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Friday, July 4, 2025

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सीबीएसई: बोर्ड परीक्षा अब साल में 2 बार और एक इम्प्रूवमेंट भी

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने नौवीं और दसवीं कक्षा के लिए पाठ्यक्रम और परीक्षा को लेकर कुछ बड़े बदलावों की घोषणा की है. सबसे बड़ा बदलाव है दसवीं कक्षा के लिए साल में दो बार बोर्ड परीक्षा आयोजित करना है.

इसके अलावा सीबीएसई बोर्ड परीक्षा आयोजन की अवधि और कुछ विषयों में द्विस्तरीय पाठ्यक्रम के विकल्प देने जैसे मुद्दे शामिल हैं.

सीबीएसई का कहना है कि ये बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के दिशानिर्देशों के अनुरूप किए जा रहे हैं और इससे स्टूडेंट्स के प्रदर्शन में सुधार आएगा.

अब साल में दो बार बोर्ड परीक्षा

सीबीएसई ने नियमों का मसौदा जारी किया जिसके अनुसार, साल में दो बार 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी.

इसके अनुसार, स्टूडेंट एक या दोनों बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने का विकल्प चुन सकते हैं और अगर वे बाद वाली बोर्ड परीक्षा चुनते हैं तो वे उन विषयों को छोड़ सकते हैं जिनमें वे आगे नहीं पढ़ना चाहते हैं.

साथ ही दो बोर्ड परीक्षाओं में एक इम्प्रूवमेंट परीक्षा होगी.

बोर्ड परीक्षाओं की अवधि को मौजूदा 32 दिनों से कम करके 16 से 18 दिनों में कराने का भी प्रस्ताव है. पहले चरण की परीक्षा 17 फ़रवरी से छह मार्च के बीच और दूसरे चरण की परीक्षा 5 मई से 20 मई के बीच कराने का प्रस्ताव है.

इसका मतलब है कि स्टूडेंट्स को दो परीक्षाओं के बीच एक या दो दिन का गैप मिलेगा. मौजूदा समय में यह गैप पांच से 10 दिनों तक का होता है.

पहले चरण के नतीजे 20 अप्रैल तक और दूसरे चरण के नतीजे 30 जून तक आएंगे.

इन नियमों पर सभी पक्षों से राय मांगी गई है जिनमें स्कूल, अध्यापक, अभिभावक, छात्र और आम लोग अपने विचार 9 मार्च तक दे सकते हैं.

मसौदे में प्रस्ताव किया गया है कि इस योजना को अगले साल से लागू किया जा सकता है.

पाठ्यक्रम में बदलाव

एक अन्य बदलाव में 9वीं और 10वीं कक्षा में साइंस और सोशल साइंस में दो विकल्प वाले पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए गवर्निंग बॉडी की ओर से हरी झंडी मिल गई है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीबीएसई छात्रों को इन दो विषयों में स्टैंडर्ड और एडवांस्ड दो विकल्प दिए जाएंगे.

अगले साल इसे कक्षा 9 के लिए और 2028 से कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षाओं में लागू किया जाएगा.

विद्यार्थियों के प्रदर्शन में सुधार के लिए विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के विषयों में दो विकल्प देने की तैयारी है और तर्क है कि इससे छात्रों को आगे की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी में आसानी होगी.

एनईपी 2020 में सुझाव दिया गया है कि गणित के साथ साथ सभी विषयों को दो स्तर पर लागू किया जा सकता है, जिसमें कुछ छात्रों को स्टैंडर्ड लेवल और कुछ को एडवांस्ड लेवल का विषय चुनने का विकल्प होगा.

विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में दो स्तर के पाठ्यक्रम को 9वीं कक्षा में अगले साल से लागू करना है उसके लिए एनसीईआरटी को किताबें तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक ख़बर के मुताबिक़ सीबीएसई चेयरमैन राहुल सिंह ने कहा, “कक्षा 10 में इन दोनों विषयों के एडवांस्ड लेवल में अतिरिक्त सामग्री जोड़ी जाएगी. एग्ज़ाम में एडवांस्ड लेवल के लिए अतिरिक्त प्रश्न पत्र जोड़े जा सकते हैं या उनके अलग अलग प्रश्न पत्र भी बनाए जा सकते हैं.”

नेशनल करिकुलम फ़्रेमवर्क फॉर स्कूल एजुकेशन 2023 के अनुसार, सभी कक्षाओं के लिए नई पुस्तकें तैयार करने की ज़िम्मेदारी एनसीईआरटी को दी गई थी और उसने 2023 में कक्षा एक और दो के लिए और 2024 में कक्षा तीन और छह के लिए नई पुस्तकें जारी की थीं.

इस साल कक्षा चार, पांच, सात और आठ की नई किताबें आने वाली हैं.

सीबीएसई चेयरमैन राहुल सिंह के अनुसार, अगले सत्र यानी 2026-2027 से कक्षा 9 की किताबें आएंगी.

बदलाव से बोर्ड परीक्षा आसान

साल में दो बार बोर्ड परीक्षाएं आयोजित किए जाने के जारी मसौदे में कहा गया है कि बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाया जाएगा जिससे छात्रों की मूल क्षमता का पता लग सके, न कि महीनों की कोचिंग और रटने की ज़रूरत पड़े.

मसौदे के अनुसार साथ ही इसका मक़सद है कि स्कूल की कक्षाओं में नियमित शामिल होने वाला कोई भी स्टूडेंट बिना अतिरिक्त कोशिशों के इन परीक्षाओं को पास कर सके.

साथ ही इसमें कहा गया है, “बोर्ड परीक्षाओं के ख़ौफ़ को ख़त्म करने के लिए छात्रों को साल में दो बार एक्ज़ाम देने का विकल्प दिया जाएगा, एक मुख्य परीक्षा होगी और दूसरी ज़रूरत के अनुसार इंप्रूवमेंट.”

गणित के बाद विज्ञान विषयों में दो स्तरीय विकल्प देने के पीछे भी बोर्ड का तर्क है कि इससे छात्रों को अपने पसंदीदा विषय का चुनाव करने में आसानी होगी.

शिक्षा जगत से जुड़े जानकारों का कहना है कि दो विकल्पों से उन छात्रों को आसानी होगी जो आगे चलकर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) में शामिल होना चाहते हैं.

बोर्ड का मानना है कि मौजूदा पाठ्यक्रम उन छात्रों के लिए आधुनिक नहीं माना जाता जो प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, इसलिए उन्हें कोचिंग क्लास का सहारा लेना पड़ता है.

हालांकि एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर जेएस राजपूत ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “हालांकि इस उपाय से थोड़ा बहुत फ़ायदा हो सकता है लेकिन छात्रों पर कोचिंग का बोझ कम करने के लिए कई बुनियादी बदलाव लाने होंगे.”

2019-2020 से सिर्फ़ गणित ही एकमात्र विषय रहा है जिसमें सीबीएसई ने 10वीं के लिए दो स्तर के पाठ्यक्रम लागू किए- स्टैंडर्ड मैथमेटिक्स और बेसिक मैथमेटिक्स. हालांकि इन दोनों स्तरों में पाठ्यक्रम एक जैसा है लेकिन बोर्ड एग्ज़ाम में प्रश्नपत्रों की जटिलता में अंतर है.

दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन की पदाधिकारी अपराजिता गौतम ने बीबीसी से कहा, “यह प्रयोग गणित में किया गया और उसका बच्चों को फ़ायदा हुआ है. जिन्हें आगे चलकर गणित नहीं चुनना है या जिनकी पसंद कोई और विषय है उन्हें एडवांस्ड स्तर का पाठ्यक्रम नहीं पढ़ना पड़ता.”

वो कहती हैं, “इसी तरह जिन बच्चों को गणित में आगे जाना है और प्रवेश परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनी है उनके लिए दसवीं से ही एक विकल्प मौजूद होगा और उन्हें अपनी तैयारी में आसानी होगी.”

पाठ्यक्रम बहुत अधिक

एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर जेएस राजपूत ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि यह बहुत पहले से चर्चा होती थी कि पाठ्यक्रम को सरल बनाया जाए क्योंकि इसकी वजह से बहुत सारे बच्चे ड्रॉप आउट हो जाते हैं.

उनके अनुसार, बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने के लिए एक यशपाल कमेटी बनी थी. इसमें सुझाव दिया गया था कि भूगोल, इतिहास, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र का पाठ्यक्रम बहुत अधिक है.

जेएस राजपूत बताते हैं, “अपने कार्यकाल में हमने छह, सात और आठवीं कक्षा के लिए इन चार विषयों को एकीकृत किया था और इसे नौवीं और दसवीं के लिए भी किया जाना था, लेकिन उस समय नहीं हो पाया.”

उनके अनुसार, पाठ्यक्रम में नए बदलावों को संभवतः बच्चों की रुचि को ध्यान में रखकर किया जा रहा है, जिसे बहुत पहले हो जाना चाहिए था.

वो कहते हैं, “हमारी शिक्षा में सबसे बड़ी समस्या ये रही कि ज़बरदस्ती सबकुछ पढ़ना ही है, लेकिन ये देखा जाना चाहिए कि बच्चे की रुचि किधर जा रही है.”

जानकारों के अनुसार मोदी सरकार द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति और उसके चलते होते पाठ्यक्रम में होने सुधार से आत्मनिर्भर भारत का निर्माण संभव हो सकेगा।, आलोचकों को जबाब देते हुए वह कहते हैं कि, सैकड़ों वर्षों से शिक्षा नीति पर ध्यान नहीं दिए जाने से समाज में दिशा हीनता बढ़ गई है, तथ्य आधारित सोच का अभाव है और शायद इस नई शिक्षा नीति से जो समाज के सभी वर्गों के विकास पर आधारित होने के कारण, अगले कुछ वर्षों में बदलाव की लहर दिखाई पड़े।

सीबीएसई नई शिक्षा नीति के तहत जल्दी से जल्दी पाठ्यक्रमों में भी बदलाव के लिए प्रयासरत है जो अगले कुछ वर्षों में पूरा होने की उम्मीद है।

 

 

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