30.7 C
New Delhi
Friday, July 4, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

विहान की आहट: वंदना बाजपेयी की ‘जरूरी को बचा लेने का प्रयास बताती’ किताब

विहान की आहट (वंदना बाजपेयी) : रोजमर्रा के जीवन में कई ऐसी सच्चाइयाँ हैं जिनका सामना ना चाहते हुए भी हमें करना ही पड़ता है। जीवन की इन सच्चाइयों का सामना करने की हिम्मत देता है संवेदनशील लेखिका वंदना बाजपेयी जी का यह कथा संग्रह ‘विहान की आहट’…

बुरे दिन आते हैं, कठिन समय आता है, ऐसा लगता है कि सब कुछ समाप्त हो गया, अब बस अंधेरा ही अंधेरा है। लेकिन हर रात के बाद सुबह होती है और यह तय है। बस उस सुबह तक इंतज़ार करने का साहस और धैर्य हममें होना चाहिए। विहान की आहट (वंदना बाजपेयी) की ये कहानियाँ कहीं ना कहीं वह साहस और धैर्य देती है। उन लोगों के बारे में बताती हैं जिनके जीवन में गहरे दुःख और गम्भीर समस्याएँ थीं लेकिन उसके बावजूद भी उनका जीवन चलता रहा।

विहान की आहट (वंदना बाजपेयी) की ये कहानियाँ बताती हैं कि हर इंसान अपनी एक लड़ाई लड़ रहा है।

कृति ‘समाज क्या कहेगा’ के प्रश्न में उलझकर अपने जीवन का अहम फैसला नहीं ले पा रही है। उसकी मॉम अपने डिप्रेशन से लड़ रहीं हैं।

अम्मा जी शहरों के अमानवीय वातावरण में मूक सिम्मो को बचाने की जद्दोजहद में लगी हुई हैं।

मिताली बड़ी हिम्मत से कैंसर से लड़ रही है और दूसरों को भी लड़ना सिखा रही है। और उसकी प्रेरणा है ज्योत्सना जो कहती है कि जो कुछ भी है हम ही ने चुना है।

आरती स्वयं का अस्तित्व बनाने के लिये लड़ रही है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की बात करने वाले इस समाज में महिलाओं को कलम चलाने के लिए, व्यक्त होने के लिए भी इजाज़त लेना होती है। लेखिका के शब्दों में “संवेदनशील लोगों की असंवेदनशील अकुलाहटें” झेलना पड़ती है।

आभा जैसी होनहार लड़कियाँ शिक्षा के मूलभूत अधिकार के लिए लड़ रही हैं। जहाँ मोबाइल विकास के लिए था वहीं उसका दुरुपयोग किसी के भविष्य का विनाश कर सकता है।

इसीलिए लेखिका विहान की आहट (वंदना बाजपेयी) की प्रस्तावना में ही कहती हैं, “विकास के साथ बदले जीवन ने कुछ ऐसे प्रश्न उठाए हैं जिनके उत्तर पुरानी चाबियों से नहीं पाए जा सकते।”

सौम्या की लड़ाई तो और भी अलग है। वह व्यावहारिकता और संवेदनशीलता के बीच में उलझी हुई है। और उसे दृढ़ विश्वास है कि “यहाँ का ग़लत वहाँ सही सिद्ध होगा।”

खुड़पैची अम्मा बेचारी पूरे पर्यावरण को बचाने के लिए अपना छोटा सा योगदान दे रही हैं। राम सेतु बनते समय गिलहरी ने दिया था ना वैसा!

सच ही तो सोचती हैं वे, प्रकृति प्रदत्त प्रत्येक वस्तु को सहेजना, उसे व्यर्थ न होने देना ही हमारी संस्कृति है।

‘धुंधले उजाले’ मुझे बहुत ही पसंद आयी। सोनाक्षी का हायवे से ना जाकर कच्चे-पक्के रास्तों से जाना और मंज़िल पा लेना। और अब शायद सौरभ भी अपनी मंजिल पा लेगा, क्योंकि उसे लगने लगा है कि हमेशा दरवाजे खुलने से ही नहीं, कई बार उनके बंद होने से भी नये रास्ते खुलते हैं।

राधा बेचारी आभासी दुनिया की चकाचौंध में खोई है। और खुद को उस दुनिया में ‘फिट’ करने की बेवजह कोशिश में लगी है।

सभी अपनी- अपनी लड़ाइयाँ लड़ रहे हैं, जो सफल हो गये वह अगली चुनौती के लिए तैयार है और जो असफल हो गये वे विहान की आहट पाकर सम्हल‌ रहे हैं।

‘वो फोन कॉल’ की तरह ही इस पुस्तक का भी सबसे सशक्त बिंदु है वंदना जी की भाषा शैली! उनके लेखन‌ में मिट्टी की महक है। उनकी जड़ें देश की उन्नत संस्कृति से जुड़ी हुई हैं और दृष्टिकोण व्यापक है जो समाज को विकास की ओर अग्रसर करता है।

किताब में छोटी-छोटी बातों को इस खूबसूरती के साथ रखा है कि हर किरदार हमें अपना-सा लगने लगता है।

लेखिका कहती हैं, इन कहानियों में गैर- ज़रूरी को तोड़ना और ज़रूरी को बचा लेने का प्रयास भर है।

मेरा विश्वास है कि लेखिका इस प्रयास में कामयाब रही है। यदि सचमुच अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ कुछ पढ़ना चाहते हैं, तो ज़रूर पढ़ें ‘विहान की आहट’!

लेखिका को आगामी पुस्तक के लिए अग्रिम शुभकामनाएँ! इंतज़ार रहेगा!

पुस्तक: विहान की आहट

लेखिका: वंदना बाजपेयी

प्रकाशक: भावना प्रकाशन

मूल्य: २५०/-

पृष्ठ संख्या: १६८

 

Popular Articles