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Friday, July 4, 2025

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भीष्म अष्टमी पर करें तर्पण, जानिए मुहूर्त और पूजन विधि

भीष्म अष्टमी या भीष्माष्टमी (Bhishma Ashtami) को महाभारत महाकाव्य  के एक सम्मानीय और स्तंभ पात्र भीष्म पितामह की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है।

सनातन शास्त्रों के अनुसार, महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ने सूर्य देव के उत्तरायण में माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में अपना शरीर त्याग दिया था।। इसके लिए ही हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर एकोदिष्ट श्राद्ध किया जाता है और भीष्म अष्टमी मनाई जाती है।

भीष्म प्रतिज्ञा क्या हैं?

भीष्म पितामह, राजा शांतनु के पुत्र थे और उनका मूल नाम देवव्रत था, उन्होंने अपने पिता राजा शांतनु का विवाह सत्यवती से करवाने के लिए, आजीवन विवाह न करने और ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा की थी साथ ही उन्होंने  अपने पिता राजा शांतनु, हस्तिनापुर के राज्य और राजसिंहासन के प्रति हमेशा वफादार रहने की भी प्रतिज्ञा ली थी,  इस महान और कठिन प्रतिज्ञा के करना वह भीष्म कहलाये और उनकी इस प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से जाना जाता हैं

राजा शांतनु ने अपने पुत्र देवव्रत की इस भीष्म प्रतिज्ञाको सुनकर, उनको वरदान दिया था कि उन्हें अपनी मृत्यु का दिन ( इच्छामृत्यु ) चुनने की अनुमति होगी।

भीष्म पितामह इच्छामृत्यु का वरदान पाने के बाद 300 साल से भी अधिक समय तक जीवित रह कर हस्तिनापुर के राज्य की रक्षा करते रही।

भीष्म अष्टमी या भीष्म पितामह की पुण्यतिथि माघ महीने के पखवाड़े के आठवें दिन माघ शुक्ल अष्टमी के दिन मनाई जाती है। इस दिन से जुड़ी किंवदंती के अनुसार, भीष्म ने अपने शरीर को छोड़ने से पहले 58 दिनों तक प्रतीक्षा की ताकि वे सूर्य देव के उत्तरायण के शुभ दिन पर प्राण त्याग सकें, जो दक्षिणायन की छह महीने की अवधि पूरी करने के बाद सूर्य के उत्तर की ओर जाने का प्रतीक है। किंवदंती के अनुसार, उत्तरायण के दौरान मरने वाला स्वर्ग में स्थान प्राप्त करता है।

भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण क्या था?

भीष्म पितामह ने अपने पिता चंद्रवंशी राजा शांतनु का विवाह से सत्यवती करवाने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था और उनकी इस प्रतिज्ञा के कारण उनको भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान मिल था

भीष्म पितामहगुरु परशुराम के शिष्य थे. और उन्होंने स्त्रियों पर शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा भी ली थी.

महाभारत युद्ध के दौरान उनकी स्त्रियों पर शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा की कारण भीष्म पितामह ने ‘शिखंडी’  जो स्त्री से पुरुष बना था पर शस्त्र नहीं उठाए और ऐसे में अर्जुन ने शिखंडी को ढाल बनाकर भीष्म को अपने तीरों से छलनी कर दिया था। क्योंकि भीष्म पितामह एक अजेय योद्धा थे उनको सिर्फ इसी प्रकार हराया जा सकता था। ऐसे में उनकी स्त्रियों पर शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा और शिखंडी भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बना.

सनातन शास्त्रों के अनुसार, उत्तरायण में माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग अपनी इच्छा से किया था। इसके लिए हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर एकोदिष्ट श्राद्ध किया जाता है।

इस पवित्र भीष्म अष्टमी के दिन पर भक्तजन तर्पण और उपवास जैसे अनुष्ठान करते हैं।

भीष्म अष्टमी महाभारत के महापुरुष भीष्म पितामह को उनकी प्रीतिज्ञा और उनकी राज्यभक्ति (देशभक्ति) के लिए धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से उनको सम्मानित करने के लिए माघ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है।

भीष्म पितामह का जीवन

भीष्म के जन्म और युवावस्था का वर्णन मुख्य रूप से महाकाव्य के आदि पर्व ग्रन्थ में किया गया है। वे चंद्रवंश के राजा शांतनु और उनकी पहली पत्नी गंगा, जो नदी देवी थीं, के एकमात्र जीवित पुत्र थे। ऐसा माना जाता है कि वे द्यौ उर्फ ​​प्रभास नामक वसु के अवतार थे।

विभिन्न मतों के अनुसार, महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह (3394-3138 ईसा पूर्व) की मृत्यु 300 वर्ष से अधिक की आयु में युद्ध में हुई। वे मगध के राजा सत्यधृति (3394-3351 ईसा पूर्व) के समकालीन थे, जो जरासंध (3222 – 3180 ईसा पूर्व) के परदादा थे।

जनश्रुति में ऐसा माना जाता है कि भीष्म की ऊंचाई 7.9 फीट करीब थी, जबकि पांडव भाइयों में भीम सबसे लंबे थे, उनकी लंबाई 8.5 फीट थी। अन्य लोगों की ऊंचाई में घटोत्कच की लंबाई 50 फीट, बलराम और दुर्योधन दोनों की ऊंचाई 8 फीट, कर्ण की ऊंचाई 7.1 फीट,  कृष्ण और युधिष्ठिर दोनों कीऊंचाई 7-7.8 फीट करीब बताई गई है।

महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपने पूर्वजन्म में एक पाप किया था. इस पाप के कारण उन्हें अगले जन्म में भीष्म के रूप में जन्म लेना पड़ा. भीष्म पितामह ने अपने पूर्वजन्म में एक वसु के रूप में जन्म लिया था और उनका नाम द्यौ था.

देवव्रत का भीष्म पितामह बनने का सफर एक कठिन प्रतिज्ञा से शुरू हुई थी। यह प्रतिज्ञा उन्होंने अपने पिता शांतनु के कारण ली थी। और इसके कारण  मां गंगा के पुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त हुआ था।

भीष्म पितामह ने अपने पिता की खुशी के लिए राजा नहीं, बल्कि हस्तिनापुर का सेवक बनकर राज्य की सेवा की थी।

महाभारत के युद्ध में कई महाबली महारथियों को अपने प्राण त्यागने पड़े थे। इनमें से एक भीष्म पितामह भी थे। महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी और द्वापर युग में धर्म की नींव रखी गई थी।

हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को एकदिष्ट श्राद्ध किया जाता है। इस मौके पर भीष्म अष्टमी भी मनाई जाती है। भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिए माघ माह में सूर्य देव के उत्तरायण होने का समय चुना था।

भीष्म अष्टमी तिथि और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरूआत 05 फरवरी 2025 की देर रात 02:30 मिनट पर शुरू होगी। वहीं अगले दिन यानी की 06 फरवरी की देर रात 12:35 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी।

सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। ऐसे में उदयातिथि के हिसाब से 05 फरवरी 2025 को भीष्म अष्टमी मनाई जा रही है। वहीं श्राद्ध के लिए सुबह 11:30 मिनट से लेकर दोपहर 01:41 मिनट तक है।

भीष्म अष्टमी पूजन विधि

इस दिन सुबह जल्दी स्नान कर लें। वहीं यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करें। फिर हाथ में जल लेकर तर्पण करें और इस दौरान आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।

अगर आप जनेऊ धारण करते हैं तो तर्पण के दौरान दाहिने कंधे पर जनेऊ धारण करें। तर्पण करने के दौरान

ॐ भीष्माय स्वधा नमः। पितृपितामहे स्वधा नमः मंत्र का जाप करें।

इसके बाद गंगापुत्र भीष्म को तिल के साथ अर्घ्य अर्पित करें और उनका आशीर्वाद लें।

भीष्म अष्टमी का महत्व

भीष्म पितामह एक ऐसा महापुरुष थे, जिनकी महानता का वर्णन महाभारत में खुद भगवान श्रीकृष्ण ने किया है।इस दिन लोग पूजा-पाठ करते हैं और भीष्म पितामह के त्याग और तप तथा धर्म की कथा सुनते हैं। हर साल माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी की पूजा की जाती है।

 

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