मुर्शिदाबाद: भारत के पश्चिम बंगाल राज्य का बांग्लादेश कि सीमा से लगा मुर्शिदाबाद, कट्टरपंथियों द्वारा हिंदू अल्पसंख्यकों पर कि गई हिंसा से चर्चा में आया है। दशकों पहले तक सर्व धर्म समभाव कि नीति पर चलने वाला यह मुर्शिदाबाद शहर, बांग्लादेशी मुस्लिम कट्टरपंथी घुसपैठियों और चुनाव में वोट के लिए उनकी राजनैतिक और आर्थिक हिफाजत करने वालों के कारण शहर हिंदुओं पर हिंसा का शिकार हो गया है।
मुर्शिदाबाद में हिंदुओं पर हुई हिंसा के संबंध में बंगाल कि विपक्षी पार्टी बीजेपी को छोड़कर सभी दल या तो चुप है या फिर हिंसा का दोष एक दूसरे पर डालकर राजनैतिक रोटी सेंकने कि कोशिश कर रहे हैं।
बंगाल को देखकर अब ऐसा लगने लगा है कि शायद वामपंथी सरकारों के राज में हिंदू इतना मजबूर, निरीह और बेबस नहीं था जितना पिछले कुछ दशकों में हो गया है।
मुर्शिदाबाद का इतिहास
अंग्रेजों के आगमन से पहले, मुर्शिदाबाद बंगाल की राजधानी और एक समृद्ध शहर हुआ करता था । भारतीय इतिहास में इसका बहुत महत्व है क्योंकि 1757 में अंग्रेजों ने प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला को हराया था, जिसके बाद पूरा देश ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन आ गया था. मुर्शिदाबाद एक ऐतिहासिक शहर है।
यह गंगा की सहायक नदी भागीरथी पूर्वी तट पर बहती है जो मुर्शिदाबाद को दो भागों बांटती है।
बंगाल का मुर्शिदाबाद पीतल और बेल मेटल के बर्तनों के लिए भी प्रसिद्ध है। रेशम बुनाई उद्योग मुर्शिदाबाद का प्रमुख कुटीर उद्योग है। कच्चे रेशम की बुनाई प्रागैतिहासिक काल से ही प्रमुखता से विकसित रही है। हालाँकि पश्चिम बंगाल में रेशम उद्योग मुर्शिदाबाद में केंद्रित है।
मूल रूप से मखसूदाबाद कहलाने वाले मुर्शिदाबाद शहर की स्थापना 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर ने की थी । 1704 में औरंगजेब के आदेश के बाद) नवाब (शासक) मुर्शिद कुली खान ने राजधानी को ढाका (अब बांग्लादेश) से मखसूदाबाद स्थानांतरित कर दिया और शहर का नाम बदलकर मुर्शिदाबाद रख दिया।
कई दशकों पहले तक यहां मुर्शिदाबाद में बौद्ध, हिंदू, जैन, मुस्लिम और ईसाई धर्म और परंपराओं का अनूठा संगम देखने को मिलता था. परंतु आजादी के बाद से यहां पर बांग्लादेश के घुसपैठियों और उनकी चुनाव में वोट के लिए उनकी राजनैतिक हिफाजत के चलते कट्टरपंथियों की संख्या ज्यादा हो गई. अब जिले के अधिकांश लोग लगभग 70 फीसदी मुस्लिम हैं और हिंदुओं की आबादी घटकर 30 प्रतिशत के करीब रह गई है।
प्रथम राजा शशांक की राजधानी था
मुर्शिदाबाद जिले में कर्णसुबर्णा ऐसी जगह है जिसे प्राचीन राजा शशांक की राजधानी माना जाता है। यह क्षेत्र बंगाल के शक्तिाशली राजा शशांक के अधिन था। शशांक प्राचीन बंगाल का पहला राजा था। माना जाता है कि उसने 600 से 625 ई. तक गौड़ साम्राज्य पर शासन किया था। कामरूप के हर्षवर्धन और भास्करवर्मन उसके समकालीन थे।
कहते हैं कि इस मुर्शिदाबाद क्षेत्र को सबसे पहले मुगल बादशाह अकबर ने 16वीं शताब्दी में फतह किया था। यहां पर हिंदू, जैन, बौद्ध और ईसाइयों के अब उतने स्थल नहीं बचे। उन्हें हमलों के दौरान तोड़ दिया गया या बहुत से अब खंडहर में बदल गए। मुर्शिदाबाद में अब भी मुस्लिम शासन की कुछ निशानी देखि जा सकती है जैसे, यहां पर हजारद्वारी पैलेस, निजामत इमामबाड़ा, किरितेश्वरी मंदिर, वसीफ मंजिल, नशीपुर राजबाड़ी, कटरा मस्जिद, जहांकोसन तोप, मुरादबाग महल और खुशबाग कब्रिस्तान आदि।
यहां पर बंगाल के अंतिम नवाब अलीवर्दी खां और अंग्रेजों द्वारा प्लासी की लड़ाई में पराजित उनके पोते सिराजुद्दौला की कब्रें हैं।
कौन था सूर्य नारायण मिश्रा या मुर्शिद कुली खान?
मुर्शिद कुली खान बंगाल का कट्टरपंथी और अत्याचारी शासक था। इसे मोहम्मद हादी के नाम से भी जाना जाता था। जिनका शासनकाल 1717 से लेकर 1727 तक रहा है। इनके नाम पर ही मुर्शिदाबाद नाम का शहर है। मुर्शिद कुली खान का जन्म एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
पश्चिम बंगाल में आज भी अगर किसी मुस्लिम शासक को सबसे ताकतवर, कट्टरपंथी और अत्याचारी शासक माना गया है तो वह मुर्शिद कुली खान था। मुर्शिद कुली खान का जन्म 1660 में हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उसका बचपन का नाम सूर्य नारायण मिश्रा था, उसका जन्म डेक्कन में हुआ। इतिहासकार जदुनाथ की किताब के अनुसार वह 10 साल हिंदू धर्म में रहकर पला-बड़ा था। उनके घर के हालात ऐसे थे कि माता-पिता अपने बच्चों का लालन-पालन नहीं कर पा रहे थे। इसलिए उन्होंने सूर्य नारायण को एक मुगल सरदार हाजी शफी को बेच दिया। शफी की कोई औलाद नहीं थी।
मासीर अल-उमारा नामक पुस्तक भी इस तथ्य का समर्थन करती है कि करीब 10 साल की उम्र में उसे हाजी शफ़ी नाम के एक फारसी को बेच दिया गया। उस फारसी ने उसका धर्मांतरण करके उसे मुसलमान बनाया। इसके लिए उसका खतना भी किया गया था। खतना के बाद उसका नाम मोहम्मद हादी रखा गया था।
मुर्शिद कुली खान बहुत बुद्धिमान था। मुर्शिद कुली खान बंगाल का प्रथम स्वतंत्र सूबेदार था। मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा इस पद पर नियुक्त किया गया था। मुर्शिद ने बंगाल को एक स्थिर राजनीतिक शक्ति प्रदान की और उसे समृद्ध बनाने का प्रयास किया। मुर्शिद कुली खाँ को ‘दक्षिण का टोडरमल’ भी कहा जाता है।
सूबेदार बनने के बाद ही उसने खुद को केंद्रीय नियंत्रण से मुक्त कर लिया और वह वह औरंगजेब को नजराने के रूप में बड़ी रकम भेजता रहता था। औरंगज़ेब के आदेश से मुर्शिद कुली खान अपनी राजधानी ढाका से मक़सूदाबाद ले आया और उसने उस नगर का नाम मुर्शिदाबाद रख दिया। कहते हैं कि उसके शासन में यह नियम था कि जो भी किसान अथवा जमींदार लगान न दे, उसको परिवार सहित मुस्लिम होना पड़ता था। जबकि मुस्लिमों को लगान की छूट थी।
मुर्शिदाबाद हिंसा अस्थिर बांग्लादेश और वहाँ पर बढ़ते कट्टरपंथ का एक कारण भी हो सकता है. बांग्लादेश से लगती सीमा असामान्य भू-भाग और जलवाऊ के कारण असुरक्षित रहती है. हालांकि सुरक्षा बल इस समस्या से निपटने की दिशा में बहुत अधिक प्रयासरत है।