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Friday, July 4, 2025

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GWADAR: पाकिस्तान का ग्वादर बना चीनी उपनिवेश का पहला अड्डा

पाकिस्तान में बलूचिस्तान प्रांत के तटीय शहर और ईरान की समुद्री सीमा से लगे ग्वादर में, चीन द्वारा विशाल बंदरगाह के निर्माण के बाद अब पाकिस्तान के सबसे बड़े एयरपोर्ट का निर्माण किया गया है.

GWADAR (ग्वादर): न्यू ग्वादर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (NGIA) और ग्वादर बंदरगाह चीन द्वारा वित्त पोषित है और इसके संचालन से लेकर सारे अधिकार चीन के पास है। यहाँ समुद्री जल और आसमान में सुरक्षा से लेकर आवागमन तक सारे कंट्रोल चीनी सेना के पास हैं, यहाँ तक की अब स्थानीय निवासियों को आजीविका के लिए समुद्र से मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई है।

चीन द्वारा ग्वादर बन्दरगाह और नया निर्मित हवाई अड्डा रणनीतिक रूप से मध्य एशिया, यूरोप, हिन्द महासागर और विशेष रूप से भारत पर अपनी हवाई क्षमता के विस्तार के लिए किया गया है।

“पाकिस्तान, चीन के कर्ज में पूरी तरह डूब चुका है जो अब किसी भी स्थिति में इन हालत से उबरने की  वह सोच भी नहीं सकता है। और अगले कुछ वर्षों में शायद पाकिस्तान एक चीनी उपनिवेश बन सकता है।”

अमेरिकी तथा अंतरराष्ट्रीय दबाब के चलते चीन, ग्वाडर को अभी गोपनीय तरीके से अघोषित तौर पर चुप-चाप रहकर, विदेशी धरती पर अपना एक बड़ा और प्रमुख सैनिक अड्डा बनाने जा रहा है।

पाकिस्तान में चीन द्वारा, चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (CPEC) योजना के तहत इतना अधिक कर्ज (chinese debt trap) दिया जा चुका है की अब पाकिस्तान इस मामले में कुछ भी कहने में असमर्थ है।

चीन को जब भी पाकिस्तान में जिस जगह को या जिन संसाधनों को रणनीतिक तौर पर अपने लिए उपयोग करना होता है

उसके लिए पाकिस्तानी सरकार की अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं होती है, यह डिफ़ॉल्ट (स्वाभाविक) रूप से स्वीकृत माना जाता है।

हाल ही में, पाकिस्तान के ग्वादर (GWADAR) में चीन की महत्वाकांक्षी चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (CPEC) योजना और न्यू ग्वादर इंटरनेशनल एयरपोर्ट (New Gwadar International Airport) पर सवाल उठाती ब्रिटिश अख़बार ‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट पर चीन और पाकिस्तान को स्पष्टीकरण देना पड़ा है

बलूचिस्तान प्रांत के तटीय शहर और ईरान की समुद्री सीमा के नजदीक,  ग्वादर में 20 जनवरी को पाकिस्तान के सबसे बड़े एयरपोर्ट का उद्घाटन किया गया था. न्यू ग्वादर एयरपोर्ट के लाउंज का उद्घाटन करने पाकिस्तान के रक्षा और उड्डयन मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ पहुँचे थे.

न्यू ग्वादर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (NGIA) पाकिस्तान के ग्वादर में है। यह क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है, जो 4,300 एकड़ (17 वर्ग किमी) पर फैला है, और इस्लामाबाद अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाद पाकिस्तान का दूसरा ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा है।

NGIA, बलूचिस्तान प्रांत के दक्षिण-पश्चिमी अरब सागर तट पर ग्वादर में पुराने हवाई अड्डे से 26 किमी उत्तर-पूर्व में गुरंदानी में स्थित है।

न्यू ग्वादर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (NGIA) पर 246 मिलियन डॉलर से भी अधिक खर्च होने की उम्मीद है।

यह न्यू ग्वादर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (NGIA) मुख्य रूप से चीन द्वारा अनुदान के रूप में वित्त पोषित है जिसका उपयोग चीन द्वारा रणनीतिक रूप से मध्य एशिया, यूरोप, हिन्द महासागर और भारत पर अपनी हवाई क्षमता के विस्तार के लिए किया गया है।

पूरी तरह से चीनी कर्ज में डूबे पाकिस्तान की जमीन और संसाधनों का उपयोऊ, चीन अपनी सैनिक क्षमता के विस्तार और एशिया, अमेरिका, अफ्रीका और यूरोप पर रणनीतिक पकड़ बनाने के लिए कर रहा है।

हालांकि, हालिया सालों में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर अब उस गति से आगे नहीं बढ़ रहा है जितनी अतीत में उम्मीद थी.

ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि एक छोटे से शहर में बने इतने बड़े एयरपोर्ट की क्या ज़रूरत थी?

यही सवाल ब्रिटिश अख़बार की रिपोर्ट खड़ी करती है जिसके बाद चीन और पाकिस्तान को बयान जारी करना पड़ा है.

पाकिस्तान के लिए चीन के पॉलिटिकल सेक्रेटरी वांग शेंगजी ने इस्लामाबाद में द गार्डियन को एक इंटरव्यू दिया है जिसमें उन्होंने सीपीईसी परियोजना को लेकर ‘गहरी चिंताएं’ जताई हैं.

साथ ही उन्होंने कहा कि अगर ग्वादर में सुरक्षा बेहतर नहीं होती है तो यहां कौन आएगा, ग्वादर और बलूचिस्तान में चीन के ख़िलाफ़ नफ़रत है.

लेकिन अब पाकिस्तान स्थित चीनी दूतावास ने इसे लेकर ही सफ़ाई दी है.

चीन और पाकिस्तान सफाई में क्या बोले?

पाकिस्तान में चीन के दूतावास ने सोशल मीडिया एक्स पर बयान जारी किया है. चीनी दूतावास का कहना है कि ‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट में चीनी राजनयिक के कथित तौर पर दर्ज किए गए बयान पूरी तरह ग़लत हैं.

बयान में कहा है, “जिस तरह की भाषा इस्तेमाल की गई है, वो विश्वसनीय नहीं है और चीन की स्थिति नहीं दर्शाती है. लेखक की एकतरफ़ा झूठी जानकारियां बिना इंटरव्यू की सहमति के पेशेवर नीति का उल्लंघन है.”

चीनी दूतावास ने कहा है कि वो हमेशा से ग्वादर बंदरगाह के निर्माण और बलूचिस्तान के विकास का समर्थन करता रहा है.

चीनी दूतावास ने अपने बयान में कई चीज़ों का हवाला दिया है, जिसमें बताया है कि ग्वादर में स्थानीय लोगों के हित के लिए क्या-क्या कर रहा है.

वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भी सोशल मीडिया एक्स पर बयान जारी कर द गार्डियन की रिपोर्ट का खंडन किया है.

पाकिस्तान ने कहा है कि वो पाकिस्तान-चीन की दोस्ती को निशाना बनाने वाले आधारहीन आरोपों को ख़ारिज करता है.

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “प्रवक्ता ने बल देते हुए कहा है कि चीन और पाकिस्तान हमेशा से रणनीतिक साझेदार हैं. ये संबंध आपसी भरोसे, साझा मूल्यों, प्रमुख चिंताओं के मुद्दों पर समर्थन और क्षेत्रीय-वैश्विक स्थिरता पर प्रतिबद्धता से तैयार हुए हैं.”

ब्रिटिश अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में क्या लिखा?

CPEC परियोजना के तहत, चीन ग्वादर में एयरपोर्ट, गहरे पानी का बंदरगाह और इकोनॉमिक ज़ोन का निर्माण कर रहा है. साल 2015 में शुरू हुई सीपीईसी परियोजना चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative (BRI)) का हिस्सा है.

इस बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का मक़सद माना जाता है कि चीन इसके ज़रिए एशिया और अफ़्रीका तक एक ट्रेड रूट बनाकर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है.

इसी में शामिल सीपीईसी परियोजना में चीन को आर्थिक तौर पर ख़स्ताहाल पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में तक़रीबन 62 अरब डॉलर के बड़े प्रोजेक्ट बनाने थे. इनमें एयरपोर्ट से लेकर हाईवे, रेलवे स्टेशन, बंदरगाह और पावर प्लांट समेत कई बड़ी योजनाएं शामिल थीं.

लेकिन एक दशक बाद पाकिस्तान के इस ग़रीब सूबे में ये परियोजनाएं उतनी तेज़ी से परवान नहीं चढ़ सकीं. इसकी सबसे बड़ी वजह सुरक्षा चिंताएं रहीं क्योंकि बलूचिस्तान में चरमपंथी संगठनों ने सुरक्षाबलों और इस परियोजना में लगे चीनी नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया.

सुरक्षा की वजहों से चीन और पाकिस्तान के संबंधों में खटास भी आई और चीन ने कई बार पाकिस्तान को सुरक्षा बढ़ाने को कहा.

पाकिस्तान के लिए चीन के पॉलिटिकल सेक्रेटरी वांग शेंगजी ने इस्लामाबाद में द गार्डियन को एक इंटरव्यू दिया है. इसी को लेकर चीन और पाकिस्तान ने बयान जारी किया है लेकिन दोनों देशों ने इस राजनयिक का नाम नहीं लिया है.

इंटरव्यू के दौरान शांगजी ने चीन की अरबों डॉलर की सीपीईसी परियोजना को लेकर ‘गहरी चिंताएं’ जताई हैं.

उन्होंने अख़बार से कहा, “अगर सुरक्षा बेहतर नहीं होती है तो कौन आएगा और इस माहौल में कौन काम करेगा?

ग्वादर और बलूचिस्तान में चीन के ख़िलाफ़ नफ़रत है. कुछ बुरी ताक़तें सीपीईसी के ख़िलाफ़ हैं और वो इसे बर्बाद करना चाहती हैं.”

बलूचिस्तान में कई चरमपंथी संगठन सक्रिय हैं, जिनमें से एक बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) है जो एक स्वतंत्र बलूचिस्तान चाहता है. बीएलए (BLA) का आरोप है कि चीन इस क्षेत्र के संसाधनों का दोहन कर रहा है और इसी वजह से उसने सीपीईसी के ख़िलाफ़ हिंसक अभियान भी शुरू किया.

अब तक कई चरमपंथी हमलों में कई चीनी नागरिकों की मौत हुई है.

चीन के ख़िलाफ़ नाराज़गी क्यों?

पाकिस्तान के नागरिक उड्डयन के प्रवक्ता ने बताया कि ग्वादर एयरपोर्ट क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा एयरपोर्ट है.

द गार्डियन ने कई स्थानीय लोगों से भी बात की है जो इस परियोजना को लेकर नाख़ुश हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक समय ग्वादर को ये कहकर प्रचारित किया गया था कि इसे ‘पाकिस्तान का दुबई’ बना दिया जाएगा.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस परियोजना ने ग्वादर को एक हाई सिक्योरिटी जेल में तब्दील कर दिया.

ऊंची कंटीली तारें लगाई गईं, चीनी कर्मचारियों के लिए अलग इलाक़े बनाए गए, सिक्योरिटी चेकपॉइंट्स और पुलिस-सेना की सड़कों पर तैनाती की गई.

रिपोर्ट के मुताबिक़, स्थानीय लोगों की नफ़रत की वजह गधों को मारने वाली फ़ैक्ट्री भी है, जहां पर अफ़्रीका से लाखों गधे मंगाए गए हैं और इन्हें पारंपरिक चीनी दवाओं के लिए मारा जाएगा.

ग्वादर के गहरे पानी के बंदरगाह ने कई पाबंदियां लगा दी हैं और इस बंदरगाह से आया 90 फ़ीसदी लाभ चीनी ऑपरेटर को जाएगा.

स्थानीय मछुआरों का कहना है कि वो बड़ी मुश्किल से अपनी आजीविका चला पा रहे हैं क्योंकि उन्हें मुक्त रूप से समुद्र में जाने की अनुमति नहीं है और मछली मारने के दौरान सुरक्षाबल उनकी नाव पकड़ लेते हैं.

70 साल के मछुआरे दाद करीम ने द गर्डियन से कहा कि ‘हम पूरा समुद्र गंवा चुके हैं. हम जब भी मछली पकड़ने जाते हैं तो लगता है कि हम चोर हैं और ख़ुद को छिपा रहे हैं.

समुद्र या महासागर अब मछुआरों (पाकिस्तान) का नहीं रहा बल्कि ये अब चीनियों का हो गया है.’

गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक़, विश्लेषकों ने सीपीईसी की आर्थिक और सुरक्षा नाकामियों की सबसे बड़ी वजह नीति निर्माताओं को बताया है, जिन्होंने इंफ़्रास्ट्रक्चर अपग्रेड करने की जगह चीन को परियोजनाएं लाने पर ज़ोर दिया. इससे स्थानीय लोगों में बिजली और पानी जैसी चीज़ों में चीन के निवेश के लाभ नहीं दिखाई दिए.

इस पर चीनी राजनयिक शेंगजी ने अख़बार से कहा है कि पाकिस्तान सरकार ने सीपीईसी परियोजना को लेकर ‘झूठी बयानबाज़ियां’ कीं जो कि स्थानीय लोगों की हक़ीक़त से दूर थीं.

उन्होंने कहा, “हम पाकिस्तान की तरह बयानबाज़ी नहीं करते, हम सिर्फ़ विकास पर काम करते हैं. अगर इस तरह की सुरक्षा स्थिति बनी रही तो ये विकास को प्रभावित करेगी.”

चीन का मक़सद से पाकिस्तान दुविधा में?

पाकिस्तान की दुविधा है कि वो चीन के साथ-साथ अमेरिका के साथ भी रिश्ते साधना चाहता है

ग्वादर में इतने बड़े पैमाने पर निवेश को लेकर अक्सर चीन की मंशा पर सवाल भी उठते रहे हैं.

तक़रीबन डेढ़ लाख की आबादी वाला शहर, जिसमें अधिकतर आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है, वहां इतने बड़े एयरपोर्ट की क्या ज़रूरत थी.

सीपीईसी परियोजना में लगे कई पाकिस्तानी अधिकारियों ने ऑब्ज़र्वर से कहा था कि उनका अनुभव है कि ये परियोजनाएं सिर्फ़ व्यापारिक मक़सद से नहीं हैं.

ऐसा माना जाता है कि चीन गहरे पानी के बंदरगाह का इस्तेमाल अपने रणनीतिक सैन्य अड्डे के लिए कर सकता है.

गार्डियन ने चीन के साथ उच्च स्तर पर काम करने वाले पाकिस्तानी अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि चीनी कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए चीन अपनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी को पाकिस्तान में तैनात करना चाहता है. साथ ही वो ग्वादर बंदरगाह पर नौसेना के जहाज़ और पनडुब्बियां लाना चाहता है.

भारत और अमेरिका को चीन सीधे तौर पर अपने लिए ख़तरा मानता है.

अमेरिका ने पाकिस्तान में चीनी निवेश को लेकर चिंताएं भी जताई हैं.

ऐसा माना जाता है कि अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने चीन के साथ कई सौदों को अनुमति नहीं दी थी जिनमें पाकिस्तान की सबसे बड़ी बिजली कंपनी के-इलेक्ट्रिक में चीन की हिस्सेदारी की बात थी.

पाकिस्तान अब भी चीन और अमेरिका के बीच संबंधों में तालमेल बनाने की कोशिशें करता नज़र आता है.

पाकिस्तानी मंत्री के अमेरिका दौरे पर सवाल

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पद संभालने के बाद बीते सप्ताह पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नक़वी ट्रंप प्रशासन से मुलाक़ात करने अमेरिका गए थे. उस समय ऐसी रिपोर्टें आई थीं कि उन्होंने चीन-विरोधी माने जाने वाले एक अमेरिकी लॉबी समूह से मुलाक़ात की थी.

इस मुलाक़ात पर कई सवाल भी उठे थे. विदेश नीति मामलों के जानकार और द विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर माइकल कुगलमैन ने एक्स पर सवाल खड़े किए थे.

उन्होंने लिखा था, “अविश्वसनीय, डीसी की अपनी यात्रा के दौरान, पाकिस्तान के गृह मंत्री ने कथित तौर पर एक ऐसे समूह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया, जो चीन की सीसीपी (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी) को उखाड़ फेंकने का आह्वान करता है. अगर यह सच है तो यह बहुत बड़ी ग़लती है. पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण साझेदार के साथ ये कूटनीतिक संकट पैदा कर सकता है.”

उनकी इस पोस्ट को रिपोस्ट करते हुए पाकिस्तान के चर्चित पत्रकार हामिद मीर ने सवाल पूछा कि क्या वो इसको लेकर निश्चित हैं.

हामिद मीर ने लिखा, “आपने ‘अगर सच है’ शब्द का इस्तेमाल किया है जिसका मतलब है कि आप निश्चित नहीं हैं. आपकी टिप्पणी ने यहां तूफ़ान खड़ा कर दिया है.”

“हां कुछ बैठकें पाकिस्तानी गृह मंत्री की अमेरिका में हुई हैं जो कि लाभदायक नहीं रहीं लेकिन आप गंस्टर स्ट्रैटेजीस की मेज़बानी में हुए डिनर का हवाला दे रहे हैं और चीनी सूत्रों का दावा है कि ये सिफ़ारिशी समूह चीन विरोधी नहीं है. एक चीन विरोधी समूह पाकिस्तान के मंत्री को क्यों आमंत्रित करेगा? क्या आप इस समूह को जानते हैं.”

हामिद मीर के सवाल पर फिर कुगलमैन ने जवाब दिया कि ये सच है और वीडियो में उनकी उपस्थिति दिख रही है.

कुगलमैन ने लिखा, “अगर सच नहीं है तो मुझे लगता है कि पाकिस्तान सरकार ने अब तक इसे ख़ारिज कर दिया होगा. मैंने कहा था कि ‘अगर सच’ है तो क्योंकि मैंने अब तक वीडियो नहीं देखा है. यह समूह सीसीपी का घोर विरोधी है, जैसा कि इसकी वेबसाइट से स्पष्ट है. यह सीसीपी को एक आतंकी समूह कहता है.”

इन सबके बावजूद पाकिस्तान अभी भी अपनी आर्थिक ज़रूरतों के लिए चीन से मदद मांगता रहता है. लेकिन दूसरी ओर चीन ने कुछ सख़्ती भी दिखाई है.

बीते साल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने चीन से ऊर्जा और इंफ़्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए कथित तौर पर अतिरिक्त 17 अरब डॉलर की मांग की थी लेकिन इस पर चीन का फीका जवाब आया था.

हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अब पाकिस्तान में सीपीईसी परियोजना से पीछे हटने की स्थिति में नहीं है क्योंकि उसका वहां बहुत कुछ दांव पर है.

ग्वादर को छोड़ कर, पाकिस्तान की सामान्य आर्थिक परिस्थियों की यदि बात की जाए, तब भी पाकिस्तान और उसकी अर्थव्यवस्था चीन के कर्ज (chinese debt trap) में पूरी तरह डूब चुकी है, पाकिस्तान में मंहगाई उच्च स्तर पर है, संसाधनों का दोहन चीन द्वारा किया जा रहा है, जनता के लिए रोजी-रोटी की समस्या व्यापक है, उद्योग धन्धे न के बराबर हैं, छोटी से लेकर बड़ी हर चीज, इम्पोर्ट पर निर्भर है। अत्याधिक गरीबी और भ्रस्टाचार के कारण आम जीवन बदहाल है, क्राइम रेट चरम पर है

आम पाकिस्तानी जनता इन परिस्थिति को पिछले 5 दशकों से सहन करती आ रही है, हर नया सियासतदान चुनाव जीतने के लिए हवाई वादे करता है लेकिन चुनाव के बाद वही कर्ता है जो अमेरिका या चीन के हुक्मरान कहते है।

पढ़े-लिखे लोग देश छोड़ कर जा रहे हैं, सैनिक अधिकारी या सरकारी अधिकारी विदेशों में जाकर घर बना कर रहते हैं , इन हालत से पाकिस्तान उबरने की सोच भी नहीं सकता है। और शायद अगले कुछ वर्षों में शायद पाकिस्तान एक चीनी उपनिवेश बन जाएगा।

 

कमलेश पाण्डेय
अनौपचारिक एवं औपचारिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय, तथा समसामयिक पहलुओं, पर्यावरण, भारतीयता, धार्मिकता, यात्रा और सामाजिक जीवन तथा समस्त जीव-जंतुओं पर अपने विचार व्यक्त करना।

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