अनोखा स्कूल जहां बच्चे के साथ माँ को भी दाख़िला लेना पड़ता है
हर आदमी के मन में स्कूल का नाम सुनकर एक ऐसी तस्वीर सामने आती है जहां बच्चे बस्ता उठाकर आते हैं और पढ़ते-लिखते, और छुट्टी का बेसब्री से इंतजार करते।
लेकिन आजकल एक ऐसा स्कूल चर्चा में हैं जहां बच्चे के एडमिशन की पहली शर्त ही यह है कि बच्चे के साथ उसकी मां को भी एडमिशन लेना होगा.
कराची के इलाक़े ल्यारी में स्थित ‘मदर चाइल्ड ट्रॉमा इन्फ़ॉर्म्ड स्कूल’ (Mother Child Trauma Informed School) में ऐसे बच्चे अपनी मांओं के साथ दाख़िला लेने के योग्य होते हैं जो किसी हादसे के कारण सदमे से दो-चार हुए हों और जिन्हें ज़िंदगी में आगे बढ़ने के मौक़े समझ नहीं आ रहे हों.
यह स्कूल सबीना खत्री चला रही हैं जो ख़ुद आठ साल की उम्र में मां से अलग होने का सदमा झेल चुकी हैं.
अपने बचपन के सदमे से शुरू होने वाली कहानी ने सबीना खत्री को ल्यारी में ऐसा स्कूल खोलने के लिए प्रेरित किया जो आज कई बच्चों के जीवन में आने वाले सदमों से निकालने में मददगार बन रहा है.
सबीना खत्री स्कूल को एक तोहफ़ा समझती हैं जो एक मां का दूसरी मां के लिए है. उन्होंने बीबीसी को बताया कि जब वह आठ साल की थीं तो अपनी मां से अलग हो गई थीं.
“मुझे उस वक़्त समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है लेकिन वह सदमा कहीं ना कहीं मेरे अंदर रह गया.”
इसके बाद साल 2006 में सबीना खत्री ने ल्यारी में एक स्कूल के साथ अपने मिशन की शुरुआत की जहां मानसिक आघात या सदमे से गुजर चुके माँ और बच्चे को दाख़िला मिल सके
सबीना बताती हैं कि उनके स्कूल में पिछड़े वर्ग के लोग आते हैं. इस स्कूल में मानव मूल्य, मानसिक स्वास्थ्य और भलाई जैसी बातों पर ज़ोर दिया जाता है.
ज्ञात हो कि, कराची के इस इलाक़े ‘ल्यारी’ में गैंगवार और क्राइम की कहानियां आमतौर पर चर्चा में रहती हैं.
सबीना खत्री ने बताया, “अमीर घरों के बच्चों ने लड़ाई, मार-काट असल में नहीं देखी. वह वीडियो गेम्स में ऐसी चीज़ें देखते हैं मगर ल्यारी के बच्चों ने वह सब अपनी आंखों से असल में देखा है.”
सबीना के अनुसार उनको एहसास हुआ कि ल्यारी में जो कुछ भी हो रहा है उसका असर बच्चों पर ज़रूर पड़ रहा होगा.
ऐसे में एक दिन उन्होंने ठान ली कि जैसे वह अपने बचपन के सदमे से निकली हैं वैसे ही वह ‘ल्यारी’ के हर बच्चे को सदमे से निकालेंगी.
सबीना का मानना है कि कई बच्चे ऐसे भी होते हैं जो किसी सदमे से निकलकर पढ़ाई कर भी लें तो एक उम्र को पहुंचकर उनको लगता है कि उनके मां-बाप के सोचने समझने का ढंग उनसे अलग है.
इसी वजह से सबीना ने इस स्कूल में बच्चों के साथ-साथ मांओं के मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने के बारे में सोचा और आज इस स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा अपनी मां के साथ स्कूल में दाख़िला हासिल करता है.
सबीना खत्री कहती हैं कि वो दाख़िले की शर्तों से कोई समझौता नहीं करतीं.
इस स्कूल में बच्चों को पहली क्लास से दाख़िला लेना पड़ता है. बच्चे को हफ़्ते में पांच दिन क्लास में आना होता है, वहीं मां के लिए हफ़्ते में तीन दिन आना ज़रूरी है. बच्चों की तरह मां के लिए भी सिलेबस रखा गया है जिसमें काउंसलिंग सेशन भी शामिल है.
सबीना खत्री ने स्कूल की कामयाबी को देखते हुए इसे न केवल पूरे कराची बल्कि पाकिस्तान के दूसरे शहरों में भी शुरू करने का इरादा किया है.