Ream Naval Base (Cambodia) विश्व पटल पर अमेरिकी वर्चस्व को खत्म कम करता हुआ चीन अपनी नौसेना का विस्तार कर रहा है.
कंबोडिया के रीम नौसैनिक अड्डे पर इस साल अधिकतर समय सैटेलाइट से दो उभरती आकृतियां दिखती रहीं.
इन आकृतियों से शायद अमेरिका को इस बात का डर सता रहा होगा कि चीन दक्षिण चीन सागर में उन तीन विवादित द्वीपों के आगे भी पांव पसार रहा है, जिन पर उसने न सिर्फ़ क़ब्ज़ा किया है बल्कि किलेबंदी भी कर ली है.
ये आकृतियां चीनी नौसेना की 1,500 टन वजनी A56 युद्धपोत हैं जो चीन के बनाए घाट (छोटे युद्धपोतों के ठहरने की जगह) के पास खड़े हैं. ये इतने बड़े हैं कि इनमें बड़े युद्धपोतों या जहाजों को भी रखा जा सकता है.
तट की ओर भी चीन ने कई निर्माण किए हैं. माना जा रहा है कि ये चीन की नौसेना के इस्तेमाल के लिए है.
कंबोडिया सरकार ने बार-बार इस संभावना से इनकार किया है और अपने संविधान का हवाला दिया है,जिसके मुताबिक़ किसी भी तरह की स्थायी विदेशी सैन्य उपस्थिति प्रतिबंधित है. उसने कहा है कि रीम सभी मित्र नौसेनाओं के लिए खुला है.
कंबोडिया के रॉयल एकडेमी के पॉलिसी विश्लेषक स्यून सैम ने कहा,’’ एक बात समझने की कोशिश करनी चाहिए कि ये चीन का नहीं बल्कि कंबोडियाई बेस है. कंबोडिया बहुत छोटा है और उसकी सैन्य क्षमता भी सीमित है.’’
‘’हमें बाहरी मित्रों की ओर से और ज़्यादा ट्रेनिंग की ज़रूरत है, ख़ास तौर पर चीन से.’’
हालांकि दूसरे इसे संदेह की नज़रों से देख रहे हैं.
चीन की बढ़ती समुद्री ताक़त चर्चा का विषय है. चीन के पास अब अमेरिका से ज़्यादा समुद्री जहाज हैं.
चीन के पास अफ्रीका के जिबूती में सिर्फ़ एक विदेशी सैन्य अड्डा है, जिसे साल 2016 में बनाया गया था.
इसकी तुलना में, अमेरिका के लगभग 750 विदेशी सैन्य अड्डे हैं – जिनमें से एक जिबूती में भी है. बाकी जापान, दक्षिण कोरिया जैसे चीन के नज़दीकी देशों में हैं.
हालांकि अमेरिका को लगता है ये संतुलन बदल रहा है. उसका मानना है कि ऐसा चीन की एक वैश्विक सैन्य शक्ति बनने की अपनी घोषित महत्वाकांक्षा के कारण हो रहा है.
चीन जिस तरह से अपनी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) के तहत विदेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर खर्च कर रहा है, उससे भी अमेरिका को चीन महत्वाकांक्षी लग रहा है. चीनी क़ानून के मुताबिक़ इन इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण चीनी सेना के मानक के मुताबिक़ भी होना चाहिए.
अमेरिकी विशेषज्ञों का मानना है कि चीन सैन्य अड्डों या सामान्य बंदरगाहों का एक नेटवर्क तैयार करेगा, जिसे वो अपने बेस के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है. रीम ऐसे शुरुआती अड्डों में से एक होगा.
कुछ साल पहले तक कंबोडिया के दक्षिणी छोर पर बसे रीम को अमेरिका की सहायता से अपग्रेड किया जा रहा था.
ये मदद कंबोडिया को दी जानी वाली एक करोड़ डॉलर की सैन्य मदद का हिस्सा थी.
लेकिन साल 2017 में जब कंबोडिया में प्रमुख विपक्षी पार्टी को प्रतिबंधित कर इसके नेताओं को जेल में डाल दिया गया तो अमेरिका ने ये मदद रोक दी.
चीन पर निवेश और आर्थिक मदद के लिए पहले से ही निर्भर कंबोडिया ने तुरंत पाला बदल लिया. कंबोडिया ने अमेरिका के साथ होने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास को भी रद्द कर दिया. इसके बाद अब वो चीन के साथ कथित ‘गोल्डन ड्रैगन प्रैक्टिस’ सैन्य अभ्यास कर रहा है.
साल 2020 में, रीम में अमेरिका की बनाई गई दो इमारतों को तोड़ दिया गया. इसके बाद चीन के पैसे से बनी इमारतों का विस्तार होने लगा.
पिछले साल के अंत तक नया घाट भी बन कर तैयार था. ये जिबूती सैन्य अड्डे के 363 मीटर लंबे घाट जैसा ही था. ये इतना लंबा है कि इसमें चीन के सबसे बड़ा एयरक्राफ्ट कैरियर भी डेरा डाल सकता है.
जल्द ही रीम में दोनों युद्धपोतों को तैनात कर दिया गया. ये युद्धपोत या उनके जैसे ही दो युद्धपोत साल के ज्यादातर समय तैनात रहे.
कंबोडिया ने दावा किया है कि युद्धपोत ट्रेनिंग के लिए खड़े किए गए हैं. उन्हें इस साल होने वाली गोल्डन ड्रैगन अभ्यास के लिए तैयार किया जा रहा है.
यह भी कहा है कि चीन अपनी नौसेना के लिए दो नए A56 युद्धपोत बना रहा है. वो इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि रीम में चीन की उपस्थिति स्थायी नहीं है. इसे बेस नहीं माना जाना चाहिए.
इसके बावजूद अमेरिकी अधिकारियों ने इस साइट के विस्तार को लेकर अपनी चिंताएं ज़ाहिर की हैं.
जैसा कि सैटेलाइट तस्वीरों में दिख रहा है, नए घाट के अलावा एक सूखा डॉक, गोदाम और ऐसी इमारतें हैं जो प्रशासनिक ब्लॉक और रिहायशी क्वॉर्टर जैसे लगते हैं. इसमें चार बास्केटबाल कोर्ट भी हैं.
साल 2019 में ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में कंबोडिया और चीन बीच हुए एक समझौते के लीक होने की ख़बर छापी गई थी. जिसमें चीन को इस बेस की 77 हेक्टेयर ज़मीन 30 साल की लीज के लिए देने की बात की गई थी. इसमें कथित तौर पर सैन्य कर्मियों की तैनाती और हथियार रखे जाने की बात भी थी.
कंबोडियाई सरकार ने इसे फेक न्यूज़ बोलकर ख़ारिज कर दिया था. लेकिन यहाँ इसका ज़िक्र करना ज़रूरी है कि नए घाट में सिर्फ़ चीनी युद्धपोत को ही रखने की अनुमति दी गई थी. फ़रवरी में आने वाले दो जापानी डिस्ट्रॉयर को पास के सिनोवोकविले में रखने के लिए कहा गया था.
हालांकि अगर चीन को यहां खास तौर पर ज्यादा स्थायी रूप से मौजूदगी की इजाजत दी जाती है तो भी कुछ कुछ विशेषज्ञों की नज़र में शायद ही कंबोडिया के संविधान का उल्लंघन करेगी.
कैलीफॉर्निया स्थित रैंड कॉर्पोरेशन के वरिष्ठ पॉलिसी रिसर्चर क्रिस्टिन गुनेज का कहना है कि तकनीकी तौर पर रीम एक स्थानीय अड्डा नहीं है. भले ही इसका विस्तार चीनी फंड से किया गया हो लेकिन इसे चीन को लीज पर नहीं दिया गया है.
उन्होंने कहा, ”हम देख रहे हैं कि चीनी जहाज लगातार रीम में रुक रहे हैं. संवैधानिक प्रतिबंध से बचने का एक तरीका ये भी हो सकता है कि इसे विदेशी अड्डा न कहा जाए बल्कि बारी-बारी से विदेशी फौजों को यहां आने की इजाज़त दी जाए.’’
ज़्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि रीम में लंबे समय तक चीन की उपस्थिति उसके लिए वास्तव में ज्यादा फ़ायदेमंद साबित नहीं होगी. उन्होंने दक्षिण चीन सागर में मिसचिफ, फेरी क्रॉस और सूबी रिफ्स में पहले से ही बना लिए गए तीन बेस की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने दक्षिणी तट पर चीनी नौसेना की मज़बूत मौजूदगी की ओर भी इशारा किया.
लेकिन थाईलैंड की खाड़ी के मुहाने पर रीम में चीन के बेस ने कंबोडिया के पड़ोसियों थाईलैंड और वियतनाम को चिंतित कर दिया है. उत्तर की ओर मौजूद और दूसरे अड्डों और इसे मिलाकर इसे चीन की ओर से वियतनाम को घेरने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
फिलींपींस की तरह ही वियतनाम का भी पूरे दक्षिण चीन सागर में मौजूद द्वीपों को लेकर चीन से विवाद है. उसकी नौसना की चीन की नौसेना के साथ इस मामले को लेकर झड़पें हो चुकी हैं.
थाईलैंड के राष्ट्रीय सुरक्षा आधिकारियों ने भी निजी तौर पर सत्ताहिप थाई नौसेना के मुख्य बंदरगाह के दक्षिण पर चीनी ठिकाना बनने पर चिंता जाहिर की है. आखिरकार थाईलैंड और कंबोडिया के बीच अभी भी कई अनसुलझे ज़मीनी विवाद हैं.
हालांकि कोई भी देश इन शिकायतों को सार्वजनिक तौर पर सामने नहीं लाना चाहता.
थाईलैंड के चीन के साथ जिस तरह के अहम आर्थिक संबंध हैं, उसमें वो कोई विवाद नहीं पैदा करना चाहता.
वहीं वियतनाम चाहेगा कि कंबोडिया में उसके ख़िलाफ़ जन भावनाएं न भड़कें. वियतनाम ये भी नहीं चाहेगा कि उसके यहां चीन विरोधी भावनाएं भड़के.
वहीं, अमेरिकी और भारतीय रणनीतिकार भविष्य में हिंद महासागर में चीन की ओर से नौसैनिक अड्डे बनाने की आशंकाओं को लेकर ज्यादा चिंतित हैं.
चीन के ऐसे नौसैनिक अड्डे में श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह शामिल है. जिसे चीन की सरकारी कंपनी ने साल 2017 में 99 साल की लीज़ पर लिया था. इसी तरह पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह है, जिसे चीन के फंड से दोबारा विकसित किया गया है.
लेकिन अभी ये दूर की कौड़ी ही हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का अमेरिकी सेना के वैश्विक दायरे तक पहुंचना अगले कई साल तक मुश्किल ही रहेगा.
सीएसआईएस एशिया मैरिटाइम ट्रांसपरेंसी इनिशिएटिव के डायरेक्टर ग्रेग पोलिंग कहते हैं, ‘’रीम चीनी नौसेना के ताक़त के प्रदर्शन में ज़्यादा इजाफा नहीं करता. चीन जहाँ पहुँचना चाहता है, वहां तक पहुंचने में ये मदद भी नहीं करता.’’
हालांकि रीम ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने, सैटेलाइटों को ट्रैक करने और लंबी दूरी के लक्ष्यों की निगरानी और उनकी पड़ताल करने के मामले बड़ी भूमिका निभा सकता है.