35.2 C
New Delhi
Friday, July 4, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

रूस की अर्थव्यवस्था पर चीन की अवसरवादी चाल

रूस द्वारा 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस की अर्थव्यवस्था और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में काफी बदलाव आए हैं इन बदलावों की सबसे गहरी छाप रूस के यूरोप के देशों के साथ व्यापारिक संबंधों में सबसे अधिक दिखाई देती है। रूस, यूक्रेन पर हमले के बाद से चीन जैसे अवसरवादी देश पर पहले से कहीं ज्यादा निर्भर हो गया है। युद्ध की वजह से पश्चिमी प्रतिबंधों ने रूस को चीन के हाथों में जाने पर मजबूर कर दिया है।

रूस और यूक्रेन द्वारा एक दूसरे पर बड़े पैमाने पर हमले, नागरिकों की बदहाली, दैनिक उपयोग, खान-पान और मंहगाई के चलते, रूस के लिए आर्थिक रूप से सबसे बड़ा बदलाव उसके व्यापारिक संबंधों में देखने को मिला है.

ऑब्जर्वेटरी ऑफ इकोनॉमिक कॉम्प्लेक्सिटी (ओईसी) के अनुसार 2021 में रूस का लगभग 50 फीसदी निर्यात बेलारूस और यूक्रेन समेत कई यूरोपीय देशों के साथ हुआ करता था. निर्यात का ज्यादातर हिस्सा ऊर्जा उत्पाद जैसे- कच्चा तेल और गैस हुआ करते थे. लेकिन 2023 के अंत तक यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई.

रूस-यूक्रेन युद्ध चीन के लिए एक अवसर

ओईसी के 2023 के आंकड़ों के अनुसार, अब चीन और भारत रूस के सबसे बड़े निर्यात बाजार बन चुके है. चीन 32.7 फीसदी और भारत 16.8 फीसदी सामान रूस से खरीदता है जो कुल निर्यात का आधा है. जबकि 2021 में, चीन के साथ 14.6 फीसदी और भारत के साथ केवल 1.56 फीसदी रूसी निर्यात हुआ था.

यानी चीन और भारत ने मिलकर पूरी तरह से उस बाजार का खामियाजा भर दिया, जो यूरोपीय देशों से प्रतिबंधों के बाद बना था. 2023 के आंकड़ों से पता चलता है कि यूरोप के देश अब रूस का सिर्फ 15 फीसदी सामान खरीदते हैं, जो दो साल पहले के लगभग 50 फीसदी से बहुत कम है.

ओईसी ने अभी तक 2024 के आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन ब्रसेल्स स्थित ब्रूगल आर्थिक थिंक टैंक द्वारा प्रकाशित रूसी विदेशी व्यापार ट्रैकर जैसे अन्य स्रोतों के अनुसार रूस का निर्यात 2023 के आंकड़ों जैसा ही बना हुआ है.

व्यापारिक आंकड़ें केवल आधिकारिक आंकड़ों पर आधारित हैं, जिसका मतलब है कि रूस के शैडो फ्लीट के जरिए भेजा गया तेल इसमें शामिल नहीं है. ये ज्यादातर पुराने जहाज होते हैं जो बिना पश्चिमी बीमा के चलते है. अगर इन जहाजों को भी शामिल किया जाए, तो पता चलेगा कि चीन और भारत रूस से और भी ज्यादा तेल खरीद रहे हैं.

कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अनुसार, रूस के कुल समुद्री कच्चे तेल के निर्यात का कम से कम 70 फीसदी हिस्सा इसी शैडो फ्लीट के जरिए होता है और चीन और तुर्की मिलकर इसका लगभग 95 फीसदी हिस्सा खरीदते हैं.

पश्चिम से पूर्व की ओर बदलाव

2022 के बाद से रूस के निर्यात ढांचे में बदलाव की दो मुख्य वजहें हैं, यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूसी तेल और गैस खरीदना काफी हद तक कम कर दिया और उनकी जगह चीन और भारत मुख्य खरीदार बन गए है.

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद, यूरोपीय संघ ने रूसी कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) का आयात 90 फीसदी तक कम कर दिया है. इसके अलावा, उसने रूस से आने वाली गैस की मात्रा भी घटा दी है. 2021 में यूरोपीय संघ की कुल गैस आपूर्ति का 40 फीसदी हिस्सा रूस से निर्यात किया गया था लेकिन 2024 में यह घटकर सिर्फ 15 फीसदी रह गया है.

ब्रूगेल में रूसी व्यापार ट्रैकर पर काम करने वाले शोधकर्ता, जोएट दारवस ने डीडब्ल्यू को बताया, “पश्चिमी देशों के बजाय इन देशों की ओर व्यापार में बड़ा बदलाव देखा गया है.”

“चीन, तुर्की, कजाखस्तान और कुछ अन्य देश, जिन्होंने रूस पर प्रतिबंध नहीं लगाए. रूस ने उनके साथ अपने व्यापार को काफी बढ़ा लिया है.”

ओईसी के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में तुर्की के साथ रूसी निर्यात 4.18 फीसदी था, जो 2023 में बढ़कर 7.86 फीसदी हो गया. वहीं, कजाखस्तान और हंगरी ने भी 2021 के बाद से अपने व्यापार में काफी वृद्धि की.

रूस अब चीन के अधीन है

वाशिंगटन डी.सी. स्थित पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स की अर्थशास्त्री एलीना रिबाकोवा ने डीडब्ल्यू को बताया, “रूस अब चीन के अधीन हो चुका है.” और रूस के लिए सबसे बडा बदलाव उसके चीन के साथ व्यापार और भू-राजनीति संबंधों में आया है.

उन्होंने कहा कि रूस के लिए चीन की व्यापारिक अहमियत अब इतनी असंतुलित हो चुकी है कि इससे बीजिंग का मॉस्को पर भारी दबदबा बन गया है. उन्होंने आगे कहा, “चीन रूस का अब तक का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है, जबकि रूस चीन के कुल निर्यात में बहुत ही छोटा हिस्सा रखता है. रूस के लिए अब चीन कुछ ज्यादा ही बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है.”

दारवस का मानना है कि रूस, पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते अब विभिन्न उपकरणों, हाई-टेक सामानों और निर्माण उत्पादों की आपूर्ति के लिए चीन पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हो गया है. “रूस एक बड़ा देश है, लेकिन उसके पास आत्मनिर्भर बनने की क्षमता नहीं है, इसलिए उसे ये उत्पाद कहीं से तो मंगाने ही होंगे और इसके लिए अब वह तेजी से चीन पर निर्भर होता जा रहा है.”

रिबाकोवा का कहना है कि चीन ना सिर्फ अपने उत्पाद रूस को बेच रहा है, वह रूस को पश्चिमी देशों में बने उपकरणों की आपूर्ति में भी मदद कर रहा है. खासतौर पर “दोहरे उपयोग” के सामान, जो नागरिक और सैन्य दोनों चीजों के लिए इस्तेमाल हो सकते है.

ओईसी के आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में चीन ने रूस को उसके कुल आयात का 53 फीसदी मुहैया कराया, जो 2021 में 25.7 फीसदी था. तुर्की, कजाखस्तान और संयुक्त अरब अमीरात ने भी 2021 की तुलना में रूस को अधिक निर्यात किया है, जबकि भारत का निर्यात स्तर लगभग दो साल पहले जैसा ही बना हुआ है.

चीन से बढ़ते आयात ने यूरोप से होने वाले निर्यात की जगह ले ली है. 2021 में, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन मिलकर रूस के कुल आयात का एक तिहाई से अधिक हिस्सा प्रदान करते थे, लेकिन 2023 के अंत तक यह घटकर 20 फीसदी से भी कम हो गया है.

ओईसी के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में चीन ने रूस को 110 अरब डॉलर (104.8 अरब यूरो) का सामान बेचा, जिसमें 38 फीसदी मशीन उत्पाद और उनके पुर्जे थे. लगभग 21 फीसदी सामान परिवहन से जुड़ा था, जिसमें कारें, ट्रक, ट्रैक्टर और ऑटो पार्ट्स शामिल थे. इसके अलावा, चीन ने रूस को अरबों डॉलर की धातु, प्लास्टिक, रबर, रसायन उत्पाद और कपड़े भी बेचे.

चीन के लिए रूस बस एक ‘साझेदार’, परम मित्र नहीं

भले ही रूस के व्यापार का तरीका पूरी तरह बदल चुका है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे उसे कोई खास फायदा नहीं हुआ है.

दारवस का कहना है कि रूस “सिर्फ टिके रहने की कोशिश कर रहा है”, लेकिन उसे अब पहले जैसी गुणवत्ता वाले उत्पाद नहीं मिल रहे हैं, जिसका असर रूसी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.

एलिना रिबाकोवा का मानना है कि रूस की आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं हुई, जितना अनुमान लगाया गया था. उसके बदले हुए व्यापारिक साझेदार इस बात को दर्शाते हैं कि वह एक मल्टी-पोलर वैश्विक व्यवस्था को अपनाना चाहता है, और उसमें अपनी भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं.

रिबाकोवा ने कहा, “पुतिन के लिए यह एक सहज रास्ता है, क्योंकि वो ऐसी दुनिया चाहते हैं जहां चीन और अन्य देशों के साथ उनका गठजोड़ हो और वो शायद इसके लिए अपनी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं.”

हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि चीन पर बढ़ती निर्भरता रूस को कमजोर बना सकती है. “चीन अब रूस के लिए व्यापार के दरवाजे खोलने या बंद करने वाला देश बन गया है. जहां, रूस के लिए चीन एक जरूरी सहयोगी है, लेकिन चीन के लिए रूस बस एक ‘साझेदार’ है, कोई परम मित्र नहीं.”

रूस शायद चीन की अवसरवादी नीति को समझता होगा, लेकिन उसके लिए भरोसे का न सही, लेकिन इस कठिन समय में जबकि, अमेरिका और अन्य पश्चिम के देश आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे थे तब उसके निर्यात क लिए और विदेशी मुद्रा के लिए कोई साथी तो मिला। रूस भी जनता है की चीन भारत की तुलना में भरोसेमंद दोस्त नहीं, लेकिन चीन के साथ जाने से नॉर्थ कोरिया जैसे तानाशाही मानसिकता वाले देश उसको समर्थन देंगें ।

 

 

 

कमलेश पाण्डेय
अनौपचारिक एवं औपचारिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय, तथा समसामयिक पहलुओं, पर्यावरण, भारतीयता, धार्मिकता, यात्रा और सामाजिक जीवन तथा समस्त जीव-जंतुओं पर अपने विचार व्यक्त करना।

Popular Articles