श्रीकालहस्ती मंदिर: दक्षिण भारत में कई प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें से एक है श्रीकालहस्ती मंदिर। यह श्रीकालाहस्ती मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति शहर के पास स्थित श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में एक शिव मंदिर है। ये मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर बसा है और कालहस्ती के नाम से भी जाना जाता है।
श्रीकालहस्ती मंदिर को दक्षिण भारत की काशी (Kashi of South India) के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका इतिहास बहुत ही रोचक है।
महाशिवरात्रि के मौके पर यहाँ का दर्शन विशेष फलदायी माना जाता है।
श्रीकालहस्ती मंदिर की वास्तुकला
श्रीकालहस्ती मंदिर, भगवान भोलेनाथ शिव जी को समर्पित है, यह आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में स्वर्णामुखी नदी के तट पर है। दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के मंदिरों और तीर्थस्थानों में इस श्रीकालहस्ती स्थान का विशेष महत्व है। श्रीकालहस्ती तीर्थ स्वर्णामुखी नदी के तट से पर्वत की तलहटी तक फैला हुआ है और लगभग २००० वर्षों से इसे दक्षिण कैलाश या दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर के पार्श्व में तिरुमलय की पहाड़ी दिखाई देती हैं श्रीकालहस्ती मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है, जिसमें मंदिर का शिखर दक्षिण भारतीय शैली का सफ़ेद रंग का है। श्रीकालहस्ती मंदिर के तीन विशाल गोपुरम हैं जो स्थापत्य की दृष्टि से अनुपम हैं इनमें से मंदिर एक विशाल गोपुरम है, जो सात मंजिला है और बहुत ही सुंदर दिखता है। मंदिर के अंदर कई मंडप और गर्भगृह हैं। मंदिर में सौ स्तंभों वाला मंडप भी है, जो अपने आप में अनोखा है। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। यहां भगवान कालहस्तीश्वर के संग देवी ज्ञानप्रसूनअंबा भी स्थापित हैं। देवी की मूर्ति परिसर में ही मुख्य मंदिर के बाहर स्थापित है। मंदिर का अंदरूनी भाग लगभग ५वीं शताब्दी का बना है और बाहरी भाग बाद में १२वीं शताब्दी में निर्मित होने का अनुमान है।
श्रीकालहस्ती मंदिर आस पास के तीर्थस्थल
इस मंदिर के आसपास और भी धार्मिक स्थल, मंदिर हैं, जैसे विश्वनाथ मंदिर, शिवभक्त कन्नप्पा (श्री कणप्पा) मंदिर, मणिकणिका मंदिर, सूर्यनारायण मंदिर, भारद्वाज तीर्थम, कृष्णदेवराय मंडपम, श्री सुख ब्रह्माश्रम, वैय्यालिंगाकोण (सहस्त्र लिंगों की घाटी), पर्वत पर स्थित दुर्गम मंदिर और दक्षिण काली मंदिर इनमें से प्रमुख हैं।
यहां का समीपस्थ हवाई अड्डा तिरुपति शहर में, तिरुपति विमानक्षेत्र है, जो यहाँ से बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ट्रेन द्वारा, चेन्नई-विजयवाड़ा रेलवे लाइन पर स्थित गुंटूर व चेन्नई से भी इस स्थान पर आसानी से पहुँचा जा सकता है। विजयवाड़ा से तिरुपति जाने वाली लगभग सभी रेलगाड़ियां कालहस्ती पर अवश्य रुकती हैं। आंध्र प्रदेश परिवहन की बस सेवा तिरुपति से बहुत ही कम अंतराल पर इस स्थान के लिए उपलब्ध है।
श्रीकालहस्ती मंदिर की उत्पति
धार्मिक मान्यता अनुसार इस स्थान का नाम तीन पशुओं – “श्री” यानी मकड़ी, “काल” यानी सर्प तथा “हस्ती” यानी हाथी के नाम पर किया गया है। ये तीनों ही यहां शिव की आराधना करके मुक्त हुए थे। जनुश्रुति के अनुसार मकड़ी ने शिवलिंग पर तपस्या करते हुए जाल बनाया था और सांप ने लिंग से लिपटकर आराधना की और हाथी ने शिवलिंग को जल से स्नान करवाया कर प्रसन्न किया था। यहाँ पर इन तीनों “श्री”,”काल” और “हस्ती” की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।
श्रीकालहस्ती का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार एक बार इस स्थान पर अर्जुन ने प्रभु कालहस्तीवर का दर्शन किया था। तत्पश्चात पर्वत के शीर्ष पर भारद्वाज मुनि के भी दर्शन किए थे। कहते हैं कणप्पा नामक एक भक्त ने यहाँ पर भगवान शिव की आराधना की थी और उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ था।
यह श्रीकालहस्ती मंदिर राहुकाल पूजा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
पंचभूत स्थान
जीवन और विभिन्न प्रजातियाँ, ग्रह-मंडलों और प्रकृति की पाँच अभिव्यक्तियों अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष के संयोजन से उत्पन्न हुई हैं।
रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी पुस्तक ‘पंचभूत’ में बताया है कि मानव मन की भावनात्मक क्षमता प्रकाश, रंग, ध्वनि, गति के प्रभाव, सूर्य, चंद्रमा और सितारों की सभी वस्तुओं के प्रति बेहद संवेदनशील होती है।
मानव शरीर और पृथ्वी की संरचना एक जैसी है – ¾ (75%) जल और ¼ (25%) अन्य तत्व।
यदि सटीक रूप से कहें तो, मानव शरीर 72% जल, 12% पृथ्वी, 6% वायु, 4% अग्नि और 6% आकाश/अंतरिक्ष से बना है।
प्राचीन एवं उन्नत भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद के अनुसार, पंचभूत के साथ शरीर का संतुलन त्रिदोषों जैसे, “कफ”, “पित्त”, वायु (गैस), धातु और मल (अपशिष्ट उत्पाद) के सिद्धांतों द्वारा ही नियंत्रित होता है।
प्रत्येक योगिक अभ्यास 5 (पंच) भूतों को शुद्ध करने के बारे में है – जो अंततः शुद्ध शरीर, मन और आत्मा की ओर ले जाता है।
पंचभूत मंदिर पांच शिव मंदिर हैं जो एक-एक भूत (तत्व) को समर्पित हैं।
पंचभूत स्थल, शिव को समर्पित पांच मंदिरों को पंचभूत के संबंध में संदर्भित करता है, जिसमें प्रत्येक मंदिर, प्रकृति के पांच प्रमुख तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है
पंच का अर्थ है “पांच”, भूत का अर्थ है “तत्व,” और स्थल का अर्थ है “स्थान” या मंदिर है। यह स्थान या मंदिर दक्षिण भारत के तमिलनाडु में चार स्थान पर और आंध्र प्रदेश में एक स्थान पर स्थित हैं । माना जाता है कि पाँच तत्व मंदिरों के पाँच लिंगों में समाहित हैं तथा प्रत्येक लिंग का नाम उस तत्व के आधार पर रखा गया है। आश्चर्यजनक है की यह सभी पाँच मंदिर 78°E और 79°E देशांतरों के आसपास और 10°N और 14°N अक्षांशों के बीच स्थित हैं।
सृष्टि में त्रिनेत्रधारी शिव के पांच मुख से ही पांच तत्वों जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। इसलिए भगवान शिव के ये पांच मुख पंचतत्व माने गए हैं।
वायुलिंगम की पूजा श्रीकालहस्ती मंदिर
श्रीकालहस्ती मंदिर दक्षिण के पंचतत्व लिंगों में से वायु तत्व का शिवलिंग है। इसलिए यहां भगवान शिव को वायु लिंगम के रूप में भी पूजा जाता है। यह कालहस्तीश्वर मंदिर राहु-केतु दोष निवारण के लिए भी प्रसिद्ध है।
खास बात यह है कि यह श्रीकालहस्ती मंदिर सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के समय भी खुला रहता है।
श्रीकालहस्ती मंदिर में वायु तत्व के लिए शिवलिंग या वायु लिंगम के रूप में श्रीकालहस्तीश्वर की पूजा की जाती है।
श्रीकालहस्ती मंदिर में महाशिवरात्रि
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था. इसलिए, हर साल इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। शिवभक्त के लिए इस दिन भगवान शिव की पूजा, व्रत और रात्रिजागरण करने का विधान होता है।
महाशिवरात्रि के अवसर पर श्रीकालहस्ती मंदिर में विशेष आयोजन किए जाते हैं। इस दिन यहाँ पर भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन यहाँ का दर्शन करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
कैसे पहुंचे श्रीकालहस्ती मंदिर?
श्रीकालहस्ती मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश की राजधानी विशाखापट्टनम से करीब 720 किमी है। इसके अलावा, तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से महज 116 किमी दूर स्थित है। यह तिरुपति से सिर्फ 41 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन तिरुपति है। तिरुपति से आप बस या टैक्सी के द्वारा श्रीकालहस्ती पहुँच सकते हैं।
इस मंदिर में सुबह 6 बजे से लेकर शाम 5 बजे के बीच में दर्शन कर सकते हैं। मंदिर में राहु केतु पूजा आदि विदेश पूजा के लिए अलग से चार्ज लगता है। महाशिवरात्रि के मौके यहां हजारों श्रद्धालु अपनी-अपनी मुरादें लेकर पहुंचते हैं। सर्दियों के समय में यहां का मौसम बहुत अनुकूल होता है।
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