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Friday, July 4, 2025

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सीरिया में असद समर्थक शियाओ और अमेरिका समर्थित सेनाओं के बीच भीषण लड़ाई

सीरिया की राजधानी दमिश्क में अमेरिका समर्थित नई सरकार के प्रति वफ़ादार सीरियाई सेनाएं और ईरान और रूस समर्थित सत्ता से बेदखल किए गए असद शासन के समर्थकों के साथ भीषण लड़ाई की ख़बरे हैं.

सीरिया के उत्तर-पश्चिमी तटीय क्षेत्र में रूसी नियंत्रित एयरबेस के नज़दीक लताकिया प्रांत में हुई झड़पों में दर्जनों लोग मारे गए हैं.

दिसंबर में बशर अल-असद के पतन के बाद से सीरिया की इस्लामी सरकार से जुड़ी सेनाओं के साथ अबतक की हिंसक झड़प है.

मारे गए लोगों की संख्या के बारे में अलग-अलग अनुमान हैं लेकिन, कोई भी आधिकारिक पुष्टि करने में असमर्थ है.

गुरुवार देर रात सीरिया स्थित स्टेप न्यूज़ एजेंसी ने खबर दी कि सरकार समर्थित बलों के हमले में “लगभग 70” पूर्व सरकारी लड़ाके मारे गए हैं जबकि 25 से अधिक को जबलेह और उसके आसपास के क्षेत्रों में पकड़ लिया गया है.

इसके अलावा, एएफ़पी समाचार एजेंसी ने एक युद्ध पर्यवेक्षक का हवाला देते हुए कहा कि कुल 48 लोग मारे गए, जिनमें 16 सरकारी सुरक्षाकर्मी, 28 असद समर्थक लड़ाके और चार नागरिक शामिल हैं.

सीरिया के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल हसन अब्दुल ग़नी ने सरकारी मीडिया के माध्यम से लताकिया में लड़ रहे असद समर्थकों को चेतावनी जारी की है.

शिया श्रद्धालु सीरिया क्यों नहीं जा पा रहे?

सीरिया में शिया समुदाय की आस्था वाले दो महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थ स्थान हैं और ये दोनों ही प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं जो सीरिया की राजधानी दमिश्क के पास स्थित हैं।

पहली मज़ार पैगंबर मोहम्मद की नवासी सैयदा ज़ैनब की है. दूसरी शिया समुदाय के तीसरे इमाम हुसैन की बेटी सैयदा सुकैना की है,  इन्हें अरबी लोग रुक़ैया भी कहते हैं।

हर साल शिया समुदाय के हज़ारों लोग इन दोनों मज़ारों के दर्शन के लिए जाते हैं. हालाँकि,अब इसमें अड़चन आ रही है.

पहले सीरिया के लिए ईरान से सीधे उड़ान हुआ करती थी लेकिन अब इसे रोक दिया गया है.

दरअसल, सीरिया की सत्ता पर काबिज़ होने वाले एचटीएस का झुकाव सुन्नी इस्लाम की तरफ़ है. उससे पहले सीरिया पर शासन कर रहे बशर अल-असद को शिया बहुल मुल्क ईरान की हिमायत मिली हुई थी और बशर अल-असद की हुकूमत पर ईरान का असर था और इसके पीछे धार्मिक कारण भी थे।

साल 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई थी. उस वक़्त सीरिया में बशर अल-असद के पिता हफ़ीज़ अल-असद का शासन था. वे सीरिया के अल्पसंख्यक अलावी समुदाय के थे और ईरान ने इस वजह से उनका समर्थन किया था.

शिया समुदाय की धार्मिक यात्राओं में ईरान का मशहद और कुम शहर भी शामिल रहता है.

इराक में नज़फ़, कर्बला, सामरा है. वहीं सीरिया में दमिश्क से कुछ दूरी पर सैयदा ज़ैनब के नाम से एक शहर ही बसा है.

अनुमान के मुताबिक, भारत में भी तकरीबन दो करोड़ शिया मुसलमान हैं. लखनऊ इसका मुख्य केंद्र है. पूरी दुनिया में तकरीबन 15-17 करोड़ शिया मुसलमान हैं.

यह मुसलमानों की कुल आबादी के 10 प्रतिशत के बराबर है. ज़्यादातर शिया मुसलमान भारत, ईरान, इराक़, बहरीन, अज़रबैजान, सीरिया और यमन में रहते हैं.

वहीं, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, क़तर, तुर्की, सऊदी अरब, कुवैत, लेबनान और संयुक्त अरब अमीरात में भी शिया मुसलमान अच्छी ख़ासी संख्या में हैं.

अफ़्रीकी देशों में, दक्षिण अफ्रीका और कुछ अन्य देशों में भी शिया लोगों की आबादी है. इसके अलावा यूरोप, अमरीका और कनाडा में भी शिया हैं. ये ज़्यादातर विदेशी मूल के हैं.

सीरिया के शिया किस हालत में हैं?

समाचार एजेंसी ‘रॉयटर्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया के शिया और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के एक लाख से ज़्यादा लोग लेबनान में शरण ले चुके हैं. लेकिन, अनाधिकारिक आँकड़े इससे ज्यादा हो सकते हैं. सीरिया में तकरीबन 23 लाख शिया हैं. ये पूर्व शासक बशर अल-असद के समर्थक माने जाते हैं.

दूसरी ओर, एचटीएस द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री मोहम्मद अल बशीर ने मीडिया से कहा है कि वे सभी धार्मिक समूहों के अधिकारों को सुरक्षित रखेंगे.

समाचार वेबसाइट ‘फ्रांस-24’ की एक ख़बर के मुताबिक सैयदा ज़ैनब के मज़ार के निदेशक दिब क्रेयाम ने कहा है कि उनकी अधिकारियों से बात हुई है.

मज़ार खुली हुई है और वहाँ पर काम करने वाले लोग आ सकते हैं.

शिया श्रद्धालुओं को ले जाने वाले कई टूर ऑपरेटरों ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि जनवरी में हमारे साथ कई लोग सीरिया जाने वाले थे. नए हालात में अब वे लोग सिर्फ़ इराक और ईरान ही जा पाएँगे।

 

 

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