गोपालदास नीरज 20वीं सदी में हिंदी काव्य धारा के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक रहे हैं, उनके विशेष योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री सम्मान, पद्म भूषण सम्मान, यश भारती सम्मान, और फिल्म फेयर पुरस्कार प्रदान किया गया।
गोपालदास नीरज, हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं कई फ़िल्मों के सुपरहिट गीतों के लेखक थे।
गोपालदास नीरज पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। साथ ही फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला था ।
गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ था
पद्म भूषण से सम्मानित कवि, गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलाई 2018 की शाम लगभग 8 बजे इस संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था.
अपने बारे में उनका यह शेर आज भी मुशायरों में फरमाइश के साथ सुना जाता है:
“इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥”
गोपालदास नीरज जी ने अपने जीवन काल में जो हिंदी साहित्य जगत को कई अनूठी काव्य रचनाएं दी जो आज भी आधुनिक हिंदी काव्य जगत में ‘मील का पत्थर’ मानी जाती हैं. हालांकि आपको जानकर हैरानी होगी कि आधुनिक हिंदी काव्य धारा में विशेष योगदान देने वाले गोपाल दास का जीवन काफी दुखों में गुजरा था.
गोपालदास नीरज का संघर्षपूर्ण बचपन
गोपालदास नीरज के पिता का नाम बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना और उनकी माता का नाम सुखदेवी था। कहा जाता है कि गोपालदास का बचपन काफी दुखों में गुजरा था क्योंकि 6 साल की उम्र में उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया था. पिता के निधन के बाद घर की आर्थिक स्थिति सामान्य न रही, और इसका असर उनकी शिक्षा पर भी पड़ा, इसलिए गोपालदास नीरज अपने मां और तीन भाईयों को छोड़ अपने परिवार से दूर फूफा के घर चले गए. जहां उन्होंने प्राथमिक शिक्षा आरंभ की।
गोपालदास नीरज ने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और उसके बाद, शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी भी की।
इसके बाद गोपालदास नीरज ने दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम भी किया।
गोपालदास नीरज नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर अध्ययन कार्य भी लगातार करते रहे और 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया।
‘निशा नियंत्रण’ से हुए काफी प्रभावित
‘निशा निमंत्रण’ हरिवंशराय बच्चन के गीतों का संकलन है जिसका प्रकाशन १९३८ ई० में हुआ। इसके गीतों की शैली और गठन, अतुलनीय है। तथा ये गीत हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से हें। इस ‘निशा निमंत्रण’ से बहुत प्रभावित हुए थे. इस बारे में नीरज जी ने, वर्ष 1944 में प्रकाशित अपनी पहली काव्य-कृति ‘संघर्ष’ में बताया.
कवि सम्मेलन से फिल्म जगत का रुख
गोपालदास नीरज की कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को फिल्म नगरी, मुंबई के फिल्म जगत की तरफ से गीतकार के रूप में ‘नई उमर की नई फसल’ फिल्म के गीत लिखने का निमन्त्रण मिला, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
पहली ही फ़िल्म में गोपालदास नीरज के लिखे कुछ गीत जैसे ‘कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे’ और ‘देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा’ बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई (मुंबई) में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे।
फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला ‘मेरा नाम जोकर’, ‘शर्मीली’ और ‘प्रेम पुजारी’ जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।
किन्तु गोपालदास नीरज का मुंबई की ज़िन्दगी से मन बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये उसके बाद वे अलीगढ़ में ही अपना स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।
पद्म भूषण से सम्मानित कवि, गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलाई 2018 की शाम लगभग 8 बजे अन्तिम सांस ली।
नीरज को पुरस्कार एवं सम्मान
गोपालदास नीरज 20वीं सदी में हिंदी काव्य धारा के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक रहे हैं. उन्होंने आधुनिक हिंदी काव्य में अपना विशेष योगदान दिया है. उनके विशेष योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है.
- पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार
- यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
- पद्म भूषण सम्मान (2007), भारत सरकार
- विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार
नीरज को फिल्म फेयर पुरस्कार
गोपालदास नीरज को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया
- 1970: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चंदा और बिजली)
- 1971: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)
- 1972: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)
इसमें वह 1970 में सर्वश्रेष्ठ गीत का फिल्म फेयर पुरस्कार जीते।
कवियों और नीरज की आत्मा का पसंदीदा गान
कवि गोपालदास नीरज का फिल्मी दुनिया से गहरा नाता रहा है. उन्होंने कई वर्षों तक फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं उन अनगिनत गीतों में जो गीत आज भी हर साहित्य प्रेमी और हिन्दी प्रेमी की पसंद है वह गीत है “कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे”
हिन्दी साहित्यकार, गीतकार, कवि श्री गोपालदास नीरज जी की कुछ कृतियाँ इस प्रकार हैं:
• संघर्ष (1944), • अन्तर्ध्वनि (1946), • विभावरी (1948)
• प्राणगीत (1951), • दर्द दिया है (1956), • बादर बरस गयो (1957), • मुक्तकी (1958), • दो गीत (1958), • नीरज की पाती (1958), • गीत भी अगीत भी (1959)
• आसावरी (1963), • नदी किनारे (1963), • लहर पुकारे (1963), • कारवाँ गुजर गया (1964)
• फिर दीप जलेगा (1970), • तुम्हारे लिये (1972), • नीरज की गीतिकाएँ (1987)