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Friday, July 4, 2025

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पीएम मोदी के इंटरव्यू से पाकिस्तान ख़फ़ा चीन ख़ुश

पीएम मोदी ने अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन को दिए इंटरव्यू में कहा था कि पाकिस्तान से शांति की हर कोशिश का परिणाम नकारात्मक निकला है.

पीएम मोदी ने कहा था कि वह शांति की कोशिश में ही लाहौर चले गए थे और 2014 में शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को न्योता दिया था.

इतिहास में कई बार ऐसा देखने को मिला है कि,  सरकारी कंपनी को अधिकारी और नेता मिलकर खा पी कर खतम करके, बचीखुची इमारत और जमीन को सिक्युरिटी गार्ड और उनके पालतू कुत्तों के हवाले कर विदेश की राह पकड़ लेते हैं लेकिन यहाँ तो पूरे पाकिस्तान देश को, उसके संसाधनों को भ्रष्ट सेना और भ्रष्ट राजनेताओं के गठजोड़ द्वारा खा पी कर खतम करके, बचीखुची बंजर जनता और जमीन को चीन और आतंकवादीओं के हवाले कर विदेश भाग गए।

सेना और राजनेताओं के इस भ्रष्ट गठबंधन के कारण आज, अमीर हो या गरीब, हर नौजवान पाकिस्तान की जमीन से बाहर निकालना चाहता है क्योंकि यदि वह मुल्क में रहा तो या आतंकवादी बना दिया जाएगा और आतंकवादी न बन पाने की सूरत में फौज दुश्मन देश का जासूस बना कर जन्नत भेज देगी।

पीएम मोदी ने कहा था कि दुनिया में कहीं भी कोई आतंकवादी घटना होती है तो उसका सूत्र पाकिस्तान से निकल आता है.

अब पीएम मोदी की इस टिप्पणी पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताते हुए प्रतिक्रिया दी है.

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को कहा, ”भारत के प्रधानमंत्री की टिप्पणी तथ्यों से परे है और एकतरफ़ा है. उन्होंने अपनी सुविधा के हिसाब से जम्मू-कश्मीर विवाद को छोड़ दिया जबकि अब भी पिछले सात दशकों से इसका कोई समाधान नहीं मिला है. ऐसा तब है, जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र, पाकिस्तान और कश्मीर के लोगों को आश्वस्त किया था.”

प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी को ख़ारिज करते हुए पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा, ”ख़ुद को पीड़ित बताने के लिए भारत काल्पनिक नैरेटिव गढ़ता है लेकिन पाकिस्तान की ज़मीन पर आतंकवाद को शह देने के आरोप से बच नहीं सकता है. एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के बदले भारत को विदेशी ज़मीन पर आतंकवाद की साज़िश और टारगेटेड किलिंग का अपना रिकॉर्ड देखना चाहिए. पाकिस्तान हमेशा से नतीजे हासिल करने वाले संवाद की वकालत करता रहा है, जिनमें जम्मू-कश्मीर का विवाद भी शामिल है.”

चीन ने किया स्वागत

हालांकि इसी इंटरव्यू में पीएम मोदी ने चीन के लिए जो कहा, वो बिल्कुल अलग है और चीन के विदेश मंत्रालय ने इसका स्वागत किया है.

पीएम मोदी ने चीन को लेकर कहा, ”हमारी कोशिश है कि चीन के साथ मतभेद कलह में ना बदले. 2020 में सीमा पर जो घटना घटी, उससे हमारी दूरियां बढ़ गई थीं. लेकिन राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात के बाद सीमा पर स्थिति सामान्य हो रही है. चीन और भारत के बीच स्पर्धा स्वाभाविक है लेकिन संघर्ष नहीं होना चाहिए.”

चीन के विदेश मंत्रालय ने पीएम मोदी की इस टिप्पणी का स्वागत करते हुए सोमवार को कहा, ”भारत-चीन संबंधों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सकारात्मक बयान का चीन स्वागत करता है. पिछले साल अक्तूबर में रूस के कज़ान में पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात हुई थी और इस मुलाक़ात से द्विपक्षीय संबंधों को लेकर एक रणनीतिक मार्गदर्शन मिला था.”

चीन को लेकर पीएम मोदी की भाषा बिल्कुल अलग थी और पाकिस्तान को लेकर बिल्कुल अलग. ज़ाहिर है इसी के आधार पर दोनों देशों के विदेश मंत्रालय ने जवाब भी दिया है.

तुलसी गबर्ड के भारत में होने की चर्चा

पाकिस्तान में पीएम मोदी के इंटरव्यू के अलावा अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस की निदेशक तुलसी गबर्ड के भारत दौरे की भी काफ़ी चर्चा हो रही है.

थिंक टैंक सनोबर इंस्टिट्यूट के निदेशक डॉ क़मर चीमा ने तुलसी गबर्ड के भारत दौरे पर कहा, ”तुलसी गबर्ड मोदी साहब से मिली हैं और उन्होंने रुद्राक्ष की माला उपहार में दी है. बदले में मोदी साहब ने गंगाजल गिफ़्ट किया है. इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि सहयोग का स्तर क्या है. अमेरिका और भारत के बीच का संबंध किस स्तर पर जा रहा है, हमें इसे समझने की ज़रूरत है.”

इससे पहले पाकिस्तान के बलूचिस्तान में जाफ़र एक्सप्रेस पर हमले को लेकर भारत पर कई तरह की बातें की जा रही थीं. इस हमले के लिए भी पाकिस्तान ने भारत पर उंगली उठाई थी. हालांकि पाकिस्तान के आरोपों को ख़ारिज करते हुए भारत ने कहा था, पूरी दुनिया जानती है कि वैश्विक आतंकवाद की पनाहगाह कहाँ है.

पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार नजम सेठी ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल समा टीवी से कहा था, ”बीएलए ने जिस तरह से जाफ़र एक्सप्रेस पर हमला किया वो पूरी तरह से सुनियोजित था. हमें इसे समझना चाहिए था कि भारत ने मुंबई और कश्मीर के लिए माफ़ नहीं किया था और बीजेपी सत्ता में आ रही है तो वो बदला लेगी.”

”हमें इसे लेकर पहले ही सतर्क हो जाना चाहिए था. जो अब हम रूल्स ऑफ गेम बदलने की बात कर रहे हैं, वो दस साल पहले ही बदल जाना चाहिए था. अजित डोभाल ने स्पष्ट रूप से 2014 में कहा था कि अगर पाकिस्तान कश्मीर में हमला कराएगा तो हम बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग करेंगे.”

अजित डोभाल ने 2014 में मोदी सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने से तीन महीने पहले 21 फ़रवरी 2014 को तमिलनाडु के तंजावुर में नानी पालकीवाला मेमोरियल लेक्चर में कहा था, ”पाकिस्तान हमसे कई गुना ज़्यादा नाज़ुक स्थिति में है. उन्हें पता है कि भारत ने ख़ुद को डिफेंसिव मोड से डिफेंसिव-ऑफेंसिव की ओर रुख़ किया तो इसे वे झेल नहीं पाएंगे. आप एक बार मुंबई कर सकते हैं पर आप बलूचिस्तान खो सकते हैं.”

क्या कह रहे हैं पाकिस्तानी एक्सपर्ट

पीएम मोदी ने पाकिस्तान को लेकर जो कुछ भी कहा है, उस पर वहाँ के पूर्व राजनयिक और पत्रकार भी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. मई 2014 में नरेंद्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित थे.

अब्दुल बासित ने एक वीडियो पोस्ट कर बताया है कि नवाज़ शरीफ़ को जब नई दिल्ली शपथ ग्रहण समारोह में आने का न्योता मिला तो इस पर फ़ैसला लेना बहुत आसान नहीं था. बासित ने कहा कि पाकिस्तान में लोग इसके पक्ष में थे कि नवाज़ शरीफ़ को शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होना चाहिए.

अब्दुल बासित ने कहा, ”मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने एकतरफ़ा बातें कही हैं. जहाँ तक शपथ ग्रहण समारोह में नवाज़ शरीफ़ को आमंत्रित करने की बात है, तो इसमें कोई शक नहीं है, भारत ने बुलाया था. लेकिन भारत ने केवल नवाज़ शरीफ़ को ही नहीं बल्कि सार्क देशों के सारे प्रधानमंत्रियों को बुलाया था. लेकिन नवाज़ शरीफ़ को जब भारत से न्योता मिला तो पाकिस्तान में बहुत विरोध था. इसके बावजूद नवाज शरीफ़ ने भारत आने का फ़ैसला किया था.”

अब्दुल बासित ने कहा, ”अगर भारत वाक़ई चाहता है कि पाकिस्तान के साथ ताल्लुकात अच्छे हों तो बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में अनुच्छेद 370 हटाने की बात को क्यों शामिल किया था? मैं 2014 के चुनाव की बात कर रहा हूँ. मोदी अपनी शर्तों पर पाकिस्तान से ताल्लुकात अच्छा करना चाहते हैं.”

”भारत जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पाकिस्तान से संबंध अच्छा करना चाहता है. मोदी साहब ने पाँच अगस्त 2019 को जो किया, क्या वो सही था? भारत ने भी कई मामलों में मनमानी की है. जम्मू-कश्मीर के बिना पाकिस्तान से शांति संभव नहीं है. भारत तो अब हिन्दू बहुसंख्यकवाद वाला देश बन गया है.”

अगर आप बलोच हैं तो एक दिन उठा लिए जाएंगे

पाकिस्तान के एक वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक मोहम्मद हनीफ़ अपने व्लॉग में लिखते हैं, ‘अगर आप बलोच हैं तो एक दिन उठा लिए जाएंगे’ इसके बारे में वह विस्तार से लिखते,  “मैंने बलूचिस्तान के कई दोस्तों को देखा है, उनका बेटा थोड़ा बड़ा हो जाता है, कॉलेज की उम्र का हो जाता है, तो वे अपने बेटे को या तो पंजाब या सिंध के कॉलेज में भेज देते हैं.

मैंने पूछा ‘क्यों’?

उन्होंने कहा, ‘यहां बलूचिस्तान में लड़का कॉलेज जाएगा और सियासी हो जाएगा और उसे उठा लिया जाएगा .’ अगर सियासी न भी हुआ, किसी राजनेता के साथ बैठकर चाय पी ली, फिर भी उठा लिया जाएगा . ‘अगर वह कुछ भी न करे, लाइब्रेरी में, हॉस्टल के कमरे में अकेले बैठकर बलोची भाषा की किताब पढ़ रहा होगा तो भी उठाया जाएगा.’ इसलिए उसे पंजाब भेज दिया जाता है , ताकि हमारा बेटा उठाया न जाए.’

“अगर आप बलूच हैं, तो संभावना है कि आपको एक दिन उठा लिया जाएगा.”

फिर पिछले सालों में बलूच तालिबान पंजाब से भी उठाये जाने लगे हैं .

यह पूरी नस्ल, जो पहाड़ों पर चढ़ी है, यह हमने अपने हाथों से तैयार की है. अगर लड़कों को कम उम्र में ही समझा दिया जाए कि चाहे आप कितने भी गैर-राजनीतिक हों, चाहे कितने भी पढ़े-लिखे हों, चाहे पाकिस्तान जिंदाबाद के कितने भी नारे लगा लें, अगर आप बलूच हैं, तो संभावना यही है कि एक दिन आपको उठा लिया जाएगा .

और फिर सारी जिंदगी आपकी माताओं, आपकी बहनों को आपकी फोटो लेकर विरोध प्रदर्शनों के कैंपों में बैठे रहना है. और उनकी भी किसी ने नहीं सुननी.

पहाड़ों का रास्ता हमने खुद दिखाया है. बाकी ज़हर भरने के लिए हमारे पास पहले से ही दुश्मनों की कमी नहीं है .

ये आक्रमणकारी बलूच आए कहाँ से हैं? इस पर सरकार के पास सीधा सा जवाब है . वह कहती हैं कि ये भारत के, अफगानिस्तान के और न जाने किन-किन देशों के एजेंट हैं.

भारत की बात तो समझ आती है कि वह हमारा पुराना दुश्मन है और वह करेगा ही .

अफ़गानिस्तान तो हमारा मुस्लिम भाई था. हमने कितने युद्ध उनके साथ मिलकर लड़े हैं और जीते भी हैं.

और उन्होंने अब बलूचिस्तान में हमारे साथ ऐसा क्यों किया. बलूचिस्तान में हाइजैक होने वाली ट्रेन में जो लोग मारे गए हैं, वे वास्तव में मजदूरी करने वाले लोग थे .

जिन्होंने पहाड़ से उतर कर मारा है , वे मारने और मरने के लिए आए थे. उन्हें आतंकवादी कहना है तो कह लीजिये. आलोचना करनी हो तो कर लो. ऑपरेशन पर ऑपरेशन लॉन्च करते जायो.

बलूचिस्तान की नई बगावती फसल

मोहम्मद हनीफ़ अपने व्लॉग में लिखते हैं, लेकिन ये जो लड़के पहाड़ों से आए थे, ये पहले यहाँ हमारे ही स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ते थे. बलूचिस्तान की यह नयी बगावत लगभग 25 वर्ष पहले शुरू हुई थी .

बल्कि, सच तो यह है कि तब जनरल मुशर्रफ ने बलूच बुजुर्ग अकबर बुगती को रॉकेट लॉन्चर हमले में मारकर इसकी शुरुआत खुद की थी. और साथ ही सीने पर हाथ मारते हुए यह भी कहा था कि – देय विल नॉट नाउ व्हाट हिट देम .

अब, पच्चीस साल बाद, यह प्रश्न कुछ घिसा-पिटा सा हो गया है और हम एक-दूसरे से पूछ रहे हैं – व्हाट जस्ट हिट अस?

इतिहास में कई बार ऐसा देखने को मिला है कि,  सरकारी कंपनी को अधिकारी और नेता मिलकर खा पी कर खतम करके, बचीखुची इमारत और जमीन को सिक्युरिटी गार्ड और उनके पालतू कुत्तों के हवाले कर विदेश की राह पकड़ लेते हैं लेकिन यहाँ तो पूरे पाकिस्तान देश को, उसके संसाधनों को भ्रष्ट सेना और भ्रष्ट राजनेताओं के गठजोड़ द्वारा खा पी कर खतम करके, बचीखुची बंजर जनता और जमीन को चीन और आतंकवादीओं के हवाले कर विदेश भाग गए।

सेना और राजनेताओं के इस भ्रष्ट गठबंधन के कारण आज, अमीर हो या गरीब, हर नौजवान पाकिस्तान की जमीन से बाहर निकालना चाहता है क्योंकि यदि वह मुल्क में रहा तो या आतंकवादी बना दिया जाएगा और आतंकवादी न बन पाने की सूरत में फौज दुश्मन देश का जासूस बना कर जन्नत भेज देगी।

पाकिस्तान की इन्ही आंतरिक समस्याओं के कारण ही इंटरव्यू में भारत के पीएम मोदी ने कहा कि पाकिस्तान से शांति की हर कोशिश का परिणाम नकारात्मक निकला है.

 

कमलेश पाण्डेय
अनौपचारिक एवं औपचारिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय, तथा समसामयिक पहलुओं, पर्यावरण, भारतीयता, धार्मिकता, यात्रा और सामाजिक जीवन तथा समस्त जीव-जंतुओं पर अपने विचार व्यक्त करना।

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