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Monday, December 23, 2024

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Buddhadeb Bhattacharjee: बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन से वामपंथ की रचनात्मक राजनीति का अंत

 

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य (Buddhadeb Bhattacharjee) का 8 अगस्त 2024 को कोलकाता में लम्बे समय तक फेफड़ों की समस्या से पीड़ित रहने के कारण निधन हो गया। उनके निधन के साथ ही वामपंथी राजनीति का एक अध्याय भी समाप्त हो गया.

बीते कुछ समय से बीमार चल रहे भट्टाचार्य 80 साल के थे और उनका निधन आठ अगस्त को बालीगंज स्थित उनके पाम एवेन्यू आवास पर हुआ.

बुद्धदेव भट्टाचार्य एक भारतीय कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे, जिन्होंने 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के 7वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। 5 दशकों से अधिक के राजनीतिक जीवन में, वे अपने शासनकाल के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक बन गए।

भट्टाचार्य का जन्म 1 मार्च 1944 को उत्तरी कोलकाता में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके दादा श्री कृष्णचंद्र स्मृतितीर्थ, जो वर्तमान बांग्लादेश के मदारीपुर जिले से थे, एक संस्कृत विद्वान, पुजारी और एक विपुल लेखक थे। उन्होंने पुरोहित दर्पण नामक एक पुरोहित पुस्तिका की रचना की थी जो पश्चिम बंगाल में बंगाली हिंदू पुजारियों के बीच आज भी लोकप्रिय है।

वह 1966 में एक प्राथमिक सदस्य के रूप में सीपीआई (एम) में शामिल हुए। खाद्य आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के अलावा, उन्होंने 1968 में वियतनाम के मुद्दे का भी समर्थन किया। 1968 में, उन्हें डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन का राज्य सचिव चुना गया, जो सीपीआई (एम) की युवा शाखा थी, जिसे बाद में डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया में विलय कर दिया गया।

उनकी पार्टी के कुछ कॉमरेड उन्हें मार्क्सवादी कम, बंगाली ज़्यादा मानते थे. उनके पहनावे और बातचीत के सलीके के चलते कुछ दूसरे कॉमरेड उन्हें भद्रलोक कहा करते थे.

आर्थिक उदारवाद लागू करने और पूंजीवाद के साथ तालमेल बिठाने के चलते कुछ कॉमरेड उन्हें ‘बंगाली गोर्बाचोव’ भी कहते थे.

पहले ज्योति बसु की कैबिनेट में अहम मंत्री और बाद में 2000 से लेकर 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के तौर पर, मैं उन्हें ऐसे शख़्स के तौर पर देखता रहा जिन्हें दिन भर की कामकाजी व्यस्तता के बाद यूरोपीय फ़िल्मकारों की बेहतरीन फ़िल्में देखना पसंद था.

बुद्धदेव भट्टाचार्य नामचीन बंगाली वामपंथी कवि सुकांतो भट्टाचार्य के भतीजे थे, मंत्री रहते हुए उन्होंने कुछ नाटक लिखे जिनका मंचन भी हुआ.

1990 के शुरुआती सालों में उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर अपने मेंटॉर ज्योति बसु को हतप्रभ कर दिया था हालांकि बाद में ज्योति बसु ने उन्हें मंत्रीमंडल में वापसी करने के लिए मना लिया था.

जब वे सरकार से बाहर थे तब उन्होंने एक दुसमय (ख़राब समय) शीर्षक से एक नाटक लिखा था, एक तरह से यह नाटक उनके अपने उहापोह पर आधारित था.

वे उस वक़्त वामपंथी विचारधारा के साथ समझौता करने में ख़ुद को असमर्थ पा रहे थे.

बंगाल के बौद्धिक चिंतकों, लेखकों, कवियों, नाट्यकर्मियों और सिने जगत के लोगों के बीच बुद्धदेव बेहद लोकप्रिय थे.

वे हमेशा इन लोगों को प्रोत्साहित किया करते थे. हालांकि यह सिलसिला तब थम गया जब पश्चिम बंगाल की पुलिस ने नंदीग्राम की ज़मीन को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाईं.

इसके बाद बड़ी संख्या में बंगाली बुद्धिजीवियों ने बुद्धदेव भट्टाचार्य की आलोचना की.

प्रेसीडेंसी कॉलेज में उनकी सहपाठी रहीं फ़िल्म अभिनेत्री और निर्देशिका अपर्णा सेन ने नंदीग्राम में पुलिस कार्रवाई के ख़िलाफ़ मीडिया से कहा था, “मुझे भरोसा नहीं हो रहा है कि बुद्धदेव की पुलिस ग़रीब खेत मज़दूरों पर गोलियाँ चला सकती हैं.”  ऐसी ही आलोचना थिएटरकर्मी साउली मित्रा और लेखिका महाश्वेता देवी ने भी की थी.

बुद्धदेव सरकारी खर्चे पर तामझाम से कोसों दूर रहे. वे जब मुख्यमंत्री भी थे तब भी दो बेडरूम वाले अपार्टमेंट में रहते थे.

अधिकांश मौक़ों पर वे धोती कुर्ता में ही नज़र आते थे. वेतन का अधिकांश हिस्सा वे पार्टी कोष में जमा करा देते थे और पत्नी के वेतन से परिवार का ख़र्च चलाया करते थे.

अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने सशक्त ट्रेड यूनियनें, हड़ताल, औद्योगिक उत्पादन बंद करना और अमीरों को निशाना बनाने का चलन, इन सबको बदलने की कोशिश की जो कभी बंगाल में वामपंथी शासन की पहचान हुआ करते थे.

व्यक्तिगत तौर पर, वे मानते थे कि आर्थिक सुधार के मोर्चे पर बंगाल की बस छूट चुकी है और 1960-70 के दशक की नक्सली हिंसा के चलते बंगाल में निवेश भी नहीं रहा और इसे वापस लाने की ज़रूरत है.

इसके चलते उन्होंने राज्य में कहीं से भी मिलने वाले वित्तीय निवेश को हासिल करने का लक्ष्य बनाया.

बुद्धदेव पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक तरह से देंग और गोर्बाचोव की तरह ही थे लेकिन उन्हें इन दोनों से अपनी तुलनाएं पसंद नहीं थीं.

बीबीसी के एंड्रूय व्हाइटहेड को बीबीसी की कम्यूनिज़्म पर आधारित सिरीज़ के लिए दिए गए इंटरव्यू में बुद्धदेव ने कहा था, “मार्क्सवाद विचारों का संरचना है जिसका रचनात्मक इस्तेमाल किसी को भी अपनी परिस्थितियों के मुताबिक़ करना चाहिए.”

उन्होंने कृषि आय पर आश्रित पश्चिम बंगाल को अद्यौगिकीकरण की राह पर लाकर अपने राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा जोखिम लिया था.

उद्योग धंधों की स्थापना के लिए उन्होंने विदेशों से और देश के ही दूसरे राज्यों से पूंजी लाने के लिए मार्क्सवादी सिद्धांतों से समझौता भी किया.

इसमें दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो का प्रोजेक्ट भी शामिल था, जिसे वे कोलकाता के पास में सिंगुर में लाने में कामयाब हुए.

इसके अलावा दूसरे प्रस्ताव भी थे, जिसमें मिदनापुर ज़िले के सालबोनी में जिंदल समूह के स्वामित्व वाले भारत के सबसे बड़े स्टील प्लांट और नयाचार में केमिकल हब की स्थापना शामिल थी.

लेकिन नंदीग्राम में किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद इनमें से किसी भी प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया. नंदीग्राम में इंडोनेशियाई सालेम समूह केमिकल इंडस्ट्रीज हब बनाना चाहता था.

लेकिन बुद्धदेव भट्टाचार्य की योजना नाकाम हो गई और उनकी पार्टी को दूसरे वामपंथी दलों के साथ 2009 के आम चुनावों में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा.

2011 में पश्चिम बंगाल में वाममोर्चे को हार का सामना करना पड़ा. ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार का गठन किया.

2011 के चुनाव में बुद्धदेव अपनी सीट तक नहीं बचा सके. 24 सालों तक जाधवपुर का प्रतिनिधित्व करने वाले बुद्धदेव को तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मनीष गुप्ता ने 16,684 मतों से हराया था.

जब ज्योति बसु मुख्यमंत्री थे तब गुप्ता राज्य के मुख्य सचिव हुआ करते थे.

वैसे बतौर मुख्यमंत्री बुद्धदेव के बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के साथ हमेशा नज़दीकी संबंध रहे.

ज्योति बसु की तरह ही बुद्धदेव का मानना था कि बांग्लादेश में सेक्युलर डेमोक्रेटिक सरकार के होने से पश्चिम बंगाल को धर्म की राजनीति से दूर रखने में मदद मिलेगी.

ये भी संयोग है कि शेख़ हसीना को बांग्लादेश की सत्ता छोड़कर भारत में शरण लेने के कुछ ही दिनों के बाद उनका निधन हुआ है.

बांग्लादेशी अवामी लीग के कई नेता निजी बातचीत में कहते आए हैं कि तीस्ता जल बंटवारे के समझौते में जिस तरह से बाधा ममता बनर्जी उत्पन्न कर रही हैं, वैसा बुद्धदेव कभी नहीं करते.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आम तौर पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की मुखर आलोचक रही हैं लेकिन उन्होंने ज्योति बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य पर कभी कोई निजी आरोप नहीं लगाया है.

वे बीमार बुद्धदेव भट्टाचार्य को देखने के लिए कई बार जाती रहीं ताकि कम से कम बुद्धदेव अपने पार्टी समर्थकों को बीजेपी से दूर रहने की अपील कर सकें.

वैसे पश्चिम बंगाल के प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक सुखोरंजन दासगुप्ता की नजरों में बुद्धदेव भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री बिधान रॉय की तरह थे.

उन्होंने बताया, “बुद्धदेव को बंगाल से प्यार था, बंगाल की पहचान दर्शाने वाली हर चीज़ से उन्हें प्यार था चाहे वो भाषा हो, संस्कृति हो या कुछ भी हो.”

जनवरी 2022 में, भारत सरकार ने भट्टाचार्य को भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। हालाँकि, उन्होंने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया और दावा किया कि उन्हें पुरस्कार के बारे में सूचित नहीं किया गया था।

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