36.9 C
New Delhi
Friday, July 4, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

श्री हनुमानजी के जन्मस्थान को लेकर तथ्य और मान्यताएं

रामभक्त श्री हनुमानजी के जन्मस्थान (Hanuman birth place) और उनकी जन्म तिथि को लेकर कई विचार और मान्यताएं है। लेकिन आखिर हनुमानजी का जन्म कहां हुआ था? और हनुमानजी के जन्म स्थानों को लेकर कर्नाटक, आंध्र, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के लोगों के विचारों में असमानता क्यों है?

पवनपुत्र श्री हनुमानजी को शिवजी काअवतार भी माना जाता है। नारायण के भक्त श्री हनुमानजी को सभी देव, और स्वयं त्रिदेवों ने ब्रह्मांड में सर्वशक्तिमान बनाया जिससे की वह संसार जगत में, चारों युगों में सभी के कष्ट को दूर कर सकें।

प्रभु श्री राम की महिमा से संबंध में एक चौपाई रामचरितमानस के बालकांड में दी गई है,

“हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता”

जिसका अर्थ है, “हरि (विष्णु) अनंत हैं और उनकी कथाएँ भी अनंत हैं, सभी संत अनेक प्रकार से उन्हें कहते और सुनते हैं।” यह चौपाई रामचरितमानस के बालकांड से ली गई है.

ठीक उसी प्रकार पवनपुत्र श्री हनुमानजी को उनके भक्त मोहवश अपना अपना बताते है, जानते है यहाँ रामभक्त श्री हनुमानजी के जन्मस्थान (Hanuman birth place) और उनकी जन्म तिथि को लेकर कुछ महत्वपूर्ण मान्यतायें.

तिरुपति तिरुमाला में वेंकटाचलम (आंजनेद्री) पर्वत

आंध्र प्रदेश के तिरुपति तिरुमाला में आंजनेद्री पर्वत पर स्थित हनुमान जन्म स्थान पर भव्य प्रतिमा स्थापित करने और मंदिर बनाने को लेकर शिलान्यास हो गया है। आंध्रप्रदेश की ‘तिरुपति तिरुमला देवस्थानम (TTD)’ बोर्ड ने दावा किया है कि भगवान हनुमान का जन्म आकाशगंगा जलप्रपात के नजदीक जपाली तीर्थम में हुआ था।

तिरुमाला ट्रस्ट का दावा है कि संभव है कि हनुमानजी तिरुमाला से हंपी अर्थात किष्किंधा गए हो। यह स्थान तिरुमाला से करीब 363 किलोमीटर दूर है। पंडित परिषद की रिपोर्ट के अनुसार वाल्मीकि रामायण के सुंदरकाण्ड के 35वें सर्ग के 81 से 83 श्लोक तक यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि माता अंजनी ने तिरुमाला की इस पवित्र पहाड़ी पर हनुमानजी को जन्म दिया था।

इसके अलावा महाभारत के वनपर्व के 147वें अध्याय में, वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के 66वें सर्ग, स्कंद पुराण के खंड एक श्लोक 38 में, शिव पुराण शत पुराण के 20वें अध्याय और ब्रह्मांड पुराण श्रीवेंकटाचल महामात्य तीर्थ काण्ड में भी इसका उल्लेख मिलता है।

कम्ब रामायण और अन्नमाचार्य संकीर्तन भी इसी स्थान का संकेत करते हैं।

वेंकटाचलम को अंजनाद्रि सहित 19 नामों से जाना जाता है और त्रेतायुग में अंजनाद्रि में हनुमान का जन्म हुआ था। वेंकटाचल माहात्म्य और स्कन्द पुराण में बताया गया है कि अंजना देवी ने मतंग ऋषि के पास जाकर पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताने के लिए निवेदन किया था। उन्हीं के निवेदन पर माता अंजनी वेकटाचल पर्वत पर तपस्या करने चली गई और कई वर्षों के तप के बाद उन्हें हनुमाजी के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई।

परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर शर्मा का कहना है कि वेंकटगिरी से ही हनुमान ने सूर्य की तरफ छलाँग लगाई थी और जब इंद्र ने उन पर वज्र से प्रहार किया, वो नीचे गिर पड़े और अंजना देवी अपने पुत्र के लिए रोने लगीं। तभी सभी देवताओं ने मिलकर उन्हें वरदान और शक्ति प्रदान की और तभी से इस पर्वत का नाम अंजनाद्रि पर्वत हो गया।

टीटीडी के द्वारा राष्‍ट्रीय संस्कृत विश्‍व विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मुरलीधर शर्मा की अध्यक्षता में बनाई गई पंडित परिषद ने हनुमान जन्म स्थान के संबंध में एक शोधपत्र तैयार कर रिपोर्ट बनाई थी। जिसमें अनेक पौराणिक, भौगोलिक, साहित्यिक और वैज्ञानिक तथ्‍यों एवं सबुतों का हवाला देकर आंजदेद्री पहाड़ी को हनुमान जन्म स्थान सिद्ध किया गया।

हम्पी के पास तुंगभद्रा नदी के तट किष्किंधा में अंजनहल्ली

कर्नाटक में श्री हनुमद जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट इससे सहमत नहीं है। इस ट्रस्ट का दावा है कि वाल्मीकि रामायण निर्दिष्ट करती है कि हनुमान का जन्म किष्किंधा के अंजनहल्ली में हुआ था, जिसके बारे में माना जाता है कि यह हम्पी के पास तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित था। कर्नाटक का दावा है कि हंपी से 25 किलोमीटर दूर अनेगुंडी गांव ही प्राचीन किष्किंधा नगरी है।

कर्नाटक में ‘पंपासरोवर’ अथवा ‘पंपासर’ होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है।

तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर ‘शबरी गुफा’ कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध ‘मतंगवन’ था।

हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था।

मतंग नाम की आदिवासी जाति से हनुमानजी का गहरा संबंध रहा है। शबरी धाम से लगभग 7 किमी की दूरी पर पूर्णा नदी पर स्थित पंपा सरोवर है। यहीं मातंग ऋषि का आश्रम था।

नासिक में त्र्यंबकेश्वर के पास अंजनेरी पर्वत

महाराष्‍ट्र के नासिक में त्र्यंबकेश्वर से 7 किलोमीटर दूर अंजनेरी में हनुमानजी का जन्म स्थान होने का दावा किया जाता रहा था। यह गांव अंजनेरी पर्वत की तलहटी में स्थित है, जिसका नाम हनुमान की मां अंजना के नाम पर रखा गया है।

ब्रह्म पुराण के अध्याय 84 में अंजना की कहानी और हनुमान के जन्म का वर्णन है। गोदावरी नदी (या गौतमी जैसा कि पुराण में उल्लेख किया गया है) और इसके तट पर स्थित तीर्थ स्थलों की महानता का बखान करते हुए, पुराण पैशाच तीर्थ का वर्णन करता है। यह तीर्थ ब्रह्मगिरि पर्वत के पास नदी के दाहिने किनारे पर स्थित था। इसके पास में अंजना पर्वत था।

पौराणिक मान्यता अनुसार स्वर्ग की एक अप्सरा अंजना द्वारा इंद्र का मजाक उड़ाने के कारण इंद्र ने उसे पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया था। एक अन्य दूसरी अप्सरा अद्रिका को भी उसी समय इंद्र ने श्राप दिया था।

अंजना का जन्म बंदर के सिर के साथ हुआ और अद्रिका का जन्म बिल्ली के सिर के साथ हुआ था। दोनों अप्सराएं अंजना पर्वत पर रहती थीं और उनका विवाह वानरों के राजा केसरी से हुआ था। जब केसरी बाहर गए थे तब एक दिन, ऋषि अगस्त्य उस पर्वत पर आए थे। अंजना और अद्रिका दोनों ने ऋषि की बहुत सेवा की और उन्होंने उन्हें यशस्वी पुत्रों को जन्म देने का वरदान दिया। माता अंजना और अद्रिका की तपस्या से प्रसन्न हो अंजना ने वायु देव के वरदान से हनुमानजी  को और अद्रिका ने नृर्ति से अद्रि को जन्म दिया। उस पहाड़ी पर माता अंजनी को समर्पित एक मंदिर भी है।

इसके अलावा झारखंड के गुमला, हरियाणा के कैथल, गुजरात के डांग, राजस्थान के सुजानगढ़, छत्तीसगढ़ के बस्तर और उत्तराखंड के देहरादून में भी हनुमानजी के जन्म होने के दावे किए जाते हैं।

प्रभु श्रीराम के परम भक्त श्री हनुमानजी के संबंध में एक और रामचरित मानस की चौपाई की बात कर सकते हैं, गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि,

“जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”

अर्थात जिसकी जैसी भावना होती है उसी के अनुरूप प्रभु (श्रीराम) को वह उस रूप में देखता है या प्रभु उसी रूप में दिखते है।

अपने भक्तों के लिए रामभक्त श्री हनुमानजी सदैव, सभी स्थानों पर एक साथ उपलब्ध रहते है।

श्री हनुमानजी को सुख भी दो बातों से ही मिलता है एक प्रभु श्री राम की भक्ति या ‘राम’ नाम से और दूसरा जगत कल्याण करते हुए अपने भक्तों के कष्टों का निवारण करके।

 

अस्वीकरण (Disclaimer): यहाँ दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों पर आधारित है,जिनका हमारे द्वारा सत्यापन नहीं किया जाता है। किसी भी भ्रम की समस्या की स्थिति में योग्य विशेषज्ञ से परामर्श करें, और मार्ग-दर्शन प्राप्त करें। चिकित्सा संबंधी समाचार, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, व्रत-त्योहार, ज्योतिष, इतिहास, पुराण शास्त्र आदि विषयों पर मोंकटाइम्स.कॉम (MonkTimes – हिन्दी समाचार सेवा:) में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न स्रोतों से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि मोंकटाइम्स.कॉम नहीं करता है। किसी भी जानकारी को प्रयोग में लाने से पहले उस विषय से संबंधित विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

 

Popular Articles