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Saturday, July 5, 2025

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स्पैडेक्स मिशन के साथ इसरो ने रचा इतिहास, क्यों है ये ख़ास?

स्पैडेक्स मिशन 30 दिसंबर को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच हुआ.

स्पैडेक्स का अर्थ है स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट है स्पैडेक्स मिशन का मकसद अंतरिक्ष यानों को ‘डॉक’ और ‘अनडॉक’ करने के लिए आवश्यक तकनीक को विकसित करना और प्रदर्शित करना है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के मुताबिक, इसे रॉकेट पीएसएलवी-सी60 के ज़रिए लॉन्च किया किया.

स्पैडेक्स मिशन है क्या?

स्पैडेक्स मिशन में दो छोटे उपग्रह शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 220 किलोग्राम है, जिन्हें एक दूसरे के पास पहुंचने, डॉक करने और अनडॉक करने के लिए जटिल अभ्यास करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

ये पृथ्वी से 470 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगाएंगे. इनमें एक चेजर (एसडीएक्स01) और दूसरा टारगेट (एसडीएक्स02) नाम का उपग्रह है.

इसके अतिरिक्त, स्पैडेक्स डॉक किए गए अंतरिक्ष यान के बीच विद्युत शक्ति के हस्तांतरण का परीक्षण करेगा, जो इसकी व्यावहारिक उपयोगिता को प्रदर्शित करेगा।

स्पैडेक्स मिशन या स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक जुड़वां उपग्रह मिशन है, जिसका उद्देश्य कक्षीय मिलन, डॉकिंग, फॉर्मेशन फ़्लाइंग से संबंधित तकनीकों को विकसित करना है, जिसमें मानव अंतरिक्ष उड़ान, अंतरिक्ष में उपग्रह सर्विसिंग और अन्य संचालन में अनुप्रयोगों की गुंजाइश है।

स्पैडेक्स में दो संशोधित IMS-1 श्रेणी (220 किग्रा) उपग्रह शामिल हैं, जिनमें से एक चेज़र और दूसरा टारगेट है और दोनों को सह-यात्री या सहायक पेलोड के रूप में लॉन्च किया गया था। दोनों उपग्रहों को थोड़ी अलग कक्षाओं में इंजेक्ट किया गया था।

स्पैडेक्स मिशन को 30 दिसंबर 2024 को 16:30 UTC पर पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल PSLV-CA C60, (Polar Satellite Launch Vehicle) द्वारा सतीश धवन स्पेस सेंटर (Satish Dhawan Space Centre) फर्स्ट लॉन्च पैड से लॉन्च किया गया था।

21 दिसंबर को लॉन्च व्हीकल को लॉन्च पैड पर ले जाया गया था. इसरो ने इससे जुड़ा एक वीडियो एक्स पर शेयर किया था. जानिए इस मिशन से जुड़ीं ख़ास बातें.

स्पैडेक्स मिशन ख़ास क्यों है?

स्पैडेक्स मिशन एक किफ़ायती तकनीक का प्रदर्शन करने वाला मिशन है.

यह तकनीक भारत की अंतरिक्ष से जुड़ी महत्वकांक्षाओं के लिए आवश्यक है. इनमें भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन के अलावा चंद्रमा पर भारतीय एस्ट्रोनॉट के भेजने जैसी योजनाएं शामिल हैं.

‘इन-स्पेस डॉकिंग’ टेक्नोलॉजी की आवश्यकता उस वक़्त होती है, जब एक कॉमन मिशन को अंजाम देने के लिए कई रॉकेट लॉन्च करने की ज़रूरत होती है.

जैसे स्पैडेक्स मिशन के तहत अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले दो उपग्रहों में एक चेज़र (एसडीएक्स01) और दूसरा टारगेट (एसडीएक्स02) होगा. ये दोनों तेज़ गति से पृथ्वी का चक्कर लगाएंगे.

ये दोनों समान गति के साथ एक ही कक्षा में स्थापित होंगे. इसे ‘फ़ार रांदेवू’ भी कहा जाता है.

स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी में भारत दुनिया का चौथा देश

स्पैडेक्स मिशन की सफलता के बाद भारत दुनिया में ऐसा चौथा देश बन गया है, जिसके पास स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी है.

अंतरिक्ष में डॉकिंग एक जटिल काम है.

फ़िलहाल, अंतरिक्ष डॉकिंग टेक्नोलॉजी के मामले में अमेरिका, रूस और चीन को ही सक्षम माना जाता है.

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा था कि यह मिशन अंतरिक्ष डॉकिंग में महारत हासिल कर भारत का नाम ख़ास देशों की फ़ेहरिस्त में आ जाएगा

उन्होंने कहा कि डॉकिंग तकनीक “चंद्रयान-4” जैसे दीर्घकालिक मिशनों और भविष्य में बनने वाले भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए महत्वपूर्ण है.

जितेंद्र सिंह ने इसे “गगनयान” मिशन के लिए भी महत्वपूर्ण बताया था.

स्पैडेक्स मिशन का उदेश्य क्या है?

इस मिशन का एक मकसद डॉक किए गए अंतरिक्ष यान के बीच पॉवर के हस्तांतरण का प्रदर्शन करना है, जो भविष्य में स्पेस रोबोटिक्स जैसे प्रयोगों में अहम साबित हो सकता है.

इसके अलावा अंतरिक्ष यान का पूरा नियंत्रण और अनडॉकिंग के बाद पेलोड का संचालन जैसी बातें भी इस मिशन के उद्देश्य का हिस्सा हैं.

स्पैडेक्स प्रयोगों के लिए पीएसएलवी के चौथे चरण यानी पीओईएम-4 (पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरीमेंटल मॉड्यूल) का भी इस्तेमाल करेगा.

स्पैडेक्स मिशन के तहत अनडॉकिंग के बाद पेलोड का संचालन भी एक मकसद है.

यह चरण शैक्षणिक संस्थानों और स्टार्टअप्स के 24 पेलोड को ले जाने का काम करेगा.

स्पैडेक्स मिशन के तहत इसरो 28,800 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चक्कर लगा रहे दो उपग्रहों को डॉक करने की कोशिश करेगा. यह एक चुनौतीपूर्ण काम होगा, जिसमें सावधानी ज़रूरी होगी.

चंद्रयान-4 मिशन क्या है?

चंद्रयान-4 मिशन दो रॉकेट, एलएमवी-3 और पीएसएलवी के ज़रिए अलग-अलग उपकरणों के दो सेट चंद्रमा पर लॉन्च करेगा.

इस मिशन में अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर उतरेगा, आवश्यक मिट्टी और चट्टानों के नमूने एकत्र करेगा, उन्हें एक बॉक्स में रखेगा और फिर चंद्रमा से उड़ान भरकर पृथ्वी पर वापस आएगा.

इनमें से प्रत्येक गतिविधि को पूरा करने के लिए अलग-अलग उपकरण डिज़ाइन किए गए हैं. सफल होने पर यह परियोजना भारत को अंतरिक्ष शोध के क्षेत्र में बहुत आगे ले जाएगी.

केंद्र सरकार ने इस योजना को मंज़ूरी दे दी है और इसके लिए 2104 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है.

इसे 2040 तक भारत की ओर से चंद्रमा पर मानव को उतारने के लक्ष्य की दिशा में अगले क़दम के रूप में देखा जा रहा है.

इस बारे में भारत सरकार के विज्ञान प्रसार संगठन के वरिष्ठ वैज्ञानिक टी.वी. वेंकटेश्वरन ने पिछले चंद्रयान अभियानों का हवाला देते हुए मीडिया से बातचीत की थी और उन्होंने इस दौरान कहा था, “अब हम विस्तृत अध्ययन के अगले चरण के लिए चंद्रमा की मिट्टी और चट्टान के नमूने एकत्र करेंगे.”

टीवी वेंकटेश्वरन का कहना था कि चंद्रमा की सतह के नमूने एकत्र करना भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

उन्होंने बताया, “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साल 1967 से लागू चंद्रमा संधि के अनुसार, कोई भी एक देश चंद्रमा के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है. उस संधि के मुताबिक चंद्रमा से लाए गए नमूनों को उन देशों के बीच साझा किया जाना चाहिए जो नमूनों का विश्लेषण करने में सक्षम हैं.”

 

 

 

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