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Monday, December 1, 2025

आदि शंकराचार्य के तप स्थल को क्यों कहते हैं सुलेमानी तख्त?

भारत के उत्तर में कश्यप ऋषि तपोभूमि कश्मीर के श्रीनगर की पहाड़ी पर स्थित एक मंदिर है जो आदि शंकराचार्य जी को समर्पित है। शंकराचार्य ने यहां आकर साधना की थी। इसलिए इस पहाड़ी को शंकराचार्य पर्वत भी कहते हैं।

शंकराचार्य पर्वत पर स्थित मंदिर (Adi Shankaracharya Mandir in Shri nagar) से पूरे श्रीनगर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। इसका ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व इसे कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक बनाता है। हालांकि स्थानीय मुस्लिम लोग इस पर्वत को हजरत सुलेमान का सुलेमानी तख्त मानते हैं।

हजरत सुलेमानी तख्त क्या है?

कश्मीर के मुस्लिम मानते हैं कि हजरत सुलेमान ने ही कश्मीर को बसाया था। कहते हैं कि एक बार हजरत सुलेमान ने हवा में उड़ते हुए कश्मीर का दौरा किया तो उन्होंने देखा कि यह इलाका पानी से भरा हुआ था। यहां पर रहने लायक जगह ही नहीं थी। तब हजरत सुलेमान ने जिन्नातों को हुकम दिया कि इस जगह को पानी से खाली किया जाए और इस जगह को रहने लायक बनाया जाए। इसके बाद ही यह कश्मीर वजूद में आया। हजरत सुलेमान हवा के जरिये जिस पहाड़ पर उतरकर बैठे थे उसे आज सुलेमानी तख्त कहते हैं।

सुलेमान या सोलोमन का इतिहास?

हजरत इब्राहिम और मूसा के बाद दाऊद और उसके बेटे सुलेमान को यहूदी धर्म में अधिक आदरणीय माना जाता है। मूसा का जन्म ईसा पूर्व 1392 को मिस्र में हुआ था। उस काल में मिस्र में फेरो का शासन था। इतिहास के अनुसार आज से 2,998 वर्ष पूर्व अर्थात 973 ईसा पूर्व में यहूदियों ने केरल के मालाबार तट पर प्रवेश किया। यहूदियों के पैगंबर थे मूसा, लेकिन उस दौर में उनका प्रमुख राजा था सोलोमन, जिसे सुलेमान भी कहते हैं। नरेश सोलोमन का व्यापार बेड़ा मसालों और प्रसिद्ध खजाने के लिए आया। आतिथ्य प्रिय हिन्दू राजा ने यहूदी नेता जोसेफ रब्‍बन को उपाधि और जागीर प्रदान की। बाद में यही यहूदी दक्षिण भारत देश से निकाल कर उत्तर में कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक बस गए।

सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इजरायल के व्यापार में खूब उन्नति हुई। सुलेमान का यहूदी जाति के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन 937 ई.पू. में सुलेमान साहब की मृत्यु हुई। माना जाता है कि ईसा से लगभग 3,000 वर्ष पूर्व अर्थात महाभारत के युद्ध के बाद अस्तित्व में आए यहूदी धर्म के 10 कबीलों में से एक कबीला कश्मीर में आकर रहने लगा और धीरे-धीरे वह हिन्दू तथा बौद्ध संस्कृति में घुल-मिल गया। आज भी उस कबीले के वंशज हैं लेकिन अब वे मुसलमान बन गए हैं। इसलिए कुछ मुसलमान मानते हैं कि कश्मीर को हजरत सुलेमान ने बसाया था। आज से 2962 वर्ष पहले हजरत सुलेमान हुए थे। यह सोचने वाली बात है कि हजरत सुलेमान के भारत में आने के पहले से ही कश्मीर अपने अस्तित्व में था तो उन्होंने कैसे जिन्नातों से कश्मीर की स्थापना करवाई होगी?

कश्यप ऋषि की तपोभूमि

कश्मीर के इतिहास की बात करें तो यहां पर 5 हजार वर्षों से मानव रह रहा है। अखनूर से प्राप्‍त हड़प्‍पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है। कश्यप ऋषि कश्मीर के पहले राजा थे अर्थात इस समस्त भू-भाग को उनकी तपोभूमि माना जाता है और यह उनके अधिकार क्षेत्र में आती थी।

किंवदंती के अनुसार कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का नाम था। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजा का भी साम्राज्य भी था।

राजतरंगिणी तथा नीलम पुराण की कथा के अनुसार कश्मीर की घाटी कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। कश्यप ऋषि ने यहां से पानी निकाल लिया और इसे मनोरम प्राकृतिक स्थल में बदल दिया। इस तरह कश्मीर की घाटी अस्तित्व में आई। हालांकि भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार खदियानयार, बारामूला में पहाड़ों के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह कश्मीर में रहने लायक स्थान बने।

राजतरंगिणी 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर राजा विजय सिम्हा (1129 ईसवी) तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं का प्रमाणिक दस्तावेज है।

ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में महान सम्राट अशोक ने कश्‍मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया था। बाद में यहां कनिष्क का अधिकार रहा।

आदि शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य जी ने हिमालय के कई क्षेत्रों में तप किया था जिसमें कश्मीर एक प्रमुख स्थल था, जहां उन्होंने शारदा मठ का निर्माण भी करवाया था।

आदि शंकराचार्य जी को शिव जी का अवतार मन गया है और उन्होंने हिमालय में ही पवित्र शिव तीर्थ केदारनाथ जी में समाधि ली थी। शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों की परंपरा और इतिहास के अनुसार उनका जन्म 508 ईस्वी पूर्व हुआ था और उन्होंने 474 ईसा पूर्व अपनी देह को त्याग दिया था। अर्थात वे 32 वर्ष तक ही जीवित रहे थे और आज से 2533 वर्ष पहले आदि शंकराचार्य हुई थे।

उल्लेखनीय है कि अभिनव शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ था और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में हुई थी। अक्सर इन्हें आदि शंकराचार्य से जोड़कर देखा जाता है।

शंकराचार्य ने पश्चिम दिशा में 2648 में जो शारदा मठ बनाया गया था उसके इतिहास की किताबों में एक श्लोक लिखा है।

युधिष्ठिरशके 2631 वैशाखशुक्लापंचमी श्री मच्छशंकरावतार:।

तदुन 2663 कार्तिकशुक्लपूर्णिमायां….श्रीमच्छंशंकराभगवत्।

पूज्यपाद….निजदेहेनैव……निजधाम प्रविशन्निति।

अर्थात 2631 युधिष्ठिर संवत में वैशाख शुक्ल पंचमी को आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। यदि हम उपरोक्त के मान से आदि शंकराचार्य के जन्म और मृत्यु को मानते हैं तो भगवान बुद्ध के 100 वर्षों के बाद आदि शंकराचार्य हुए।

आदि शंकराचार्य जी को शिवजू का अवतार भी कहा जाता है उन्होंने हिंदू धर्म के वैभव को पुनः स्थापित करने का कार्य किया और उसमें व्याप्त बुराई को भी मिटाने का पुण्य कार्य किया।  आदि शंकराचार्य जी एक महान दार्शनिक, धर्म सुधारक और अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे। उनका जन्म भारत वर्ष के दक्षिण में स्थित केरल राज्य के कालड़ी में हुआ था।  आदि शंकराचार्य जी ने भारतीय दर्शन और धर्म को नई दिशा दी, और उन्होंने सैकड़ों महत्वपूर्ण ग्रंथों और सूत्रों की रचना की जो वर्तमान परिपेक्ष्य में भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं।

 

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