Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में चिन्मय दास (Chinmoy Das) की सुनवाई के लिए कोई वकील नहीं ?
अगस्त में कट्टरपंथियों ने पाकिस्तान एवं अन्य विदेशी सहायता से बांग्लादेश की लोतांत्रिक सरकार को हटा कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था. और इसके बाद से अल्पंख्यकों के खिलाफ हिंसा का दौर जारी है लेकिन, अमेरिका सहित सभी तथाकथित संवेदनशील विदेशी सगठंन , समाचार एजेंसीज इस हिंसा पर चुपी साधे हुए है.
इस हिंसा का विरोध करने पर इस्कॉन और समाजसेवी और हिन्दू धार्मिक संगठन ‘सम्मिलित सनातनी जोत’ के नेता चिन्मय कृष्ण दास को हिरासत में ले लिया गया था
इसके बाद बांग्लादेश के चटगांव की अदालत में ‘सम्मिलित सनातनी जागरण जोत’ के प्रवक्ता चिन्मय दास की ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान के उनकी तरफ़ से कोई वकील पेश नहीं हुआ.
चिन्मय दास को 26 नवंबर को चटगांव के कोतवाली थाने में दर्ज देशद्रोह के मामले में कोर्ट में पेशी के बाद गिरफ़्तार कर लिया गया था.
कट्टरपंथियों, बार एसोसिएशन और सरकार की तरफ से धमकियों के चलते चिन्मय दास की तरफ़ से कोई वकील सामने नहीं आ रहा है.
इससे पहले उनकी पैरवी करने वाले एक वकील सैफ़ुल इस्लाम आलिफ़ की हत्या करदी गई थी।
मौजूदा पृष्ठभूमि में चटगांव की अदालत ने उनकी ज़मानत याचिका पर सुनवाई एक महीने के लिए टाल दी है. अब इस पर दो जनवरी को सुनवाई होगी.
26 नवंबर को चिन्मय कृष्ण दास की पेशी के दौरान हुई हिंसा, तोड़फोड़ और एडवोकेट सैफ़ुल इस्लाम आलिफ़ की मौत के बाद दायर मामले में अकारण सरकार ने 70 हिंदू वकीलों को भी अभियुक्त बनाया दिया है.
इनमें दास की ज़मानत याचिका दायर करने वाले वकील भी शामिल हैं. उनके अलावा ऐसे वरिष्ठ हिंदू वकीलों के नाम इसमें शामिल हैं, जो दास के पक्ष में अदालत में बहस कर सकते हैं.
पता चला है कि इसकी वजह से इन मामलों में अभियुक्तों की ज़मानत के लिए वकालतनामा पेश करने वाले वकीलों को दबाव और धमकी का सामना करना पड़ रहा है.
फ़ौजदारी क़ानून के विशेषज्ञों का कहना है कि किसी वकील को अभियुक्त के पक्ष में लड़ने की अनुमति नहीं देना, उसके क़ानूनी अधिकारों का उल्लंघन है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा है कि किसी भी अपराध के मामले में अभियुक्त को अपना पक्ष रखने का समुचित मौक़ा दिया जाना चाहिए.
आख़िर चिन्मय दास के मामले की पैरवी के लिए उनकी ओर से अदालत में कोई वकील मौजूद क्यों नहीं था?
इस सवाल पर सम्मिलित सनातनी जोत के केंद्रीय प्रतिनिधि एडवोकेट सुमन कुमार राय बीबीसी बांग्ला से कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि कोई वकील नहीं था. किसी वकील को उनकी ओर से पेश ही नहीं होने दिया गया. वहाँ विरोध का एलान किया गया था.”
राय ने दावा किया कि बीते दो दिनों के दौरान विभिन्न मामलों में अदालत में सुनवाई से पहले वकीलों को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा. वहाँ एक सभा में घोषणा की गई थी कि अभियुक्तों की पैरवी करने वाले वकीलों की सामूहिक पिटाई की जाएगी.
राय कहते हैं, “यहाँ जान से मारने की धमकी मिली है. ऐसे में कोई वकील अदालत में कैसे पेश होगा. इससे पहले कुछ हिंदू वकीलों के चेंबर में भी तोड़फोड़ की गई है.”
उनका दावा है कि यहाँ एक ऐसा डरावना माहौल बना दिया गया है कि कोई वकील अभियुक्तों की पैरवी करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता. वह बताते हैं कि बार एसोसिएशन के साथ बातचीत के बाद अदालत से परिस्थिति शांत होने पर जमानत की सुनवाई पहले करने का अनुरोध किया जाएगा.
उन्होंने कहा, “अगर यह अनुरोध नामंज़ूर होता है, तो मामला वापस लेने की याचिका दायर की जाएगी. मामला वापस लेने के बाद निचली अदालत में सुनवाई की कोशिश की जाएगी. अगर वहाँ भी याचिका नामंज़ूर हो जाती है तो हाई कोर्ट में अपील की जाएगी.”
सनातनी जोत ने मंगलवार को जारी एक बयान में कहा, बांग्लादेश के नागरिक के तौर पर हर व्यक्ति को क़ानूनी सहायता पाने का अधिकार है.
संगठन ने वकीलों के ख़िलाफ़ मामला दायर करने पर भी विरोध जताया है.
अमेरिका की प्रतिक्रिया (US Response on Bangladesh crisis)
अमेरिका के विदेश मंत्रालय की नियमित ब्रीफिंग के दौरान मंगलवार को सहायक प्रवक्ता वेदांत पटेल ने बांग्लादेश का ज़िक्र होने पर कहा था कि धार्मिक आज़ादी और मौलिक मानवाधिकार की रक्षा करना ज़रूरी है.
पटेल से सवाल किया गया था कि चिन्मय दास को कोई वकील नहीं मिल रहा है, ऐसे में अमेरिका क्या इस मुद्दे पर कोई क़दम उठाएगा?
इस पर पटेल का कहना था, “हमारे पास इस मामले का ब्योरा उपलब्ध नहीं है. लेकिन हम बार-बार इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि गिरफ़्तार लोगों को समुचित पैरवी का मौक़ा दिया जाना चाहिए.”