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Friday, July 4, 2025

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राणा सांगा और मुगल आक्रांता बाबर के समझौते का सच?

राजस्थान: राजस्थान के मेवाड़ के शूरवीर योद्धा और कुशल शासक मेवाड़ केशरी राणा संग्राम सिंह को राणा सांगा (Rana sanga) भी कहा जाता है। दुनिया के महान योद्धाओं में राणा सांगा की वीरता, साहस और युद्ध कौशल के कारण का उनका नाम सर्वप्रथम लिया जाता है

राणा सांगा (Rana sanga) उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ में हुआ था। वे महाराणा रायमल के पुत्र थे। उनके बचपन का नाम संग्राम सिंह था। उन्होंने मेवाड़ पर साल 1509 से 1528 तक शासन किया। वे मेवाड़ के पूर्व शासक एवं महाराणा प्रताप के पूर्वज थे।

हाल ही में राज्यसभा में सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा को लेकर विवादित बयान दिया। उन्होंने सदन में दावा किया कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा के न्योते पर बाबर हिन्दुस्तान आया था लेकिन क्या वाकई में बाबर को भारत आने का न्योता मेवाड़ के राणा सांगा ने दिया था?

इतिहास का पल-पल इस बात का स्मरण करता है की राणा सांगा जैसा एक महान योद्धा भारत भूमि पर हुआ। उन्होंने अपने जीवन में मातृभूमि की रक्षा और सम्मान के लिए  कई युद्ध लड़े और अपनी वीरता का लोहा मनवाया।

राणा सांगा ने जन कल्याण और मुस्लिम आक्रान्ताओं से कई युद्ध लड़कर अपने मेवाड़ की सीमाओं का विस्तार भी किया और अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाया। राणा सांगा ने राजपूतों को एकजुट करके एक शक्तिशाली सेना का निर्माण कर मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बनाया तथा मुगल और अन्य ईरान और तुर्क के मुसलमान आक्रमणकारियों को युद्ध में परास्त करके भारत की पुण्य भूमि से दूर खदेड़ किया।

शूरवीर महापराक्रमी शौर्यवान राणा सांगा के प्रमुख युद्ध

  • खातोली का युद्ध (बूंदी 1517): में उन्होंने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया।
  • बाड़ी या बारी का युद्ध : 1518 (धौलपुर)
  • गागरोन का युद्ध : 1519 (झालावाड़): 1519 में हुए गागरोन युद्ध में उन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को हराया।
  • बयाना का युद्ध : 16 फरवरी 1527 (भरतपुर): सन् 1527 में उन्होंने बयाना के युद्ध में मुगल सम्राट बाबर की सेना को हराया।
  • खानवा का युद्ध : 17 मार्च 1527 (भरतपुर): 1527 में खानवा का युद्ध राणा सांगा और बाबर के बीच हुआ था। और इसी युद्ध में राणा सांगा घायल हो गए थे.

महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराया

महाराणा सांगा (राणा सांगा) ने सिकंदर लोदी के समय ही दिल्ली के कई इलाकों पर अपना अधिकार करना शुरू कर दिया था। सिकंदर लोदी के उत्तराधिकारी इब्राहिम लोदी ने 1517 में मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। खातोली (कोटा) नामक स्थान पर दोनों पक्षों के बीच युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा की विजय हुई। कहते हैं कि इस युद्ध में सांगा का बायां हाथ कट गया था और घुटने पर तीर लगने से वह हमेशा के लिए लंगड़े हो गए थे।

खातोली की पराजय का बदला लेने के लिए 1518 में इब्राहिम लोदी ने मियां माखन की अध्यक्षता में महाराणा सांगा के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेजी जिसे भी पराजय का सामना करना पड़ा था।

महाराणा सांगा और बाबर का समझौता (मनगढ़ंत कहानी)

इतिहास के किसी भी पन्ने पर इस बात की कोई भी जानकारी नहीं है कि राणा सांगा ने बाबर के साथ समझौता किया था। मुगल आक्रांत बाबर जरूर चाहता था कि राणा सांगा इब्राहिम लोदी के खिलाफ युद्ध में शक्तिशाली राजपूत राजा राणा सांगा मेरा साथ दे, लेकिन राणा सांगा ने दिल्ली और आगरा के अभियान के दौरान बाबर का साथ नहीं दिया था और न ही उन्होंने बाबर को कोई न्योता दिया था।

उस समय राणा सांगा का अनुमान था कि बाबर भी तैमूर की भांति दिल्ली से कुछ समय बाद लौट जाएगा। किंतु 1526 ईस्वी में राणा सांगा ने देखा कि इब्राहीम लोदी को ‘पानीपत के युद्ध’ में परास्त करने के बाद बाबर दिल्ली में शासन करने लगा है तब राणा ने बाबर से युद्ध करने का निर्णय कर लिया।

कहते हैं कि खानवा युद्ध शुरू होने से पहले राणा सांगा के साथ हसन खां मेवाती, महमूद लोदी और अनेक राजपूत अपनी-अपनी सेना लेकर राणा के साथ हो लिए थे और आगरा को घेरने के लिए सभी आगे बढ़े।

बाबर से बयाना के शासक ने सहायता मांगी और ख्वाजा मेंहदी को युद्ध के लिए बयाना भेजा परंतु राणा सांगा ने उसे पराजित करके बयाना पर अधिकार कर लिया।

मुगल आक्रमणकारी बाबर को लगातार मिल रही हारों से मुगल सैनिकों के मन में राजपूतों का डर बैठ गया था। ऐसे में बाबर ने मुसलमानों को एकजुट करने के लिए उन पर से टैक्स हटाकर जिहाद का नारा दिया और बड़े स्तर पर युद्ध की तैयारी की।

राणा सांगा और बाबर में खानवा का युद्ध

1527 में राणा सांगा और मुगल आक्रमणकारी बाबर के भयानक युद्ध हुआ। खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबरदस्त खूनी मुठभेड़ हुई। बाबर के साथ 2 लाख सैनिक थे और ऐसा कहा जाता है कि राणा सांगा के पास भी बाबर जितनी सेना थी।

बस फर्क यह था कि बाबार के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा था और राणा के पास साहस एवं वीरता।

युद्ध में बाबर ने राणा के साथ लड़ रहे लोदी सेनापति को लालच दिया जिसके चलते सांगा को धोखा देकर लोदी और उसकी सेना बाबर से जा मिली। लड़ते हुए राणा सांगा की एक आंख में तीर भी लगा, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और युद्ध में डटे रहे।

इस युद्ध में राणा सांगा को कुल 80 घाव आए थे। उनकी लड़ाई में दिखी वीरता से बाबर के होश उड़ गए थे। लोदी के गद्दारी करने की वजह से राणा सांगा की सेना शाम होते-होते लड़ाई हार गई थी।

यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने मुगल आक्रमणकारी बाबर के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य का रास्ता खोल दिया।

राणा सांगा का निधन

कहते हैं कि खानवा के युद्ध में सांगा बेहोश हो गए थे जहां से उनकी सेना उन्हें किसी सुरक्षित जगह ले गई थी। वहां होश में आने के बाद उन्होंने फिर से लड़ने की ठानी और चित्तौड़ नहीं लौटने की कसम खाई। कहते हैं कि यह सुनकर जो सामंत लड़ाई नहीं चाहते थे उन्होंने राणा को जहर दे दिया था जिसके चलते 30 जनवरी 1528 में कालपी में उनकी मृत्यु हो गई। उनके देहांत के बाद अगला उत्तराधिकारी उनका पुत्र रतन सिंह द्वितीय हुआ था।

राणा सांगा का विधि विधान से अन्तिम संस्कार माण्डलगढ (भीलवाड़ा) में हुआ। इतिहासकारों के अनुसार उनके दाह संस्कार स्थल पर एक छतरी बनाई गई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि वे मांडलगढ़ क्षेत्र में मुगल सेना पर तलवार से गरजे थे।

एक इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान के इतिहास पर लिखा है। उन्होंने कहीं ऐसा जिक्र नहीं किया है कि राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी के खिलाफ बाबर से हाथ मिला लिया था। जीएन शर्मा और गौरीशंकर हीराचंद ओझा जैसे कई इतिहासकारों का तर्क है कि बाबर ने अपने साझा प्रतिद्वंद्वी इब्राहिम लोदी के खिलाफ गठबंधन की उम्मीद में खुद राणा सांगा से संपर्क किया था लेकिन राणा सांगा ने इससे इनकार कर दिया था, क्योंकि राणा सांगा ने खुद इब्राहिम लोदी को कई बार हराया था और उन्हें लोदी से कोई खतरा महसून नहीं होता था।

 

कमलेश पाण्डेय
अनौपचारिक एवं औपचारिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय, तथा समसामयिक पहलुओं, पर्यावरण, भारतीयता, धार्मिकता, यात्रा और सामाजिक जीवन तथा समस्त जीव-जंतुओं पर अपने विचार व्यक्त करना।

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