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Monday, December 23, 2024

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Pakistan: इस्लामाबाद की लाल मस्जिद और सेना का सशस्त्र ऑपरेशन

 

Pakistan: इस्लामाबाद की लाल मस्जिद की स्थापना 1965 में मुहम्मद अब्दुल्ला गाजी ने की थी और इसका नाम मस्जिद की दीवारों और अंदरूनी हिस्सों के लाल रंग से लिया गया है।

सोवियत-अफ़गान युद्ध के दौरान, अब्दुल्ला ने इस्लामी चरमपंथ की शिक्षा दी और जिहाद का प्रचार किया।

इसकी स्थापना के बाद से ही लाल मस्जिद में पाकिस्तानी सेना और सरकार के नेता अक्सर आते रहे हैं।

सेना प्रमुख मुहम्मद जिया-उल-हक, जो बाद में 1977 में तख्तापलट में सत्ता हथियाने के बाद राष्ट्रपति बने, अब्दुल्ला के करीबी सहयोगी थे।

अफ़ग़ानिस्तान से सोवियत रूस की वापसी के बाद, मस्जिद में ट्रेनिंग ले रहे चरमपंथिओं का रूख अपने की वतन में जिहाद शुरू करने का होने लगा, और धीरे-धीरे लाल मस्जिद का अपना कानून, मस्जिद के बहार भी लागू करने का मस्जिद की तरफ से दबाब बढ़ने लगा.

पाकिस्तानी सरकार का मस्जिद के क्रिया-कलापों से नियंत्रण उठने लगा.

इसी दौर में, सन 1998 में लाल मस्जिद के संथापक प्रमुख मौलाना अब्दुल्लाह की गोली मार कर हत्या कर दी गई.
उनके बाद मस्जिद का नियंत्रण उनके बेटों के हाँथ में आ गया.

लाल मस्जिद साल 1965 में तैयार हुई थी. कुछ लोगों का मानना है कि इसका नाम लाल मस्जिद इसलिए रखा गया क्योंकि इसकी दीवारें लाल रंग से रंगी हुई हैं लेकिन कुछ दूसरे लोगों का मानना है कि इसका नाम सम्मानित सिंधी सूफ़ी संत लाल शहबाज़ क़लंदर के नाम पर रखा गया था.

वैसे तो शुरुआत से ही ये मस्जिद कट्टरपंथी धार्मिक विचारक जामिया बिनोरिया के कार्यकलापों का केंद्र रही थी,
इसको पाकिस्तान की ‘जिहाद फ़ैक्ट्री’ का भी नाम दिया गया क्योंकि कई कट्टरपंथी आतंकवादी, जैसे जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक मसूद अज़हर और पाकिस्तान तालिबान के कमांडर अब्दुल्लाह महसूद यहीं से निकले थे.

लाल मस्जिद के प्रमुख मौलाना अब्दुल्लाह की हत्या के बाद, उनके दोनों बेटे मौलाना अब्दुल अज़ीज़ और अब्दुल रशीद गाज़ी ने कमान संभाल ली.

मौलाना अब्दुल्लाह के बेटे, मौलाना राशिद गाज़ी ने इमाम बनने की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी लेकिन अपने कई गुणों की वजह से लाल मस्जिद के सार्वजनिक चेहरा बन गए.

राशिद गाज़ी जन्म से ही विद्रोही या कुछ अलग करने की सोच वाली मानसिकता के थे, उन्होंने इस्लामाबाद के क़ायदे आज़म विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स की डिग्री ली थी। बाद में वो यूनेस्को में सहायक निदेशक हो गए.

जब 1998 में मौलाना अब्दुल्लाह की हत्या कर दी गई तब राशिद गाज़ी का जीवन एक तरह से बदल सा गया. राशिद एकदम से धार्मिक हो गए और लाल मस्जिद के प्रशासन में अपने भाई मौलाना अब्दुल अज़ीज़ का हाथ बँटाने लगे.

उन्होंने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली और पाँचों वक्त की नमाज़ पढ़ने लगे. हालांकि उन्होंने इमाम बनने की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी लेकिन उनके विश्लेषणात्मक कौशल, मृदुभाषी शख़्सियत और अंग्रेज़ी बोलने की क्षमता ने उन्हें लाल मस्जिद का सार्वजनिक चेहरा बना दिया.

20 मार्च, 2007 में ‘गार्डियन’ में ‘द बिज़नेस इज़ जेहाद’ शीर्षक से प्रकाशित अपने लेख में डिलन वेल्श ने लिखा, ‘राशिद ने दावा किया कि वो अपने पिता के साथ कंधार में ओसामा बिन लादेन से मिले थे. बैठक के बाद उन्होंने उस गिलास से उठाकर पानी पी लिया, जिससे लादेन पानी पी रहे थे.

लादेन ने मुस्कराते हुए उसने पूछा कि उन्होंने ये हरकत क्यों की?

गाज़ी का जवाब था- मैंने आपके गिलास से पानी इसलिए पिया ताकि अल्लाह मुझे आप जैसा बहादुर बना दे.’

अमेरिका पर 11 सितंबर के हमले के बाद जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने अमेरिका को समर्थन देने का फ़ैसला किया तो लाल मस्जिद ने इसका घोर विरोध किया.

मार्च, 2004 में लाल मस्जिद ने एक फ़तवा जारी किया, जिसमें कहा गया कि मुसलमान, अल क़ायदा के ख़िलाफ़ लड़ाई में मरने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को इस्लामी तरीक़े से दफ़न करने से इनकार कर दें.

और इस तरह धीरे-धीरे लाल मस्जिद और पाकिस्तानी सरकार आमने-सामने आने लगे.

पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसियों को ये भी सूचना मिली कि क़बायली इलाक़ों में पाकिस्तानी सेना से लड़ने जाने से पहले लाल मस्जिद को चरमपंथी ट्रांजिट पॉइंट की तरह इस्तेमाल कर रहे थे.

जून, 2007 में लाल मस्जिद में पढ़ने वाले छात्रों के एक समूह ने इस्लामाबाद में एक चीनी मसाज पार्लर और एक्यूपंक्चर सेंटर पर धावा बोल दिया, इस हमले में बुर्का पहने 10 लड़कियां भी थीं.

उन्होंने तीन सुरक्षाकर्मियों को काबू करते हुए सात चीनी कर्मचारियों और उनके ग्राहकों को अपने साथ जामिया हफ़ज़ा मदरसा चलने के लिए मजबूर कर दिया.

इसके बाद लाल मस्जिद के प्रवक्ता ने एक संवाददाता सम्मेलन कर कहा, ‘इस मसाज सेंटर को वेश्यालय की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था. उन्होंने कहा हमारी चेतावनी के बावजूद जब प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की तो हमें ये कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा.’

एंड्रू स्माल अपनी किताब ‘द चाइना-पाकिस्तान एक्सिस, एशियाज़ न्यू जिओ प़लिटिक्स’ में लिखते हैं, चीनियों का अपहरण एक तरह से सामरिक लक्ष्मण रेखा को पार करना था, और इस कृत्य पर बीजिंग का ग़ुस्सा स्वाभाविक था.

चीन में सवाल उठाए गए कि वो कैसे पाकिस्तान अपनी राजधानी में सात चीनी नागरिकों का अपहरण होने दे सकता है?

पाकिस्तान में अधिकतर लोगों को अंदाज़ा नहीं था कि राष्ट्रपति हू जिंताओ पाकिस्तान में चीनी राजनयिकों से इस मुद्दे पर लगातार ब्रीफ़िंग ले रहे थे.

इस्लामाबाद में पाकिस्तान, चीन और लाल मस्जिद के प्रमुख गाज़ी के बीच कई दौर की बातचीत हुई, सबसे खास बात यह थी की चीनी प्रतिनिधि ने प्रत्यक्ष रूप से सीधे लाल मस्जिद के प्रमुख से बात की, और चीन तथा लाल मस्जिद के बीच के इन संबंधों की जानकारी पाकिस्तान सरकार को बाद में मिली।

कुछ मीडिया हलकों में चीन और पाकिस्तानी तालिबान की आंतरिक दोस्ती की भी चर्चा पर भी बहस हुई.

बातचीत में गाज़ी को ये आश्वासन दिया गया कि इस तरह के मसाज पार्लर्स पर रोक लगा दी जाएगी, तब जाकर चीनी बंधकों को छोड़ा गया.

लेकिन गाज़ी ये कहने से नहीं चूके कि हमने पाकिस्तान-चीन की दोस्ती को देखते हुए ये क़दम उठाया. चीनी महिलाओं को बुर्क़ा पहना कर मदरसे से बाहर निकाला गया.

चीनी अख़बार ‘शंघाई डेली’ ने लिखा, ‘27 जून को हुई चीनी सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री और पाकिस्तानी गृह मंत्री की मुलाक़ात के कुछ दिनों के अंदर ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेना प्रमुख मुशर्रफ़ ने लाल मस्जिद से चरमपंथियों को बाहर निकालने के लिए ‘ऑपरेशन साइलेंस’ का हुक्म दे दिया, बाद में इसका नाम बदल कर ‘ऑपरेशन सनराइज़’ कर दिया गया.’

बाद में मुशर्रफ़ ने सफाई दी, ”मुझे लाल मस्जिद पर हमला करने का आदेश इसलिए देना पड़ा क्योंकि मैं निजी तौर पर शर्मसार हुआ था और मुझे चीनियों से माफ़ी माँगनी पड़ी थी.’’

लाल मस्जिद में हिंसा की शुरुआत तब हुई, जब इस्लामाबाद की लाल मस्जिद में पढ़ रहे छात्रों ने पास के एक दफ़्तर पर तीन जुलाई 2007 को हमला कर दिया और उस दौरान उनकी वहाँ तैनात पुलिसवालों से झड़प भी हुई.

पुलिस ने छात्रों को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़े, लाल मस्जिद से छात्रों ने इसका जवाब ऑटोमैटिक हथियारों से गोलीबारी करके दिया. इसमें एक गोली लांस नायक मुबारिक हुसैन को लगी और उनकी मौत हो गई.

इसके बाद सुरक्षा बलों ने लाल मस्जिद को चारों ओर से घेर लिया, जब पाकिस्तान सरकार ने सभी डॉक्टरों को अस्पतालों में उपस्थित रहने के लिए कहा और हवाई अड्डों को अलर्ट रहने के आदेश मिले तभी लगने लगा कि सुरक्षा बल लाल मस्जिद के अंदर घुसने की तैयारी कर रहे हैं.

पूरे इलाक़े मे कर्फ़्यू लगा दिया गया और सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि लोगों की भलाई के लिए ऐसा किया जा रहा है.

लाल मस्जिद प्रमुख अब्दुल अज़ीज़ की पत्नी उम्मे हसन ने धमकी दी कि अगर सरकार ने ताक़त का इस्तेमाल किया तो हम आत्मघाती बमों का इस्तेमाल करेंगे, इस बीच लोगों की सहानुभूति चरमपंथियों के साथ होने लगी थी.

एडम डोलनिक और ख़ुर्रम इक़बाल अपनी किताब ‘नेगोशिएटिंग द सीज ऑफ़ द लाल मस्जिद’ में लिखते हैं कि हताहतों की संख्या कम करने के लिए सरकार ने वादा किया कि जो लोग मस्जिद से बिना हथियार के बाहर आएंगे, उन्हें माफ़ी के साथ-साथ पाँच हज़ार रुपए नक़द भी दिए जाएंगे.

यही नहीं, उनका बेहतर स्कूल में दाख़िला कराने का वादा भी किया गया, इसके लिए साढ़े ग्यारह बजे की समय सीमा निर्धारित की गई, जिसे लाउड स्पीकर पर एलान कर कई बार बढ़ाया गया ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग सरेंडर कर सकें.
शाम होते होते करीब 1100 छात्र मस्जिद के बाहर आ चुके थे.

सरेंडर करने वालों में बुर्का पहने 200 लड़कियाँ भी थीं.

चरमपंथियों पर दबाव बढ़ाने के लिए थोड़ी-थोड़ी देर पर मस्जिद के ऊपर से हेलिकॉप्टर उड़ान भर रहे थे, रात को मस्जिद की बिजली भी काट दी गई. सुरक्षा बलों ने चरमपंथियों को बाहर निकालने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़े जिसका जवाब चरमपंथियों ने गोलियाँ चला कर दिया.

जैसे ही शाम घिरी गाज़ी बंधुओं ने कुछ लचीलापन दिखाना शुरू किया. राशिद गाज़ी ने कहलवाया कि वो सेना के सामने नहीं बल्कि धार्मिक उलेमाओं के सामने आत्मसमर्पण करेंगे.

उन्होंने ये भी माँग की कि उन्हें सुरक्षित राजनपुर ज़िले में उनके गाँव जाने दिया जाए, लेकिन सरकार ने साफ़ किया कि सरकार को अपनी ही राजधानी में चुनौती देने के लिए गाज़ी भाइयों को क़ानून का सामना करना पड़ेगा.

यही नहीं ये भी साफ़ किया गया कि उन्हें माफ़ी नहीं दी जाएगी और उन पर आतंकवाद, सुरक्षा बल के एक जवान की हत्या और चीनी नागरिकों के अपहरण के लिए मुक़दमा चलाया जाएगा.

तीसरे दिन तड़के मौलाना अब्दुल अज़ीज़ को परदानशीं महिला के रूप में मस्जिद से भागते हुए पकड़ लिया गया.

डॉन अख़बार नें अपने पाँच जुलाई, 2007 के अंक में ‘चीफ़ क्लेरिक हेल्ड’ शीर्षक से छपी ख़बर में लिखा, ‘अब्दुल अज़ीज़ को तब पकड़ा गया, जब एक महिला कॉन्स्टेबल को उन पर शक हो गया. बुर्क़ा पहने अब्दुल अज़ीज़ के साथ चल रही लड़कियों ने कॉन्स्टेबल से कहा, ‘इनकी तलाशी मत लीजिए. ये हमारी चाची हैं.’

तथाकथित चाची से बुर्क़ा उठाने के लिए कहा गया, जब नकाब हटाया गया तो वो लाल मस्जिद के प्रमुख मौलाना अज़ीज़ निकले, बाद में एक पुलिस अधिकारी ने पत्रकारों को बताया कि संभवत: अज़ीज़ अपने क़द और मोटापे की वजह से पकड़ में आ गए.’

किसी धार्मिक चरमपंथी के लिए जो हिंसात्मक प्रतिरोध में विश्वास रखता हो और जो इस्लामी राज्य की मुहिम में शहीद होने की वकालत करता हो, इस तरह बुर्क़ा पहनकर संघर्ष से भागने की कोशिश करना बहुत अपमानजनक था.

गिरफ़्तार किए जाने के बाद मौलाना को पाकिस्तान टीवी के मुख्यालय ले जाया गया. वहाँ उनका सामना धार्मिक मामलों के मंत्री एजाज़ उल हक़ से हुआ.

मौलाना ने हक़ से उन्हें छोड़ने की अपील की. एजाज़ उल हक़ ने कहा कि अगर वो अपने भाई और दूसरे लोगों का आत्मसमर्पण करवा देते हैं तो उन्हें छोड़ने के बारे में सोचा जा सकता है.

एडम डौलनिक और ख़ुर्रम इकबाल लिखते हैं, ‘’टीवी पर चले लाइव इंटरव्यू में मौलाना अज़ीज़ को बुर्क़ा पहने दिखाया गया, फिर उनसे टीवी कैमरे के सामने बुर्क़ा उतारने के लिए कहा गया. जब उनसे पूछा गया कि आपने मस्जिद से बच निकलने का इतना शर्मनाक रास्ता क्यों चुना तो उनका जवाब था कि इस्लाम में इसकी अनुमति है और ऐसा करने की उन्हें कोई शर्म नहीं है.’’

टीवी पर मौलाना की इस तरह हँसी उड़ाए जाने को देखकर मस्जिद के अंदर रह रहे चरमपंथियों ने बाहर न आने का फ़ैसला किया. उन्हें डर था कि उनके साथ भी ऐसा ही सलूक होगा.

इस बीच सुरक्षा बलों ने नियंत्रित विस्फोट कर लाल मस्जिद की बाहरी दीवारों में छेद करने शुरू कर दिए. जब आधी रात को कुछ चरमपंथियों ने दीवार फलाँग कर भागने की कोशिश की तो उन्हें पकड़ लिया गया.

अंदर से सुरक्षा बलों पर तेज़ फ़ायरिंग की गई, जिसका जवाब सुरक्षा बलों ने उतनी ही तेज़ी से दिया.

चरमपंथियों ने रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड फेंका और सैनिक हैलिकॉप्टर पर नीचे से फ़ायरिंग की. चौथे दिन चरमपंथियों ने सुबह सवा दस बजे राष्ट्रपति मुशर्रफ़ की हत्या का प्रयास किया.

डेली टाइम्स ने सात जुलाई, 2007 के अपने अंक में लिखा, ‘जैसे ही मुशर्ऱफ़ के विमान ने चकलाता हवाई ठिकाने से उड़ान भरी उस पर नीचे से मशीन गन से 36 राउंड गोलियाँ चलाई गईं. ये गोली चकलाता हवाई ठिकाने से थोड़ी दूर एक दो मंज़िले घर की छत से चलाई गईं.

सुरक्षा बलों ने मकान के मालिक मोहम्मद शरीफ़ को गिरफ़्तार कर उनके घर को सील कर दिया.’

जब सुरक्षा बलों ने लाल मस्जिद का घेराव अगले दिन भी नहीं तोड़ा तो अब्दुल रशीद गाज़ी ने ऐलान किया कि वो आत्मसमर्पण करने के बजाए मरना पसंद करेंगे.

इस बीच सुरक्षा बलों ने मस्जिद की गैस सप्लाई भी काट दी. सात जुलाई को मस्जिद के अंदर राशन और हथियारों की कमी साफ़ दिखाई पड़ने लगी, लेकिन अंदर मौजूद चरमपंथी अभी भी हथियार डालने के लिए तैयार नहीं थे.

रात एक बज कर 18 मिनट पर सुरक्षा बलों ने तीन बड़े विस्फोट किए, जिससे मस्जिद की बाहरी दीवार के कुछ हिस्से नष्ट हो गए. इसके बाद हुई फ़ायरिंग में मौलाना अब्दुल अज़ीज़ का बेटा घायल हो गया और एसएसजी के कमांडर लेफ़्टिनेंट कर्नल हारून इस्लाम को भी गोली लगी. उनको एक स्थानीय अस्पताल पर ले जाया गया, जहाँ शाम को उनकी मृत्यु हो गई.

हारून इस्लाम पर एक मीनार से बाकायदा निशाना लेकर गोली चलाई गई. कर्नल हारून राष्ट्रपति मुशर्रफ़ के नज़दीकी दोस्त थे, उनकी हत्या ने मुशर्रफ़ को और नाराज़ कर दिया और उन्होंने मस्जिद के अंदर धावा बोलने का मन बना लिया.

नौ जुलाई को बंदूकें थोड़ी देर के लिए शांत हुईं. उस दौरान सरकार और उलेमाओं की 12 सदस्यों की एक टीम ने गाज़ी के साथ आमने-सामने की बातचीत करने की कोशिश की लेकिन ये बातचीत कामयाब नहीं हुई.

10 जुलाई को सुबह चार बजे राष्ट्रपति की हरी झंडी मिलते ही स्पेशल सर्विसेज़ ग्रुप के कमांडोज़ ने मस्जिद पर तीन तरफ़ से हमला बोला. मस्जिद की छत पर रेत की बोरियों के पीछे छिपे चरमपंथियों ने सुरक्षा बलों पर ज़बरदस्त फ़ायरिंग शुरू कर दी, जिसकी वजह से सैनिकों का आगे बढ़ना धीमा हो गया.

चरमपंथियों ने पेट्रोल बम फेंक कर मस्जिद में आग लगाने की कोशिश की ताकि सैनिकों का आगे बढ़ना रुक जाए.

पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता जनरल वहीद अरशद ने बीबीसी से कहा कि हथियारों से लैस चरमपंथी महिलाओं और बच्चों का मानव कवच की तरह इस्तेमाल करते हुए मस्जिद के तहख़ाने में चले गए हैं.

नौ जुलाई को जियो टीवी के दिए गए अपने अंतिम इंटरव्यू में अब्दुल रशीद ग़ाज़ी ने कहा, ‘’सरकार अपनी पूरी ताक़त का इस्तेमाल कर रही है. मेरी मौत तय है. हम अब भी पाकिस्तानी सैनिकों का मुक़ाबला कर रहे हैं लेकिन अब हमारे पास सिर्फ़ 14 एके 47 राइफ़लें ही बची हैं.’

शाम सात बजे गोली लगने से ग़ाज़ी की मौत हुई. कुछ सरकारी सूत्रों के अनुसार, जब वो हथियार डालने की कोशिश कर रहा था, उसके अपने ही साथियों ने जो ऐसा होने देना नहीं चाहते थे, उसे गोली से मार दी.

पाकिस्तान के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता जावेद इक़बाल चीमा ने कहा, ‘लड़कियों के मदरसे से चरमपंथियों को निकालने के दौरान गाज़ी को गोली लगी. उसको तहख़ाने में देखा गया. उससे बाहर आने के लिए कहा गया. वो बाहर आया भी लेकिन उसके साथ चार या पाँच चरमपंथी भी थे जो सुरक्षा बलों पर लगातार फ़ायर कर रहे थे. जब सुरक्षा बलों ने जवाबी गोली चलाई तो ग़ाज़ी क्रॉस फ़ायर में मारा गया.’

इस ऑपरेशन की रिपोर्ट देते हुए वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा, ‘मरने वालों की कुल संख्या 80 से अधिक थी.’

प्रधानमत्री शौकत अज़ीज़ ने कहा, ‘164 सैनिक कमांडोज़ ने लाल मस्जिद की घेराबंदी की थी. इसमें 10 कमांडो मारे गए और 33 अन्य घायल हुए.’

अधिकारियों ने बताया कि 11 जुलाई को मस्जिद से 73 शव बरामद किए गए. ये सभी शव चरमपंथियों के थे. आपरेशन समाप्त होने के 48 घंटों बाद पाकिस्तानी सेना मीडिया को लाल मस्जिद और जामिया हफ़सा के अंदर ले गई, जहाँ उन्हें बड़ी मात्रा में बरामद किए गए रॉकेट्स, बारूदी सुरंगें, आत्मघाती बेल्ट, लाइट मशीन गन, कैलिशनिकोव, रिवॉल्वर और गोलियाँ दिखाई गईं.

ज़ाहिद हुसैन ने अपनी किताब ‘द स्कौरपियंस टेल’ में लिखा, ‘मस्जिद के अंदर का दृश्य बिल्कुल लड़ाई के मैदान जैसा था.

तहख़ाने की दीवारे जहाँ रशीद और उसके आधा दर्जन साथियों ने आख़िरी लड़ाई लड़ी थी काली पड़ गई थीं. लाशों की बदबू हवा में फैली हुई थी.

लड़कियों के मदरसे के खिड़कीरहित कमरे में एक सूसाइड बॉम्बर ने अपनेआप को उड़ा लिया था. इस कमरे में मौजूद लोग इस बुरी तरह जल गए थे कि उन्हें पहचाना नहीं जा सकता था, सूसाइड बॉम्बर का कटा हुआ सिर फ़र्श पर पड़ा था.’

लाल मस्जिद ऑपरेशन की तुलना 1979 में मक्का में हुई घटना से भी की गई थी, जब चरमपंथियों ने कुछ दिनों के लिए मुसलमानों के सबसे पवित्र स्थल पर कब्ज़ा कर लिया था. ये कब्ज़ा दो हफ़्तों तक चला था. इसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी और मस्जिद को बहुत नुक़सान पहुंचा था.

पाकिस्तान में इस हमले के दूरगामी परिणाम देखने को मिले थे.

12 जुलाई को करीब 20 हज़ार क़बायलियों ने हाथ में राइफ़लें लेकर मुशर्रफ़ और अमेरिका मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए प्रदर्शन किया था.

17 जुलाई को उत्तरी वज़ीरिस्तान में सेना के काफ़िले पर एक आत्मघाती बम हमला हुआ था, जिसमें 24 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे.

तालिबान ने पाकिस्तान के शहरी इलाक़ों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया था. उस समय अल क़ायदा के दूसरे सबसे बड़े नेता अयमन अल जवाहरी ने पाकिस्तानियों का आह्वान किया था कि वो लाल मस्जिद पर हुए हमलों और वहाँ शहीद हुए लोगों की क़ुर्बानी का बदला लें.

आख़िर में सितंबर 2007 में ओसामा बिन लादेन ने भी बयान जारी करके कहा था, ‘हम गाज़ी और उसके साथ मरे लोगों के ख़ून का बदला मुशर्रफ़ और उसके साथियों से लेंगे.’

इस लेख में सम्मिलित जानकारी विभिन्न मीडिया स्रोतों से ली गई है

न्यूज डेस्क – मोन्कटाइम्स

 

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