दुसार के प्रधानमंत्री बने.
आचार्य चाणक्य के शिष्य तथा मौर्य सम्राट बिन्दुसार के प्रधानमंत्री, राधागुप्त ने मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) को मगध का राजा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
बिंदुसार का बेटा सुसीमा उनकी गद्दी का वारिस था और ये माना जा रहा था कि उनके बाद वो ही मगध का राजा बनेगा.
बिंदुसार के उत्तराधिकारियों के क्रम में अशोक का नाम काफ़ी नीचे था. वो नाटे कद के थे और मोटे भी थे.
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) मगध के राजा कैसे बने?
शायद यही वजह थी कि उनके पिता उनसे खिचे खिचे रहते थे और संभावित वारिसों की सूची से उनको हटा दिया गया था. और यही कारण हो सकता है कि, राजधानी पाटलिपुत्र से दूर ‘तक्षशिला’ में जब विद्रोह हुआ तो उनके पिता बिंदुसार ने उसे कुचलने अशोक को भेजा.
उसके बाद उन्हें मध्य भारत में उज्जैन में सम्राट का राजप्रतिनिधि बना कर भेजा गया. वहाँ विदिशा में एक स्थानीय व्यापारी की सुँदर बेटी महादेवी साक्या कुमारी से उन्हें प्रेम हो गया. उससे अशोक के दो बच्चे महिंदा और संघमित्ता पैदा हुए जिन्हें बाद में बौद्ध धर्म का प्रचार करने श्रीलंका भेजा गया.”
जब मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great), सम्राट बन गए तो महादेवी ने पाटलिपुत्र जाने के बजाए विदिशा में ही रहना पसंद किया. कहा जाता है कि महादेवी एक बौद्ध थीं और उस समय विदिशा बौद्ध धर्म का केंद्र हुआ करता था. दूसरे वो एक व्यापारी की पुत्री थीं और उनकी सामाजिक स्थिति राज परिवार के लोगों के स्तर की नहीं थी.
बिंदुसार ने अशोक के बड़े भाई सुसीमा को अपना उत्तराधिकारी चुना था.
लेकिन 274 ईसा पूर्व में एक और विद्रोह हुआ और उससे निपटने के लिए इस बार युवराज सुसीमा को भेजा गया.
ये विद्रोह पिछले विद्रोह से अधिक गंभीर था इसलिए राजकुमार सुसीमा को अधिक समय तक तक्षशिला में रुकना पड़ा.
इस बीच राजा बिंदुसार गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तब उन्होंने सुसीमा को वापस आने और उनकी जगह अशोक को तक्षशिला जाने का आदेश दिया.
इस बीच अशोक के समर्थक प्रधानमंत्री और आचार्य चाणक्य के शिष्य राधागुप्त ने हस्तक्षेप कर राजकीय आदेश को रुकवाने की कोशिश की और अशोक ने माँग की कि उनके पिता उन्हें अस्थाई राजा घोषित कर दें. ये सुनते ही बिंदुसार को मिर्गी का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई.
“मौर्य सम्राट अशोक के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अंग्रेज़ों से पहले भारत के सबसे बड़े भूभाग पर राज किया था.”
जब सुसीमा पाटलिपुत्र वापस लौटे तो उन्होंने पाया कि उनके छोटे भाई अशोक ने पाटलिपुत्र पर आधिपत्य जमाया हुआ है और उसके मुख्य द्वार की रक्षा यूनान से भाड़े पर लाए गए सैनिक कर रहे हैं.
चार साल सत्ता के लिए हुए संघर्ष में पाटलिपुत्र के पूर्वी द्वार पर सुसीमा की हत्या पहला चरण था. इस दौरान अशोक ने अपने अन्य सौतेले भाइयों को भी मौत के घाट उतार दिया, तब जाकर वो अपने आपको मगध का राजा घोषित कर पाए.
उस समय अशोक की उम्र 34 साल थी.
पाटलिपुत्र की गद्दी पर बैठने के बाद अशोक ने विदिशा में छोड़ी गई अपनी पत्नी और दो बच्चों को अपने पास बुला लिया.
अशोक की कम से कम छह पत्नियाँ थीं. इलाहाबाद में स्थापित शिलालेख में कारुवकी को अशोक की दूसरी पत्नी बताया गया है.
अशोक की मुख्य पत्नी थीं असंधीमित्र जिनका अशोक के शासन के 13वें वर्ष में निधन हो गया था.
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) बौद्ध क्यों बने?
अशोक 265 ईसा पूर्व में बौद्ध बन गए थे हालांकि उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि शुरू के डेढ़ वर्षों में उन्होंने इस धर्म को गंभीरता से नहीं लिया था.
उनके बौद्ध बनने के दो वर्ष के अंदर उनके बच्चे महिंदा और संघमित्रा भी बौद्ध साधु और साध्वी बन गए थे.
अशोक के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अंग्रेज़ों से पहले भारत के सबसे बड़े भूभाग पर राज किया था.
जिस समय अशोक गद्दी पर बैठे उस समय समय रोम और कार्थेज़ के बीच प्रथम प्यूनिक युद्ध हो रहा था. फ़ारस में ख़ूनी संघर्ष चल रहा था और चीन सम्राट अपनी महान दीवार बनवा रहा था.
362 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) ने कलिंग के खिलाफ़ युद्ध किया था और इस लड़ाई में एक लाख से अधिक व्यक्ति मारे गए थे और इतने ही लोग युद्ध के बाद पैदा हुई परिस्थितियों से मरे थे.
डेढ़ लाख से अधिक लोगों को या तो बंदी बनाया गया था या निर्वासित किया गया था. मारे गए लोगों में से अधिक्तर लोग असैनिक थे.
ऐसा माना जाता है कि , उस समय के कलिंग की जनसंख्या लगभग 10 लाख या उससे भी कम थी, तो इस गणना के अनुसार मरने वालों की संख्या कुल जनसंख्या की 20 फ़ीसदी के आसपास थी और अगर हम बंदियों की संख्या भी मिला लें तो कुल जनसंख्या के 35 फ़ीसदी लोग इस युद्ध से प्रभावित हुए थे.
इस दृष्टि से इस लड़ाई को संसार की सबसे भीषण युद्ध में से एक कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा.
कलिंग युद्ध और इसमें विजय ने अशोक के साम्राज्य को बंगाल की खाड़ी तक पहुंचा दिया और अगले 37 सालों तक उसका उस पर आधिपत्य बना रहा.
लेकिन ये जीत इतनी रक्तरंजित थी कि इसने अशोक के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया.
उसने सार्वजनिक रूप से उस पर अपना खेद प्रकट किया और उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया. इस युद्ध की रक्तरंजित-विभिषिका के बाद सम्राट अशोक ने, गौतम बुद्ध के विचारों को अपना लिया जो भारत में उस समय नया था.
सम्राट अशोक के शासन के समय भारतीय समाज में जितनी विविधताएं थीं, उतनी पहले कभी नहीं थीं. विविधताओं से भरे ऐसे समाज को एक साथ जोड़े रखने के लिए एक ऐसी विश्व दृष्टि चाहिए थी जो पर्याप्त लचीली हो.
कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक को नाममात्र के बौद्ध से एक धार्मिक बौद्ध और ‘धम्म’ का आचरण करने वाला बना दिया.
उसके बाद से सम्राट अशोक ने अपने शासन को बुद्ध की शिक्षा के अनुरूप नैतिक मूल्यों में ढाल लिया और एक अच्छे शासक की तरह अपने आपको अपनी जनता के लिए उपलब्ध कराया.
“मौर्य सम्राट अशोक जिन सिद्धाँतों को सबसे अधिक महत्व देते हैं उनमें पहला है विभिन्न मत-मताँतरों का सहअस्तित्व. उनका मानना था सबको मिलजुल कर सह-अस्तित्व की भावना से रहना सीखना होगा.”
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) चाहते थे कि उनको और बौद्ध धर्म की शिक्षा को पूरी दुनिया जाने, इसलिए उन्होंने उन संदेशों और शिक्षाओं को लिखित भाषा में कहने या प्रचारित करने की पहल की ताकि वो हमेशा जीवित रहे.
उन्होंने अपने संदेशों को प्राकृत भाषा में लिखवाया जो कि उनके पूरे साम्राज्य में बोली जाती थी. मौर्य सम्राटों में अशोक की संवाद शैली सबसे अलग थी और इसी कारण वह सबसे अलग और महान थे.
सातवें शिलालेख में मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) ने लिखवाया था जहाँ भी शिला स्तंभ या शिला खंड हों वहाँ उनके शब्द उत्कीर्ण किए जाएं ताकि ये एक लंबे समय तक विद्यमान रहे.
“उस समय तक जब तक मेरे पुत्र या पौत्र राज करें, या जब तक सूर्य और चंद्र चमकते रहें तब तक लोग ये शब्द पढ़ सकें”. ज़्यादातर शिला लेखों में अशोक का उल्लेख अन्य पुरुष या ‘वह’ के रूप में किया गया है.
लेकिन किसी-किसी शिला लेख में प्रथम पुरुष यानि ‘मैं’ का भी प्रयोग है जिससे हमें इन शिला लेखों में व्यक्ति की संवेदनशीलता की क्षणिक झाँकी मिलती है.
मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेख किस भाषा में?
अशोक के अधिक्तर शिला लेख प्राकृत भाषा की ब्राह्मी लिपि में हैं.
कुछ शिला लेख ग्रीक और अरमाइकी लिपियों में भी मिले हैं.
अशोक ने बौद्ध धर्म की, ‘धम्म’ की अवधारणा को आत्मसात किया. ‘धम्म’ आध्यात्मिक शुद्धता या पवित्र अनुष्ठानों पर आधारित नहीं था, बल्कि सांसारिक आचरण पर आधारित था. ये विचार सहिष्णुता का हामी था और हिंसा के खिलाफ़ था.
मौर्य सम्राट अशोक जिन सिद्धाँतों को सबसे अधिक महत्व देते हैं उनमें पहला है विभिन्न मत-मताँतरों का सहअस्तित्व. उनका मानना था सबको मिलजुल कर सह-अस्तित्व की भावना से रहना सीखना होगा.
दूसरे मनुष्यों के संप्रदायों का सम्मान करना होगा, क्योंकि औरों के संप्रदायों का सम्मान करके ही तुम अपने संप्रदाय का सम्मान कर पाओगे. और यह ‘धम्म’ का मूल सिद्धाँत है.
शायद उस समय संप्रदायों के बीच बहुत बैर भाव रहा होगा इसलिए ‘धम्म’ में इस बात पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है.
‘धम्म’ के अनुसार प्रजा के कल्याण, उनके स्वास्थ्य और सुख के बारे में सोचना और इस दिशा में काम करना शासक का कर्तव्य है.
राजा का ये भी फ़र्ज़ है कि वो सड़क के किनारे बरगद या आम के पेड़ लगवाए और यात्रियों के भोजन और विश्राम का प्रबंध करे.
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) के सबसे प्रभावशाली विचार 12वें शिला लेख में हैं. जिसमें धार्मिक सहिष्णुता पर ज़ोर दिया गया है. अशोक इसे वाक संयम कहते हैं.
शिला लेख में लिखा है, “जो कोई अपने धर्म में अतिशय भक्ति के कारण उसका गुणगान करता है और अन्य धर्मों की निंदा करता है वो अपने धर्म को ही हानि पहुंचाता है. इसलिए विभिन्न धर्मों के बीच मेलजोल होना चाहिए. सभी को दूसरों के विचारों को सुनना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए.”
मौर्य सम्राट अशोक (Ashoka the Great) के साम्राज्य का पतन
232 ईसा पूर्व अशोक महान की मृत्यु के बाद विशाल मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा.
अपने शासन के आखिरी वर्षों में उनकी धार्मिक आस्था चरम पर थी. उनका धार्मिक समर्पण इतना अधिक बढ़ा कि उन्होंने अपना पूरा राजकोष खाली कर दिया. बौद्ध कथाओं के अनुसार उन्होंने अपना सब कुछ दान में दे दिया.
कथाओं के अनुसार, जब अशोक महान बीमार थे और अपनी मृत्यु शैया पर थे. उनको पता था कि वो अब जीवित नहीं बचेंगे. वो अपने सारे रत्न और जवाहरात अच्छे कामों के लिए दान देना चाहते थे लेकिन तब तक उनके मंत्री सत्ता पर काबिज़ हो चुके थे और उन्होंने उन्हें वो कुछ भी नहीं करने दिया जो वो चाहते थे.
ईसा पूर्व 232 में अशोक महान का 72 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया.
बृहद्रथ मौर्य वंश का अंतिम राजा था और 181-180 ईसा पूर्व में उसके सेनापति पुष्यामित्र ने ही उसकी हत्या कर दी थी. मौर्य वंश कुल 137 वर्षों तक चला.
दुनिया के दूसरे राजवंशों जैसे चीन के ‘हान’ और ग्रीस के ‘रोमन’ की तुलना में भारत में मगध के ‘मौर्य वंश’ बहुत कम समय के लिए रहा.
मौर्य वंश का उदय चंद्रगुप्त मौर्य की जीत के साथ हुआ था. उसके पोते अशोक महान के समय में ये अपने चरम पर पहुंचा लेकिन उसके बाद उसका तेज़ी से पतन शुरू हो गया.
अशोक महान के बेटे और पोते अपने दादा और परदादा की क्षमता और स्तर के नहीं थे. उनका शासन भी बहुत थोड़े समय के लिए था. अशोक का पूरा साम्राज्य उसके कई दावेदारों के बीच विभाजित हो गया.
उनमें अपने बाप-दादा की तरह लेखन क्षमता भी नहीं थीं.
अशोक की तरह उन्होंने कोई शिला लेख नहीं छोड़ा, और उनकी मृत्यु के बाद से ही मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा.
मौर्य सम्राट अशोक से अशोक महान (Ashoka the Great) कैसे बने?
प्रतिकार के डर से, मुगलों और दूसरे आक्रांताओं ने भारतीय संस्कृति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था, महान राजाओं और योद्धाओं की निशानिओं को खंडित या नष्ट कर दिया था. अंतत: अशोक को भी एक तरह से भुला दिया. धीरे-धीरे प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि का इस्तेमाल भी समाप्त हो गया, और लोग शिलालेखों पर लिखे उनके संदेश को पढ़ना भूल गए.
लेकिन,भारत की आज़ादी से पहले जुलाई, 1947 में संविधान सभा में राष्ट्रीय झंडे का डिज़ाइन तय करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें अशोक स्तंभ के चक्र (अशोक चक्र) को भारतीय तिरंगे के मध्य में जगह दी गई और इस प्रकार महान सम्राट अशोक भूली हुई सहअस्तित्व की कार्यशैली को पुनः जाग्रत किया गया.
भारतीय लोगों के लिए अशोक महान इतना प्रेरणादायी व्यक्तित्व था कि आजादी के बाद, मौर्य सम्राट अशोक को ‘अशोक महान’ और नए राष्ट्र के संरक्षक संत का दर्जा दिया गया, और चारों दिशाओं में मुख वाले शेरों के अशोक स्तम्भ को , राजकीय चिन्ह घोषित कर संपूर्ण भारतीयों के जीवन का अभिन्न प्रतीक चिन्ह बना दिया।
यह राजकीय चिन्ह शाँतिपूर्ण सह अस्तित्व का प्रतीक भी है.
सार्वजनिक जीवन में संयम और आत्मनियंत्रण का सम्राट अशोक का संदेश आज भी भारतियों के लिए प्रेरणा है.