30.7 C
New Delhi
Saturday, July 5, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का महात्म्य

सफला एकादशी पौषमास के कृष्णपक्ष में आती है। इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। यह एकादशी कल्याण करने वाली है एवं सफला एकादशी व्रत समस्त व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है।

सफला एकादशी: पद्मपुराणमें पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी (सफला एकादशी) के विषय में युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि, यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष प्राप्त नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। इसलिए एकादशी-व्रत अवश्य करना चाहिए। पौषमास के कृष्णपक्ष में सफला नाम की एकादशी (सफला एकादशी) होती है। इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी (सफला एकादशी) कल्याण करने वाली है। और सफला एकादशी व्रत समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है।

सफला एकादशी का व्रत (Saphala Ekadashi Vrat:) वर्ष 2024 में 26 दिसंबर, दिन गुरुवार को रखा जा रहा है।

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हिन्दू कैलंडर के प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशी (एकादशियाँ) होती हैं। जब अधिकमास या मलमास (आधिक माह) आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

सफला एकादशी की पूजा कैसे करें

सफला एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करके, माथे पर श्रीखंड चंदन अथवा गोपी चंदन लगाकर, कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें।

सफला एकादशी के दिन श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए ऋतु-फलों के द्वारा उनका पूजन करें।

धूप-दीप से ‘देव-देवेश्वर श्रीहरि’ की अर्चना करें।

सफला एकादशी के दिन दीप-दान करें।

सफला एकादशी की रात्रि में वैष्णवों के साथ नाम-संकीर्तन करते हुए रात्रि-जागरण करना चाहिए, एकादशी में रात्रि-जागरण करते हुए, नाम-संकीर्तन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने के फल के समान माना गया है।

सफला एकादशी के व्रत विधान के विषय में कहा गया है कि, दशमी की तिथि को शुद्ध और सात्विक आहार एक समय करना चाहिए एवं इस दिन आचरण भी सात्विक होना चाहिए।

संध्या काल में दीप दान के पश्चात शारीरिक क्षमता और स्वास्थ के अनुसार फलाहार, या उचित व्रत का आहार (स्वास्थ के अनुसार) ग्रहण कर सकते हैं।

द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के पश्चात निर्धन ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा दें एवं अन्य निर्धन एवं जरूरतमंदों को भी उचित दान-दक्षिणा देकर यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। इसके पश्चात भोजन करें

सफला एकादशी व्रत करने वाले को भोग विलास एवं काम की भावना को त्याग कर नारायण की छवि मन में बसाने हेतु प्रयत्न करना चाहिए

जो भक्त इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत रखते हैं व रात्रि में जागरण एवं भजन कीर्तन करते हैं उन्हें श्रेष्ठ यज्ञों के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

सामान्यतः व्रत में सिर्फ फलाहार, गौ का दूध ले सकता है, साबूदाना नहीं। चावल हर प्रकर का वरजीत है।, लेकिन यह सभी नियम स्वस्थ जातक, साधु, सन्यासी, और अनेक व्रत रखने वाले जातकों के लिए मान्य होते हैं, अस्वस्थ जातक या ग्रहस्त अपनी शारीरिक क्षमता और स्वास्थ के अनुसार डॉक्टर से उचित सलाह लेकर ही करें।

सफला एकादशी कथा

पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें सफला एकादशी के व्रत की कथा विस्तार से वर्णित है। इस एकादशी के प्रताप से ही पापाचारी लुम्भकभव-बन्धन से मुक्त हुआ।

सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को ऋतुफल निवेदित करने का विधान है । जो व्यक्ति भक्ति-भाव से एकादशी-व्रत करता है, वह निश्चय ही श्रीहरि का कृपापात्र बन जाता है। एकादशी के माहात्म्य को राजसूय यज्ञ के फल के समान माना गया है।

सफला एकादशी की कथा इस प्रकार है

युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा : स्वामिन् ! पौष मास के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है ? यह बताइये ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : हे राजेन्द्र ! बड़ी बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है । पौष मास के कृष्णपक्ष में ‘सफला’ नाम की एकादशी होती है । उस दिन विधिपूर्वक भगवान श्री नारायण जी की पूजा करनी चाहिए । जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है ।

राजन् ! सफला एकादशी को उचित एवं स्वच्छ स्थान पर श्री हरि के नाम मंत्रों का उच्चारण करके , दीप प्रज्वलित करें और नारियल, सुपारी, तथा ऋतु-फलों से श्रीहरि का पूजन करे तथा घृत का अग्नि में होम लगाएं। ‘सफला एकादशी’ को दीप दान करने का भी विधान होता है है । रात्रि में वैष्णवों के साथ नाम-संकीर्तन करते हुए रात्रि-जागरण करना चाहिए, एकादशी में रात्रि-जागरण करते हुए, नाम-संकीर्तन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने के फल के समान माना गया है।

हे नृपश्रेष्ठ ! अब ‘सफला एकादशी’ की शुभकारिणी कथा सुनो ।

चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी । राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे । उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था । आलसी, अकर्मण्ड, और वेश्यासक्त था । उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया । वह सदा दुराचार-परायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था । अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम ‘लुम्भक’ रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया ।

उसके बाद ‘लुम्भक’ गहन वन में चला गया । वहीं वन में रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया । किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा ।

उस दुष्ट का विश्राम स्थान एक पीपल का वृक्ष था जो बहुत वर्ष पुराना था और उस वन में वह पीपल का वृक्ष एक महान देवता माना जाता था । पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।

एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया ।

पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा । उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला । वह निष्प्राण सा हो रहा था ।

सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया ।

वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था ।

राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया ।

उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार ! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।

बहुत अच्छा, कहकर लुम्भक ने वह वरदान स्वीकार किया ।

इसके बाद लुम्भक का रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा ।

उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के शरण में चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता।

राजन् ! इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस मृत्यु लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है । संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत करते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है ।

महाराज! सफला एकादशी की महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है।

सफला एकादशी का व्रत अपने नामानुसार मनोनुकूल फल प्रदान करने वाला है। भगवान श्री कृष्ण इस व्रत की बड़ी महिमा बताते हैं। इस एकादशी के व्रत से व्यक्तित को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है (ब्रम्हवैवर्त पुराण, पद्म पुराण). यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है (ब्रम्हवैवर्त पुराण, पद्म पुराण)

अस्वीकरण (Disclaimer): यहाँ दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों पर आधारित है,जिनका हमारे द्वारा सत्यापन नहीं किया जाता है। है। किसी भी समस्या की स्थिति में योग्य विशेषज्ञ से मार्ग-दर्शन प्राप्त करें।अन्य जैसे चिकित्सा संबंधी समाचार, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, व्रत-त्योहार,ज्योतिष,इतिहास, पुराण आदि विषयों पर मोंकटाइम्स.कॉम में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न स्रोतों से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि मोंकटाइम्स.कॉम नहीं करता है। किसी भी जानकारी को प्रयोग में लाने से पहले उस विषय से संबंधित विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

Popular Articles