Christmas: भारत में क्रिसमस का त्योहार 25 दिसंबर को या 7 जनवरी को ?
Christmas: क्रिसमस (Jesus Christ Birthday) या बड़ा दिन, ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। यह 25 दिसंबर को मनाया जाता है और इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व में अवकाश रहता है।
क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है।
एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। 25 दिसंबर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं हैं और शायद इस तिथि को एक रोमन पर्व से संबंध स्थापित करने के आधार पर चुना गया है।
क्रिसमस (Christmas) शब्द की उत्पत्ति ‘क्रिस्टेस मैसे’ (Christes Maese) वाक्यांश से हुई है, जिसका अर्थ है क्राइस्ट का मास।
प्राचीन काल से ही क्रिसमस का पर्व 25 जनवरी को मनाए जाने का प्रचलन है। क्रिसमस के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में भी मतभेद है।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनका जन्म 25 दिसंबर को तो कुछ के अनुसार 7 जनवरी को हुआ था।
कई इतिहासकारों का मानना है कि हिन्दू कैलंडर की बसंत ऋतु की किसी तारीख को उनका जन्म हुआ था।
ईसाई रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल में 336 में पहली बार क्रिसमस मनाया गया था। शोधकर्ता मानते हैं कि ईसा मसीह के जन्म के समय का जो वर्णन मिलता है वह वसंत ऋतु की ओर संकेत करता है। वसंत ऋतु मार्च और अप्रैल के मध्य रहती है।
कॉन्स्टेंटाइन द ग्रेट, (Constantine the Great, was a Roman emperor) 306 ई. से 337 ई. तक रोमन सम्राट थे तथा ईसाई धर्म अपनाने वाले पहले रोमन सम्राट थे।
देशों में 7 जनवरी को मनाया जाएगा क्रिसमस (Christmas on January 7th):
दुनिया के इन देशों में 7 जनवरी को क्रिसमस मनाया जाता है, जिनमें रूस, इजराइल, मिस्र, यूक्रेन, बु्ल्गारिया, माल्डोवा, मैक्डोनिया, इथियोपिया, जॉर्जिया, ग्रीस, रोमानिया, सर्बिया, बेलारूस, मोंटेनेग्रो, कजाखस्तान शामिल हैं ।
ग्रेगोरियन और जूलियन कैंलेडर (Gregorian and Julian calendar) में अंतर होने के कारण ऐसा होता है। यह देश जूलियन कैलेंडर (Julian calendar) को फॉलो करते हैं।
यह भी कहते हैं कि पहले 7 जनवरी को ही क्रिसमस डे (Christmas Day) मनाया जाता था। लेकिन 1752 में जब इंग्लैंड ने ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian calendar) अपनाना शुरू किया तो जूलियन कैलेंडर (Julian calendar) के साथ अंतर को पूरा करने के लिए दिनों को हटा दिया गया। कई लोगों ने इस बदलाव को स्वीकार नहीं किया और जूलियन कैलेंडर का उपयोग करना पसंद किया।
अर्मेनियाई अपोस्टोलिक चर्च (Armenian Apostolic Church) 6 जनवरी को एपिफेनी (प्रकटीकरण) के साथ क्रिसमस मनाता है। रविवार को सबसे पहला ईसाई उत्सव था। एपिफेनी यानी यह रहस्योद्घाटन कि यीशु ईश्वर का पुत्र था।
भारत में ईसाई धर्म, अंग्रेजों द्वारा लाया गया इसलिए भारतीय क्रिश्चियन जूलियन कैलेंडर के अनुसार क्रिसमस त्योहार (Christmas Festival) 25 दिसंबर को ही मनाते है।
क्या बाइबल में है जन्म का दिन ?
बाइबल (Holy Bible) में ईसा के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है। न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ अरली क्रिश्चियानिटी में भी इसका कोई जिक्र नहीं मिलता है।
बाइबल में यीशु मसीह के जन्म की कोई निश्चित तारीख नहीं दी गयी है। बाइबल में यीशु के जन्म के समय की दो घटनाओं का जिक्र मिलता है जिससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि उनका जन्म कब हुआ था।
पहली घटना : पहली घटना यह कि यीशु के जन्म के कुछ ही समय पहले सम्राट ऑगस्टस ने यह आदेश जारी किया कि उसके राज्य के सभी लोग अपना अपना नाम दर्ज कराएं। यीशु के माता पिता नाम दर्ज कराने ही जा रहे थे कि रास्ते में यीशु का का जन्म हुआ।-। (लूका 2:1-3)। चूंकि अधिकर लोगों को पहले पैदल ही सफर करना होता था तो यह संभव नहीं था कि ऑगस्टस कड़ाके की ठंड में यह आदेश देता। इससे पहले से भड़की जनता और भड़क जाती।
दूसरी घटना : दूसरी घटना घटना के अनुसार उस वक्त चरवाहे मैदानों में रहकर रात को अपने झुंडों (भेड़ों) की रखवाली कर रहे थे।- (लूका 2:8)। इसका यह मतलब यह कि उस वक्त कड़ाके की ठंड नहीं थी।
‘डेली लाइफ इन द टाइम ऑफ जीसस’ (Daily Life at the Time of Jesus) नामक किताब में यह उल्लेख मिलता है कि ‘फसल के एक हफ्ते पहले’ यानी करीब मार्च के मध्य से लेकर नवंबर के मध्य तक भेड़ों के झुंड खुले मैदान में रहते थे। यही किताब में लिखा है कि ‘सर्दियों के दौरान वे (चरवाहें और भेड़े) अंदर ही रहते थे।
कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म वसंत में हुआ था, क्योंकि इस बात का जिक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते।
25 दिसंबर ही को क्रिसमस डे क्यों ?
इतिहासकारों के अनुसार रोमन काल से ही दिसंबर के आखिर में पैगन परंपरा (Paganism) के तौर पर जमकर पार्टी करने का चलन रहा है। यही चलन ईसाइयों ने भी अपनाया और इसे नाम दिया ‘क्रिसमस’। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के हवाले से कुछ लोग यह भी कहते हैं कि चर्च के नेतृत्व कर्ता लोगों ने यह तारीख शायद इसलिए चुनी ताकि यह उस तारीख से मेल खा सके, जब गैर-ईसाई रोमन लोग सर्दियों के अंत में ‘अजेय सूर्य का जन्मदिन मनाते’ थे।’
पैगन परंपरा (Paganism) क्या है ?
पैगन या पैगनस का अर्थ “नागरिक” था और इसका उपयोग रोमन साम्राज्य के अंत में उन लोगों को संदर्भित करने के लिए किया जाता था जो ईसाई धर्म, यहूदी धर्म या इस्लाम के अलावा किसी अन्य धर्म का पालन करते थे, और विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो कई देवताओं की पूजा करते, या ‘मूर्तिपूजक’ थे। पेगन एक निन्दात्मक शब्द हुआ करता था जिसका उपयोग बहुदेववादी धर्म को ईसाई धर्म से नीचा दिखाने के निमित्त किया जाता था। पेगन धर्मों को अक्सर “देहाती के धर्म” के प्रसंग में काम में लिया करते थे।
Sol Invictus या ‘अजेय सूर्य’ का जन्मदिन:
सोल इन्विक्टस (Sol Invictus) “अजेय सूर्य” या “अपराजित सूर्य” रोमन साम्राज्य के उत्तरार्ध के आधिकारिक ‘सूर्य देवता’ और ‘सोल देवता’ के बाद के संस्करण थे ।
सम्राट ऑरेलियन ने 274 ईस्वी में अपने पंथ को पुनर्जीवित किया और सोल इन्विक्टस को साम्राज्य के मुख्य देवता के रूप में बढ़ावा दिया।
ऑरेलियन के बाद से, सोल इन्विक्टस अक्सर शाही सिक्कों पर दिखाई देते थे, जिन्हें आमतौर पर सूर्य मुकुट पहने और आकाश में घोड़े से खींचे गए रथ को चलाते हुए दिखाया जाता था।
उनकी प्रमुखता तब तक रही जब तक सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने ईसाई धर्म को वैध कर मूर्तिपूजा को प्रतिबंधित नहीं कर दिया।
सोल इन्विक्टस के जिक्र का अंतिम ज्ञात शिलालेख 387 ईस्वी का है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं के अनुसार रोमन कैथोलिक चर्च ने इस दिन को ‘बड़े दिन’ के रूप में चुना था। कहते हैं कि इसे विंटर सोलिस्टिस से जोड़ा गया, जो कि उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन होता है। उसके अगले दिन से दिन की लंबाई धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। इस दिन रोमन संस्कृति शनि देवता का पर्व ‘सैटर्नालिया’ भी मनाते हैं। इसीलिए रोमनों ने यह दिन चुना। ऐसे में चर्च ने इस तारीख को ईसा मसीह के जन्मदिन के तौर पर सेलिब्रेट करने का निर्णय लिया।
उस समय यूरोप में गैर ईसाई लोग इस दिन को ‘सूर्य के जन्मदिन’ के रूप में भी मनाते थे। ऐसे में चर्च यह भी चाहता था कि गैर ईसाईयों के सामने एक बड़ा त्योहार खड़ा किया जाए। क्योंकि सभी लोग इस दिन उत्सव मनाते थे तो उन्होंने इसी दिन को ईसा मसीह का जन्मदिन घोषित करके सेलिब्रेट करने का निर्णय लिया।
एक अन्य मान्यता अनुसार यीशू मसीह ईस्टर के दिन अपनी मां के गर्भ में आए थे, इस तरह उसके 9 महीने बाद लोग उनका जन्मदिन मानाने लगे। गर्भ में आने के दिन को रोमन और कई लोगों ने 25 मार्च माना था। वहीं, ग्रीक कैलेंडर के मुताबिक इसे 6 अप्रैल माना जाता है। इसके अनुसार 25 दिसंबर और 6 जनवरी की तारीखें सामने आईं थीं।
हालांकि यह तय करना अभी बाकी है कि यीशु का जन्म सर्दियों में हुआ था या वसंत में? लेकिन कहते हैं कि सर्दियों में उन्होंने 30 वर्ष की उम्र में यूहन्ना (जॉन) से बाप्तिस्मा (दीक्षा) ली।
बाइबल के अनुसार, ईस्वी 27 की शरद ऋतु में यीशु का बपतिस्मा हुआ (मत्ती 3: 13-17; मरकुस 1: 9–11; लूका 3: 21–22)। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला तब तक लगभग छह महीने तक प्रचार करता रहा था; (मत्ती 3: 1)।
शरद ऋतु त्योहारों का समय (Autumn festivals):
- रोश हशनाह, या तुरहियां फूंकने का पर्व (लैव्यव्यवस्था 23:24; गिनती 29: 1)।
- योम किप्पुर, प्रायश्चित का दिन (निर्गमन 30:10; लैव्यव्यवस्था 16)।
- तंबुओं का पर्व (निर्गमन 23:16; लैव्यव्यवस्था 23:34)।
तीसरे त्योहार में सभी मनुष्यों को यरूशलेम में परमेश्वर के सामने आने की उम्मीद थी (निर्गमन 23: 14-17)। कहते हैं कि 27 दिसंबर की शरद ऋतु में, यीशु यरदन में बपतिस्मा लेने के लिए यूहन्ना के पास आए। (मत्ती 3: 13-15)।
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