देवभूमि उत्तराखंड में 49 रोपवे बनाने की योजना है जिससे साल के हर मौसम में पर्यटकों, यात्रीयों, और निवासियों का आना-जाना, दर्शन, धूमना फिरना बिल्कुल आसान हो जायगा. ‘आसमानी रास्ते’ या ‘रोपवे’ के सभी प्रोजेक्ट केंद्र की पर्वत माला स्कीम के तहत प्रस्तावित किए गए हैं.
केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित इन 49 रोपवे के अलावा उत्तराखंड की राज्य सरकार भी तीन अन्य रोपवे पीपीपी मॉडयूल पर बना रही है। इन प्रस्तावित में बहु-प्रतीक्षित और अति-आवश्यक, केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के लिए रोपवे निर्माण जल्द शुरू होगा.
धार्मिक और पर्यटक स्थल रोपवे से जुड़ेंगे
उत्तराखंड में प्रस्तावित 49 रोपवे प्रोजेक्ट से राज्य के धार्मिक और पर्यटक स्थल जुड़ेंगे.
देवभूमि उत्तराखंड आने वाले सालों में रोपवे स्टेट के नाम से भी जाना जाएगा. प्रदेश में एक दो नहीं 49 से अधिक रोपवे लगाने की तैयारी है. जिनमें से दो रोपवे केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के निर्माण के लिए टेंडर प्रक्रिया भी शुरू होने वाली है. उत्तराखंड में विषम परिस्थतियों वाले हेमकुंड साहिब के लिए 12 किलोमीटर और केदारनाथ ट्रेक के लिए 13 किलोमीटर लंबे दो रोपवे प्रोजेक्ट को इसी महीने मंजूरी दे दी है. आशा है, आने वाले दिनों में जल्द ही काम शुरू हो जाएगा.
काठगोदाम से हनुमानगढ़ी, नैनीताल के लिए 14 किलोमीटर लंबे रोपवे की भी डीपीआर तैयार कर ली गई है. भविष्य में राज्य के अन्य हिस्सों में भी ऐसे 49 रोपवे बनाए जाएंगे. जिनमें उत्तरकाशी में सात, नैनीताल में चार, टिहरी में चार, पिथौरागढ़ में पांच, अल्मोड़ा में सात, पौडी में आठ, चमोली में तीन, बागेश्वर में चार रोपवे प्रस्तावित हैं. जिनका केंद्रीय एजेंसी नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक मैनजमेंट इन दिनों फिजिबिलिटी टेस्ट कर रही है.
पर्यटन विकास परिषद के निदेशक अवस्थापना दीपक खंडूरी का कहना है कि इनमें से दो प्रोजेक्ट केदारनाथ और हेमकुंड बिडिंग प्रोसेस में हैं. चार रोपवे प्रोजेक्ट की प्री फिजिबिलिटि स्टडी रिपोर्ट तैयार हो चुकी है. छह रोपवे की प्री फिजिबिलिटि रिपोर्ट पाइप लाइन में है. 35 अन्य रोपवे प्रोजेक्ट की प्री फिजिबिलिटि स्टडी शुरू की जा रही है. ये सभी प्रोजेक्ट केंद्र की पर्वत माला स्कीम के तहत प्रस्तावित किए गए हैं. इन 49 रोपवे के अलावा राज्य सरकार तीन अन्य रोपवे भी पीपीपी मॉडयूल पर बना रही है. जिनके निर्माण का काम चल रहा है.
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, देहरादून से मसूरी के बीच रोपवे निर्माणाधीन है, जिसकी लंबाई साढे पांच किलोमीटर- जानकीचट्टी-यमुनोत्री टेंपल की साढे़ तीन किलोमीटर, थुलीगाड से पूर्णागिरी मंदिर एक किलोमीटर लंबाई रहेगी.
पर्यटन विकास परिषद के निदेशक अवस्थापना दीपक खंडूरी का कहना है कि ये तीनों रोपवे 2027 तक पूरी तरह अस्तित्व में आ सकते हैं. सचिव पर्यटन सचिव कुर्वे का कहना है कि ये सभी 49 रोपवे राज्य के धार्मिक और पर्यटक स्थलों को जोड़ते हैं. यानि की इन रोपवे के अस्तित्व में आने के बाद राज्य के प्रमुख धार्मिक और पर्यटक स्थल रोपवे से कनेक्ट हो जाएंगे. यहां पहुंच आसान होने पर राज्य में पर्यटन और तीर्थाटन को नए पंख लगेंगे.
देवभूमि उत्तराखंड
अपने धार्मिक महत्व और पूरे राज्य में फैले तीर्थ स्थलों सहित असंख्य हिंदू मंदिरों के कारण, उत्तराखंड को आमतौर पर “देवभूमि” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “देवताओं की भूमि।”
पूरे भारत की सबसे विशाल और पवित्रत नदियाँ देवभूमि उत्तराखंड से ही निकलती हैं। जिनमें गंगा और यमुना प्रमुख हैं।उत्तराखंड छोटे चार धाम के लिए प्रसिद्ध है, जिसका अर्थ है ‘चार धामों की यात्रा’। उत्तराखंड में इन चार धार्मिक स्थानों का प्रतिनिधित्व बद्रीनाथ (भगवान विष्णु को समर्पित), केदारनाथ (भगवान शिव को समर्पित), गंगोत्री (गंगा नदी का पवित्र उद्गम) और यमुनोत्री (यमुना नदी का पवित्र उद्गम) करते हैं।
हिमालय के पहाड़ों में स्थित देवभूमि उत्तराखंड का प्रथम और प्राचीनतम नगर अल्मोड़ा माना जाता है, यह पहले कातुरी राजा बालिकदेव के राज्य में था। उन्होंने इस प्रमुख हिस्से को एक गुजराती ब्राह्मण श्री चांद तिवारी को दान दिया। बाद में जब बरामंडल में चन्द साम्राज्य की स्थापना हुई थी, तब कलोयान चंद ने 1568 में इसके केंद्र में स्थित अल्मोड़ा शहर की स्थापना की थी।
उत्तराखंड के मूल निवासी कोल, किरात, खस, शक, नाग, कुणिंद, यौद्धेय आदि को माना जाता है जबकि, खस को सबसे प्राचीन जाति माना जाता है, जो एक खस (खश) प्राचीन हिन्द-आर्य जनजाति थी। यूरोपीय स्रोतों के वर्णन के अनुसार खस जनजाति उत्तर-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में रहती थी. महाभारत के अनुसार खस लोग गंधर्व, त्रिगर्त और मद्र साम्राज्यों के समय भी थे।
आम तौर पर उत्तराखंड के मूल निवासियों को उत्तराखंडी अथवा उनके मूल स्थान के आधार पर गढ़वाली या कुमाऊंनी भी कहा जाता है.