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Monday, December 23, 2024

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Himalayan herbal: जड़ी-बूटियों की रानी शतावरी

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Himalayan herbal: जड़ी-बूटियों की रानी शतावरी

भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक प्रकार की ऐसी जड़ी बूटियां पाई जाती है जिसका आयुर्वेद में बहुत महत्व है.

इन जड़ी बूटियों से कई बीमारियों का इलाज भी किया जाता रहा है. इन्हीं जड़ी बूटीयों में से एक है शतावरी का पौधा.

शतावरी एक दुर्लभ पौधा होता है. आयुर्वेद में हजारों सालों से इसका प्रयोग होता आ रहा है.

शतावरी का अनुवाद “100 जीवनसाथी” के रूप में किया जा सकता है, जिसका अर्थ है प्रजनन क्षमता और जीवन शक्ति बढ़ाने की इसकी क्षमता। आयुर्वेद में, इस अद्भुत जड़ी बूटी को “जड़ी-बूटियों की रानी” के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह प्रेम और भक्ति को बढ़ावा देती है।

शतावरी महिलाओं के लिए मुख्य आयुर्वेदिक कायाकल्प टॉनिक भी है

इस पौधे की जड़े कई सारी दवाइयां बनाने में काम में आती है.

यह पौधा बहुत दुर्लभ पौधे की श्रेणी में आता है, लेकिन अब इस पौधे का रोपण भी संभव है. इसके लिए लाल दोमट और काली मिट्टी की आवश्यकता होती है.

यह बेल या झाड़ के रूप में ही विकसित होता है. इसकी लताएं झाड़दार होती हैं जो चारों ओर फैल जाती हैं.

आयुर्वेद में शतावरी पौधे का प्रयोग अलग-अलग तरीकों से कई सालों से होता रहा है.

इस पौधे से बनी दवाइयों का उपयोग चिकित्सक की सलाह से, दवा की उचित मात्रा, विधियां, उपयोग के तरीकों के नियम का पालना बहुत जरूरी है.

मुख्य रूप से शतावरी का प्रयोग भिन्न-भिन्न बीमारियों में किया जाता रहा है.

  • अनिद्रा रोग निदान के लिए
  • गर्भवती और स्तनपान के लिए
  • सांसों के मरीजों के लिए
  • कमजोरी दूर करने के लिए

आयुर्वेद के अनुसार शतावरी के पौधे के फूल सफेद रंग के बेहद खूबसूरत और अच्छी सुगंध वाले होते हैं.

इसका प्रयोग कई दवाइयां बनाने में किया जाता रहा है.

अब शतावरी के पौधे की खेती भी होने लगी है. इस पौधे का रोपण जुन-जुलाई मानसून की बरसात में किया जा सकता है.

मुख्य रूप से शतावरी पौधा हिमालय क्षेत्र में पाया जाता रहा है, लेकिन अब शतावरी को गमले के रूप में भी विकसित किया जा सकता है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी, एक सामान्य जानकारी है, सलाह नहीं. इसलिए चिकित्सक से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. MonkTimes.com किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.

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