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Friday, July 4, 2025

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सनातन धर्म में क्या हैं नक्षत्र और मुहूर्त?, जानिए इनका जीवन में क्या महत्व है?

सनातन धर्म को हिन्दू धर्म या वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है. यह दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है.  वेदों में सनातन शब्द का उल्लेख मिलता है और सनातन शब्द का मतलब है- शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’ अर्थात जिसका कोई आदि नहीं है और न ही अंत है। सरल शब्दों में यदि कहा जाए तो सनातन धर्म ही ऐसा है जो जन्म या अंत से परे है, न जिसकी शुरुआत हुई है और न जिसका अंत है यह धर्म सदा से ही, इस ब्रह्मांड की रचना के पहले से मौजूद है।

सनातन धर्म में त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश को प्रमुख आराध्य माना गया है. और ‘ॐ’ (ओह्म या OM ) को सर्व शक्तिमान, सर्व-व्यापी और आत्मा तथा परमात्मा (परम या श्रेष्ट आत्मा) के प्रतीक चिह्न के रूप में माना जाता है.
सनातन धर्म सम्पूर्ण काल-खंड को चार भागों या चार युगों में विभाजित किया गया है और वह हैं, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग।

सनातन धर्म का मूल आधार पूजा, जप-तप, दान, सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा और यम-नियम माने जाते हैं। इसकी अवधारणा के अनुसार, जीवात्मा (आत्मा) की शाश्वत और आंतरिक प्रवृत्ति सेवा करना है। सनातन धर्म, पारलौकिक होने के कारण, सार्वभौमिक और स्वयंसिद्ध कानूनों को संदर्भित करता है।

सनातन धर्म के ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र और मुहूर्त का अत्यधिक महत्व है। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले नक्षत्र और मुहूर्त का विचार किया जाता है। इनका प्रभाव न केवल धार्मिक कार्यों पर, बल्कि मानव जीवन और ग्रह-नक्षत्रों की चाल पर भी पड़ता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि नक्षत्र और मुहूर्त क्या होते हैं और इनका वैज्ञानिक व आध्यात्मिक महत्व क्या है।

नक्षत्र क्या हैं?

भारतीय ज्योतिष में नक्षत्रों का बहुत बड़ा योगदान है। आकाश में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं, जो चंद्रमा की गति को दर्शाते हैं। एक पूर्ण चंद्र मास में चंद्रमा कुल 27 नक्षत्रों में से होकर गुजरता है। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों का ज़िक्र मिलता है. इन नक्षत्रों के चार-चार भाग होते हैं जिन्हें चरण कहते हैं.

27 नक्षत्रों की सूची

ज्योतिष शास्त्र में कुल 27 नक्षत्रों इस प्रकार हैं.

अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसू, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती

नक्षत्रों का प्रभाव

हर नक्षत्र का एक विशेष प्रभाव होता है, जो जातक के जन्म समय पर निर्भर करता है। नक्षत्रों को दो भागों में बाँटा जा सकता है एक अनुकूल नक्षत्र और दूसरा प्रतिकूल नक्षत्र।

  • अनुकूल नक्षत्र – पुष्य, रोहिणी, मृगशिरा जैसे नक्षत्र शुभ माने जाते हैं।
  • प्रतिकूल नक्षत्र – आर्द्रा, आश्लेषा, ज्येष्ठा, मूल जैसे नक्षत्र कुछ कार्यों के लिए वर्जित माने जाते हैं।

लेकिन, अनुकूल नक्षत्र और प्रतिकूल नक्षत्र का प्रभाव दूसरी अन्य स्थिति पर भी निर्भर करता है इसलिए सिर्फ नक्षत्र को देखकर प्रभाव का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।

मुहूर्त क्या है?

मुहूर्त का अर्थ होता है एक विशेष समय या शुभ घड़ी, जिसमें किसी कार्य को करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ज्योतिष में एक दिन को 30 मुहूर्तों में विभाजित किया जाता है और हर मुहूर्त का एक अलग महत्व होता है।

महत्वपूर्ण मुहूर्त प्रकार

  • अभिजीत मुहूर्त: यह सबसे शुभ मुहूर्त माना जाता है और इसे किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त माना जाता है।
  • ब्रह्म मुहूर्त: यह सूर्योदय से पहले का समय होता है, जो ध्यान, योग और पढ़ाई के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
  • गोधूलि मुहूर्त: यह सूर्यास्त के समय का मुहूर्त है, जो विवाह और अन्य शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।

शुभ कार्यों के लिए महत्वपूर्ण मुहूर्त

  • विवाह के लिए मुहूर्त: गुरु और शुक्र तारा उदय होने के समय देखे जाते हैं।
  • गृह प्रवेश मुहूर्त: वसंत पंचमी और अक्षय तृतीया के समय शुभ गृह प्रवेश किया जाता है।
  • नामकरण मुहूर्त: जन्म के ग्यारहवें दिन विशेष मुहूर्त देखा जाता है।

नक्षत्र और मुहूर्त का वैज्ञानिक आधार

सनातन धर्म में ज्योतिष के अनुसार, चंद्रमा का प्रभाव मानव जीवन पर बिशेष रूप से पड़ता है, जिससे नक्षत्रों का महत्व और बढ़ जाता है। विज्ञान भी यह मानता है कि चंद्रमा के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा आता है और मनुष्य का शरीर 70% पानी से बना होता है, इसलिए चंद्रमा और नक्षत्रों का मानव पर मानसिक और शारीरिक प्रभाव पड़ता है।

मुहूर्त का वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि जब सूर्य और चंद्रमा किसी विशेष कोण पर होते हैं, तो उनका ऊर्जा प्रभाव सबसे अधिक शुभ माना जाता है। यह सिद्धांत किसी कार्य की सफलता और मनःस्थिति को प्रभावित कर सकता है।

नक्षत्र और मुहूर्त सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति और ज्योतिष शास्त्र का एक अभिन्न अंग हैं। शुभ कार्यों की सिद्धि और सफलता के लिए नक्षत्रों और मुहूर्तों का सही ज्ञान होना आवश्यक है। विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। इसलिए, किसी भी कार्य को शुभ समय पर करने से उसकी सफलता की संभावना अधिक होती है।

यदि आप अपने जीवन में सुख-शांति और सफलता चाहते हैं, तो नक्षत्र और मुहूर्त का ध्यान रखें और शुभ घड़ी में ही अपने महत्वपूर्ण कार्य करें।

ज्योतिष शास्त्र में ग्रह

सनातन धर्म में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कुंडली में नौ ग्रह होते हैं. ये ग्रह हैं, सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, और केतु. इन ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही व्यक्ति का भविष्य और स्वभाव का पता चलता है। ज्योतिष शास्त्र में, सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है और सूर्य को समस्त जगत में तेज का देवता भी कहा जाता है.

ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। सनातन धर्म में ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु (उत्तर अथवा आरोही चंद्र आसंधि) और केतु (दक्षिण अथवा अवरोही चंद्र आसंधि)।

 

 

 

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